जलप्रपात में एक प्रेमी की मांदर और बासुरी आज भी सुन सकते हैं आप



गौतम चौधरी 

मोहब्बत, हमने माना, दुनिया बरर्बाद करती है,

ये क्या कम है कि मर जाने के बाद दुनिया याद करती है।

मुगल-ए-आजम की यह कैव्वाली आपने जरूर सुनी होगी। आपने यह भी सुना होगा कि जब प्यार किया तो डरना क्या। दरअसल, प्रेम करने वाले किसी की भी परवाह नहीं करते। उनके लिए प्रेम ही ईश्वर हो जाता है और उसी प्रेम को प्राप्त करने के लिए अपनी दुनिया तक बर्बाद कर लेते हैं। आज हम आपके सामने झारखंड की भूली-बिसरी प्रेम कहानियों में से कुछ खास लेकर आए हैं। तो आइए आपको सुनाते हैं छैला संदु की प्रेम कहानी: - 


आपको तो पता ही होगा कि झारखंड का अधिकतर क्षेत्र घने जंगलों से आज भी आक्षादित है। कहानी बहुत पुरानी है। झारखंड की राजधानी रांची के आस-पास हरी-भरी वादियों की कमी नहीं है। यहां की एक प्रेम कहानी आज भी आसपास के लोगों को रोमांचित कर देता है। यही नहीं जब कभी बाहर के लोग, पर्यटक यहां आते हैं उन्हें भी यह कहानी रोमांचित कर जाता है। यह कहानी जब आप सुनेंगे तो हीर-रांझा, लैला-मजनू, रानी सरिंगा-सदावर्त की कहानी आप भूल जाएंगे एक खास प्रकार के रोमांच से भर जाएंगे।


झारखंड के तमाड़ स्थित बागुरा पीड़ी नामक एक गांव है। यहां छैला संदु नामक युवक रहा करता था। छैला संदु को बगल गांव पाक सकम की लड़की बिंदी से बेइंतहा प्रेम हो गया। पाक सकम गांव जाने के लिए दशम फॉल, इस जलप्रपात पर फिर कभी चर्चा करूंगा, को पार करना पड़ता था। छैला काफी मेहनती, ईमानदार व रसिक मिजाज का युवक था। दिनभर काम करने और जानवरों को चराने के बाद शाम को वह बांसुरी, मांदर व कंधे पर मुर्गा लेकर अपनी प्रेमिका के गांव अपनी थकान मिटाने निकल पड़ता था। 



दाशोम जलप्रपात को पार करने के लिए छैला, बंदु नामक लता का सहारा लेता था, जो जलप्रपात के इस पार से उस पार तक तनी हुई थी। उसे पकड़ कर वह जलप्रपात वाली घाटी को पार कर जाता था। 


छैला, मुर्गा अपने साथ इसलिए रखता था, ताकि उसे पता चल सके कि सुबह हो गई है। संदु-बिंदी दोनों रात भर नाचते-गाते थे। नाचने में मन भर जाता, तो भोर तक बातें करते थे और उसके बाद अलग होते। बिंदी और छैला का यह प्रेमालाप लंबे समय तक चलता रहा लेकिन यह बहुत दिनों तक नहीं चला। दोनों का प्रेम कुछ लोगों को नागवार लगा। उन्हें ईष्र्या होने लगी। ईष्र्या की भावना से उन लोगों ने, जिन लताओं को पकड़ कर छैला जलप्रपात की घाटी पार करता था उसे अधूरा काटकर छोड़ दिया। रोजाना की तरह छैला उस अधकटी लता के सहारे फॉल पार करने लगा। जैसे ही वह बीच में पहुंचा, लता टूट गई और छैला दाशोम फॉल में हमेशा-हमेशा के लिए दफन हो गया। 


स्थानीय लोगों को छैला की प्रेमिका बिन्दु के बारे में बहुत कुछ पता नहीं है। लोगों का कहना है कि बिन्दु के पिता ने उसे कहीं और शादी कर दी लेकिन बाद में वह भी दाशोम जलप्रपात में आकर अपनी जान दे दी। बिन्दी के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं मिलती है। गांव के लोगों का कहना है कि आज भी इस दाशोम फॉल से छैला संदू की मांदर की ताल और बांसुरी की आवाज सुनाई पड़ती है। मैं तो कहूंगा कि जब कभी आप रांची, या फिर झारखंड की शैर पर आएं तो दाशोम फाॅल जरूर देखने जाएं। शायद आपको छैला की मांदर और बासुरी सुनने को मिल जाए। 



प्रेम जीवन है, सौंदर्य है, प्रेम चाहत है, प्रेम पीड़ा है, उमंग है, आवेश है, अग्नि है, ज्वाला है, बिजली है, तूफान है। इसी लिए तो कबीर कहते हैं - 

प्रेम न बाड़ी उपजे, प्रेम न हाट बिकाई।

राजा-परजा जहिं रूचे, सीस देहि ले जाई। 

मुझे तो लगता है कि शायद ही कोई दूसरी मानवीय संवेदना इतनी विविधताओं से भरा होगा। प्रेम एक ऐसी भावना है, जिसे हर इंसान महसूस कर सकता है। मैं यह नहीं मानता कि प्रेम वासनाओं से परे है लेकिन वासना सेकेंडरी है। प्रेम के सामने वासनाएं बौनी पर जाती है। 


इसी तरह की कोई और कहानी लेकर फिर कभी आपके सामने प्रस्तुत होउंगा। 


Comments

Popular posts from this blog

अमेरिकी हिटमैन थ्योरी और भारत में क्रूर पूंजीवाद का दौर

समस्तीपुर की विशेषता और संक्षिप्त इतिहास

चार भायतीय दिव्यांग मुस्लिम युवाओं की कहानी, जिन्होंने खेल के क्षेत्र में उदाअरण प्रस्तुत किया