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चार भायतीय दिव्यांग मुस्लिम युवाओं की कहानी, जिन्होंने खेल के क्षेत्र में उदाअरण प्रस्तुत किया

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  डॉ. रूबी खान  सफलता की यात्रा अक्सर चुनौतीपूर्ण होती है, लेकिन पेरिस 2024 खेलों के लिए जा रहे चार भारतीय मुस्लिम पैरालिंपियनों के लिए चुनौतियां सिर्फ शारीरिक से कहीं अधिक थीं। अमीर अहमद भट, सकीना खातून, अरशद शेख और मोहम्मद यासर ने न केवल अपनी दिव्यांगताओं पर काबू पाया है, बल्कि अपनी पृष्ठभूमि के कारण उन पर रखी गई सामाजिक अपेक्षाओं पर भी उन्होंने काबू पाया है। ये एथलीट रोल मॉडल के रूप में खड़े हैं। खासकर मुस्लिम युवाओं के लिए, यह दर्शाते हुए कि कैसे कोई अपने देश को गौरवान्वित करने के लिए विपरीत परिस्थितियों से ऊपर उठ सकता है। कश्मीर की सुरम्य घाटियों से आने वाले आमिर अहमद भट, कई लोगों के लिए उम्मीद की किरण बन गए हैं। पी 3- मिश्रित 25 मीटर पिस्टल एसएच 1 श्रेणी में प्रतिस्पर्धा करने वाले एक पिस्टल शूटर, आमिर की पैरालिंपिक की यात्रा चुनौतिपूर्ण जीवन की एक अलग ही कहानी बया कर रही है। शारीरिक चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, उनकी सटीकता और दृढ़ संकल्प ने उन्हें दुनिया के शीर्ष पैरा निशानेबाजों में शामिल कर दिया है। उन्होंने संघर्षग्रस्त क्षेत्र में रहने की प्रतिकूलताओं का सामना कि...

सड़क पर प्रदर्शन और बेवजह विवाद इस्लामिक न्याय शास्त्र का अंग नहीं

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कलीमुल्ला खान  इस्लाम के पवित्र ग्रंथों में इस्लामि की शिक्षाएं न्याय, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उत्पीड़न का विरोध करने के विचारों पर दृढ़ता से आधारित हैं। लेकिन इन्हें सार्वजनिक व्यवस्था और शांति के मापदंडों के भीतर हर समय नियंत्रित रखना होगा। इस्लाम ऐसी किसी भी कार्रवाई को प्रतिबंधित करता है जो हिंसा को भड़काती है, या समाज में शांति को भंग करती है। इस्लामिक शिक्षाओं में सड़कों पर हिंसक विरोध प्रदर्शन शामिल नहीं हैं जो दैनिक जीवन को अस्त-व्यस्त कर सकते हैं और राज्य को कमजोर करता है।  अल-रयिहुरियाह, या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार, इसी तरह इस्लाम द्वारा बरकरार रखा गया है। यह स्वतंत्रता निरपेक्ष नहीं है, लेकिन इसे सहिष्णुता, सामाजिक सद्भाव और आम भलाई को बढ़ावा देना चाहिए। कई इस्लामी विद्वान इस बात पर जोर देते हैं कि इस्लाम में, संचार का उपयोग लोगों के बीच घृणा, अमानवीयकरण या विभाजन को भड़काने के साधन के रूप में नहीं किया जाना चाहिए। इसका उद्देश्य समाज में सद्भाव और समझ लाना है। परामर्श का विचार भी मुसलमानों को अपने विचारों को इस तरह से व्यक्त करने में सक्षम बनाकर मुक्त भाषण क...

मुस्लिम महिलाओं को सरकार की विभिन्न योजनाओं तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है स्वयं सहायता समूह

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डॉ. रश्मि खान शाहनवाज  महिलाओं की आर्थिक स्थिति स्थापित करने और उनके समग्र सशक्तिकरण में योगदान देने के लिए कौशल विकसित किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त, स्वयं सहायता समूह यानी एसएचजी अक्सर कानूनी अधिकार और सरकारी मान्यता के आधार पर स्कूलों में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों, स्वास्थ्य जागरूकता अभियानों और कार्यक्रमों में भाग लेते हैं, जिससे महिलाओं को महत्वपूर्ण ज्ञान व तकनीक तक पहुँच में सुविधा होती है। शिक्षा क्षेत्र में एसएचजी का उल्लेखनीय प्रभाव देखा गया है। जैसे-जैसे मुस्लिम महिलाओं की आर्थिक स्थिति अधिक स्थिर होती जाती है, वे अपने बच्चों की शिक्षा में निवेश करते हैं, जिससे न केवल समाज और कौम का भला होता है अपितु देश भी विकास की ओर आपे-आप अग्रसर हो जाता है। यह योजना खासकर लड़कियों के लिए बेहद उपयोगी साबित हो रही है। अब मुस्लिम महिलाओं में भी लड़कियों को पढ़ाने की दिशा में जागरूकता बढ़ी है। इसका असर स्वास्थ्य और स्वतंत्रता, परिवार नियोजन और मातृ देखभाल जैसे विषयों पर व्यापक दिख रहा है। अब तक जो वर्ग हाशिए पर था वह एकाएक मुख्यधारा का आधार बनता जा रहा है।  एसएचजी का सबसे महत्वपूर्ण यो...

एक बार फिर USCIRF की बेबुनियात आलोचना का शिकार हुआ भारत

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  डॉ. हसन जमालपुरी भारत एक बार फिर, यूनाइटेड स्टेट्स कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम (यूएससीआईआरएफ) की बेबुनियाद आलोचना का शिकार हुआ। इस बार, आयोग का दावा है कि भारत धार्मिक अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों के लिए एक खतरनाक जगह बनता जा रहा है। यहां सवाल यह उठता है कि क्या भारतीय मुसलमानों ने ऐसा कहा, या फिर भारत की कोई मुस्लिम संस्था ने इस बात का दावा किया है? यूएससीआईआरएफ यह आरोप किस आधार पर लगाया है यह रहस्य बना हुआ है। भारत में रहने वाले और ज़मीनी हकीकत को जानने समझने वाले अच्छी तरह वाकफ हैं कि भारत अल्पसंख्यकों के मामले में बेहद संजीदा राष्ट्र है। यूएससीआईआरएफ हमारे देश की भयावह तस्वीर पेश करने पर आमादा हैं। सच तो यह है कि ये रिपोर्टें सिर्फ़ अनावश्यक शोर मचाने से ज्यादा कुछ भी नहीं है। हो सकता है यह मामला हमारे राष्ट्र विरोधी ताकतों की करतूत भी हो। इस मामले से हमें सतर्क रहना चाहिए और समाज के युवकों को इसे गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है। समुदाय को ऊपर उठाने के लिए काम करने के बजाय, ये तथाकथित ‘वॉचडॉग’ ऐसी कहानियां गढते और फैलाते हैं जो हमें प्रकारांतर में हानि पहुंचाता है। जब...

वक्फ़ को कुशल प्रबंधन की जरूरत, लेकिन स्वायत्ता पर आंच नहीं आनी चाहिए

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कलीमुल्ला खान  आजकल वक्फ को लेकर चर्चाएं चल रही है। न केवल इस्लाम के मामने वाले इस विषय को लेकर संजीदा हैं अपितु इस मामले को लेकर केन्द्र और प्रदेश की सरकारें भी थोड़ी गंभीर दिखने लगी है। आखिर वक्फ एकाएक चर्चाओं के केन्द्र में कैसे चला आया? इसका एक सीधा-सा उत्तर यह है कि इस संस्था के पास संपत्ति की कोई कमी नहीं है लेकिन जिस काम के लिए इसे बनाया गया था उस दिशा में यह काम करना छोड़ बांकी का सारा काम कर रहा है।  वक्फ, धर्मार्थ बंदोबस्ती की एक इस्लामी संस्था है, जो अल्लाह की सेवा और जनता के लाभ के लिए संपत्ति या संपदा समर्पित करने के विचार पर आधारित है। एक बार वक्फ घोषित होने के बाद ये संपत्तियां धर्मार्थ कार्यों के लिए सौंप दी जाती हैं और इन्हें रद्द, बेचा या बदला नहीं जा सकता है। इन संपत्तियों से प्राप्त आय का उद्देश्य सभी समुदायों की जरूरतों को पूरा करने वाली मस्जिदों, मदरसों, अनाथालयों, अस्पतालों और शैक्षणिक संस्थानों जैसी आवश्यक सार्वजनिक सेवाओं को निधि देना है। हालांकि, भारत में वक्फ संपत्तियों का दुरुपयोग और कम उपयोग लंबे समय से चिंता का विषय रहा है, जिसमें भ्रष्टाचार, कुप्रब...

राज्य और धर्म के बीच की जटिलता को संतुलित करने में अभूतपूर्व भूमिका निभा रहा है भारत

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डॉ. अनुभा खान  भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र माना जाता है। भारत की एक विशेषता यह भी है कि यहां विभिन्न प्रकार की संस्कृति निवास करती है और भिन्न-भिन्न धार्मिक चिंतनों के कई मत-संप्रदाय विकसित हुए हैं। यही नहीं दुनिया के कुछ ऐसे मत-संप्रदाय के मानने वाले भी भारत में निवास करते हैं जिनका अन्य कहीं वजूद नहीं है और अन्य क्षेत्रों में बड़े सेमेटिक समूहों के हिंसा का शिकार भी होते रहे हैं। यहां ऐसा इसलिए संभव हो पाया है क्योंकि भारत के लोकतोंत्रिक व्यवस्था में धर्म और राज्य के बीच अनूठा संबंध है। यह संबंध कई मायनों में जटिल भी है। कई पश्चिमी देशों के विपरीत, जो अपनी सख्त परिभाषा के अनुसार धर्मनिरपेक्षता का पालन करते हैं, वहां की तुलना में भारत का धर्मनिरपेक्षता के प्रति दृष्टिकोण बिल्कुल अलग है। जो इसकी समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता को दर्शाता है। भारत में एक विविध धार्मिक परिदृश्य है, इसका संविधान स्पष्ट रूप से एक धर्मनिरपेक्ष राज्य को अनिवार्य करता है, जो धर्म और सरकार के स्पष्ट पृथक्करण को दर्शाता है। लेख का उद्देश्य धर्मनिरपेक्षता के प्रति भारत के अनूठे दृष्टिकोण की पेश क...

नए न्याय संहिताओं में सबका हित, मुसलमानों को देश के तंत्र में विश्वास बनाए रखने की जरूरत

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  हसन जमालपुरी अभी हाल ही में देश की कानून संहिताओं में व्यापक बदलाव किया गया। सरकार ने भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) सहित नए आपराधिक कानूनों को पूरे देश में लागू कर दिया। अब इन्ही तीनों सहिताओं के आधार पर आपराधिक प्राथमिकियां दर्ज की जाएगी साथ हमें इन्हीं संहिताओं के दायरे में न्याय भी प्राप्त होगा। मसलन, कानून की व्याख्याएं भी इन्हीं सहिताओं के दायरे में की जाएगी। हमारी सरकार ने दावा किया है कि ये कानून देश की कानूनी प्रणाली को आधुनिक बनाने के व्यापक प्रयास का हिस्सा हैं, जो क्रमशः औपनिवेशिक युग के भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे। इन सुधारों को कुछ लोगों द्वारा आवश्यक और लंबे समय से लंबित बताया जा रहा है, लेकिन इनसे महत्वपूर्ण बहस भी छिड़ गई है, खासकर भारत के मुस्लिम समुदाय पर उनके प्रभाव को लेकर। नए कानूनों के सबसे चर्चित पहलुओं में से एक है मॉब लिंचिंग के प्रति उनका दृष्टिकोण, एक ऐसा मुद्दा जिसने भारत में मुसलमानों को असंगत रूप से प्रभावित किया है। भारतीय न्यास स...