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उत्तराखंडी सियासत में स्कूटर का महत्व

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गौतम चौधरी उत्तराखंड का राजनीतिक तापमान एक बार फिर से गर्म हो गया है। सच पूछिए तो प्रधानमंत्री का स्कूटर वाला बयान भाजपा के गले का फांस बनता जा रहा है। हालांकि प्रधानमंत्री के बयान पर भाजपा लगातार सफाई दे रही है लेकिन भाजपा के लिए मुकम्मल जवाब उतना आसान नहीं हो पा रहा है। इधर कांग्रेस को बिठे-बिठाए एक बार फिर से मुद्दा मिल गया है। अब कांग्रेस इस मुद्दे को कितना भुना पाती है वह कांग्रेस की रणनीति पर निर्भर करता है लेकिन मामले पर उत्तराखंड भाजपा को प्रधानमंत्री ने बगल झांक लेने पर मजबूर तो कर ही दिया है। गोया प्रधानमंत्री ने जिस स्कूटर पर पैसे खाने का आरोप लगा गए, वह स्कूटर तो इन दिनों भाजपा के कार्यालय की सोभा बढ़ा रहा है, यानी स्कूटर कांड के कथित आरोपी पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा आजकल भाजपायी खेमें के योद्धा बने फिर रहे हैं।  हुआ यूं कि विगत 27 दिसम्बर को उत्तराखंड भाजपा ने ताम-झाम के साथ देहरादून के परेड ग्राउंड में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रैली रखी। बला की भीड़ में प्रधानमंत्री जी ने ताबरतोड़ भाषण दिया। जोश में उन्होंने यह भी कह दिया कि उत्तराखंड में तो स्कूटर भी पैसा

बड़ी तेजी से राहुल सुधार रहे हैं अपनी छवि

गौतम चौधरी निःसंदेह इन दिनों कांग्रेस की सभाओं में भीड़ जुट रही है। तटस्थ होकर कहा जाए तो नरेन्द्र भाई की सभा में जितनी भीड़ होती है उतनी भीड़ राहुल गांधी की सभाओं में तो नहीं हो रही है लेकिन पहले की अपेक्षा अब राहुल गांधी को लोग गंभीरता से लेने लगे हैं। इस भीड़ को देखकर कांग्रेस पार्टी को यह लगने लगा है कि वह आगामी आम चुनाव में भाजपा के सामने एक बड़ी चुनौती प्रस्तुत करने में कामयाब हो जाएंगी। वैसे कुछ लोगों को राहुल चमत्कारी नेता के रूप में भी दिखने लगे हैं। इस मामले में एक ही बात कही जा सकती है कि पहले की अपेक्षा कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल की स्वीकार्यता तो बढ़ी है लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तुलना में वे अभी भी बेहद कमजोर हैं।  विगत दिनों गुजरात के मेहसाना में कांग्रेस की रैली हुई। निश्चित तौर पर तो नहीं बताया जा सकता है लेकिन अनुमान लगाने वालों का कहना था कि राहुल की रैली में कम से कम दो लाख से उपर लोग आए थे। याद रहे मेहसाना किसी जमाने में भारतीय जनात पार्टी का गढ़ था। ऐसे में कांग्रस की सभा में यदि इतनी संख्या जुटती है तो यह सचमुच में कांग्रेस के लिए आशा जगाने वाली बात

प्रधानमंत्री अपने चित-परिचित अंदाज में ही तो कर रहे हैं काम

गौतम चौधरी यदि प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी की योजना सफल रही तो उनका अगला कदम केन्द्रीय वित्तमंत्री अरूण जेतली पर केन्द्रित होगा। हो सकता है जेतली जी को किसी दूसरे मंत्रालय में सिफ्ट कर दिया जाए। जिस योजना के नरेन्द्र भाई माहिर हैं उस योजना के तहत लोकसभा आम चुनाव के पहले वे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बदल सकते हैं और आम चुनाव में लगभग 40 प्रतिषत सांसदों का टिकट बेरहमी से काट सकते हैं। यह नरेन्द्र भाई का चित-परिचित अंदाह है और उसी अंदाज से उन्होंने गुजरात में शासन किया। यही नहीं जानकारों की मानें तो केन्द्र में भी उसी योजना पर वे काम कर रहे हैं। मैं विगत दिनों एक बड़े स्तंभकार का आलेख पढ़ रहा था। उन्होंने उस आलेख में आषंका जताई थी कि आने वाले कुछ ही समय में मोदी मंत्रिमंडल के वित्तमंत्री को बदला जा सकता है। इस आषंका में कितना बल है यह तो स्वयं स्तंभकार ही बता सकते हैं लेकिन मेरी समझ जहां तक है उसके आधार पर मैं यह कह सकता हूं कि मोदी जी की कार्यपद्धिति कुछ इसी प्रकार की रही है। सरकार का तीन साल पूरा होने को है। मोदी जी ने आम चुनाव के दौरान जो भी वादे किए उसमें से एक-दो को छोड़कर अ

विमुद्रीकरण, सरकार की गलतियों की मुकम्मल व्याख्या

गौतम चौधरी विमुद्रीकरण के नफा-नुकसान पर अभी भी दावे के साथ कुछ कहना संभव नहीं है। क्योंकि इसके कारण जो व्यापार पर प्रभाव पड़ा है उसका मुकम्मल आकलन होना अभी बांकी है। लेकिन सरकार और भारतीर रिजर्व बैंक के द्वारा नियमों में लगातार बदलाव ने यह साबित कर दिया है कि विमुद्रीकरण का फैसला जल्दबाजी में लिया गया फैसला है और उसकी मुकम्मल तैयारी में भयंकर कोताही बरती गयी है। विमुद्रीकरण के बाद भी सरकार ने लगातार गलतियां की। इन गलतियों की लम्बी सूचि है लेकिन मोटे तौर पर जो गलतियां ध्यान में आती है उसकी व्याख्या जरूरी है। पहली गलती सरकार की यह हुई कि जो घोषणा भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर को करनी चाहिए थी वह घोषणा भारत के प्रधानमंत्री ने की। इसके पीछे का तर्क अभी तक समझ में नहीं आ रहा है। हालांकि इस संदर्भ में सवाल तो बहुत उठे हैं लेकिन सरकार की ओर से इस विषय पर आधिकारिक बयान नहीं आया है। कानून के जानकारों का तो यहां तक कहना है कि यह घोषणा संवैधानिक दृष्टि से भी उचित नहीं था। खैर अब इससे संबंधित मामला न्याय के सर्वोच्च पंचायत के पास लंबित है। दूसरी जो सबसे बड़ी गलती सरकार ने की वह थी तैयारी की। एक ज

नई आपदाओं को निमंत्रण देने लगा है आकाषी नदियां

गौतम चौधरी इतिहास इस संदर्भ का साक्षी है कि प्राकृतिक आपदाओं के कारण कई समृद्ध सभ्यताएं नष्ट हो गयी। मानवीय विज्ञान चाहे कितना भी प्रगति कर ले लेकिन प्रकृति पर अब भी कब्जा नहीं जमाया जा सका है। सच पूछिए तो यह संभव भी नहीं है। हां विज्ञान और तकनीकी की प्रगति से हम होने वाले नुकसान को सीमित जरूर कर सकते हैं लेकिन आपदाओं को निर्मूल नहीं किया जा सकता है। अबतक हम बाढ़, सुखा, भूकम्प, ज्वालामुखी, बारिष, बादल का फटना, सुनामी, आकाषी आपदा आदि का नाम ही सुनते रहे हैं लेकिन जैसे-जैसे हम प्रकृति के रहस्यों के उपर से पर्दा उठाते जा रहे हैं नई-नई आपदाओं और उसके काम करने के तरीकों तथा उसके द्वारा होने वाले नुकसानों का पता चल रहा है। इन दिनों इन्ही आपदाओं में एक आकाषीय नदी में आने वाली बाढ़ को चिंहित किया जा रहा है। कभी-कभी किसी खास क्षेत्र में अप्रत्याषित तरीके से बारिष हो जाती है। वह बारिष भी इतनी हो जाती है कि वहां बाढ़ जैसे स्थिति उत्पन्न होने लगती है। जबकि अमूमन लोग यह मानकर चलते हैं कि वह क्षेत्र बारिष की दृष्टि से औसत वर्षा वाला क्षेत्र है। उदाहरण के लिए इन दिनों राजस्थान के उन इलाकों में खूब

सीरिया, यमन, ईरान और इराक के निर्माण में भारत की सक्रियता जरूरी

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गौतम चौधरी विगत दो-तीन दिनों से सोच रहा था मध्य-पूरव और मध्य एषिया में हो रहे अप्रत्याषित परिवर्तन और उसमें भारत की भूमिका पर कुछ लिखूं पर समय न मिलने के कारण लिख नहीं पा रहा था। इसी बीच एक बड़ी खबर तुर्की से आई, जिसमें बताया गया कि तुर्की में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान रूस के राजदूत की गोली मारकर हत्या कर दी गयी। पहली नजर में ऐसा लगता है कि इस हत्या के पीछे का कारण निःसंदेह संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस के बीच का अंतरद्वंद्व है लेकिन इस हत्या को गंभीरता के साथ देखें तो मामला कुछ और ही नजर आता है। खैर जब कोई क्षेत्र युद्ध का मैदान हो और उसमें आप काम कर रहे हों तो क्षति उठानी ही पड़ती है। रूस के राजदूत की हत्या को भी उसी रूप में लिया जाना चाहिए लेकिन इसके परिणाम दूरगामी पड़ने वाले हैं। और संभव है कि अब रूस भी अपने प्रतिपक्षियों को उसी की भाषा में जवाब दे। इन तमाम उहापोहों के बीच एक बात तो तय है कि तुर्की अब युद्ध का मैदान बन जाएगा। वहीं दूसरी ओर तबाह कर दिए गए सीरिया, इराक और यमन का पुनर्निर्माण भी असंदिग्ध है। ऐसे में भारत को अपनी भूमिका बड़ी तसल्ली से तय करनी होगी। हमें इराक युद्

हॉर्ट ऑफ एषिया में रूस के रूख को गंभीरता से ले भारत

गौतम चौधरी अफगानिस्तान पर हो रहे सम्मेलन हॉर्ट ऑफ एषिया सम्मेलन का चित्र इस बार बदल-बदला-सा दिख रहा है। चूकी इस बार पाकिस्तान पूरी कूटनीतिक तैयारी से आया है इसलिए वह भारतीय कूटनीति पर भारी भी पड़ है। हालांकि एक बार फिर अफगानिस्तान ने पाकिस्तान को आतंकवाद की जमीन कहा है और साफ शब्दों में पाकिस्तान की आलोचना करते हुए कहा कि पाकिस्तान भले उसे आर्थिक मदद दे या नहीं अपने देष से आतंकवाद का निर्यात करना वह बंद करे। अफगानिस्तान के इस बयान को भारतीय कूटनीतिज्ञ अपनी जीत के रूप में प्रचारित कर रहे हैं लेकिन इसी सम्मेलन में रूस ने पाकिस्तान का बचाव किया है और भारतीय कूटनीतिज्ञों को साफ शब्दों में कहा कि जिस प्रकार भारत की ओर से पाकिस्तान पर कूटनीतिक आक्रमण हो रहा है उससे दोनों देषों को कोई लाभ होने वाला नहीं है। यह सम्मेलन अफगानिस्तान के माध्यम से क्षेत्र में शांति के लिए हो रहा है न कि दो देषों के बीच आक्रामक कूटनीतिक आलोचनाओं के लिए। भारत को रूस ने सलाह दी है कि इस प्रकार के आपसी आक्रामकता को शांति के लिए काम करने वाले मंचों पर नहीं उठाया जाना चाहिए। रूस का यह बदला हुआ तेवर भारत के लिए खतरनाक

अफगान पर मुकम्मल चर्चा के लिए अमृतसर में जुटेंगे दुनियाभर के कूटनीतिज्

गौतम चौधरी, एषिया की स्थाई शांति के लिए अफगानिस्तान में शांति जरूरी, आगामी तीन दिसंबर से एषिया का दिल कहे जाने वाले अफगानिस्तान पर मुकम्मल चर्चा करने के लिए दुनियाभर के कूटनितिज्ञ अमृतसर में एकत्रित हो रहे हैं। अफगानिस्तान के मुद्दे पर पहले भी कई सम्मेलन हो चुके हैं। दरहसर अफगानिस्तान की शांति को लेकर सर्वप्रथम सन 2011 में तुर्की के इस्लाम्बुल में एक सम्मेलन आयोजित किया गया था। उस सम्मेलन को इस्ताम्बुल प्रोसेस के नाम से जाना जाता है। बाद में इस सम्मेलन को हॉर्ट ऑफ एषिया के नाम से जाना जाने लगा। ऐसा ही सम्मेलन अमृतसर से पहले टर्की के इस्ताम्बुल, अफगानिस्तान के काबुल, कज्जाकिस्तान के अलमाती, चीन के बिजिंग, पाकिस्तान के इस्लामाबाद और भारत स्थिति नई दिल्ली में हो चुका है। इस बार के इस सम्मेलन में प्रमुख मुद्दा अफगानिस्तान की शांति के साथ ही साथ मध्य एषियायी देषों के विकास का भी रहने वाला है। तेजी से बदल रही विष्व कूटनीति का प्रभाव भी इस सम्मेलन पर स्पष्ट रूप से देखने को मिल रहा है। जहां एक ओर भारत और पाकिस्तान अपनी अपनी सीमा के अंदर रहकर एक दूसरे पर सैन्य आक्रमण कर रहे हैं वहीं दूसर

एक महिला जिसने अपने बेटे को बलात्कारी बना दिया

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गौतम चौधरी एक दो दिन पहले की घटना है। पॉस्को विषेष न्यायालय ने एक मां को अपने ही बेटे को बलात्कारी बनाने के लिए उम्रकैद की सजा दी है। मामला रूद्रपुर, उत्तराखंड का है। इसी साल बीते 29 जनवरी को एक लड़की की मां ने औद्योगिक परिक्षेत्र रूद्रपुर की रहने वाली सुनीता पर अपनी बेटी के अपहरण की प्राथमीकी दर्ज कराई। पुलिस छानबिन करती रही लेकिन उक्त पीडि़ता के बेटी का कोई पता नहीं चला। इसी बीच पुलिस को जानकारी मिली कि देहरादून में लड़की को अपहरण करके रखा गया है। 25 फरबरी को पुलिस ने कार्रवाई की और सुनीता अपने बेटे के साथ गिरफ्तार कर ली गयी। आनन-फानन के पुलिस कार्रवाई में लड़की को बरामद कर लिया गया। इसके बाद उस लड़की ने जो आपबीती बताई वह सुनकर रेंगटें खड़े हो जाएंगे। मानवता को शर्मासार करने करने वाली इस घटना का कोई उदाहरण ढुंढते नहीं मिलेगा। उस दिन लड़की घर पर अकेली थी। सुनीता आई और लड़की को बताया कि उसकी शादी वह अपने लड़के से करा देगी। यह कहकर वह लड़की को अपने जाल में फसा लिया और उसे लेकर अपने घर पर चली गाई। घर पर आते ही सुनीता ने पूरी तैयारी की और लड़की को लेकर वह सीधे देहरादून चली गयी। देहराद

पंजाब में कांग्रेस की पकड़ को मजबूत कर रहा है एसवाइएल का मुद्दा

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गौतम चौधरी सतलुज-यमुना लिंक नहर के पानी पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद पंजाब की राजनीतिक परिस्थिति बदली-बदली-सी दिख रही है। प्रथमदृष्टया निःसंदेह वर्तमान परिस्थिति का सियासी फायदा सबसे ज्यादा पंजाब कांग्रेस को मिलना तय है। हालांकि सत्तारूढ गठबंधन ने भी डैमेज कंट्रोल की पूरी कोषिष की है लेकिन इस मुद्दे पर कांग्रेस बिना समय गमाए इतनी तेज दौर गयी कि अब किसी का हाथ पकड़ना संभव नहीं दिख रहा है। जैसे ही माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने मामले पर अपनी स्थिति स्पष्ट की, पंजाब कांग्रेस ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। आरोप लगाई कि चूकी हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है इसलिए भाजपा के साथ वाली गठबंधन की पंजाब सरकार ने ढंग से पंजाब का पक्ष सर्वोच्च न्यायालय में नहीं रखी और नतीजा पंजाब के हितों के खिलाफ फैसले के रूप में आया। अब इस मामले में भी कांग्रस अन्य सियासी दलों की तुलना में आगे निकलती दिख रही है। मामले पर जितना आक्रामक रूख कांग्रेस ने अपनाया है उतना पंजाब की अन्य सियासी पार्टियों ने नहीं अपनाया। यही कारण है कि पंजाब की जनता के लिए अब कांग्रेस एक मजबूत राजनीतिक विकल्प के रूप म

आसन्न जलसंकट पर चाहिए समाधान तो होगी उपमहाद्वीपीय योजना की जरूरत

गौतम चौधरी पंजाब और हरियाणा के बीच सतलुज-यमुना लिंक नहर पर तलवारें खिंची हुई है। दक्षिण में कावेरी के जल विभाजन पर तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच जबरदस्त टकराव की स्थिति बनी हुई है। विगत दिनों बिहार में आए एकाएक बाढ़ के पीछे का कारण मध्य प्रदेष सरकार की गलती बतायी जा रही है। जल बटवारे को लेकर छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के बीच भी संघर्ष के आसार दिख रहे हैं। नदी के पानी को लेकर बिहार और उत्तर प्रदेष में भी आसन्न विवाद के खतरे मंडरा रहे हैं। नेपाल के साथ पानी का विवाद चल ही रहा है। पानी के मुद्दे पर चीन और पाकिस्तान के साथ भी भारत के टकराव बढ़ते जा रहे हैं। सही मायने में देखें तो दक्षिण एषिया में पानी को लेकर बड़े संघर्ष की संभावना दिख रही है। यह संघर्ष कब होगा, कितना होगा, किस प्रकार का होगा और किन-किन के बीच होगा, अभी कठिन है लेकिन संघर्ष की पृष्ठभूमि तैयार होती-सी लगती है। मसलन हमें यह विचार करना होगा कि आखिर पानी की समस्या का समाधान कैसे किया जाए। भारतीय उपमहाद्वीप के देषों में पानी की कमी कभी नहीं रही। हमारे यहां बारिष खूब होती है और थार के मरूभूमि को छोड़ दिया जाए तो पूरे उपमहाद्वीप में लग

असफलताओं को छुपाने का प्रयास या फिर इतिहास बनाने की योजना

गौतम चौधरी अभी पूरे देष में बस एक ही बात की चर्चा हो रही है। चौक-चौपालों से लेकर संसद भवन तक नोटबंदी पर गहमागहमी है। कुछ विपक्ष में हैं तो अधिकतर लोग यह कह रहे हैं कि मोदी सरकार ने बहुत बढि़या काम किया है। काम बढि़या है या घढि़या इसपर राय देना जल्दबाजी होगा लेकिन इतना तो तय है कि देष की अधिकतर जनता इस निर्णय से खुष दिख रही है। नोट बंदी को कुछ समाचार माध्यम ने मुद्रा आपातकाल की संज्ञा दी है लेकिन कुछ ऐसे भी समाचार माध्यम हैं जिन्होंने इसे मुद्रा अनुषासन कहकर पुकारा है। जिस प्रकार आपातकाल के समय, इधर जयप्रकाष नारायण जी इंदिरा जी के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे तो उधर विनोवा भावे आपालकाल को अनुषासन पर्व बता रहे थे। ठीक उसी प्रकार अभी अपने देष में दो प्रकार के चिंतनों में देष के बुद्धिजीवी विभाजित दिख रहे हैं। कुछ तटस्थ भी हैं लेकिन वे भी सरकार की तैयारियों पर प्रष्न खड़ा करने लगे हैं। जनता स्वाभाविक रूप से परेषान है लेकिन उसको इस बात की तसल्ली है कि जो लोग कलतक नोटों की गड्डियां गिनते नहीं थकते थे वे भी उनके साथ कतार में खड़े हैं। इन तमाम चर्चाओं के बीच मोदी सरकार ने बड़ी सूनियोजित तरीके से

मुद्रा परिवर्तन का निर्णय सराहनीय पर सरकार की तैयारियों पर उठ रहे हैं सवाल

गौतम चौधरी मुद्रा परिवर्तन पर बहस चल रही है। मैं भी आभासी माध्यमों पर विगत दिनों जमकर सक्रिय रहा। मेरा धेय इस मामले को गहराई से जानना था और आमजन इस मुद्दे पर क्या सोच रहा है उसकी गहराई से जानकारी इकट्ठा करना था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा लिए गए निर्णय से उत्पन्न स्थिति की जानकारी के लिए मैं बाजार के कुछ व्यापारियों से भी बात की। साथ ही भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पारंपरिक समर्थकों के पास जाकर उनका मन्तव्य जानने की कोषिष की। कुल मिलाकर मोदी के इस निर्णय से आम जनता खुष दिखी लेकिन सबका यही कहना था कि इस निर्णय को लागू करने के लिए जो रास्ता अपनाया गया है, वह बेहद खतरनाक है। कुछ लोगों का तो यहां तक कहना है कि प्रधानमंत्री के इस निर्णय से न केवल तात्कालिक परिणाम नकारात्मक आएंगे अपितु इसका दूरगामी प्रभाव भी देषहित में नहीं होगा। इस मामले पर मेरा भी ऐसा ही कुछ सोचना है। मैं व्यक्तिगत रूप से यह मानता हूं कि प्रधानमंत्री के द्वारा लिया गया यह निर्णय आनन-फानन का निर्णय है। बिना किसी पूर्व और पूर्ण तैयारी के इसकी घोषणा की गयी जो न केवल अलोकतांत्रिक है अपितु इससे अ

समस्तीपुर की विशेषता और संक्षिप्त इतिहास

समस्तीपुर भारत गणराज्य के बिहाप्रान्त में दरभंगा प्रमंडल स्थित एक शहर एवं जिला है। समस्तीपुर के उत्तर में दरभंगा, दक्षिण में गंगा नदी और पटना जिला, पश्चिम में मुजफ्फरपुर एवं वैशाली, तथा पूर्व में बेगूसराय एवं खगड़िया जिले है। यहाँ शिक्षा का माध्यम हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी है लेकिन बोल-चाल में बज्जिका और मैथिली बोली जाती है। मिथिला क्षेत्र के परिधि पर स्थित यह जिला उपजाऊ कृषि प्रदेश है। समस्तीपुर पूर्व मध्य रेलवे का मंडल भी है। समस्तीपुर को मिथिला का प्रवेशद्वार भी कहा जाता है। नामाकरण समस्तीपुर का परंपरागत नाम सरैसा है। इसका वर्तमान नाम मध्य काल में बंगाल एवं उत्तरी बिहार के शासक हाजी शम्सुद्दीन इलियास ((१३४५-१३५८ ईस्वी) के नाम पर पड़ा है। कुछ लोगों का मानना है कि इसका प्राचीन नाम सोमवती था जो बदलकर सोम वस्तीपुर फिर समवस्तीपुर और समस्तीपुर हो गया। इतिहास समस्तीपुर राजा जनक के मिथिला प्रदेश का अंग रहा है। विदेह राज्य का अंत होने पर यह वैशाली गणराज्य का अंग बना। इसके पश्चात यह मगध के मौर्य, शुंग, कण्व और गुप्त शासकों के महान साम्राज्य का हिस्सा रहा। ह्वेनसांग के व

भारतीय बहुलतावाद का प्रतिनिधि चिंतन है सूफीवाद

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कलीमुल्ला खान विगत दिनों महान हिन्दूवादी विद्वान और कांग्रेस के नेता डोगरा राज परिवार से संबंधित लेखक करण सिंह जी एक आलेख पढ़ने को मिला। आलेख इतना संतुलित और व्यवस्थित लगा कि उसकी चर्चा करना मैं उचित समझता हूं। करण सिंह जी हिन्दू दर्षन के आधिकारिक विद्वान माने जाते हैं लेकिन इस आलेख ने यह साबित कर दिया कि वे न केवल हिन्दू दर्षन के विद्वान हैं अपितु संपूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले दर्षन सूफीवाद पर भी वे अपनी पकड़ रखते हैं। लेखक करण सिंह के अनुसार सूफीवाद भारत की हजारों साल पहले की बहुलतावादी परंपराओं के अनुकूल है और इसी दर्षन में संपूर्ण भारत के प्रतिनिधित्व की क्षमता भी है। वे कहते हैं कि हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जहां कई मोर्चों पर तरक्की के बावजूद भी एक बड़ा विरोधाभास-सा बना हुआ है। यहां स्वतंत्र प्रांतों के अंदर राजनीतिक, आर्थिक और धार्मिक भाग हैं, जो आपसी संघर्ष में शामिल रहे हैं, उन्होंने दुनिया के महान धर्मों के प्रतिनिधियों को एक साथ लाने के लिए इसकी विभिनन शाखाओं में मैत्रीपूर्ण बातचीत करने की योजना बनाई है। यह किसी विषेष धर्म की श्रेष्ठता को साबित करने का प्रयास

आसन्न विधानसभा चुनाव में आखिर किस करवट बैठेंगे पंजाब के वामपंथी?

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Gautam Chaudhary राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय जनता पार्टी या राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन के खिलाफ संगठित वा एकत्रित किसी नए गठबंधन की रूप-रेखा अभीतक तो सामने नहीं आयी है लेकिन राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर स्थानीय स्तर पर दलों का जोड़-तोड़-गठजोड़ सामने आने लगा है। मसलन आसन्न पंजाब विधानसभा चुनाव को लेकर भी दलों के आपसी तालमेल और चुनावी सैदेबाजी प्रारंभ हो गयी है। हालांकि पंजाब में सत्तारूढ गठबंधन के खिलाफ मोर्चेबंदी की गति मंद है लेकिन प्रतिपक्षी गठबंधनों का आकार कई मोर्चों पर स्वरूप ग्रहण करने लगा है। निःसंदेह अकाली-भाजपा अपने संयुक्त सामाजिक और पांथिक गठजोड़ के कारण अभी भी मजबूत दिख रहे हंै। इस बार भी वह पूरी उम्मीद के साथ मैदान में हैं। हालांकि सत्ता विरोधी हवा ने उसके खिलाफ माहौल जरूर बना दिया है लेकिन पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए बन रहे मोर्चों और बठबंधनों के साथ बहुध्रूवीय मुकाबले में सत्तारूढ गठबंधन की उम्मीद को हतोत्साहित करना कठिन जान पड़ता है। इन तमाम उहापोहों के बीच मजबूत सांगठनिक क्षमता वाले वामपंथी धरों के स्वरूप और गठजोड़ की रणनीति दिलचस्प होती जा र

सेना के अभियानों पर प्रष्न और उसका राजनीतिकरण दोनों नाजायज

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Gautam Chaudhary भारत सरकार के द्वारा पाकिस्तानी सीमा के अंदर घुसकर हमला किए जाने की घटना को मैं व्यक्तिगत रूप से बहुत ज्यादा तूल नहीं देना चाहता था। लेकिन मेरे देने या न देने से क्या फर्क पड़ता है। भारत और पाकिस्तान की ही नहीं इस मामले ने पूरी दुनिया की मीडिया को अपनी ओर आकर्षित किया। उड़ी हमला हुआ। हमारे सैनिक मारे गए। भारत को बहुत घाटा उठाना पड़। इसकी जांच रिपोर्ट जो बेहद कम समाचार माध्यमों की सुर्खियां बटोर पायी, उसका कुल लब्बोलुआब यही था कि भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की कमजोरी के कारण हमारे दुष्मन हमपर आघात करने में सफल हो गए। समाचार माध्यमों के बारीक अध्यन से यह भी जाहिर होने लगा कि इस हमले के बाद एक लाॅबी बड़ी होषियारी से हथियारों की खरीद के लिए देष में माहौल बनाने लगी। खैर देष है तो इसकी सुरक्षा भी होनी चाहिए। सुरक्षा के लिए हथियार की जरूरत तो पड़ती ही है। साथ में सेना की भी जरूरत होती है। बिना सेना हम राष्ट्र की कल्पना नहीं कर सकते हैं, सो हमें सैन्य ताकत में तो मजबूत होना ही होगा। और जब मोर्चों पर दो-दो प्रभावषाली दुष्मन हों तो हमें होषियारी से अपनी ताकत बढने की जरूत तो है लेकिन

आईएस के खिलाफ मुठभेड़ करता सहिष्णु हिन्दवी इस्लाम

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कलीमुल्ला खान विगत दिनों केरल के सवालत नगर में शुक्रवार वाली जुम्मे की नमाज़ के लिए इकट्ठा हुए हज़ारों सुन्नी मुसलमानों ने कुख्यात आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट के विरूद्ध आवाज़ उठाते हुए। यह आवाज हवा में नहीं उठाया गया था। इसके पीछे बड़ी तकत काम कर रही थी। यह किसी दिषा की ओर संकेत कर रहा है इसे समझने की जरूर है। भारत में आतंकवाद का नाम आते ही उसे इस्लाम से जोड़ देने का प्रचलन रहा है। हालांकि व्यक्तिगत रूप से मैं इस चिंतन से सहमत नहीं हूं लेकिन कई आतंकवादी संगठन इस्लाम को अपने साथ जोड़कर इस मजहब को बदनाम करने की कोषिष जरूर की है। पर अब लोग समझने लगे हैं। दुनिया के सबसे खुंखार मानवता विरोधी आईएसआईएस के खिलाफ माहौल बनने लगा है। उसे न केवल गैर-इस्लामिक बल्कि इस्लाम-विरोधी भी करार दिया जाने लगा है। उक्त कार्यक्रम के दौरान विषाल जन समूह ने इस्लाम को आतंकवादी के हाथों अपहृत न होने देने की शपथ भी ली। उन्होंने एक साथ प्रतिज्ञा लेते हुए कहा कि यद्यपि हमें अपने मुसलमान होने पर गर्व है, फिर भी हम अन्य सभी धर्मों और उनके अनुयायियों का आदर व सम्मान करते हैं। उन्होंने आगे प्रण लिया कि वे आईएस जैसी विरोधी

प्रियंका की काया पर नफरत के पोस्टर

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Gautam Chaudhary इन दिनों प्रियंका चोपड़ा का एक टीषर्ट चर्चा का विषय बना हुआ है। ऐसे कोई कपड़ा मात्र कपड़ा होता है। पर वह जब परिधान में परिवर्तित होता है तो उसका जुड़ाव, सकारात्मक हो या नकारात्मक, एक आदर्ष के साथ हो जाता है। जब परिधान पर कुछ लिखा हो और उसे खास किस्म से डिजाइन कर किसी चर्चित अभिनेत्री या अभिनेता के शरीर पर डाल दिया जाए तो उसके मायने निकाला जाना स्वाभाविक है। यही तो हुआ है, प्रियंका के टीषर्ट के साथ। प्रियंका जिस टीषर्ट को पहन रखी है उसके उपर चार शब्द लिखे हुए हैं-षरार्थी, अप्रवासी, आगंतुक और पर्यटक। तीन शब्द को काट दिया गया है लेकिन पर्यटक शब्द को नहीं काटा गया है। इस प्रकार का डिजाइन टीषर्ट निःसंदेह गहरा संदेष देने वाला है। इस डिजाइनदार टीषर्ट का साफ और सीधा संदेष यह है कि शनार्थी से लेकर आगंतुक तक बिल्कुल स्वीकार्य नहीं है लेकिन पर्यटक की स्वीकार्यता होनी चाहिए। प्रियंका इस टीषर्ट के माध्यम से किसके लिए, क्यों और किसके खिलाफ संदेष दे रही है, पता नहीं। न ही प्रियंका जी ने इस टीर्षट पर कोई बयान जारी किया है लेकिन वे आजकल जिसके लिए काम कर रही हैं यह टीषर्ट उसकी मानसिकता

सीमा पर स्थाई शांति के लिए पाकिस्तान और चीन के साथ युद्ध जरूरी

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गौतम चौधरी हमारे देश में आज भी कुछ लोग दोस्ती के नगमे गा रहे हैं। दोस्ती का हाथ बढ़ाने में बुरा कुछ भी नहीं है लेकिन जिसने पूर्वाग्रह पाल लिया हो और उसे युद्ध में ही आनंद आता हो तो उसका जवाब तो देना ही होगा। मेरा तो व्यक्तिगत रूप से मानना है कि पाकिस्तान और चीन के साथ युद्ध ही एक मात्र रास्ता है। सीमा पर शांति तभी संभव है।  भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अनाक्रामक देश की बनी छवि को तोड़कर यह साबित करने का प्रयास किया है कि अब भारत अपने उपर आक्रमण करने वालों के खिलाफ लड़ाई भी कर सकता है। देश के सब्र का इंतजार खत्म हुआ और आखिर भारत पाकिस्तान के भीतर घुसकर आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई  की। यहां इस कहावत को दुहराना जायज रहेगा कि देर आयद, दुरुस्त आयद। मोदी सरकार ने सूनियोजित, सुविचारित योजना को अंजाम देकर पाक अधिकृत कश्मीर में अपनी सेना को घुसाकर आतंकियों के सात लांच पैड ध्वस्त कर दिए। यह कार्रवाई यूं ही नहीं हुई है। भारतीय खुफिया एजेंसियों को पक्की सूचना मिली थी कि पाकिस्तानी सेना सैंकड़ों आतकवादियों को प्रशिक्षित कर उन्हें भारत में घुसारकर बड़ी आतंकवादी घटना को अंजाम देने के