लोकतंत्र के प्रति बढ रहे अविश्वास का फायदा उठाने के फिराक में हैं माओवादी

गौतम चैधरी केन्द्र की सरकार को चलाने के लिए पांच साल बाद एक बार फिर से आम चुनाव कराया जा रहा है। पूरे देश में चुनाव आयोग और कई सरकारी, गैर सरकारी संगठनों ने इस बार चुनाव में मतों के प्रतिशत को बढाने के लिए जबरदस्त अभियान भी चलाया है। दावा किया जा रहा है कि उस अभियान का असर चुनाव में मतों के प्रतिशत पर सकारात्मक पडा है, लेकिन जो रूझान आ रहे हैं उससे पता चल रहा है कि देशभर में तमाम अभियानों के बाद भी प्रतिशत मतों में 10 से ज्यादा की बढोतरी नहीं हुई है। चुनाव आयोग और सरकार के प्रयास के बवजूद कई क्षेत्रों में मतदान के प्रतिशत में कमी भी देखी जा रही है। चुनाव आयोग या नौकरशाही की कसावट वाली सरकार इसे जो माने, लेकिन हमे नहीं भूलना चाहिए कि लोकतंत्र में भारत के आम जन की हिस्सेदारी सिमट रही है। इसका फायदा निःसंदेह लोकतंत्र को आईना दिखने वाले संगठन उठाएंगे। इसका असर अब भारत की लोकतांत्रित सत्ता पर बंदूक के शासन को स्थापित करने वाले माओवादी क्षेत्रों में देखने को मिल रहा है। माने या न मानें, धीरे-धीरे ही सही, लेकिन देश में माओवाद के प्रति स्वीकार्यता बढ रही है। देश के घुर माओवाद विरोधी लोगों ...