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Showing posts from February, 2020

जिन्हें भविष्य की चिंता है उन्हें सुलह पर अमल करना ही होगा

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गौतम चौधरी  दिल्ली की हालिया हिंसा गंभीर है। इस पर केन्द्र सरकार को ही नहीं दिल्ली और आसपास के लोगों को भी गंभरता से चिंतन करनी चाहिए। इस हिंसा के गंभीर और दूरगामी दोनों परिणाम खतरनाक हो सकते हैं। यदि इस सदी के दंगों के इतिहास को देखें तो स्वातंत्र समर से लेकर अबतक दिल्ली में तीन बड़े दंगे हुए हैं। पहला दंगा हिन्दू और मुसलमानों के बीच हुए। यह दंगा स्वतंत्रता के समय हुआ। इस दंगे में हिन्दुओं के साथ सिख खड़े थे। बड़ी संख्या में लोग मारे गए। दिल्ली उजरी और दिल्ली की एक बड़ी आबादी पाकिस्तान चली गयी। पाकिस्तान की बड़ी आबादी दिल्ली और आसपास में आगर बस गयी।  दूसरा दंगा तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुई। यह दंगा सिख और हिन्दुओं के बीच था लेकिन इस दंगे की एक खासियत यह थी कि यहां मुसलमान तटस्थ था और कोने में खड़ा होकर हिन्दू-सिखों के बीच दंगों का आनंद उठा रहा था। इस बात की चर्चा समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान ने एक बार अपने भाषण में की थी। उन्होंने कहा था कि जब चौरासी में हिन्दू-सिख के बीच दंगे हुए तो मुसलमान खुश हुए थे क्योंकि आजादी के समय हिन्दू-सिख मिलकर मु

माओवादी आन्दोलन का जातिवादी चेहरा उजागर, खूनी संघर्ष की आशंका

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गौतम चौधरी  भारत में सक्रिय चरमपंथी भूमिगत साम्यवादी संगठन, भारत की काम्यनिस्ट पार्टी (माअवादी) के राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व गतिरोध और अंतरद्वंद्व की खबर तो यदा-कदा आती रहती है लेकिन इन दिनों माओवादी आतंकवाद से बुरी तरह प्रभावित झारखंड के नेतृत्व में फूट की खबर डर पैदा करने वाली है। सूत्रों की मानें तो माओवादी पार्टी की राजनीतिक इकाई और मिलिट्री विंग दोनों आदिवासी और गैर आदिवासी गुटों में बंट गए हैं। आदिवासी गुट का नेतृत्व बुधेश्वर उरांव कर रहे हैं तो गैर आदिवासी गुट का नेतृत्व संदीप यादव के जिम्मे है। जगह-जगह दोनों गुटों के बीच विवाद की बात सामने आई है। सशस्त्र दस्तों में भी लगातार विभाजन की खाई गहरी होती जा रही है। इस गतिरोध को खूनी संघर्ष में बदलने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है। डर दोनों तरफ है। माओवादियों नेतृत्व में डर इस बात को लेकर है कि इससे उच्च स्तर के गुरिल्ला प्रशिक्षण प्राप्त माओवादी लड़ाके आत्मसर्मपण कर सकते हैं तो दूसरी ओर पुलिस को इस बात की चिंता है कि इस लड़ाई में नाहक बेकशूर लोग मारे जाएंगे। मसलन इस बात को लेकर दोनों ओर से काउंटर की रणनीति बनने लगी ह

नेतरहाट की मैगनोलिया की प्रेम कहानी आपने सुनी क्या

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गौतम चौधरी  मैगनोलिया की कहानी आपलोगों ने अगर नहीं सुनी होगी, तो मैं आपको सुनाता हूं! यह एक अधूरी प्रेम कहानी है। दरअसल, विगत दिनों मैं नेतरहाट गया था। उस नेतरहाटा को घुमने गया था जिसे छोटानागपुर की रानी के नाम से जाना जाता है। यह झारखंड का बेहद प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है। नेतरहाट झारखंड में ही नहीं देश भर में प्रसिद्ध है। घनघोर जंगलों से आक्षादित, समुद्र तल से 3761 फीट की ऊंचाई पर स्थित नेतरहाट झारखंड का वह मनोरम स्थल है, जहां नैनाभिराम सूर्यास्त और सूर्योदय देखने के लिए दुनियाभर से पर्यटक जाते हैं। बड़ी संख्या में विदेशी, खासकर पश्चिमी देशों के पर्यटक भी यहां आते हैं क्योंकि नेतरहाट एक ब्रितानी लड़की की प्रेम कहानी से भी जुड़ी हुई है।  विगत दिनों में इंदिया गांधी राष्टÑीय कला केन्द्र की रांची शाखा के पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा, आदिवासी आर्ट एंड हैंडिक्राप्त के कुछ विद्यार्थियों के साथ मैं नेतरहाट गया था। मेरे साथ इतिहास विषय में शोध कर रहे और सेंटर के अतिथि प्राध्यापक आदित्यनाथ झा भी साथ में थे। जैसे ही हमलोग बिशुनपुर से आगे बढ़े सर्पीले रास्ते ने हमारा मार्गदर्शन किया।

मुल्क की तरक्की के लिए दीनी शिक्षा ही नहीं आधुनिक इल्म भी जरूरी

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हसन जमालपुरी  अत्लाह के रसूल मोह्हमद और उनके साथियों ने खुद इम्लांम के प्रचार के लिए व्यापार और ज्ञान को प्राथमिकता दी थी। उन्होंने तालीम और व्यापार के माधयम से धर्म और धन दोनों हासिल किया, जिससे मजाब को भी काफी फायदा पहुंचाया। दुनिया में जितने भी मुल्क महाशक्ति बने हैं, वे सभी आज जिस मुकाम पर हैं, उसके पीछे कड़ा संघर्ष और त्याग ही है। भारतीय मुसलमानों को इस दिषा में तसल्ली से सोचने की जरूरत है क्योंकि हिन्दुस्तान जितना अन्य संप्रदाय के लोगों का है उससे कहीं अधिक हमारा भी है। इसलिए हमारी हिस्सेदारी हर जगह दिखनी चाहिए। मसलन हमें मदरसों पर भी ध्यान केन्द्रित करना हागा और वहां भी दीनी षिक्षा के साथ ही साथ आधुनिक शिक्षा जरूरी करना चाहिए।  हम यब वाकिफ है कि पाकिस्तान इतनी बुरी हालत तक केसे पहुँचा और बांग्लादेश खुद को इतने ऊँचे स्थान पर कैसे पहंुचाया। इसकी वजह ये है कि पाकिस्तान ने अपने युवाओं के हाथों में कलम के बजाय हथियार थमा दिया और साथ ही साथ धार्मिक अतिवाद को भी अपनी पहचान बना ली। इन्ही दो कारणों से आज पाकिस्तान तबाह हो रहा है, जबकि बांग्लादेश के बुद्धिजीवियों ने अपनी युवा

बिहार में नई जमीन की तलाश में कन्हैया का वामपंथ

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गौतम चौधरी  निःसंदेह डाॅ. कन्हैया कुमार ने भारतीय वामपंथ को नए सिरे से परिभाषित करने कीशीश की है। उसके काम करने की शैली भले ही वामपंथी की पारंपरिक शैली से मेल खाती हो लेकिन वह ऑपरेशन अपने तरीके से कर रहा है। यह काॅमरेड कन्हैया अभिनव प्रयोग है। बिहार विधानसभा के आगामी चुनाव में कन्हैया का वामपंथी प्रयोग कितना असर डालेगा यह तो समय बताएगा लेकिन कन्हैया की सभाओं में जो भीड़ जुट रही है उससे यह लगने लगा है कि बिहार में निःसंदेह एक नया राजनीतिक ध्रुव खड़ा होगा जिसकी धुरी वामपंथ हो या न हो लेकिन कन्हैया और प्रषांत किषोर जरूर होंगे, जो बिहार की जातिवादी राजनीतिक जड़ता को उखाड़ फेंकने में कामयाब भी हो सकता है। बिहार में चुनाव से ठीक पहले राजनीतिक सुगबुगाहट शुरू हो गई है। प्रशांत किशोर संभवत कुछ युवाओं के जरिए और खासकर कन्हैया कुमार जैसे कुछ चेहरों को आगे कर एनडीए से मुकाबला करने की तैयारी कर रहे हैं। यही कारण है कि 18 फरवरी के पत्रकार वर्ता में उन्होंने युवाओं को साथ लेने का आह्वान किया है। तो दूसरी ओर कन्हैया कुमार वामपंथी ताकतों के साथ अपने और अपनी पार्टी की जमीन तैयार करने में लगे है