सभ्यताओं की लडाई को रोक सकता है भारतीय लोक परंपरा
गौतम चौधरी अमरीकी दार्षनिक सैमुअल पी0 हैटिंगटन ने सभ्यताओं के अंतर कलह पर एक किताब लिखी है। दंुनिया में इस किताब की बडी चर्चा हुई। दुनियाभर के विचारकों ने किताब की प्रषांसा की और एक स्वर से घोषणा किया कि आने वाला विष्व सभ्यताओं की लडाई में उलझा हुआ होगा। हांलाकि मैंने उस किताब पर छपी टिप्पणियों को ही पढ पाया हूं लेकिन जिस प्रकार पष्चिमी ईसाई-यहूदी गठजोड और इस्लामी विष्व के बीच तलवारें खिंची है उससे तो अब लगने लगा है कि वाकई में विष्व एक बडे यु़द्व की तैयारी में हैं। इस बीच मैंने हिन्दी साहित्य जगत में कलम के जादुगर के नाम से प्रसिद्व रामवृक्ष बेनिपुरी जी की रचना माटी के मूरत की भूमिका पढी। तुरन्त बाद दुष्यंत कुमार के गजलों का संग्रह साये में धूप भी पढने का मौका मिला। पूरा गजल संग्रह अभिनव है लेकिन शीर्षक टिप्पणि की थाह मैं नहीं लगा सका। दुष्यंत लिखते है कि हिन्दीं और उर्दू भाषा जब सामंतों के राजसिंहसन से उतरकर लोकभाषा का स्वरूप ग्रहण करती है तो शब्द और व्याकरण दोनों लोकग्राही हो जाता है। मेरी दृष्टि में हिन्दी और उर्दू के प्रयोग को दुनिया के युद्धरत्त सभ्यताओं पर प्रतिस्थापित कि...