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Showing posts from November, 2020

बिहार में इन 10 कारणों से प्रभावी और अपरिहार्य बने हुए हैं नीतीश कुमार

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गौतम चौधरी नीतीश कुमार एक बार फिर से अजेय और अपरिहार्य होकर उभरे हैं। नीतीश के बारे में यही कहा जाता है कि वे चुनौतियों को अवसर में बदलने वाले नेताओं में से हैं। उन्होंने विपरीत परिस्थिति में अपने आप को खड़ा किया है। लालू यादव के पराभव के बाद बिहार में दो ताकतों का उदय हुआ, जिसमें से एक नीतीश कुमार हैं और दूसरे रामविलास पासवान। रामविलास की विरासत बहुत ज्यादा मजबूत नहीं हो पायी लेकिन अपनी चतुराई और राजनीतिक कौषल के बदौलत नीतीश कुमार बिहार की राजनीति को अपने चारो तरफ नचाते रहे हैं। आइए जानते हैं नीतीश कुमार की मजबूती के 10 कारण: - पहला, नीतीश कुमार में विकास को मुद्दा बनाने वाले नेता की छवि है। जेडी (यू) और नीतीश कुमार बिहार में अभी भी एक बड़ी ताकत हैं और उनको दरकिनार कर किसी के लिए भी सरकार चलाना आसान नहीं है। यही वजह है कि कोई जोखिम लिए बगैर बीजेपी ने भी नीतीश को ही एनडीए का नेता मानकर चुनाव लड़ने का फैसला किया। चुनाव परिणाम में आधे के आसपास सीट रहने के बाद भी भाजपा नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री बनाई। इससे यह साबित हो गया है कि नीतीष कुमार बिहार की राजनीति के लिए अपरिहार्य हैं। पिछले कुछ

पेरिस की घटना वैश्विक आतंकवाद का हिस्सा, केरल में भी तो काटे थे शिक्षक के हाथ

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गौतम चौधरी प्रत्येक मानव की अभिव्यक्ति मायने रखता है। चाहे वो विचारों से हो या शारीरिक कृत्यों के रूप में हो, या हिंसा के रूप में। कभी-कभी इन दोनों के बीच अंतर-विश्वसनीयता सर्वोपरि और पवित्र होती है। विचार अगर एक उचित और निहित तरीके से नियोजित किया जाता है, तो उससे हिंसा होना तय है। हाल ही में घटी पेरिस की घटना हमें सिखाती है कि सामाजिक वर्गों के बीच मुख्य रूप से धर्मों के साथ जुड़े भावनाओं के लिए सहिष्णुता और सम्मान बढ़ाने की आवश्यकता है। विशेष रूप से, दुनिया भर के मुसलमानों को उनके सामने आने वाली बढ़ती चुनौतियों को समझने की जरूरत है। इसलिए, उनके द्वारा की गई किसी भी कार्रवाई को उनके बीच रहने वाले समुदायों के मानकों के अनुसार देखा, समझा और परखा जाना चाहिए। फ्रांस में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धर्मनिरपेक्षता के नाम पर मुसलमानों के खिलाफ धार्मिक उकसावों (जैसे पैगंबर की अवमानना) का लंबा इतिहास रहा है। वहां के मुसलमानों को इस्लामी शिक्षा और पैगंबर मोहम्मद की बातों को ध्यान में रखते हुए अधिक सामंजस्यपूर्ण और सहिष्णु होने की आवश्यकता है। इस बात को समझने की अधिक आवश्यकता है कि हिंसा के व्यक्तिग

सरना धर्म कोड पर भाजपा की रहस्यमय चुप्पी से उठ रहे कई सवाल

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गौतम चौधरी आगामी जनगणना में आदि वासियों के लिए सरना धर्म कोड की वकालत राज्य में बड़ा मुद्दा बनना जा रहा है। राज्य की महागठबंधन सरकार ने विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर इस बाबत प्रस्ताव पास करा दिया है। इस प्रस्ताव को अब केंद्र को भेजने की तैयारी हो रही है। विपक्ष में बैठी भाजपा और आजसू की भी इसमें सहमति है। इस पूरे मामले का अहम पक्ष यह है कि इस प्रस्ताव पर विशेष सत्र के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने रहस्यमय तरीके से चुप्पी साधे रखी। भाजपा के विधायकों ने सरकार के पक्ष का समर्थन कर दिया और प्रस्ताव पर बहस कराने की भी मांग नहीं की। सवाल यह उठता है कि आखिर भाजपा अपने पारंपरिक नीति से समझौता क्यों कर रही है। क्या भाजपा डरी हुई है , या फिर सरना धर्म कोड पर भाजपा की चुप्पी के और कारण हैं ? इसकी मिमांशा जरूरी है। बता दें कि इस मामले में भाजपा की अलग राय रही है। भाजपा लगातार से यह सवाल पूछती रही है कि जब पहले से जनसंख्या में यह व्यवस्था लागू थी तो 1961 में उसे हटाया क्यों ? भाजपा यह भी कहती रही है कि क्या धर्मातरित आदि वासियों को इससे इतर रखा जाएगा ? ये तमाम सवाल भारतीय जनता पार्टी की नीतिगत चिंतन म