सड़क पर प्रदर्शन और बेवजह विवाद इस्लामिक न्याय शास्त्र का अंग नहीं


कलीमुल्ला खान 


इस्लाम के पवित्र ग्रंथों में इस्लामि की शिक्षाएं न्याय, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उत्पीड़न का विरोध करने के विचारों पर दृढ़ता से आधारित हैं। लेकिन इन्हें सार्वजनिक व्यवस्था और शांति के मापदंडों के भीतर हर समय नियंत्रित रखना होगा। इस्लाम ऐसी किसी भी कार्रवाई को प्रतिबंधित करता है जो हिंसा को भड़काती है, या समाज में शांति को भंग करती है। इस्लामिक शिक्षाओं में सड़कों पर हिंसक विरोध प्रदर्शन शामिल नहीं हैं जो दैनिक जीवन को अस्त-व्यस्त कर सकते हैं और राज्य को कमजोर करता है। 


अल-रयिहुरियाह, या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार, इसी तरह इस्लाम द्वारा बरकरार रखा गया है। यह स्वतंत्रता निरपेक्ष नहीं है, लेकिन इसे सहिष्णुता, सामाजिक सद्भाव और आम भलाई को बढ़ावा देना चाहिए। कई इस्लामी विद्वान इस बात पर जोर देते हैं कि इस्लाम में, संचार का उपयोग लोगों के बीच घृणा, अमानवीयकरण या विभाजन को भड़काने के साधन के रूप में नहीं किया जाना चाहिए। इसका उद्देश्य समाज में सद्भाव और समझ लाना है। परामर्श का विचार भी मुसलमानों को अपने विचारों को इस तरह से व्यक्त करने में सक्षम बनाकर मुक्त भाषण के मूल्य पर जोर देता है, जो पूरे समुदाय के लिए फायदेमंद है। जैसा कि इस्लामिक पवित्र ग्रंथों में कहा गया है, इस्लाम उत्पीड़न का विरोध करने का समर्थन करता है, लेकिन केवल तब तक, जब तक यह सही है। यहीं पर विरोध का मुद्दा उठता है। हालाँकि इस्लामी ढाँचा स्पष्ट रूप से विरोध प्रदर्शनों को गैरकानूनी नहीं ठहराता है, लेकिन यह उनके आचरण पर सख्त दिशा-निर्देश लागू करता है। 


पवित्र ग्रंथ कई मौकों पर सीमाओं का उल्लंघन करने के खिलाफ चेतावनी देता है। यह विशेष रूप से प्रासंगिक सबक है, जब अनियंत्रित सार्वजनिक रैलियों के परिणामस्वरूप हिंसा, संपत्ति का विनाश या निर्दाेष लोगों को नुकसान होता है। विरोध प्रदर्शनों के दौरान अनियंत्रित भावनाएँ खतरनाक साबित होती हैं। मीडिया की तस्वीरें आमतौर पर विरोध प्रदर्शनों को अराजक रूप में दिखाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचता है और आम नागरिक घायल होते हैं। ऐसी स्थितियों में, न्याय के नाम पर काम करना स्वीकार्य नहीं है और यह इस्लामी मूल्यों का उल्लंघन है। 


इस्लाम विवादों को सौहार्दपूर्ण और रचनात्मक तरीके से हल करने की वकालत करता है। बहराइच में हाल ही में हुई सांप्रदायिक झड़पों को ध्यान में रखते हुए, हमें याद रखना चाहिए कि इस्लाम न्याय की अवधारणाओं और किसी की राय व्यक्त करने की स्वतंत्रता का समर्थन करता है, इन स्वतंत्रताओं का हमेशा जिम्मेदारी से पालन किया जाना चाहिए। इस्लाम का ढाँचा स्पष्ट है - यह उन कार्यों को मना करता है, जो चोट पहुँचाते हैं, सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ते हैं, या हिंसा भड़काते हैं। ऐसे विरोध प्रदर्शन जो ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं - जैसे संपत्ति को नष्ट करना या हिंसा के कृत्य - इस्लाम के साथ असंगत हैं। इस्लामी मान्यताएँ मुसलमानों को अहिंसक तरीकों से न्याय करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं, जो विरोध करने के अधिकार पर एक सूक्ष्म दृष्टिकोण प्रदान करती हैं। 


यदि अन्याय जारी रहता है, तो कानूनी उपाय बेहतर विकल्प है। इस्लामिक न्याय शास्त्र में इसकी व्यापक व्याख्या की गयी है। इस्लाम का संदेश, नैतिक उपदेशों पर आधारित है। निष्पक्षता, सद्भाव और जिम्मेदार अभिव्यक्ति ही इस्लामिक दृष्टिकोण का हिस्सा है। आइए हम इस्लाम के पवित्र ग्रंथ की शिक्षा का अनुशरण करें। ‘‘याद करें जो कहती है कि जो कोई भी किसी निर्दाेष की जान लेता है, यह ऐसा होगा जैसे उसने पूरी मानवता को मार डाला; और जो कोई भी किसी की जान बचाता है, यह ऐसा होगा जैसे उसने पूरी मानवता को बचाया।’’ इस प्रकार हम देखते हैं कि सड़कों पर प्रदर्शन इस्लामिक न्याय शिक्षा का अंग नहीं है। इसलिए हमें इससे लगातार बचना चाहिए। 


(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)


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