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Showing posts from 2024

चार भायतीय दिव्यांग मुस्लिम युवाओं की कहानी, जिन्होंने खेल के क्षेत्र में उदाअरण प्रस्तुत किया

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  डॉ. रूबी खान  सफलता की यात्रा अक्सर चुनौतीपूर्ण होती है, लेकिन पेरिस 2024 खेलों के लिए जा रहे चार भारतीय मुस्लिम पैरालिंपियनों के लिए चुनौतियां सिर्फ शारीरिक से कहीं अधिक थीं। अमीर अहमद भट, सकीना खातून, अरशद शेख और मोहम्मद यासर ने न केवल अपनी दिव्यांगताओं पर काबू पाया है, बल्कि अपनी पृष्ठभूमि के कारण उन पर रखी गई सामाजिक अपेक्षाओं पर भी उन्होंने काबू पाया है। ये एथलीट रोल मॉडल के रूप में खड़े हैं। खासकर मुस्लिम युवाओं के लिए, यह दर्शाते हुए कि कैसे कोई अपने देश को गौरवान्वित करने के लिए विपरीत परिस्थितियों से ऊपर उठ सकता है। कश्मीर की सुरम्य घाटियों से आने वाले आमिर अहमद भट, कई लोगों के लिए उम्मीद की किरण बन गए हैं। पी 3- मिश्रित 25 मीटर पिस्टल एसएच 1 श्रेणी में प्रतिस्पर्धा करने वाले एक पिस्टल शूटर, आमिर की पैरालिंपिक की यात्रा चुनौतिपूर्ण जीवन की एक अलग ही कहानी बया कर रही है। शारीरिक चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, उनकी सटीकता और दृढ़ संकल्प ने उन्हें दुनिया के शीर्ष पैरा निशानेबाजों में शामिल कर दिया है। उन्होंने संघर्षग्रस्त क्षेत्र में रहने की प्रतिकूलताओं का सामना कि...

सड़क पर प्रदर्शन और बेवजह विवाद इस्लामिक न्याय शास्त्र का अंग नहीं

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कलीमुल्ला खान  इस्लाम के पवित्र ग्रंथों में इस्लामि की शिक्षाएं न्याय, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उत्पीड़न का विरोध करने के विचारों पर दृढ़ता से आधारित हैं। लेकिन इन्हें सार्वजनिक व्यवस्था और शांति के मापदंडों के भीतर हर समय नियंत्रित रखना होगा। इस्लाम ऐसी किसी भी कार्रवाई को प्रतिबंधित करता है जो हिंसा को भड़काती है, या समाज में शांति को भंग करती है। इस्लामिक शिक्षाओं में सड़कों पर हिंसक विरोध प्रदर्शन शामिल नहीं हैं जो दैनिक जीवन को अस्त-व्यस्त कर सकते हैं और राज्य को कमजोर करता है।  अल-रयिहुरियाह, या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार, इसी तरह इस्लाम द्वारा बरकरार रखा गया है। यह स्वतंत्रता निरपेक्ष नहीं है, लेकिन इसे सहिष्णुता, सामाजिक सद्भाव और आम भलाई को बढ़ावा देना चाहिए। कई इस्लामी विद्वान इस बात पर जोर देते हैं कि इस्लाम में, संचार का उपयोग लोगों के बीच घृणा, अमानवीयकरण या विभाजन को भड़काने के साधन के रूप में नहीं किया जाना चाहिए। इसका उद्देश्य समाज में सद्भाव और समझ लाना है। परामर्श का विचार भी मुसलमानों को अपने विचारों को इस तरह से व्यक्त करने में सक्षम बनाकर मुक्त भाषण क...

मुस्लिम महिलाओं को सरकार की विभिन्न योजनाओं तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है स्वयं सहायता समूह

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डॉ. रश्मि खान शाहनवाज  महिलाओं की आर्थिक स्थिति स्थापित करने और उनके समग्र सशक्तिकरण में योगदान देने के लिए कौशल विकसित किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त, स्वयं सहायता समूह यानी एसएचजी अक्सर कानूनी अधिकार और सरकारी मान्यता के आधार पर स्कूलों में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों, स्वास्थ्य जागरूकता अभियानों और कार्यक्रमों में भाग लेते हैं, जिससे महिलाओं को महत्वपूर्ण ज्ञान व तकनीक तक पहुँच में सुविधा होती है। शिक्षा क्षेत्र में एसएचजी का उल्लेखनीय प्रभाव देखा गया है। जैसे-जैसे मुस्लिम महिलाओं की आर्थिक स्थिति अधिक स्थिर होती जाती है, वे अपने बच्चों की शिक्षा में निवेश करते हैं, जिससे न केवल समाज और कौम का भला होता है अपितु देश भी विकास की ओर आपे-आप अग्रसर हो जाता है। यह योजना खासकर लड़कियों के लिए बेहद उपयोगी साबित हो रही है। अब मुस्लिम महिलाओं में भी लड़कियों को पढ़ाने की दिशा में जागरूकता बढ़ी है। इसका असर स्वास्थ्य और स्वतंत्रता, परिवार नियोजन और मातृ देखभाल जैसे विषयों पर व्यापक दिख रहा है। अब तक जो वर्ग हाशिए पर था वह एकाएक मुख्यधारा का आधार बनता जा रहा है।  एसएचजी का सबसे महत्वपूर्ण यो...

एक बार फिर USCIRF की बेबुनियात आलोचना का शिकार हुआ भारत

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  डॉ. हसन जमालपुरी भारत एक बार फिर, यूनाइटेड स्टेट्स कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम (यूएससीआईआरएफ) की बेबुनियाद आलोचना का शिकार हुआ। इस बार, आयोग का दावा है कि भारत धार्मिक अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों के लिए एक खतरनाक जगह बनता जा रहा है। यहां सवाल यह उठता है कि क्या भारतीय मुसलमानों ने ऐसा कहा, या फिर भारत की कोई मुस्लिम संस्था ने इस बात का दावा किया है? यूएससीआईआरएफ यह आरोप किस आधार पर लगाया है यह रहस्य बना हुआ है। भारत में रहने वाले और ज़मीनी हकीकत को जानने समझने वाले अच्छी तरह वाकफ हैं कि भारत अल्पसंख्यकों के मामले में बेहद संजीदा राष्ट्र है। यूएससीआईआरएफ हमारे देश की भयावह तस्वीर पेश करने पर आमादा हैं। सच तो यह है कि ये रिपोर्टें सिर्फ़ अनावश्यक शोर मचाने से ज्यादा कुछ भी नहीं है। हो सकता है यह मामला हमारे राष्ट्र विरोधी ताकतों की करतूत भी हो। इस मामले से हमें सतर्क रहना चाहिए और समाज के युवकों को इसे गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है। समुदाय को ऊपर उठाने के लिए काम करने के बजाय, ये तथाकथित ‘वॉचडॉग’ ऐसी कहानियां गढते और फैलाते हैं जो हमें प्रकारांतर में हानि पहुंचाता है। जब...

वक्फ़ को कुशल प्रबंधन की जरूरत, लेकिन स्वायत्ता पर आंच नहीं आनी चाहिए

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कलीमुल्ला खान  आजकल वक्फ को लेकर चर्चाएं चल रही है। न केवल इस्लाम के मामने वाले इस विषय को लेकर संजीदा हैं अपितु इस मामले को लेकर केन्द्र और प्रदेश की सरकारें भी थोड़ी गंभीर दिखने लगी है। आखिर वक्फ एकाएक चर्चाओं के केन्द्र में कैसे चला आया? इसका एक सीधा-सा उत्तर यह है कि इस संस्था के पास संपत्ति की कोई कमी नहीं है लेकिन जिस काम के लिए इसे बनाया गया था उस दिशा में यह काम करना छोड़ बांकी का सारा काम कर रहा है।  वक्फ, धर्मार्थ बंदोबस्ती की एक इस्लामी संस्था है, जो अल्लाह की सेवा और जनता के लाभ के लिए संपत्ति या संपदा समर्पित करने के विचार पर आधारित है। एक बार वक्फ घोषित होने के बाद ये संपत्तियां धर्मार्थ कार्यों के लिए सौंप दी जाती हैं और इन्हें रद्द, बेचा या बदला नहीं जा सकता है। इन संपत्तियों से प्राप्त आय का उद्देश्य सभी समुदायों की जरूरतों को पूरा करने वाली मस्जिदों, मदरसों, अनाथालयों, अस्पतालों और शैक्षणिक संस्थानों जैसी आवश्यक सार्वजनिक सेवाओं को निधि देना है। हालांकि, भारत में वक्फ संपत्तियों का दुरुपयोग और कम उपयोग लंबे समय से चिंता का विषय रहा है, जिसमें भ्रष्टाचार, कुप्रब...

राज्य और धर्म के बीच की जटिलता को संतुलित करने में अभूतपूर्व भूमिका निभा रहा है भारत

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डॉ. अनुभा खान  भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र माना जाता है। भारत की एक विशेषता यह भी है कि यहां विभिन्न प्रकार की संस्कृति निवास करती है और भिन्न-भिन्न धार्मिक चिंतनों के कई मत-संप्रदाय विकसित हुए हैं। यही नहीं दुनिया के कुछ ऐसे मत-संप्रदाय के मानने वाले भी भारत में निवास करते हैं जिनका अन्य कहीं वजूद नहीं है और अन्य क्षेत्रों में बड़े सेमेटिक समूहों के हिंसा का शिकार भी होते रहे हैं। यहां ऐसा इसलिए संभव हो पाया है क्योंकि भारत के लोकतोंत्रिक व्यवस्था में धर्म और राज्य के बीच अनूठा संबंध है। यह संबंध कई मायनों में जटिल भी है। कई पश्चिमी देशों के विपरीत, जो अपनी सख्त परिभाषा के अनुसार धर्मनिरपेक्षता का पालन करते हैं, वहां की तुलना में भारत का धर्मनिरपेक्षता के प्रति दृष्टिकोण बिल्कुल अलग है। जो इसकी समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता को दर्शाता है। भारत में एक विविध धार्मिक परिदृश्य है, इसका संविधान स्पष्ट रूप से एक धर्मनिरपेक्ष राज्य को अनिवार्य करता है, जो धर्म और सरकार के स्पष्ट पृथक्करण को दर्शाता है। लेख का उद्देश्य धर्मनिरपेक्षता के प्रति भारत के अनूठे दृष्टिकोण की पेश क...

नए न्याय संहिताओं में सबका हित, मुसलमानों को देश के तंत्र में विश्वास बनाए रखने की जरूरत

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  हसन जमालपुरी अभी हाल ही में देश की कानून संहिताओं में व्यापक बदलाव किया गया। सरकार ने भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) सहित नए आपराधिक कानूनों को पूरे देश में लागू कर दिया। अब इन्ही तीनों सहिताओं के आधार पर आपराधिक प्राथमिकियां दर्ज की जाएगी साथ हमें इन्हीं संहिताओं के दायरे में न्याय भी प्राप्त होगा। मसलन, कानून की व्याख्याएं भी इन्हीं सहिताओं के दायरे में की जाएगी। हमारी सरकार ने दावा किया है कि ये कानून देश की कानूनी प्रणाली को आधुनिक बनाने के व्यापक प्रयास का हिस्सा हैं, जो क्रमशः औपनिवेशिक युग के भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे। इन सुधारों को कुछ लोगों द्वारा आवश्यक और लंबे समय से लंबित बताया जा रहा है, लेकिन इनसे महत्वपूर्ण बहस भी छिड़ गई है, खासकर भारत के मुस्लिम समुदाय पर उनके प्रभाव को लेकर। नए कानूनों के सबसे चर्चित पहलुओं में से एक है मॉब लिंचिंग के प्रति उनका दृष्टिकोण, एक ऐसा मुद्दा जिसने भारत में मुसलमानों को असंगत रूप से प्रभावित किया है। भारतीय न्यास स...

भारतीय कानून प्रणाली में नए बदलाव की सकारात्मकता को समझिए

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हसन जमालपुरी  भारतीय कानून प्रणाली में सुधार का संघर्ष निरंतर चल रहा है, जिसका मुख्य उद्देश्य समाज के सभी वर्गों को न्याय पहुंचाना और कानूनी प्रक्रियाओं में सुधार करना है। हाल ही में भारतीय संविधान में कई महत्वपूर्ण संशोधन किए गए हैं, जिन्होंने कानूनी प्रक्रियाओं में बदलाव लाने के साथ-साथ न्यायिक प्रणाली की दृष्टिकोण को भी समायोजित किया है। बीते एक जुलाई से बदले गए सारे कानून प्रभावी हो गए हैं। अब उन्हीं कानून के द्वारा हमें न्याय दिलाया जाएगा। या हम उन्हीं कानून के द्वारा न्यायालय में अपने लिए न्याय मांग सकते हैं। इसलिए इन कानूनों को जानना बेहद जरूरी है। सथ ही इसकी सकारात्मका पर भी गौर किया जाना चाहिए।  भारतीय कानून में किए गए कुछ महत्वपूर्ण संशोधनों ने न्यायिक प्रणाली में क्रांतिकारी परिवर्तन लाए हैं। ये संशोधन न केवल कानूनी प्रक्रियाओं को तेजी से और सुलभता से व्यवस्थित करने का प्रयास करते हैं, बल्कि न्याय पहुंचाने में भी सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाते दिखते हैं।  सबसे पहले, संशोधन ने अपराधिक मामलों के न्याय दिलाने में समय सीमा को निर्धारित करने के प्रयास किए हैं। अब 35 धार...

पसमांदा आन्दोलन भारतीय मुसलमानों के अधिकारों का संरक्षक

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हसन जमालपुरी   आज के भारत में, पसमांदा आंदोलन हाशिए पर पड़े मुस्लिम समुदायों के अधिकारों और मान्यता की वकालत करने वाली एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरा है। इस्लाम की समानता की शिक्षाओं के बावजूद, भारतीय मुसलमानों के बीच जाति-आधारित भेदभाव विगत लंबे समय से कायम है। यह पसमांदा मुसलमानों के सामने आने वाली कठोर वास्तविकताओं को उजागर करता है। यह लेख जाति-आधारित भेदभाव को गहरा करने के मद्देनजर पसमांदा आंदोलन की बढ़ती प्रासंगिकता की पड़ताल करता है और हाल के उदाहरणों पर प्रकाश डालता है, जो इस कारण की तात्कालिकता को रेखांकित करते हैं।  फ़ारसी से व्युत्पन्न पसमांदा शब्द का अर्थ है, वे जो पीछे रह गए हैं। यह सामूहिक रूप से दलित, पिछड़े और आदिवासी मुसलमानों को संदर्भित करता है, जो मुस्लिम समुदाय के भीतर प्रणालीगत भेदभाव का शिकार हो रहे हैं। ऐतिहासिक रूप से, भारतीय मुसलमानों को पदानुक्रमिक श्रेणियों में विभाजित किया गया है, अशरफ (कुलीन या उच्च जाति के मुसलमान), अजलाफ (पिछड़े मुसलमान) और अरज़ल (दलित मुसलमान)। पसमांदा आंदोलन अजलाफ और अरज़ल मुसलमानों को ऊपर उठाने का एक सामाजिक आन्दोलन है।  भार...

उम्माह की अवधारणा को राजनीतिक रूप देना राष्ट्र-राज्य की अवधारणा के खिलाफ

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हसन जमालपुरी   वैश्विक उम्माह की अवधारणा, मुसलमानों का विश्वव्यापी समुदाय जो अपने विश्वास के कारण एकजुट है, निःसंदेह मानवता के एक आदर्श तो जरूर है। हालांकि, आधुनिक युग में, राष्ट्र-राज्यों और अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के प्रभुत्व ने, इस दृष्टिकोण के सामने चुनौती प्रस्तुत की है, बावजूद इसके यह आज भी दुनिया की मानवता के लिए उदाहरण है। आधुनिक राष्ट्र-राज्य प्रणाली, जो 17वीं शताब्दी में वेस्टफेलिया की संधि के साथ उभरी, संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और राष्ट्रीय पहचान के सिद्धांतों पर जोर देती है। ये सिद्धांत अक्सर एक अंतरराष्ट्रीय धार्मिक समुदाय के विचार के साथ संघर्ष करता दिखता है। प्रत्येक राष्ट्र-राज्य के अपने कानून, रीति-रिवाज और हित होते हैं, जो धार्मिक एकजुटता को पीछे ढ़केलता दिखता है। राष्ट्रवाद और देशभक्ति वैश्विक धार्मिक समुदाय के बजाय राज्य के प्रति अपनेपन और वफादारी की भावना को बढ़ावा देती है। कई लोगों के लिए, उनके राष्ट्र और उसकी संस्कृति से जुड़ी पहचान व्यापक धार्मिक पहचान से अधिक महत्वपूर्ण होती है। हालांकि, इस्लाम इस मामले को लेकर अंतरविरोध में रहा है।  यदि हम के मुस्लिम देश...

एएमयू की कुलपति के रूप में डॉ खातून की नियुक्ति के मायने

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डॉ. अनुभा खान  जैसे ही भारत के चुनाव आयोग ने 2024 के संसदीय आम चुनाव की घोषणा की संयुक्त राज्य अमेरिका से लेकर कई पश्चिमी देशों ने यहां के अल्पसंख्यकों की असुरक्षा को लेकर मनगढ़ंत आरोप लगाए। हालांकि नकारात्मक बाहरी शक्तियों का प्रभाव देश के आंतरिक भाग पर नहीं पड़ा लेकिन कोशिश लगातार जारी है। इस बीच अल्पसंख्यकों को लेकर भारत में कई प्रगति देखने को मिली है। उसमें से एक अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में डॉ. नईमा खातून की नियुक्ति भी है। यह नियुक्ति भारतीय शिक्षा जगत में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। इस नियुक्ति के साथ, डॉ. खातून विश्वविद्यालय के इतिहास में यह प्रतिष्ठित पद संभालने वाली पहली महिला बन गई हैं। यह उपलब्धि डॉ. खातून की शैक्षणिक उपलब्धियों और नेतृत्व गुणों का प्रमाण है और शैक्षणिक नेतृत्व में लैंगिक समानता प्राप्त करने की दिशा में एक प्रगतिशील कदम का भी द्योतक है।  पारंपरिक रूप से पुरुष-प्रधान क्षेत्र में शीर्ष नेतृत्व की स्थिति में एक महिला के रूप में, डॉ. खातून की नियुक्ति उन युवा महिलाओं के लिए प्रेरणा है जो अकादमिक करियर बनाने की इच्छा रखती हैं। यह पू...

तो क्या इस बार के संसदीय आम चुनाव को US लॉबी ने प्रभावित किया?

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गौतम चौधरी   अभी हाल ही में संपन्न संसदीय आम चुनाव का परिणाम आते ही प्रतिपक्ष, खास कर कांग्रेस नरेन्द्र मोदी पर हमलावर हो गयी। राहुल व प्रियंका सहित कई नेताओं ने नरेन्द्र मोदी को नैतिकता का पाठ पढ़ाया और यहां तक कह दिया कि उनको भारत की जनता ने नकार दिया है, इसलिए तुरंत प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़ राजनीति से सन्यास ले लेना चाहिए। हालांकि नरेन्द्र मोदी की अगुआई वाली भाजपा इस बार भी उतनी सीट ले आयी, जितनी कांग्रेस को बीते तीन चुनाव जोड़ कर भी नहीं आयी है। इस बात का जिक्र खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में किया है। बावजूद इसके 2024 के संसदीय आम चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन निःसंदेह बढ़िया रहा है।  इस बार कांग्रेस को 2019 की तुलना में दोगुना के करीब सीटें आयी है। यह कांग्रेस का सराहनीय प्रदर्शन है, जबकि भाजपा की सीटें घटी है और 2019 की तुलना में भाजपा को 63 सीटों का नुकसान हुआ है। यदि प्रतिशत में बात करें तो 2019 की तुलना में इस बार भाजपा को 6 प्रतिशत वोट कम मिले हैं। सबसे ज्यादा नुकसान उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र का है। इसके पीछे के कई कारण हो सकते हैं लेकिन इस हार को ले...

अधिक से अधिक मताधिकार का प्रयोग कर लोकतंत्र को मजबूत बनाने की करें कोशिश

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कलीमुल्ला खान  भारत की वैविध्यपूर्ण सांस्कृतिक जटिलता इसकी विशेषताओं में से एक है। यह देश कभी पांथिक एकरूपता का शिकार नहीं हुआ। बहुपांथिक परंपरा इस देश का आत्मतत्व है। यही कारण है कि भारत में दुनिया के तमाम पांथिक फिरकों के अनुयायी मिल जाते हैं। भारत की 1.4 बिलियन आबादी में से लगभग 14 प्रतिशत की आबादी मुसलमानों की है। यह कौम किसी-किसी प्रांतों में तो अब बहुसंख्यक हो चुका है। भारत के मुसलमान एक विकसित सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में आगे बढ़ रहे हैं। विभिन्न आर्थिक और शैक्षिक चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, इस समुदाय के कई लोग भारत की राजनीतिक पहचान बन चुके हैं। 1949 में तैयार भारतीय संविधान अपने सभी नागरिकों के लिए समानता और न्याय का वादा करता है। भारत का संविधान केवल बहुसंख्यक हिन्दुओं के लिए नहीं अपितु सभी प्रकार के अल्पसंख्यकों के लिए भी कई प्रकार की मौलिक अधिकारों की गारंटी देता है। यह शिकायतों को संबोधित करने के लिए एक मंच और एक ढांचा प्रदान करता है, जिसके भीतर वे अपने अधिकारों का दावा कर सकते हैं और व्यापक समाज में योगदान दे सकते हैं। जिस प्रकार दुनिया पांथिक और सांप्रदायिक आध...

नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 नागरिकता प्रदान करने का कानून है न कि छीनने का

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गौतम चौधरी   भारतीय मुसलमानों को अपने अधिकारों से लाभ लेने में उनकी स्वतंत्रता और अवसर को सीमित नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि वे आमतौर पर आजादी के बाद से अन्य धर्मों से संबंधित भारतीय नागरिकों की तरह ही इस विशाल देश की बहुलतावादी संस्कृति के अंग हैं। नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 जिसका लघुनाम सीएए है ने ऐसे लाभार्थियों की नागरिकता के लिए आवेदन की योग्यता अवधि को 11 से घटाकर 5 वर्ष कर दिया है जो अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में धार्मिक आधार पर सताए गए हैं। इस कानून में एक नियम यह भी जोड़ा गया है कि उक्त देश के पीड़ित व प्रताड़ित नागरिक, जिनका धर्म, हिन्दू, पारसी, जैन, ईसाई, बौद्ध एवं सिख है और जो 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में प्रवेश कर चुके हैं उन्हें बिना किसी शर्त भारत की नागरिकता प्रदान कर दी जावेगी। इस कानून का उद्देश्य किसी की नागरिकता छीनना तो बिल्कुल ही नहीं है। इस बात की घोषणा अभी हाल ही में केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने भी की है।  भारत में रहने वाले मुसलमानों के लिए इस अधिनियम के क्या निहितार्थ हैं, इस पर भी चर्चा होनी चाहिए। जिन भारतीय मुसलमानों ने कभी पलायन नहीं किय...