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Showing posts from December, 2020

तुर्की के नव खिलाफत आन्दोलन को भारत में स्थापित करने की फ़िराक में PFI

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रजनी राणा चौधरी  कॉमरेड अभिमन्यु माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की छात्र इकाई के प्रभावशाली नेता थे। अभी हाल ही में पोपुलर फ्रंट आॅफ इंडिया की छात्र शाखा कैम्पस फ्रंट ऑफ इंडिया नामक कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन ने उनकी हत्या दी। दरअसल, केरल की साम्यवादी सरकार ने अभिमन्यु के नाम पर एक स्मारक भवन का निर्माण कराया है। जिसमें पुस्तकालय के साथ साथ गरीब पिछड़े तबके के छात्रों को रहने की भी व्यवस्था है। यहां पिछड़े पृष्ठभूमि से आनेवाले छात्र रहकर अपनी पढ़ाई भी कर सकते हैं। इस खबर को पढ़ने के बाद पोपुलर फ्रंट के बारे में जाने की जिज्ञासा किसी को भी हो सकती है। इन दिनों जो खबरें छन कर सामने आ रही है उसमें इस संगठन का तार अब तुर्की के तानाशास से भी जुड़ने लगा है। पोपुलर फ्रंड आॅफ इंडिया को पीएफआई के नाम से भी जाना जाता है। दक्षिण भारत के बाद यह संगठन बड़ी तेजी से उत्तर भारत में अपना पांव पसारना प्रारंभ कर दिया है। यह संगठन इन दिनों इस्लाम के नाम पर लोगों को भड़काने में अहम भूमिका निभा रहा है। पश्चिमी विचारक एमजे क्रोन कहते हैं कि सभ्य होने में दोष यह है कि यह हमारे बीच के असभ्य को स्वतंत्रता और समानता के नाम

झारखंड की शांति में खलल डालने की कोशिश, फिर से संगठित होने लगे माओवादी

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गौतम चौधरी   झारखंड में एक बार फिर से माओवादी चरमपंथी सिर उठाने लगे हैं। तथ्य व आंकड़े बताते हैं कि 2019 की अपेक्षा अगस्त 2020 तक उग्रवाद व नक्सल प्रभावित इलाके में चरमपंथी वारदातों में बढ़ोतरी हुई है। झारखंड में अगस्त 2019 तक 85 नक्सल और उग्रवादी घटनाएँ हुई थीं, जबकि अगस्त 2020 तक 86 घटनाएँ हुई। अगस्त 2020 के बाद राज्य में माओवादी घटनाओं में अप्रत्याशित तरीके से इज़ाफा हुआ है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि अगस्त 2020 तक नक्सल और उग्रवादी घटनाएँ तब बढ़ी, जब पुलिस ने सबसे अधिक अभियान और एलआरपी चलाया। यह खतरनाक संकेत हैं और ये आंकड़े साबित करने के लिए काफी है कि माओवादियों के मनोबल पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा है। आंकड़ों और तथ्यों की मिमांशा से साफ परिलक्षित होता है कि पुलिस अभियान और सक्रियता में कोई कमी नहीं है लेकिन चरमपंथियों पर जो दबाव पड़ना चाहिए उसमें कमी दिखई दे रही है। हाल के महीनों में राज्य में सक्रिय अलग-अलग नक्सली संगठनों ने लेवी के लिए दहशत फैलाने के उद्देश्य से वाहनों में आगजनी और फ़ायरिंग की घटनाओं को अंजाम दिया है। उग्रपंथियों के मनोबल में बढ़ोतरी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा

जिहाद विशुद्ध इस्लमिक धार्मिक कृत्य है, इसे आतंकवाद से ना जोड़ें

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गौतम चौधरी   जिहाद, इस्लाम की सबसे महत्वपूर्ण बुनियादी शिक्षाओं में से एक है और इसे महानता, महिमा और संप्रभुता प्राप्त करने का एक माध्यम माना जाता है। उस आधार पर, जिहाद हर मुसलमान के लिए अनिवार्य कृत्य है, जो कयामत के दिन तक चलेगा। जिहाद, अरबी शब्द जहदा से लिया गया है जिसका अर्थ है पूरी ईमानदारी से काम करना। इस्लामिक अवधारणाओं में जिहाद को एक नियम के रूप में माना जाता है, जिसे मुसलमानों द्वारा पालन किया जाना चाहिए क्योंकि यह पुष्टि की जाती है कि पवित्र कुरान में विशेष रूप से विभिन्न सूरह में इकतालीस (41) गुना का उल्लेख है। यानी 41 जिहादों का उल्लेख है। मसलन, 8 बार मेका सूरह (पैगंबर मोहम्मद पर मक्का में सूरह में खुलासा हुआ) और मदनियाह सूरह में 33 बार (हिज्रत के बाद मदीना में सामने आए सूरह)। इस दृष्टि से जिहाद मुसलमानों के लिए एक बुनियादी अवधारणा है।  प्रचलित धारणा के विपरीत, इस्लाम में जिहाद केवल गैर-मुसलमानों के खिलाफ अंधाधुंध निर्देशित हिंसा का कार्य नहीं है। यह उन सभी संघर्षों को दिया गया नाम है, जो एक मुसलमान को सभी बुराइयों के खिलाफ शुरू करनी चाहिए, चाहे वह किसी भी रूप या आकार में

अल्पसंख्यकों को भारतीय संविधान पर भरोसा रखना चाहिए, यह सबकी सुरक्षा की देता है गारंटी

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गौतम  चौधरी   अभी हाल ही में अल्पसंख्यक अधिकार दिवस मनाया गया। 18 दिसंबर को प्रत्येक वर्ष पूरी दुनिया में अल्पसंख्यक अधिकार दिवस मनाया जाता है। भारत में भी बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक निवास करते हैं। भारतीय संविधान के अनुसार यहां भाषा और धर्म को अल्पसंख्यक का आधार माना गया है। उस दृष्टि से भारत में मुसलमान, ईसाई, सिख, बौध, जैन और पारसी समुदाय के लोगों को अल्पयंख्यक की श्रेणी में रखा गया है। भारतीय संविधान में भारत के हर नागरिक को समान दृष्टि से देखा गया है और संविधान निर्माताओं ने इस बात का विशेष ध्यान रखा था कि देश में आगे चलकर कोई भेदभाव ना रहे और सभी मिलजुल कर रहें, इसलिए संविधान में अल्पसंख्यक और पिछड़े का विशेष ध्यान रखा गया है। भारत अपने लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए दुनिया भर में अलग पहचान रखने वाला देश है। यहां अल्पसंख्यक समुदायों को अलग से भी कई प्रकार के अधिकार दिए गए हैं जो बहुसंख्यकों को प्राप्त नहीं है। यह भारतीय संविधान की विशेषता के साथ ही साथ अल्पसंख्यकों के प्रति संवेदनशीलता को भी दर्शाता है।  दरअसल, संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 18 दिसम्बर, 1992 को एक घोषणा पारित कर अन्तर्राष्