मुल्क की तरक्की के लिए दीनी शिक्षा ही नहीं आधुनिक इल्म भी जरूरी

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हसन जमालपुरी 

अत्लाह के रसूल मोह्हमद और उनके साथियों ने खुद इम्लांम के प्रचार के लिए व्यापार और ज्ञान को प्राथमिकता दी थी। उन्होंने तालीम और व्यापार के माधयम से धर्म और धन दोनों हासिल किया, जिससे मजाब को भी काफी फायदा पहुंचाया। दुनिया में जितने भी मुल्क महाशक्ति बने हैं, वे सभी आज जिस मुकाम पर हैं, उसके पीछे कड़ा संघर्ष और त्याग ही है। भारतीय मुसलमानों को इस दिषा में तसल्ली से सोचने की जरूरत है क्योंकि हिन्दुस्तान जितना अन्य संप्रदाय के लोगों का है उससे कहीं अधिक हमारा भी है। इसलिए हमारी हिस्सेदारी हर जगह दिखनी चाहिए। मसलन हमें मदरसों पर भी ध्यान केन्द्रित करना हागा और वहां भी दीनी षिक्षा के साथ ही साथ आधुनिक शिक्षा जरूरी करना चाहिए। 

हम यब वाकिफ है कि पाकिस्तान इतनी बुरी हालत तक केसे पहुँचा और बांग्लादेश खुद को इतने ऊँचे स्थान पर कैसे पहंुचाया। इसकी वजह ये है कि पाकिस्तान ने अपने युवाओं के हाथों में कलम के बजाय हथियार थमा दिया और साथ ही साथ धार्मिक अतिवाद को भी अपनी पहचान बना ली। इन्ही दो कारणों से आज पाकिस्तान तबाह हो रहा है, जबकि बांग्लादेश के बुद्धिजीवियों ने अपनी युवा पीढ़ी को तालीम की कमी के बावजूद रोजगार और संघर्ष का मंत्र दिया, उन्हें पडोसी देशों में नौकरियों और तिजारत करने के लिए प्रेरित किया। 

हमलोगों को यह जानकर आष्चर्य होगा कि बंगलादेशियो नें न केवल मलेशिया, इंडोनेशिया, सिंगापुर और थाईलैंड में नौकरियों के एक बडे हिस्से पर कब्जा कर लिया है बल्कि वह इन देशों में बडे-बडे व्यावसायिक प्रतिष्ठान भी चला रहे हैं। आज अपनी कड़ी मेहनत और समर्पण के साथ उन्होंने अपने  देश को एक स्थिर स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है। पाकिस्तानियों की तरह उन्होंने लप्फाजी और आतंकवाद का रास्ता नहीं अपनाया बल्कि संघर्ष और कड़ी मेहनत पर जोर दिया। आज दुनिया खुली आंखों से ये देख रही है कि बांग्लादेश कहां था और कहां पर आकर खड़ा हो गया है और इस्लामिक कायदे कानून का मुल्क पाकिस्तान की स्थिति क्या है। 

इन तमाम जानकारियों से हमें पता चलता है कि दुनिया में विकास और सफलता हथियार और आतंकवाद से नहीं बल्कि कड़ी मेहनत औप समर्पण से ही हासिल की जा सकती है। इसलिए हमें मुकम्मल तालीम चाहिए। तालीम के लिए हमें मदरसे में जाना जरूरी है लेकिन वहां केवल दीनी षिक्षा ही नहीं कुछ इल्म भी सीखने की जरूरत है। हमारे बच्चे तभी दुनिया की चुनौतियों का मुकाबला कर सकते हैं। हम नए हिन्दुस्तान को एक बढ़िया मुकाम पर लाकर खड़ा रहे इसके लिए मदरसों में शैक्षिक सधार की सख्त जरूरत है। 

मैं ये नहीं कहता कि हमारे मदरसे हिन्दुस्तान की मुख्य धारा से नहीं जुड़ी हुई है लेकिन इसे और बढ़िया बनाने की जरूरत है, जो केवल मुसलमानों के लिए ही नहीं अन्य मत-पंथों के लिए भी आदर्ष बने। मसलन हिंदुस्तान में मदरसों को रास्ट्रीय मुख्य धारा से जोड़ने और इसके आधुनिकीकरण की जरुरत है। हिन्दुस्तानी  मुसलमान शिक्षा तक पहुंच के मामले में पीछे हैं। निःसंदेह वे दीनी षिक्षा में माहिर हो जाते हैं। कुराम मजीद को वे तर्जुमा सहित रट जाते हैं लेकिन इल्म आधुनिक इल्म के मामले में हमारे बच्चे कमजोर साबित हो रहे हैं।

इसलिए हमें इल्म के मामले में तसल्ली से विचार करना चाहिए और आधुनिक इल्मी पिछडेपन पर काबू पाने के लिए प्राथमिक शिक्षा को मजबूत करना चाहिए। अगर कोई बच्चा मदरसा जा रहा है तो ये समझान चाहिए कि उसे स्कूल जाने का मौका नहीं हैं। अगर एक बच्चा मदरसे में अपना पंजीकरण कराने के कुछ वर्षों बाद सरकारी स्कूल तक पहुंच हासिल करता है तो उसकी नींव और समझ इतनी कमजोर होती है कि वो दूसरे बच्चों के साथ मुकाबला करने में सक्षम नहीं होता हैं। प्राथमिक शिक्षा के ठोस आधार के बिना, उच्चय शिक्षा और उसके परिणामस्वरुप जॉब मार्किट में प्रतिनिधित्व की उम्मीद नहीं की जा सकतीं है।

मदरसों में आज जो पढाते है वो पूरी तरह असम्बद्ध और समय के साथ साम्य नहीं रखता है। इसका  पाठयक्रम प्राचीन है और समकालीन स्थिति में जिसे शिक्षा कहा जाता है इसके पाठयक्रम में सम्मलित नहीं हैप वात्तव में पाठयक्रम में धर्म की बहुलता है और ऐसा लगता है जैसे एक मुसलमान के लिए अपने धर्म से अलग कुछ भी शोध करने के लिए नहीं है। इस्लामी सिद्धांतों के साथ इस जुनून का मतलब है कि मदरसों में शिक्षा प्राप्त करने वाले मुस्लिम बच्चों को अपने देश, समाज और राजनीनि के बारे में लगभग कोई जानकारी नहीं होती है और न ही उस शानदार रफतार से वह वाकफ होता है जिससे दुनिया विकास कर रहीं हे। कोई भी जोर देकर कह सकता है मदरसे इस्लाम की सेवा करने के बजाय आज धर्म को नुकसान पहुंचा रहा है तो अतिषयोक्ति नहीं होगी। निःसंदेष मदरसों में दीनी षिक्षा दी जाए लेकिन उसके साथ ही साथ बच्चों को आधुनि इल्मी षिक्षा से भी उसे जोड़ा जाए। 

जब कभी मदरसों के आधुनिकीकरण की माग उठती है तो मुस्लिम धार्मिक नेता इसके खिलाफ हाय तौबा मचाना शुरू कर देते हैं। इस्लाम खतरे में है, का नारा मस्जिदों और बडे मदरसों से उठना शुरू हो जाता है और इनके नुमाइंदे कोशिश करने लगते है कि सुधार की किसी भी कोशिश को किस तरह रोका जाए। मदरसों को मुस्लिम पहचान का विषय बनाना मुस्लिम वर्ग को सिर्फ शैक्षिक नुकसान पहुंचा सकता है। इसी भावना के तहत मुसलमानों के एक वर्ग ने खुद ही मदरसों के पाठयक्रम में बदलाव की मांग शुरू कर दी है ताकि उसे समकालीन आवशूयकताओं के अनुसार बनाया जा सके। अब मुसलमानों के बीच आधुनिक शिक्षा को लेकर प्यास पैदा हुई है और मुसलमान माता-पिता  भी अपने बच्चो  को आधुनिक शिक्षा के उपर जोर दे रहे हैं। दी नेशनल काउंसिल आँफ माइनारिटीं एजुकेशनल इंम्टीटयूशन ने भी एक रिपोर्ट में दलील दी है कि देश में मदरसा शिक्षा में सुधार की फोरन आवशयकता है।

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