नीतीश और जयललिता के साथ गठबंधन की योजना में भाजपा
गौतम चौधरी
भारतीय जनता पार्टी और नरेन्द्र मोदी, दोनों को अब यह एहसास होने लगा है कि वे 2019 का आम चुनाव अपने दम पर नहीं जीत सकते हैं। हालांकि अखबार और समचार माध्यमों में माहौल यह बनाया जा रहा है कि आज भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता बरकरार है लेकिन जमीनी हकीकत इसके ठीक उलट है। इसका प्रमाण कई स्तर पर देखा जा सकता है। पहला तो उत्तर प्रदेश में लाख कोशिश के बाद मायावती और मुलायम के दक्कर में भाजपा खड़ी नहीं हो पा रही है, जबकि अपनी सीमित ताकत और गिरे हुए मनोबल के बाद भी कांग्रेस चर्चा में आ गयी है। मतदाता सव्रेक्षण कराने वाली कंपनियां लगातार यह कह रही है कि आज की तारीख में अगर उत्तर प्रदेश में चुनाव हो जाए तो बहन मायावती की बहुजन समाज पार्टी सबसे ज्यादा सीट जीतकर आएगी। उसका सीधा मुकाबला मुलायम सिंह के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी के साथ है। भाजपा अपने गठबंधन के साथ तीसरे स्थान पर बतायी जा रही है, जबकि कांग्रेस 40 से 50 सीट जीतने की स्थिति में है। प्रेक्षकों का मानना है कि उत्तर प्रदेश में इस बार बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाएगी।
पंजाब में सत्तारूढ बादल गुट वाले शिरोमणि अकाली दल और भाजपा गठबंधन की स्थिति बेहद खराब है। संभव है कि अपने पंथक चरित्र के कारण शिरोमणि अकाली दल को थोड़ी सफलता मिल जाए लेकिन अभी के माहौल में भाजपा लड़ाई से बाहर ही दिख रही है। वैसे भी पंजाब में भाजपा का प्रभाव नगण्य है। प्रेक्षकों का कहना है कि अभी चुनाव हो जाए तो आम आदमी पार्टी बड़ी ताकत के रूप में आएगी और कांग्रेस दूसरे स्थान पर रहेगी लेकिन उत्तरोत्तर कांग्रेस की स्थिति सुधर रही है और आपसी अंतरद्वंद्वों के कारण आम आदमी पार्टी की स्थिति कमजोर होने लगी है। ऐसे में कहा यह जा रहा है कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच नेक-टू-नेक फाइट है। कुल मिलाकर पंजाब में भी भाजपा कमजोर ही हुई है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रय अध्यक्ष अमित शाह के गृह प्रदेश गुजरात के हालात भी कोई बहुत आशाजनक नहीं है। जो खबर आ रही है वह भाजपा के लिए निराश करने वाली है। गुजरात के 14 प्रतिशत दरबार यानी राजपूत ठाकुर पहले से कांग्रेस के साथ हैं। इन दिनों भाजपा के आधार वोटर रहे पटेल समुदाय के लगभग 50 प्रतिशत लोग कांग्रेस के खेमें में जाने का मन बना रहे हैं। गुजरात में पटेलों का वोट प्रतिशत लगभग 20 के आसपास है। इन दिनों शतप्रतिशत दलित कांग्रेस के साथ हो लिए हैं और आदिवासी समुदाय में भी कांग्रेस ने जबरदस्त तरीके से अपने प्रभाव का विस्तार किया है। गोया गुजरात के 09 प्रतिशत मुस्लमान पहले से भाजपा के खिलाफ हैं। इस समीकरण में कोई जादू ही भाजपा को सत्ता दिला सकता है।
गोवा के हालात किसी से छुपा नहीं हुआ है। भाजपा और भाजपा को आधार उपलब्ध कराने वाले संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में घमासान मचा हुआ है। पहाड़ी राज्य हिमाचल और उत्तराखंड में आपसी फूट के कारण भाजपा धूल चाटती नजर आ रही है। इस प्रकार देखा जाए तो आसन्न विधानसभा चुनावों में भाजपा के लिए कहीं से कोई अच्छी खबर नहीं है। यदि आगामी दिनों में होने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा का प्रदर्शन ठीक नहीं रहा तो स्वाभाविक रूप से भाजपा के कार्यकत्र्ताओं का मनोबल गिरेगा और इसका सीधा लाभ कांग्रेस को मिलने वाला है। लगता है इस उठा-पटक का एहसास भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व हो गया है। यही कारण है कि जहां एक ओर भाजपा नए सिरे से गठबंधन बनाने की तैयारी में है वहीं वह अपनी कार्यशैली और कार्ययोजनाओं में भी संशोहन करने को विवस हो रही है। विगत दिनों प्रधानमंत्री का कथित गोभक्तों पर दिया गया बयान इसी डर का नतीजा है। यही नहीं हालिया भाजपा राष्ट्रीय परिषद् बैठक में मुस्लिम समुदाय के बारे में प्रधानमंत्री के बयान को भी इसी परिप्रेक्ष में देखा जाना चाहिए।
भाजपा ने अपने दो पुराने मित्रों को भी साथ लाने की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी है। इधर बिहार के मुख्यमंत्री अपने राजनीतिक सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष ललू प्रसाद यादव की दिन व दिन बढ रही महत्वाकांक्षा से परेशान होने लगे हैं। उधर तामिलनाडु की मुख्यमंत्री प्रतिपक्षी द्रविड़ मुनेत्र कषगम से परेशान हैं। इन दिनों तामिलनाडु और केरल में हिन्दू आन्दोलन बड़े प्रभावशाली तरीके से आगे बढ़ रही है। तामिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता इस आन्दोलन का लाभ उठाने के फिराक में हैं। भाजपा का साथ होने पर वह इस लाभ को अपने राजनीतिक हित के लिए उपयोग कर सकती है। यही नहीं जयललिता कावेरी जल विवाद का भी समाधान तामिलनाडु के हित में चाहती है। यह भाजपा के साथ ही संभव हो सकता है। इधर भाजपा का ग्राफ हिन्दी पट्टियों में गिर रहा है। इस समीकरण को संतुलित करने के लिए भाजपा 2019 के आम चुनाव में नीतीश और जयललिता के साथ गठबंधन करने की पूरी कोशिश में है। हालांकि भाजपा की नजर मायावती, ममता बनर्जी और नवीन पटनायक पर भी है लेकिन फिलहाल इस तीनों की अपनी कोई मजबूरी नहीं है और भाजपा के साथ जाने से उन्हें हानि भी दिख रहा है। इसलिए उन तीनों का तालमेल होना अभी तो संभव नहीं दिख रहा है लेकिन सब कुछ ठीक रहा तो नीतीश और जयललिता 2019 का आम चुनाव भाजपा के साथ ही लड़ेगें। इससे भाजपा को तो फायदा होगा ही इन दोनों को भी बेहद फायदा होने वाला है। नरेन्द्र मोदी का मुसलमानों के प्रति अपनाए जा रहे लचीले रवैये से मुसलमानों में सकारात्मक संदेश जाएगा और भाजपा के प्रति जो मुसलमानों की आक्रामकता है उसमें कमी आएगी।
कुल मिलाकर देखें तो नरेन्द्र मोदी और भाजपा की यह दोनों योजना सार्थक है और अपने प्रभावशाली प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस एवं साम्यवादियों पर बढ़त प्रप्त करने का सबसे बढ़िया हथियार भी है। इससे भाजपा में कॉरपोरेटिजम का जो बोलवाला बढ़ा है उसमें भी कमी आएगी और जिस प्रकार कांग्रेस नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन प्रथम में कमजोर तबकों लाभ एवं लोकतंत्रिकरण की प्रक्रिया मजबूत हुई थी उसी प्रकार नीतीश जैसे समाजवादी धारे के भाजपा से जुड़ने पर भाजपा के चरित्र में भी एकात्मवादी सुधार आने की पूरी संभावना है।
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