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Showing posts from February, 2012

सभ्यताओं की लडाई को रोक सकता है भारतीय लोक परंपरा

गौतम चौधरी अमरीकी दार्षनिक सैमुअल पी0 हैटिंगटन ने सभ्यताओं के अंतर कलह पर एक किताब लिखी है। दंुनिया में इस किताब की बडी चर्चा हुई। दुनियाभर के विचारकों ने किताब की प्रषांसा की और एक स्वर से घोषणा किया कि आने वाला विष्व सभ्यताओं की लडाई में उलझा हुआ होगा। हांलाकि मैंने उस किताब पर छपी टिप्पणियों को ही पढ पाया हूं लेकिन जिस प्रकार पष्चिमी  ईसाई-यहूदी गठजोड और इस्लामी विष्व के बीच तलवारें खिंची है उससे तो अब लगने लगा है कि वाकई में विष्व एक बडे यु़द्व की तैयारी में हैं। इस बीच मैंने हिन्दी साहित्य जगत में कलम के जादुगर के नाम से प्रसिद्व रामवृक्ष बेनिपुरी जी की रचना माटी के मूरत की भूमिका पढी। तुरन्त बाद दुष्यंत कुमार के गजलों का संग्रह साये में धूप भी पढने का मौका मिला। पूरा गजल संग्रह अभिनव है लेकिन शीर्षक टिप्पणि की थाह मैं नहीं लगा सका। दुष्यंत लिखते है कि हिन्दीं और उर्दू भाषा जब सामंतों के राजसिंहसन से उतरकर लोकभाषा का स्वरूप ग्रहण करती है तो शब्द और व्याकरण दोनों लोकग्राही हो जाता है। मेरी दृष्टि में हिन्दी और उर्दू के प्रयोग को दुनिया के युद्धरत्त सभ्यताओं पर प्रतिस्थापित किया ज

बिहार में राजग की जीत को हिन्दुत्व की जीत से जोड़ कर देखें

गौतम चौधरी बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को मिली सफलता कोई अप्रत्याशित नहीं है। इस जीत के पीछे निस्‍संदेह नितिश कुमार की सकारात्मक विकास की राजनीति का हाथ है , लेकिन चुनाव में दो बातें अप्रत्याशित भी है। एक भारतीय जनता पार्टी की सीटों का बढ़ना एवं भाजपा के धुर विरोधी दलों का सफाया। यहां मैं एक घटना का उल्लेख करना चाहूंगा। मुझे याद है यह घटना सन 2002 की है। उस समय मैं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् का गया विभाग संगठन मंत्री हुआ करता था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दक्षिण बिहार प्रांत प्रचारक सरद खांडेलकर थे और गया विभाग के विभाग प्रचारक अनिल ठाकुर थे। अनिल जी के साथ मेरी अच्छी बनती थी। गया में संघ का कोई बडा कार्याक्रम होने वाला था। शहर के पूर्वी छोर पर एक निजी विद्यालय में कार्यक्रम रखा गया था। कार्यक्रम तीन दिनों का था और कार्यक्रम में उत्तर बिहार , दक्षिण बिहार एवं झारखंड के जिला कार्यवाह स्तर के कार्यकर्ता आने वाले थे। हमलोग सभी कार्यक्रम की तैयारी में लगे थे। जैसा कि बिहार आदि प्रांतों में संघ या अन्य संघ विचार परिवार के कार्यक्रमों में होता है , पहली शाम , घरों से बना-बन

आम नहीं खास लोगों के लिए है भारत की लोकशाही

गौतम चौधरी विगत दिनों सर्वोच्च न्यायालय के माननीय मुख्य न्यायाधीश ने एक याचिका के सुनवाई के दौरान अपनी तल्ख टिप्पणी में कहा था कि भारतीय न्यायालय व्यवस्था अमीरों के लिए है। इसका जीता जागता उदाहरण पिछले दिनों गुजरात में देखने को मिला। विगत 27 फरवरी 2010 को सीमा शुल्क चोरी के एक मामले में अदानी समूह के प्रबंध निदेशक राजेश अदानी को केन्द्रीय जांच आयोग की गोआ शाखा ने उनके अहमदाबाद स्थित आवास से गिरफ्तार किया लेकिन इस देश में पैसे की ताकत इतनी बढ गयी है कि सीबीआई की याचिका दाखिल करने से पहले ही अदानी के वकीलों ने राजेश को कानूनी पंजे से छुडा लिया और केन्द्रीय जांच आयोग हाथ मलती रह गयी। वाकया पुराना है लगभग आठ साल पहले अदानी समूह की स्वामित्व वाली कंपनी ने गोआ के रास्ते केमिकल आयात के दौरान करोड़ों रूपये की सीमा शुल्क चोरी की। जब मामला प्रकाश में आया तो जांच सीबीआई को सौंप दी गयी। सीबीआई ने जांच के दौरान अदानी समूह के प्रबंध निदेशक राजेश अदानी को मामले में दोषी पाया। फिर सीबीआई अदानी को गिरफ्तार कर अपने अभिरक्षण में लेने के लिए ज्यों ही अदालत पहुंची अदानी समर्थकों ने कानून का गला घोट कर क

पहले अपने गिरेवान में झांकें सांसद

आखिर केजरीवाल जी को ही दोषी क्यों ठहराएं, जिन लोगों ने संसद भवन पर भौतिक रूप से आक्रमण किया उन्हें तो आप बचाने पर लगे हैं और जिसने सही कह दिया उसको धमका रहे हैं। भारत के मान और स्वाभिमान के प्रतीक संसद की गरिमा उस समय कहां चली जाती है जब खुद सम्मानीय सांसद उसे तार तार कर रहे होते हैं। बुरा मत मानें सांसद, उन्ही के सदन में सब के सामने कुर्सियां चलती है। एक दूसरों को गालियां दी जाती है। संवैधानिक मर्यादाओं को ताक पर रखकर अष्लील क्लीपिंग देखी जाती है। पता नहीं एक बार शायद गांधी जी भी नाराज होकर कह दिये थे कि सांसद बांझ ही नहीं वेष्या भी है। केजरीवाल की बात पर ववाल क्यों? हो सकता है वे भावना में बह गये होंगे लेकिन उन्होंने जो कहा है वह गलत नहीं है। अब आप कहेंगे कि जनता ऐसे सांसदों को चुनती क्यों है। आपको पता है कि बिहार में लालू यादव को भी जनता ही चुन कर भेजा करती थी। साहबुद्दीन और पप्पु यादव को जनता ही चुना करती थी। जिसे आप चुनाव कहते हैं वह मात्र दिखावा है। अब तो शरीफ लोग वोट भी डालने नहीं जाते। कहने के लिए, दिखाने के लिए वोट का प्रतिषत बढ रहा है, लेकिन मतदान केन्द्रों पर जाकर देखें, चुन

क्या सचमुच बिहार में प्रेस की स्वतंत्रता बाधित है ?

यह पढकर बडा आष्चर्य हुआ की बिहार में मीडिया स्वतंत्र नहीं है। सम्मननीय मार्कंडेय काटजू साहब ने फिर से पुरानी बहस को जीवंत कर दिया है। सम्माननीय काटजू साहब विद्वान होंगे संभवतः कानून एवं भारतीय संविधान के मर्मज्ञ भी हो सकते हैं लेकिन एक निवेदन यह है कि क्या काटजू साहब यह साबित कर सकते हैं कि इस देष में कहां की मीडिया स्वतंत्र है? उन्होंने यह तो कह दिया कि बिहार सरकार के खिलाफ लिखने वालों पर दबाव बनाया जाता है। अखबारों के मालिक से कहकर उनका स्थानांतरण कराया जाता है। अखबार या समाचार वाहिनियों का विज्ञापन रोकने की धमकी दी जाती है लेकिन काटजू साहब ने यह क्यों नहीं कहा कि अखबर का मतलब अखबर का मालिक नहीं होता। साहब वर्तमान दौर में हमें तय करना होगा कि मीडिया की स्वतंत्रता का मतलब समाचार माध्यम मालिकों की या फिर समाचार प्रबंधकों की स्वतंत्रता मात्र से है या कुछ और से। मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि उत्तराखंड की सरकार के दबाव के करण दैनिक जागरण के ब्यूरो चीफ अतुल भरतरिया का स्थानांतरण देहरादून से मेरठ कर दिया गया। सम्मननीय काटजू साहब को षायद इसकी जानकारी नहीं होगी। बडे पत्रकार हो या छोटे, विज्ञा

गाँधी, लोहिया के रास्ते चला नेपाली मओबाद - गौतम चौधरी

एक बार फिर नेपाली माओवादियों ने नेपाल को अस्थिर करने की योजना बनाई है। सुना है इस बार चरमपथीं आन्दोलन का नेतृत्व बाबूराम भट्टराई कर रहे हैं। हालांकि माओवादी आन्दोलन की रूप रेखा लोकतंत्रात्मक ही दिखाया जा रहा लेकिन माओवादी इतिहास को देखकर सहज अनुमान लेगाया जा सकात है कि आन्दोलन की दिशा हिंसक होगी। इस बार के आन्दोलन में माओवादी चरमपंथियों ने दो मिथकों को तोडा है। यह पहली बार हो रहा है जब माओवादी आन्दोलन का नेतृत्व पुष्पकमल दहाल ( प्रचंड ) नहीं कर रहे हैं। इसके पीछे का कारण क्या है और पुष्पकमल की आगामी योजना क्या है यह तो मिमांशा का विषय है लेकिन इस बार के माओवादी घेरेबंदी से साफ जाहिर होता है कि नेपाल के माओवादी गिरोह में पुष्पकमल की ताकत घटी है। माओवादियों ने इस बार बुलेट के स्थान पर जन समर्थन और गांधीवादी रवैया अपनाने की योजना बनाई है। नेपाल में यह भी माओवाद का एक प्रयोग ही माना जाना चाहिए। इसलिए एक तरह से देखा जाये तो नेपाल