पूज्य शंकराचार्य जी का बयान, बवाल और यथार्थ

गौतम चौधरी
विगत दिनों हरिद्वार में कुछ पत्रकारों के बीच शारदा पीठ के पूज्य शंकराचार्य स्वरूपानंद जी महाराज ने कह दिया कि हिन्दू सनातनी धर्म को मानने वाले साई बाबा की पूजा करना बंद कर दें। उन्होंने और कई प्रकार की बातें कही जो साई भक्तों के लिए स्वाभाविक रूप से अपमानजनक था। इस बयान पर साई भक्तों ने पूज्य श्री के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और जगह-जगह उनके खिलाफ साई भक्त आन्दोलन कर रहे हैं। मैं न तो पूज्य शंकराचार्य जी के बक्तव्य का खंडन कर रहा हूं और न ही साई भक्तों के विश्वास पर कोई टिप्पणी प्रस्तुत कर रहा हूं लेकिन जो बयान पूज्य शंकराचार्य जी ने दिया उसके आधार पर न तो कभी हिन्दू धर्म चला और न ही आने वाले समय में चलेगा।

हिन्दुओं की आस्था पर कभी-कभी खुद मैं आसमंजस में पर जाता हूं। मेरी दादी के मैका में एक बडा सा बरगद का पेड था। लोग उसे मलंग बाबा के नाम से जानते थे और उसकी पूजा करते थे। शायद आज भी उस बरगद की पूजा मलंग बाबा के रूप में ही होती होगी। मुझे उन दिनों यह पता नहीं था कि मलंग मुस्लमानों के देवता होते हैं। बिहार के कुछ तिरहुतिया ब्राह्मण और भूमिहार ब्राह्मणों के यहां एक खास प्रकार का त्योहार मनाया जाता है। उस दिन कुल देवी की पूजा की जाती है। ये लोग उस दिन अपने गोत्र और मूल के अनुसार अलग-अलग, अपने कुल देवियां की पूजा करते हैं। देवियों में किसी की कुल देवी सिंहासनी है तो किसी की दूर्गा, किसी श्यामा माई हैं तो किसी की बन्नी गौरईया। इन दोनों समाजों में कुल देवी के स्थान को कपडे से ढकने की परंपना है। देवी पूजा के दिन कुछ मूल-गोत्र के ब्राह्मणों के यहां किसी जमाने में मौलवी कलमा तक पढने आते थे। उन दिनों समाज में परिपार्टी थी कि बच्चों को फारसी पढाने के लिए गांव में कम से कम एक मौलवी को जरूर रखा जाता था। कालांतर में इस पर्व के मौके पर मौलवियों का आना बंद हो गया लेकिन अन्य परंपरा आज भी जीवित है।

उत्तर प्रदेश के बहराईच में एक मजार है उसे बल्ले साहब का मजार कहा जाता है। वह मजार गाजी मसूद का मजार है। मसूद, मुहम्मद गजनी के साथ सोमनाथ अभियान में शामिल था। मसूद ने ही प्रहार कर सोमनाथ की मूर्ति को खंडित किया था। सोमनाथ युद्ध के बाद गजनी के साथ वह वापस चला गया लेकिन बाद में एक बडी सेना लेकर मसूद फिर भारत अया। मसूद की सेना बहराईच पहुंची और महाराजा सुहेलदेव के साथ युद्ध हुआ। मसूद की सेना का कब्र बहराइच में बना साथ ही मसूद भी बहराइच में ही मारा गया। गाजी मसूद जहां मारा गया वही उसको दफनाया भी गया। वही स्थान बाद में बल्ले मीया का मजार कहलाया। आज उस मजार पर मुस्लमान कम, हिन्दू ज्यादा जाते हैं। यह सिलसिला रूकने का नाम ही नहीं ले रहा है। मजार की पूजा रूकने का नाम नहीं लेता। मेले में दिन व दिन लोगों की संख्या बढती जा रही है। पूज्य शंकराचार्य जी के बयान के बाद मुस्लिमों के देवबंदी फिरके के प्रमुख का बयान आया। उन्होंने मुस्लमानों को सख्त हिदायत दी है कि वे साई बाबा की पूजा न करें, साई पूजा इस्लाम के खिलाफ है। देवबंदी मुस्लमान न्याज-फातया नहीं करते और न ही पीर-फरकीर-मजारों की पूजा करते हैं लेकिन भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश में बडी संख्या बरेलवी मुस्लमानों की है, जो इस्लाम के सर्वशक्तिमान अल्लाह के अलावे कुछ पीरों की भी पूजा करते हैं। भारत में ख्वाजा गरीब नवाज, ख्वाजा मोइउद्दीन चिस्ती आदि कई सूफी संत हुए जिनका मजार आज दुनियाभर के मुस्लमानों के लिए तीर्थ बना हुआ है। इस्लाम को मानने वाले गौस पास के मजार पर भी माथा टेकने जाते हैं लेकिन यह इस्लाम के मूल चिंतन के खिलाफ है। चाहे देवबंदी कोई सा भी फतवा जारी कर लें लेकिन यह भी सत्य है कि इस्लामी चिंतन की मूल अवधारना को आईना दिखते मुस्लमान अल्लाह की सर्वोच्चता को नकारते रहे हैं।

इन दिनों हिन्दुओं के घरों में जिसस और माता मरियम की मुर्तियां थोक भाव में मिल रही है। कुछ हिन्दुओं के घरों में पूजा के स्थान पर माता मरियम की मूर्ति और क्रास का चिन्ह मैंने अपनी आंखों से देखी है। इसलिए भारत में पूजा पद्धति के खाचों में धर्म को ढालना संभव नहीं है। दुनिया के अन्य मुल्कों में हो सकता है यह, या फिर अन्य मान्यताओं में भी यह संभव है कि एक पद्धति को ही लोग मान ले लेकिन हिन्दू मान्यताओं में इस प्रकार की बातें संभव नहीं है। चूकी भारतीय उपमहाद्वीप के मुस्लमान या ईसाई हिन्दू चिंतन से ही अलग होकर ईसाई या इस्लाम मानने लगे, इसलिए उनके यहां भी मूल मान्यताओं को मानने में लोग आना-कानी करने लगे हैं। भारत में कुछ लोग आज खुद को भगवान कहने लगे हैं। साई बाबा में भगवान के लक्षण थे या नहीं लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि साई भक्त कम से कम धर्म के साथ तो जुडे हैं। किसी प्रकार का नशा पान नहीं करते। किसी की हत्या नहीं करते, किसी के साथ धोखा नहीं करते और किसी को सताने की अपेक्षा उसकी सहायता भी करते हैं। यह धर्म का मूल है और यह मानव की प्रकृति भी है। यदि ऐसा हो रहा है तो फिर पूज्य शंकराचार्य जी को इस प्रकार की पूजा पर आपत्तिा नहीं करनी चाहिए।

दूसरी बात यह है कि यदि भगवान की खोज की बात है तो भारत में यह चिंतन काफी पुराना है कि भक्त ही भगवान का निर्माता है। भक्त जिस रूप में भगवान को खोजता है परमपिता उसी रूप में भक्त के सामने उपस्थित हो जाते हैं। साई को कुछ लोग भगवान मान रहे हैं तो इसमें आपत्ति ही क्या है। हमारे यहां पीपल, बडगद, पत्थर, न जाने किस-किस निर्जीव पदार्थों में भक्तों को भगवान का दर्शन प्रप्त हुआ है। रैदास को चमरा भिगाने वाले वर्तन में भगवान मिले, तो कबीर को निर्गुण ब्रह्म का आभास हुआ। रामकृष्ण देव को भगवती काली में जगतजननी दिखने लगी, तो भक्त प्रहलाद के लिए भगवान खम्भे से प्रकट हो गये। जिस देश में और चिंतन में इसनी व्यापकता हो उस देश और सोच वाले समाज में किसी पंथ पर उगली उठाना यथोचित नहीं है। रही बात परंपरा और साधना पंथ की तो वह समय के अनुसार धीरे-धीरे स्थापित हो जाती है। हमारे यहां वैष्णव और शैव्य-शाक्त परंपरा का विकास कोई एक दिन में नहीं हुआ। हमारा समाज वेद को मानने वाला था। वेद में मूर्ति पूजा का कही जिक्र नहीं किया गया है। इसलिए वेदवादी आर्य समाज को मानने वाले भारत में प्रचलित मूर्ति पूजा का खंडन करते हैं। मेरे पास जितना ज्ञान है उसके आधार पर मैं कहता हूं कि जिस परंपरा के पूज्य श्री अनुयायी हैं उस परंपरा के आद्य पुरूष आचार्य शंकर ने वेदांत और निराकार को ज्यादा महत्व दिया है। आचार्य शंकर के विषय में कहा जाता है कि वे अद्वेतवादी थे। फिर अद्वैतवाद का खंडन करने के लिए आचार्य रामानुज का पदापर्ण हुआ, जिन्होंने वि”िाष्ठ द्वैत्य दर्शन का प्रतिपादन किया। आज का पूरा हिन्दू समाज आचार्य रामानुज के दर्शन का विस्तार है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं होता है कि अन्य परंपरा और दर्शन कुछ है ही नहीं। भारत में जैन, बौद्ध, चारवाक, नाथ, सिद्ध, कापालिक, यक्ष, बेताल आदि कई प्रकार के चिंतन के लोग रहे हैं। उन सब की समृद्ध परमपरा रही है और वे तमाम चिंतन के आचार्यों ने मानवता के विकास में अपनी यथेष्ठ भूमिका निभाई है। इसके साथ ही जो विदेशी भारत की भूमि पर आए, उन्होंने भी अपना चिंतन और अपना देवता भारत में लाकर स्थापित करने का प्रयास किया। भारत के लोग अपने चिंतन, अपनी मान्यता और अपने देवताओं को नकारे बिना उन्हें भी आत्मसात कर लिया। यह भारत के लोगों की विशेषता रही है कि भारत के लोग दुनिया के विकृत चिंतन को भी अपने यहां इतना व्यवस्थित कर दिये कि वह एक व्यावहारिक चिंतन बन गया। ऐसे में साई के भक्तों को और साई के उपर कटाक्ष उचित जान नहीं पडता है।

हां, इन दिनों धर्म के नाम पर पाखंड और आडंबर देखने को मिल रहा है। चाहे वह साई भक्त हो या फिर हिन्दू सनातनी, धर्म के नाम पर अनरगल व्यवहार, चिंता का विषय बनता जा रहा है। कोई राम कुमार तो कुमार स्वामी, नित नवीन चमत्कार को लेकर अपनी ब्राडिंग करने लगे हैं। धर्म का व्यापार बढता जा रहा है। इससे पूज्य शंकराचार्य जी भी अछूते नहीं हैं। महात्माओं के नखरे बढ गये हैं। मैंने रामसुखदास जी महाराज का दर्शन किया है। अद्भुद व्यक्तित्व के धनी थे महाराज। ऐसे ही कुछ संत हैं जो आज भी बचे हैं लेकिन उन संतों की तपश्या का आज मजाक उडाया जा रहा है। कुछ भोगवादी गेरूआ और स्वेत वस्त्र में अद्भुद भोग को भोगने के लिए महात्मा का आडंबर कर रहे हैं। शंकराचार्य जी को इस प्रकार की धार्मिक विकृति के खिलाफ मोर्चा खोलना चाहिए। इस देश में नये नये शंकराचार्य पैदा हो रहे हैं। इसपर प्रतिबंध लगना चाहिए। परंपरा के संतों का लगातर अपमान हो रहा है। समाज में उनकी प्रतिष्ठा खंडित हो रही है, इसके लिए शंकराचार्य जी प्रयास करते तो वह प्रयास सार्थक होता लेकिन उन्होंने ऐसा कभी नहीं किया। मठो में और संत गिरोहों में लगातर मार-पीट की घटना बढती जा रही है लेकिन शंकराचार्य जी ने उसको पाटने का कोई प्रयास नहीं किया। इन दिनों पूज्य स्वरूपानंद जी के शंकराचार्ययत्व पर प्रश्न खडा किया जा रहा है। इसलिए दूसरों को धकियाने से बढिया होगा कि हम अपने गिरेवान में झांके और अपने व्यक्तित्व को विस्तार दें। शंकराचार्य जी यदि ऐसा करते हैं और इस आन्दोलन को अपने हाथ में लेते हैं तो मैं समझता हूं कि यह उनके लिए सार्थक आन्दोलन साबित होगा।

मुझे जो समझ में आ रहा है वह भगवान के उपर चढने वाला चढौना और चंदों में हिस्सेदारी की है। कुछ धार्मिक संस्थाओं ने तो धर्मिक न्यासों के नाम पर हवाला का धंधा ही खोल लिया है। विदेश से धन भारत लाना है तो उस धार्मिक संस्था के संत को मिलिए और बिल्कुल स्वेत धन उनके न्यास से प्रप्त कर लीजिए। शंकराचार्य जी को यदि खोलना ही है तो इस प्रकार के धर्म के नाम पर व्यापार और राष्ट्रद्रोह के खिलाफ मोर्चा खालें। हिन्दू सनातनी समाज के साथ ही साथ अन्य परम्परा और अन्य अनुशसन के लोग उनके साथ हो जाएंगे लेकिन साई पर टिप्पणी और उनके खिलाफ अनरगल बयान पूज्य श्री को न तो प्रसिद्धी दिलाएगा और न ही समाज को सही दिशा दिखाने वाला होगा। यदि इन बिन्दुओं पर शंकराचार्य जी काम करते हैं तो उनकी स्वकार्यता हिन्दू सनातन समाज में और बढेगी, गोया साई भक्तों को हडकाने से उनकी प्रतिष्ठा में तो बट्टा लग ही रहा है।

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