माओवादी आन्दोलन का जातिवादी चेहरा उजागर, खूनी संघर्ष की आशंका

गौतम चौधरी 

भारत में सक्रिय चरमपंथी भूमिगत साम्यवादी संगठन, भारत की काम्यनिस्ट पार्टी (माअवादी) के राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व गतिरोध और अंतरद्वंद्व की खबर तो यदा-कदा आती रहती है लेकिन इन दिनों माओवादी आतंकवाद से बुरी तरह प्रभावित झारखंड के नेतृत्व में फूट की खबर डर पैदा करने वाली है। सूत्रों की मानें तो माओवादी पार्टी की राजनीतिक इकाई और मिलिट्री विंग दोनों आदिवासी और गैर आदिवासी गुटों में बंट गए हैं। आदिवासी गुट का नेतृत्व बुधेश्वर उरांव कर रहे हैं तो गैर आदिवासी गुट का नेतृत्व संदीप यादव के जिम्मे है। जगह-जगह दोनों गुटों के बीच विवाद की बात सामने आई है। सशस्त्र दस्तों में भी लगातार विभाजन की खाई गहरी होती जा रही है। इस गतिरोध को खूनी संघर्ष में बदलने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है। डर दोनों तरफ है। माओवादियों नेतृत्व में डर इस बात को लेकर है कि इससे उच्च स्तर के गुरिल्ला प्रशिक्षण प्राप्त माओवादी लड़ाके आत्मसर्मपण कर सकते हैं तो दूसरी ओर पुलिस को इस बात की चिंता है कि इस लड़ाई में नाहक बेकशूर लोग मारे जाएंगे। मसलन इस बात को लेकर दोनों ओर से काउंटर की रणनीति बनने लगी है। 

मिली खबर में बताया गया है कि माओवादी नेता बुधेश्वर उरांव ने अपना मुख्यालय बूढ़ा पहाड़ इलाके में बना रखा है। बुधेश्वर बिहार-झारखंड रीजनल कमेटी के प्रमुख पदाधिकारी है। संदीप यादव बिहार-झारखंड स्पेशल एरिया कमेटी का पदाधिकारी है। उसने गया और चतरा जिले की सीमी पर चकरबंधा में अपना मुख्यालय बना रखा है। बुधेश्वर उरांव के दबदबे का विरोध करने पर बिहार-झारखंड रीजनल कमेटी के सदस्य भूषण यादव को किनारे कर दिया गया। नाराज भूषण यादव ने पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया। बिहार-झारखंड रीजनल कमेटी के एक और प्रमुख कमांडर विनोद पंडित को बुधेश्वर का दस्ता छोड़कर भागना पड़ा है। गैर आदिवासी गुट के एक प्रमुख कमांडर सौरभ के साथ बुधेश्वर उरांव के दस्ते के बीच हवाई फायरिंग तक की खबर आई है। सौरभ भी बुधेश्वर उरांव की ही तरह बूढ़ा पहाड़ पर ही रहता है। 

यही नहीं खबर तो यहां तक है कि गैर आदिवासी माओवादी गुटों में भी हथियारबंद दस्ते आपस में विभाजित हो गए हैं। भाकपा माओवादी का गैर आदिवासी गुट भी संदीप यादव और नवीन यादव के खेमों में बंट गया है। नवीन यादव ने फिलहाल बूढ़ा पहाड़ के पास साकिया में अपना अड्डा बनाया है। नवीन और संदीप के बीच भी लड़ाई चरम पर पहुंच गई है। दोनों खेमों में एक-दूसरे के बीच लगातार मारपीट हो रही है। 

हाल ही में डालटनगंज के पास से संदीप यादव के कुछ आदमी पकड़े गए हैं। संदीप खेमे ने इसका आरोप नवीन यादव के ऊपर मढ़ा है। संदीप के नजदीकी नवीन के उपर पुलिस से मिलीभगत का आरोप भी लगा रहे हैं। इस बात को सिद्ध करने के लिए वे बाकायदा उदाहरण भी प्रस्तुत कर रहे हैं। उनका कहना है कि हाल ही में नवीन की पत्नी को लातेहार पुलिस ने पकड़ा था। कुछ ही देर बाद उसे छोड़ दिया गया। नवीन के विरोधी आरोप लगा रहे हैं कि पुलिस से मिली भगत होने के कारण ही नवीन की पत्नी को पुलिस ने छोड़ दिया है। 

यही नहीं इस बात को लेकर केन्द्रीय कमेटी तक को आगाह किया गया है कि नवीन जल्दी ही सरेंडर कर देगा और उस पर किसी कीमत पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। इस कारण दोनों खेमों के बीच खूनी भिड़ंत की आशंका पैदा हो गई है। इस बात को लेकर न केवल झारखंड सरकार की अपितु बिहार और केन्द्र सरकार के कान खड़े हो गए हैं। जिस प्रकार की आशंका जताई जा रही है ऐसे में खूनी संघर्ष को को टाला नहीं जा सकता है। 

दरअसल, माओवादियों में पैसे और लेवी को लेकर भी विविद होते रहे हैं। केन्द्रीय नेतृत्व में राजनीतिक सूझ-बूझ और सोच की कमी होने के कारण इन दिनों हथियारबंद दस्ते की ताकत बढ़ गयी है। माओवादियों के इस गुट के कारण जमीनी स्तर पर कई प्रकार के भ्रष्टाचार उत्पन्न हो गए हैं। इसका फायदा सरकार तो उठा ही रही है, वे विचौलिए, दलाल और कॉरपोरेट भी उठा रहे हैं, जिसके खिलाफ माओवादी सोच के चिंतकों ने हथियारबंद दस्ते खड़े किए थे। 

Comments

Popular posts from this blog

अमेरिकी हिटमैन थ्योरी और भारत में क्रूर पूंजीवाद का दौर

आरक्षण नहीं रोजगार पर अपना ध्यान केन्द्रित करे सरकार

हमारे संत-फकीरों ने हमें दी है समृद्ध सांस्कृतिक विरासत