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Showing posts from July, 2015

आर्थिक मामलों के चार खबरों की मिमांशा

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गौतम चौधरी  बैंकों की गैर निष्पादित परिसंपत्ति जनता के पैसे का बंदरबांट देश के आर्थिक मामलों से जुड़े चार खबरों पर आज हम पड़ताल करने वाले हैं। ये खबरें विगत एक महीनें से समाचार माध्यमों की सुर्खियां बन रही है। इसपर चर्चा करना इसलिए भी जरूरी है कि मामला आम आदमी के हितों से जुड़ा हुआ है। पहली खबर है कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली हमारी केन्द्र सरकार, भारतीय रिजर्व बैंक के गवरनर के अधिकार में कटौती करने की योजना बना रही है। वह कटौती किस प्रकार की होगी उसे सार्वजनिक नहीं किया गया है। दूसरी खबर है कि विगत दो वर्षो के दौरान विकास दर बढाने के चक्कर में बड़ी तेजी से ऋण की बढोतरी हुई है। तीसरी खबर यह है कि देश में बड़ी तेजी से करोड़पतियों की संख्या बढी है और उसमें से ज्यादातर करोड़पति विदेश जाकर बस गये हैं। चौथी और सबसे चौकाने वाली खबर यह है कि आम जनता से चलने वाले बैंकों ने बड़ी-बड़ी कंपनियों को मुक्तहस्त ऋण देती रही है, उन ऋणों में से चाल लाख करोड़ रूपये उन कंपनियों के पास है जो दिवालिया है। बैंकों ने उस पैसे को गैर निष्पादित परिसंपत्ति घोषित कर दी है।  ये चारो खबरें हमारे जीवन से

व्यापारिक हितों के लिए अपनी नीति बदलाव रहा है अमेरिका

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गौतम चौधरी इतिहास को याद कीजिए, संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज डब्लू बुस साहब ने कभी कहा था कि क्यूूूबा, इरान और दक्षिण कोरिया शैतानियत की घुरी है। मुङो पूरा-पूरा याद नहीं है, लेकिन संभवत: उन्होंने कुछ और देशों का नाम लिया था और कहा था कि ये देश मानवता के दुश्मन हैं। आज उसी अमेरिका को मजबूर होकर दो शैतानी आत्मा वाले देशों के साथ समझौता करना पर रहा है। क्या अमेरिका की नीति बदल रही है, क्या अमेरिका अब इन देशों को शैतानी ताकत से संपन्न देश नहीं मानता, या फिर अमेरिकी कूटनीतिज्ञ कुछ अलग रणनीति पर काम कर रहे हैं, आज हमारे पड़ताल का यही विषय है। कुल मिलकार देखें तो अमेरिकी इतिहास से यही पता चलता है कि संयुक्त राज्य एक निहायत व्यापारिक मनोवृति वाला देश है। वह अपने व्यापारिक हितों को तिरोहित होता नहीं देख सकता। इरान और क्यूबा के साथ अमेरिका का व्यापारिक हित क्या हो सकता है, यह एक गंभीर सवाल है। लिहाजा इन दिनों विश्व परिदृष्य बड़ी तेजी से बदल रहा है। प्रकारांतर में झांकें तो स्पष्ट दिखता है कि घुर विरोधी सउदी अरब और इजरायल का जो केन्द्रीय सत्ता प्रतिष्ठान है वह आपस में दोस्त है। इ

अमेरिका-इरान दोस्ती और भारत का नफा-नुकसान

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गौतम चौधरी  संयुक्त राज्य अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी ने इजरायल को धमकाते हुए कहा है कि यदि इजरायल अमेरिक-इरान परमाणु समझौते का विरोध किया तो वह दुनिया में अलग-थलग पड़ जाएगा। इस बयान ने साबित कर दिया है कि अमेरिका, इरान के साथ दोस्ती के लिए बेहद आतुर है। लिहाजा इस दोस्ती के आगे अमेरिका, यहुदियों की भी परवाह नहीं कर रहा है, जो अमेरिका के अंदर सबसे मजबूत लॉबी माना जाता है। क्या यह एशिया में नये कूटनीतिक समिकरण का संकेत है, या फिर कुछ और? इधर संयुक्त राज्य अमेरिका की इरान के साथ घट रही दूरी नि:संदेह भारतीय कूटनीति के लिए बेहद खुश करने वाला है, लेकिन इसके दूरगामी प्रभाव पर भारत को गंभीरता से विचार करना चाहिए। बताया-समझाया यह जा रहा है कि अमेरिक के साथ इरान की दोस्ती के कारण भारत को सबसे ज्यादा फायदा होने वाला है। मुङो भी लगता है इस बात में दम है, लेकिन दूरगामी प्रभावों का यदि आकलन करें तो अमेरिका बेहद शातिराना चाल चल रहा है। इस आलेख के माध्यम से हम इस बार इरान और संयुक्त राज्य के बीच घट रही दूरी का भारत के उपर दूरगामी प्रभाव क्या पड़ेगा और वह कितना नकारात्मक-सकारात्मक होगा उसी का आकल

सौन्दर्य प्रसाधन की कंपनियों का रंगभेदी मनोवृति

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गौतम चौधरी   समाचार माध्यमों में प्रचारित-प्रसारित दो खबरों ने सियासी हल्कों में नया तूफान खड़ा कर दिया है। पहली खबर हरियाणा की भारतीय जनता पार्टी सरकार के द्वारा बेटी बचाओ अभियान के लिए सिने अभिनेत्री परिणीती चोपड़ा को ब्रांड अम्बसडर बनाने वाली खबर है, तो दूसरी खबर हिन्दी सिनेमा के कथित महानायक अमिताभ बच्चन को प्रसार भारती द्वारा नाहक में छे करोड़ रूपये से ज्यादा की राशि प्रदान कर देना वाली है। इन दोनों खबरों पर बवाल मचा हुआ है। पता है, ये दोनों उसी जमात के हैं जिन्हे साम्राज्यवादी व्यापारियों ने महानायक के रूप में खड़ा किया है। पहले तो ऐसे लोगों को महानायक और महानायिका के रूप में खड़ा किया जाता है, फिर इन्हें साम्राज्यवादी ताकतें अपने साम्राज्य विस्तार के लिए हथियार के रूप में उपयोग करती है।  मैं यह क्यों कहूं कि कलाकारों को सम्मान नहीं दिया जाना चाहिए, लेकिन बिना मतलब के काम को लेकर अभियान के नाम पर इन्हें प्रचार दिलाना और उसके माध्यम से आम जन को दिगभ्रमित करना, यह समाज के लिए खतरनात है और इसका विरोध होना ही चाहिए। ये किस प्रकार साम्राज्यवादियों के हथियार बनते हैं और

चीन के खतरनाक कूटनीतिक चाल को समङो की जरूरत

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गौतम चौधरी याद होगा! विगत दिनों चीन की ओर से एक कूटनीतिक बयान आया था। बयान गौर बरने वाला है। चीन ने भारत सरकार से अनुरोध किया था कि वह भारत-नेपाल-चीन के बीच एक व्यावसायिक कॉलिडोर बनने की इच्छा रखता है। यदि भारत सरकार की हां हो तो चीन इस पर पहल कर सकता है। इस बयान के बाद न तो भारत सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया आयी और न ही चीनी राजनेताओं का कोई बयान अया। चीनी कूटनीतिज्ञों का बयान आया, गया और हो गया। सतही तौर पर कहें तो कुछ ऐसा ही है, लेकिन चीन एक गंभीर देश है और उसकी ओर से इस प्रकार के गंभीर विषय पर आए बयान को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए क्योंकि चीन जिस व्यापारिक कॉलीडोर की बात कर रहा है, वह बिहार के साथ चीन के सैंकड़ों साल के व्यापारिक जुड़ाव और सांस्कृतिक संबंधों का मार्ग रहा है। अंदर की बात तो यह है कि विगत कई वर्षो से नेपाल को विश्वास में लेकर चीन इस दिशा में काम कर रहा है। मैं व्यक्तिगत तौर पर मानता हूं कि इस मामले में भारत के कूटनीतिज्ञों को कतिपय गहन जानकारियां होगी, लेकिन चीन की चाल को हम न तो नेपाल में मात दे पा रहे हैं और न ही भारत में। इसके पीछे के कारणों की पड़ताल फिर

बिहार विधान परिषद् चुनाव परिणाम के मायने

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गौतम चौधरी  दोनों गठबंधन नेक टू नेक फाईट में बिहर विधान परिषद् के हालिया 24 सीटों पर हुए चुनाव में भारतीय जनता पार्टी एवं उनके नेतृत्व वाले राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन की जीत को इतिहासिक बताया जा रहा है। जिस प्रकार से जीत हुई है वह कायदे से इतिहासिक है भी। लिहाजा इस चुनाव में 12 सीटों पर भाजपा की जीत हुई, जबकि पिछले चुनाव में भाजपा मात्र पांच सीटों पर जीत पायी थी। इस जीत ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पकड़ ढीली पडने का संकेत दे रही है। क्योंकि पिछली बार जनता दल युनाइटेड को 16 सीटें मिली थी और इस बार उन्हें पांच सीटों पर ही संतोष करना पड़ा है। इस चुनाव में लालू प्रसाद यादव को थोड़ी सफलता जरूर मिली है, लेकिन उनके लिए संकेत अछे नहीं हैं क्योंकि वे जिन मतों पर अपनी पकड़ के दावे करते रहे हैं वह इस बार उनके पक्ष में गोलबंद होता नहीं दिखा है।  बिहार के जीतीय समिकारण को यदि गंभीरता से देखें तो बिहार में इन दिनों एक नये सामाजिक-राजनीतिक ध्रुविकरण का स्वरूप सामने आ रहा है। जहां एक ओर बिहार की अगड़ी जातियों के साथ बनिया समुदाय ध्रुविकृत होते दिख रहे हैं, वही दूसरी ओर अगड़ जातिय

पश्चिम के मुकाबले पूरब को ज्यादा महत्व दे रहे हैं प्रधानमंत्री

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गौतम चौधरी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हालिया विदेश दौरे का हर कोणों से पडताल जारी है। होना भी चाहिए और होना स्वाभाविक है। नरेन्द्र भाई इन दिनों मध्य एशिया और रूस के दौरे पर हैं। यह दौरा भारत के लिए कितना अहम है, इसपर एक गंभीर परख की जरूरत है। इस पूरे दौरे के दौरान एक जो सबसे महत्वपूर्ण बात सामने आई है, वह है भारत के साथ पाकिस्तान की दोस्ती के नये अध्याय का प्रारंभ होना। समाचार माध्यमों से मिली खबर में बताया गया है कि प्रधानमंत्री अगले साल पाकिस्तान के दौरे पर भी जाएंगे। कुल मिलाकर देखें तो प्रधानमंत्री मोदी, पाकिस्तान के साथ संबंधों को सामान्य करने के प्रयास में लगे हैं। भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच विकसित हो रहे नये संबंधों को लेकर कुछ लोग मोदी की सराहना कर रहे हैं, तो कुछ लोग विरोध में उतर आये हैं। दोनों पक्ष के लोगों के अपने अपने तर्क है। मुङो उन दोनों के तर्को पर नहीं जाना है लेकिन मोदी पहल पर संदेह करने वालों को वास्तविकता की जानकारी तो होनी ही चाहिए। दोनों देशों के बीच जो संबंध प्रारंभ हो रहा है यह भारत के लिए कितना हितकर हो

पार्टी के खिलाफ प्रचार से कमजोर नहीं मजबूत हो रहे हैं मोदी और शाह

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गौतम चौधरी भारतीय जनता पार्टी, केन्द्र या राज्य सरकारों के अंदर जो विभिन्न प्रकार के कथित घोटाले और अनियमित्ताओं के चर्चे हो रहे हैं, इसमें सत्यता चाहे जितनी हो लेकिन प्रचार के पीछे भाजपा की आंतरिक लडाई को भी एक पक्ष माना जा सकता है। गौर से देखेंगे तो ये मामले उन्ही लोगों के खिलाफ उठ रहे हैं जिन्हें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। यही नहीं बिहार में आए दिन चुनाव होने वाला है। जो स्थिति बन रही है उसमें बिहार चुनाव भाजपा के लिए बेहद कठिन चुनाव में से एक है। दावे के साथ तो नहीं लेकिन संभव है कि बिहार के चुनाव में भाजपा हार जाये। हालांकि मैं गलत भी हो सकता हूं, लेकिन मुङो जो लगता है, बिहार का चुनाव यदि भाजपा हारी तो उसके लिए दो कारण जिम्मबार होगा। पहला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जन विरोधी एवं कॉरपोरेट समर्थक नीतियां और दूसरा बिहार भाजपा की सांगठनिक दुरावस्था, और इन दोनों मोर्चो पर नरेन्द्र मोदी तथा अमित शाह काबीज हैं। आज मेरे पडताल का विषय यही है।  नरेन्द्र मोदी और अमित शाह को बचाने वाली कॉरपोरेट मीडिया भाजपा के नेताओं के उपर लग रहे दाग को व्यापक

पंजाब में नये राजनीतिक समीकरण की सुगबुगाहट

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Gautam Chaudhary पंजाब का सियासी समीकरण बडी तेजी से बदल रहा है। संभव है कि भारतीय जनता पार्टी पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए नया गठबंधन बनाए और फिर से एक बार पंजाब की राजनीतिक में कप्तान अमरेन्द्र, अपरिहार्य हो जाएं। इसके लिए थोडा पृष्टभूमि खंगाल लेते हैं। दिल्ली की सत्तारूढ आम आदमी पार्टी द्वारा विधानसभा में सिखों के खिलाफ हुए सन् 1984 के दंगे के आरोपियों को सजा दिलवाने वाले प्रस्ताव के पारित होने से पंजाब के सिख एक्टिविस्ट उत्साहित हैं। उन्हें लगने लगा है कि जो न्याय उन्हें कांग्रेस और भाजपा की सरकारों ने नहीं दिलवाई, वह न्याय अब आम आदमी पार्टी दिलवा रही है। इस बात का पंजाब में बडा असर देखा जा रहा है। इधर धूरी के विधायक अरविन्द खन्ना का विधानसभा की सदस्यता से अचानक त्याग-पत्र देना पंजाब के राजनीतिक रहस्य को और गहरा बना रहा है। याद रहे खन्ना, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री एवं वर्तमान में कांग्रेस की ओर से उपनेता कप्तान अमरेन्द्र सिंह के खास माने जाते हैं। पंजाब के सियासी गलियारों में इस बात की जबरदस्त चर्चा हो रही है कि खन्ना इन दिनों केन्द्र की सत्ता चला रही भाजपा और सरकार के काफ

अकालियों के पंथक रणनीति से पंजाब में सिकुर रही है भाजपा की जमीन

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गौतम चौधरी भजपा के वोटबैंक पर कांग्रेस की नजर भारतीय जनता पार्टी , सिख चरमपंथियों का मुखर विरोधी रही है। यदि कहा जाये कि पंजाब और उत्तर भारत में भाजपा के एजेंडों में सिख चरमपंथियों की मुखाल्फल , एक महत्वपूर्ण एजेंडा रहा है , तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। शिरोमणि अकाली दल जैसे घुर सिख समर्थक दल के साथ गठबंधन करने के बाद भी भाजपा ने अपने इस स्वरूप के साथ कभी समझौता नहीं किया , लेकिन विगत दिनों जो घटनाएं घटी उससे भाजपा के समर्थकों में यह संदेश जाने लगा है कि पार्टी केन्द्र में सत्ता प्राप्त करने के बाद अपने कुछ मूल सिद्धांतों से समझौता करने लगी है , उसमें सिख अतिवादियों का विरोध भी एक मुद्दा है। विगत दिनों दो सिख अतिवादियों को देश के विभिन्न जेलों से लाकर पंजाब के जेलों में डाला गया। सिख चरमपंथियों की सिफटिंग पर पंजाब की सियासत गर्म हो रही है। हालांकि सिख आतंकवाद पर गंभीरता से नजर रखने वाले विष्लेशक एवं पंजाब पुलिस की गुप्तचर शाखा यह मानकर चल रही है कि ये दोनों आतंकवादी अब महत्वहीन हो चुके हैं और पंजाब के जेलों में इन्हें डाल देने से पंजाब की शांति पर कोई नकारात्मक प्रभाव पडने वाला नही