सेना के अभियानों पर प्रष्न और उसका राजनीतिकरण दोनों नाजायज

Gautam Chaudhary
भारत सरकार के द्वारा पाकिस्तानी सीमा के अंदर घुसकर हमला किए जाने की घटना को मैं व्यक्तिगत रूप से बहुत ज्यादा तूल नहीं देना चाहता था। लेकिन मेरे देने या न देने से क्या फर्क पड़ता है। भारत और पाकिस्तान की ही नहीं इस मामले ने पूरी दुनिया की मीडिया को अपनी ओर आकर्षित किया। उड़ी हमला हुआ। हमारे सैनिक मारे गए। भारत को बहुत घाटा उठाना पड़। इसकी जांच रिपोर्ट जो बेहद कम समाचार माध्यमों की सुर्खियां बटोर पायी, उसका कुल लब्बोलुआब यही था कि भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की कमजोरी के कारण हमारे दुष्मन हमपर आघात करने में सफल हो गए। समाचार माध्यमों के बारीक अध्यन से यह भी जाहिर होने लगा कि इस हमले के बाद एक लाॅबी बड़ी होषियारी से हथियारों की खरीद के लिए देष में माहौल बनाने लगी। खैर देष है तो इसकी सुरक्षा भी होनी चाहिए। सुरक्षा के लिए हथियार की जरूरत तो पड़ती ही है। साथ में सेना की भी जरूरत होती है। बिना सेना हम राष्ट्र की कल्पना नहीं कर सकते हैं, सो हमें सैन्य ताकत में तो मजबूत होना ही होगा। और जब मोर्चों पर दो-दो प्रभावषाली दुष्मन हों तो हमें होषियारी से अपनी ताकत बढने की जरूत तो है लेकिन इस मजबूरी का फायदा हथियार के दलाल न उठा पाएं, इसकी भी हमें समझ रखनी होगी।
इस पूरे प्रकरण में वर्तमान नरेन्द्र मोदी की सरकार पर राज्यों के चुनाव फायदे के लिए तूल देने का आरोप लग रहा है। नरेन्द्र मोदी जैसे राष्ट्रभक्त से ऐसी अपेक्षा नहीं की जा सकती है। दूसरी बात यह है कि जिस प्रकार से नरेन्द्र मोदी का प्रषिक्षण हुआ है उसमें तो ऐसे प्रष्न खड़े हो ही नहीं सकते हैं। लेकिन एकाएक पाकिस्तान के प्रति वर्तमान सरकार की नीतियों में आए बदलाव, उक्त आरोपों को सिरे से खारिज भी नहीं करने दे रहा है। दूसरी बात यह है कि सर्जिकल स्ट्राइक के बाद, नीचे से लेकर उपर तक भारतीय जनता पार्टी के कार्यकत्र्ताओं में जो श्रेय लेने का होड़ सा देखा, वह भी कम रहस्यपूर्ण नहीं था। यह बताने की कोषिष की जाने लगी कि वर्तमान सरकार ने पाकिस्तान फतह कर दी और उसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण है। इस प्रकार का व्यवहार, सत्ता और सत्तारूढ दल के प्रचारोन्मुख रवैये को चिंहित करता है। मुझे लगता है कि सरकार और सरकारी दल, दोनों को इस व्यवहार से बचना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं किया गया जिसका परिणाम प्रतिपक्षी मैदान में उतर आए और सेना के पराक्रम को राजनीति के खांचों में डाला जाने लगा। इस मामले में हमारे पक्ष-प्रतिपक्ष दोनों को सेना के साथ खड़ा होना चहिए था लेकिन एसा हुआ नहीं। इसकी श    ुरूआत भी भारतीय जनता पार्टी की ओर से ही हुई, जिसको कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने खून की दलाली तक से जोड़ दिया। गलती कहां से हुई और गलती किसने की सवाल यहां यह नहीं है, सवाल तो यह खड़ा होता है कि हमारे राजनीतिक दलों ने हमारी सेना के पराक्रम को राजनीतिक चष्मे से देखा, जो निहायत घटिया मानसिकता का द्योतक है।
जब सर्जिकल स्ट्राइक का प्रचार चल रहा था, उसी बीच द हिन्दू ने एक खबर छाप दी। उसमें कहा गया कि ऐसा ही एक स्ट्राइक डाॅ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुकत प्रगतिषील गठबंधन सरकार समय में भी हुआ था। अब बहस यह चल पड़ी कि एनडीए का स्ट्राइक ज्यादा प्रभावषाली है कि यूपीए का स्ट्राइक ज्यादा प्रभावषाली था। समाचार वाहिनियों पर चर्चा होने लगी। एक पार्टी के समर्थक दूसरे पार्टी को नीचा दिखाने के चक्कर में सेना के दोनों ही अभियानों का महत्व कम कर दिया। चाहे अभियान यूपीए के समय में किया गया हो या फिर एनडीए के समय में। अभियान में राजनीतिक दल के कार्यकत्र्ता शामिल नहीं हुए थे। दोनों ही अभियानों में हमारी सेना ने ही भूमिका निभाई। अब यह अधिकार राजनीतिक दलों को किसने दे दिया कि वे सेना के अभियानों पर प्रष्न खड़ा करें? यह निहायत घटिया और राष्ट्राभिमान को कमजोर करने वाली बहस है।      
इस मामले में हमारे राजनीतिक दलों को तसल्ली से सोचना चाहिए। अपने-अपने दल के हितों से उपर उठकर राष्ट्रहित में सोचने की जरूरत है। पाकिस्तान एक जटिल देष है। पाकिस्तान एक इस्लामिक नियम कायदों को मानने वाला देष है। उसके संविधान का घोष वाक्य है कि पाकिस्तान एक इस्लामिक देष है और इस्लाम के लिए पाकिस्तान का निर्माण हुआ है। वहां की सेना सारे तंत्रों को संचालित करती है। यहां तक की मीडिया को भी नियंत्रित करती है। पाकिस्तान को सउदी अरब का पैसा आता है। अमेरिका से वह हथियार लेता है। आजकल पाकिस्तान, चीन और रूस के निकट भी आ गया है। पाकिस्तान अपने हितों को साधने के लिए कोई भी पैतरा ले सकता है। ऐसे में हमें पाकिस्तान के खिलाफ मोर्चा लेने के लिए गंभीरता से विचार करना होगा। पाकिस्तान के साथ जितने भी युद्ध हुए उन तमाम युद्धों में हमने पाकिस्तान को हराया। सन् 62 की लड़ाई के बाद कई मोर्चों पर हमने चीन को भी मात दिया है। लाख कोषिष करने के बाद भी हमने सिक्किम को भारतीय संघ का सदस्य बनाने में सफलता हासिल की। लेकिन हम कूटनीतिक मोर्चों पर हारते रहे हैं। इसलिए हमें अपनी कूटनीति को मजबूत करना होगा। और इसकी मजबूती तभी संभव है जब हम प्रचार से बचेंगे और सामूहिक निर्णय में विष्वास करेंगे।
पाकिस्तान के खिलाफ जो अभी माहौल देष में बना है उसे बनाए रखने की जरूरत है। पाकिस्तान तभी वार्ता के मेज पर आएगा जब उसे भारत का भय होगा। वह पंष्चिमी सीमा पर आईएसआईएस के खतरों को महसूस करने लगा है। इसके लिए उसे भारत का साथ चाहिए होगा। साथ ही चीन जिस औद्योगिक गलियारे को पाकिस्तान में बनाना चाहता है वह बिना भारत के सहयोग संभव नहीं है। ऐसे में भारत को थोड़ी सैन्य ताकत बढाने की भी जरूरत है। साथ ही कूटनीति और खुफियातंत्र मजबूत करने की जरूरत है। यही नहीं चाहे वह कोई राजनीतिक विचारधारा हो, सेना के अभियान पर प्रष्न खड़ा करने का अधिकार किसी को नहीं होना चाहिए। और हां, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि सेना के अभियानों का राजनीतिक फायदा उठाने भी कोषिष भी अपराध की श्रेणी में है।

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