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Showing posts from 2018

चुनावी मोड में हरियाणा, बिछने लगी रणनीतिक विसात

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गौतम चौधरी कायदे से हरियाणा विधानसभा का चुनाव तो लोकसभा चुनाव के बाद होना है। इस बीच राजनीतिक गलियारों में चर्चा जोरों पर है कि सत्तारूढ दल हरियाणा विधानसभा चुनाव भी लोकसभा के साथ ही करा लेना चाहता है। तकज़् कई दिए जा रहे हैं लेकिन अभी तक कोई आधिकारिक घोषणा या पुष्टि नहीं हो पायी है। चुनाव जब भी हो लेकिन राजनीतिक दलों ने हरियाणा विधानसभा चुनाव की तैयारी प्रारंभ कर दी है। सरसरी तौर पर देखें तो प्रदेश में तीन राजनीतिक शक्तियां हैं। एक भारतीय जनता पार्टी, जो फिलहाल सत्तारूढ है और अभी भी अन्य दलों की तुलना में संगठित और मजबूत दिख रही है। दूसरी पार्टी कांग्रेस है। फिलहाल प्रदेश में कांग्रेस साफ तौर पर कमजोर दिख रही है। कमजोर इसलिए नहीं कि उसके पास कार्यकपताओं की कमी है, या फिर वह जनाधार के मामले मे कमजोर है, अपितु कांग्रेस कमजोर इसलिए दिख रही है कि इसके नेता आपसे में ही एक-दूसरे के खिलाफ मोर्चे पर डटे हैं।  खैर, तीसरी राजनीतिक शक्ति समाजवादी पृष्टभूमि की पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चैटाला के नेतृत्व वाली इंडियन नेशनल लोक दल है। पहले तो यह दल बेहद प्रभावशाली दिख रहा था। मसल

यदि इस्लाम को बचाना है तो हमें नकारात्मकता को हतोत्साहित करना होगा

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हसन जमालपुरी  मैं इस्लाम के बारे में सकारात्मक सोच रखने वालों में से हूं। इसलिए मैं इस्लाम की समारामकता से ही आपको परिचय कराउंगा। मसलन इसलाम में जो भी नकारात्मक दिख रहा है वह इस्लाम का अंग है ही नहीं जैसे आप फतवों के बारे में सुनते होंगे। इस्लाम में फतवों का विधान है लेकिन आजकल जिस प्रकार के नकारात्मक फतवे जारी किए जा रहे हैं उसका हमारे यहां कोई स्थान नहीं है। चुनांचे इस्लाम में जीवन को जीने का पूरा कायदा दिया गया है। यह मुस्लिमों को भाईचारे, शांति और पड़ोसियों के प्रति प्यार-मुहब्बत रखने का उपदेश देता है। इस्लाम अपने पड़ोसियों के मजहब पर विचार किए बिना उनके साथ आपसी रिश्ते और सहयोग रखने पर जोर देता है। साथ ही पड़ोसियों से किसी भी रूप में घ्रिणा करने या नुकसान पहुंचाने के लिए भी मना करता है। एक मुस्लिम होने के नाते यह स्वीकार करना चाहिए कि सभी मनुष्य आदम और हौवा के संतानें हैं, इसलिए सभी आपस में बराबर हैं। कुरान मजीद में भी यह कहा गया है कि अल्ला की खिदमत करों और उसके साथ किसी और को खड़ा ना करो। अपने माता-पिता, रिश्तेदारों, अनाथों, जरूरतमंदों, पड़ोसियों, अजनबिनयों, अपने साथियों, म

अब राम के वन गमन पथ पर पंगा, मंत्रालय और एडवाइजरी कमेटी आमने-सामने

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गौतम चौधरी  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक राम सर्किक का विकास है। यह भारत के लिए ही नहीं दुनिया भर में बसे हिन्दुओं के लिए धार्मिक आस्था की बात है। भारतीय राष्ट्रवाद और इस देश के लिए बेहद अच्छी योजना नरेन्द्र भाई की सरकार लेकर आ रहे हैं लेकिन इस योजना के साथ जो छेड़-छाड़ की जा रह है वह हिन्दुओं के आस्था पर प्रहार से कम नहीं है। विगत दिनों हमारे प्रधानमंत्री नेपाल के प्रवास पर गए थे। वहां उन्होंने माता जानकी के जनकपुर स्थित मंदिर का भी दर्शन किया। जानकी मंदिर में गूंजती घंटी प्रधानमंत्री मोदी के नेपाल में होने की गवाही दे रही थी। सियाराममय माहौल में रामायण सर्किट की चर्चा भी बेहद स्वाभाविक था।  आपको बता दें कि साल 2016 में भारत सरकार ने रामायण सर्किट की घोषणा की थी। दो साल बीत गए हैं लेकिन इस सर्किट पर अभी तक कुछ भी नहीं हो पाया है। इस मामले पर अपने दूरदर्शन के लिए रिपोर्टिंग करने वाले वरिष्ट पत्रकार अमिताभ बताते हैं कि सरकार ने राम सर्किट निर्माण के लिए बाकायदा एक एक कमीटी बनाई है। उसके अध्यक्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं विश्व हिन्दू परिषद् से ज

असहिष्णुमा की बात करने वाले इस देश को समझ नहीं पाए

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हसन जमालपुरी  कुछ लोग भारत के हिन्दू और मुसलमानों को नाहक में बड़गला रहे हैं। मीडिया के द्वारा बराबर प्रचार किया जाता है कि भारत में असहिष्णुता बढ़ रही है लेकिन मेरा मानना है कि जबतक इस देश में समझदार लोग जिंदा हैं और भारत का संविधान प्रभावी है तबतक इस देश में असहिष्णुता किसी कीमत पर नहीं आ सकती है।  आज मैं आपके सामने कुछ उदाहरण प्रस्तुत करता हूं जो इस देश में पनप रहे मौका परस्तों की आंखें खोल देगा। चुनांचे एक हिन्दू परिवार द्वारा मुस्लिम लड़के का पालन-पोषण किया गया। यह कोई फिल्मी कहानी नहीं है। हकीकत है कि थाने, महाराष्ट्र स्थित बेडेकर काॅलेज की प्रिंसिपल डाॅ. सुचित्रा नायक ने अब्दुल शेख नामक ऐसे अनाथ मुस्लिम लड़के को गोद लिया, जिसने उनके काॅलेज में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए दाखिला लिया था। दाखिले के दौरान उससे बातचीत करने पर डाॅ. सुचित्रा को उसकी स्थिति के बारे में पता चला और उसका भविष्य सवारने के लिए उन्होंने उसे अपनाने का मन बनाया। ऐसा करने से पहले उन्होंने अपने पति श्री नायक तथा परिवार के अन्य सदस्यों से भी परामर्श किया, जिन्होंने उनके इस प्रयास के प्रति अपनी सहमति ज

अपनी घिसी-पिटी विदेश नीति को बदले भारत

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गौतम  चौधरी  जब से केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार बनी है तब से कई क्षेत्रों में नीतियां बदली-बदली-सी दिख रही है। बदलना भी चाहिए लेकिन बदली हुई नीति स्पष्ट भी होनी चाहिए। मसलन मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की विदेश मंत्रालय की नीति की दिशा बिल्कुल अस्पष्ट है। बहुत जांच परख के बाद यही लगता है कि वर्तमान भारतीय विदेश मंत्रालय की नीति दो बिन्दुओं पर केन्द्रित हो गयी है। एक पाकिस्तान विरोध और दूसरा अमेरिका-इजरायत सामरिक गोलबंदी में अपना हित ढुंढना। इन दो सिद्धांतों पर हमारी विदेश नीति जाकर अटक गयी है। इसे अटकना नहीं चाहिए था। मुझे लगता है कि यह भटकाव है। इससे भविष्य के भारतीय राष्ट्रवाद को व्यापक क्षति उठानी पड़ सकती है। यदि गौर से देखें तों पाकिस्तान बड़ी तेजी से बदल रहा है। उसे अब लग गया है कि इस्लामिक आतंकवाद को साथ लेकर जनरल जिया वाली नीति से उसे बड़ा घाटा हुआ है। वह अब इस नीति से अपना पिंड छुड़ाना चाहता है। पाकिस्तान को इस नीति से अपना पिंड छुड़ाना ही होगा। यदि वह इसी सिद्धांत पर चलता रहेगा तो पाकिस्तान का कई भागों में टूटना तय है। फिर बड़े पैमाने पर पाकिस्तान में निवेश

प्रगतिशील उलेमाओं ने भारतीय मुस्लिम महिलाओं में नए दौर की सोच पैदा की

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कलीमुला खान  हर दौर में मजहब समाज को एक-दूसरे से जोड़कर रखने का जरिया रहा है। दौर-ए-जदीद में कोई उतार-चढ़ाव आए फिर-भी मजहब अपना एक अलग ही मुकाम है लेकिन यह भी सच्चाई है कि मजहब के नाम पर उठने वाले और तहरीके चलाने वालों में बहुत से ऐसे थे जिन्होंने या तो अपने मफादात यानी फायदे के खातिर जान-बूझकर मजहबी तालिमात को मनमाने ढंग से पेश किया और बड़ तादाद में सादा दिल अवाम उनका शिकार हुई लेकिन एक कीमती पहलू यह भी है कि ऐसी सूरत-ए-हाल का मुकाबला करने के लिए बड़े-बड़े विद्वान और उलेमा सामने आए और उन्होंने मजहबी तालिमात की असली हकीकत पेश की और आज यह सच्चाई समाज, इंसान और इंसानियत की तरक्की का सबब बनी हुई है। यह सबकुछ दिगर मजाहिब के साथ-साथ इस्लाम के मानने वालों में भी हुआ क्योंकि चूकि इस्लाम में कभी भी दौर-ए-जदीद के किसी भ्ज्ञी सही तरीके को नहीं नकारा और जब इस बात को सही तरीके से उलेमाओं व दानीश्वरों ने पेश किया तो इसका फायदा भी मिला और कुरान की असली तालिम को खुद मुस्लिम ख्वातीन भी काफी हद तक समझ चुकी है। अब तो खुद मर्द भी अपनी बहन बेटियों को उंची तालिम दिलाने में मददगार साबित हो रहे हैं। पर

चित-परिचित राजनीतिक औजार से बिहार फतह करने के फिराक में नीतीश

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गौतम चौधरी  विगत दिनों बिहार के मुजफ्फरपुर में किसी ने पूर्व महापौर की हत्या कर दी। हत्या क्यों की गयी, इसके पीछे किसका हाथ है, स्पष्ट नहीं है लेकिन जो बिहार पुलिस बिना किसी तहकीकात के, तहरीर के आधार पर राजस्थान से आरोपी पत्रकार को पकड़कर बिहार के जेल में बंद कर देती है, उस पुलिस के हाथ अभी भी खाली हैं। मसलन पुलिस अंधेरे में तीर चला रही है।  इस हत्या को लेकर न तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कोई बयान आया और न ही भारतीय जनता पार्टी यानी भाजपा कोटे से बनाए गए प्रदेश के उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी की कोई संवेदना-संदेश आया। हां जूनियर मोदी ने यह जरूर कहा कि हम बिहार के अपराधियों से विनम्र निवेदन करते हैं कि कृपया पितृपक्ष में अपराध न करें। मुझे लगता है कि सुशील मोदी ने यह बयान जारी कर यह साबित कर दिया कि अपराध पर नियंत्रण करना बिहार सरकार के बस की बात नहीं है। यह एक प्रकार का समझौता है और जिस प्रकार आतंवादियों से सरकार युद्धविराम समझौते के बाद कुछ दिनों के लिए हथियार छोड़ने की अपील करती है उसी प्रकार उप मुख्यमंत्री प्रदेश के अपराधियों से अपील कर रहे हैं। मतलब साफ है कि सर

उम्मत राज, इस्लामी राज, शरिया कानून, खिलाफत इत्यादि अवधारणाओं का दुरूपयोग नहीं होना चाहिए

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हसन जमालपुरी दरअसल, कट्टरवादी लोग तथा उनसे जुड़े संगठन उम्मत का राज, इस्लामी राज, शरिया का कानून तथा खिलाफत जैसी आदर्श-अवधारणाओं की आर में कट्टरता को बढ़ावा देकर अंततोगत्वा धार्मिक सौहार्द पर आक्रमण कर देते हैं। इससे उनका स्वार्थ तो सिद्ध हो जाता है लेकिन समाज, देश और मानवता को घाटा होता है। इसलिए हमें मानवीय मूल्यों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। ये सारी अवधारणाएं निःसंदेह आदर्श है लेकिन उसकी जो व्याख्या की जाती है वह कभी-कभी नकारात्मक स्वरूप ग्रहण कर लेता है। इसका प्रयोग दुनिया के कई भागों में हुआ है और उसके घाटे भी हम देख सकते हैं। अफगानिस्तान, पाकिस्तान, इराक, सीरिया आदि देशों को देखिए। यही नहीं आजकल जो यमन में चल रहा है वह भी इसी प्रकार की विचारधाराओं का दुष्प्रभाव है। इससे हमें सीख लेनी चाहिए। मसलन इस अवधारणा के व्याख्याकार आगे चलकर हिंसा, घृणा व आतंकवाद को जन्म देते हैं। तत्पश्चात यही तत्व विभिन्न धार्मिक समुदायों और यहां तक की मुसलमानों को भी तकफीरी कहकर अपना शिकार  बनाते हैं।  मैं शर्तीया तौर पर कह सकता हूं कि इस तरह के इस्लामोफोविया से ग्रस्त अवधारणाएं आज के यु

उग्रवाद जैसी विकृति का इस्लाम में कोई स्थान नहीं

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कलीमुल्ला खान  अगर हर तरह से उग्रवाद को हराना है तो मुसलमानों को इमानदारी से अपनी बहस के मुद्दे को इस्लाम पर केन्द्रित करना होगा, ठीक वैसे ही जिस प्रकार उग्रवादी धर्म का बेजा इस्तेमाल अपने संकीर्ण मनसुबों को पाने के लिए करते हैं। मसलन ऐसा माना जाता है कि किसी जानवन को मारने से पहले चाकू की धार को तेज किया जाता है व आराम से उसको मौत की निंद सुला दिया जाता है। दुर्भाग्य से, यह देखा गया है कि अनगिनत भेड़-बकड़ियों, अन्य जानवरों को ट्रकों में ठूस कर लादा जाता है और कई बार तो बिना वजह उन्हें क्रूरता से मार दिया जाता है।  इसके अलावा, यह भी देखा गया है कि इन जानवरों को कई मर्तबा तपती दुपहरी में बिना पानी की एक बुंद दिए खड़ा होने पर मजबूर किया जाता है। अगर इन मुद्दों पर कोई मुसलमान दया व करुणा की दुहाई देता है तो उसे चमचा, कृतघ्न, पीठ पीछे चुगली करने वाल, भगोड़ा, अतार्किक, आदर्शहीन व अंत में गैर मुस्लिम या नास्तिक तक का नाम दे दिया जाता है।  कुछ मुसलमान जिनका झुकाव उग्र विचारधारा की ओर होता है, उनका मानना है कि गुडवाय जैसा लब्ज गैर इस्लामी है तथा वे इस बात पर जोर देते हैं कि इसके स्

पड़ताल : वहाबियों से व्यापारिक समझौते भारत के लिए कितना हितकर

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गौतम चौधरी @ यदि आप रत्नागिरी वाले हापुस आम के सौकीन हैं तो अब आप उस आम को भूलना प्रारंभ कर दीजिए। दरअसल, अब रत्नागिरी के जिस इलाके में विश्वप्रसिद्ध हापुस के बाग लगे हैं वहां पेट्रोलियम की खेती होने वाली है। मसलन यहां के ज्यादातर आम के पेड़ काट दिए जाएंगे। यह पेट्रोल की खेती कोई और नहीं दुनिया में वहाबी इस्लामिक फिरके के कट्टरपंथी आतंकी जमात का व्यापार, निर्यात और निवेश करने वाले सऊदी अरब करने जा रहा है। यह वही जमात है जिसके मदरसे में पढ़कर हाफिज सईद जैसे आतंकवादी पैदा हुए हैं। जम्मू-कश्मीर के आतंवादी उसी मदरसों की पैदाइस हैं।  कुछ लोग सऊदी अरामको कंपनी का नाम पहली बार सुने होंगे। यह कंपनी दुनिया की सबसे बड़ी ऑयल कंपनी है। इसने अभी हाल ही में भारत सरकार के स्वामित्व वाली तीन प्रमुख तेल कंपनियों के साथ मिलकर भारत में एक विशाल रिफाइनरी परिसर के निर्मांण के लिए 44 अरब डॉलर के सौदे की घोषणा की है। यह रिफाइनरी कहीं और नहीं रत्नागिरी के उसी आम वाले इलाके में लगेगी जिस आम का दुनिया कायल है।  सऊदी कंपनी ने इंडियन ऑयल कॉपोर्रंेशन, भारत पेट्रोलियम कॉपोर्रेशन और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉ

भाजपा के लिए 2019 का आम चुनाव उतना आसान नहीं होगा

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गौतम  चौधरी  हाल के उपचुनावों में भारतीय जनता पार्टी और उसकी सहयोगदी दलों की करारी हार यह साबित करने के लिए काफी है कि भाजपा की लोकप्रियता का ग्राफ गिरा है। दूसरी ओर महागठबंधन की सुगबुगाहट भाजपा के लिए खतरे की घंटी बजाने लगी है। इस मामले में भाजपा समर्थकों का दावा है कि उपचुनाव और आम चुनाव में फर्क होता है इसलिए उपचुनावों की तुलना आम चुनाव से नहीं की जानी चाहिए। लिहाजा भाजपा समर्थक यह भी दावा करते हैं कि इधर के दिनों में जिस किसी राज्यों में विधानसभा का चुनाव हुआ है वहां भाजपा की जीत हुई है और यह साबित करता है कि भाजपा व नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता बरकरार है। लेकिन जो आंकड़े आ रहे हैं वह भाजपा के अनुकूल नहीं हैं। ये आंकड़ें बता रहे हैं कि अगर भाजपा अपनी रणनीति नहीं बदली और तत्काल कुछ लोककल्याणकारी कार्यों को अंजाम नहीं दिया तो आने वाले लोकसभा आम चुनाव में शर्तीया तौर पर भाजपा को कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा।  यही नहीं इन दिनों लगातार कांग्रेस इस योजना में लगी हुई है कि भाजपा के खिलाफ देश के तमाम प्रतिपक्षियों को एक मंच पर लाया जाए। हालांकि उसमें अभी मतभेद बांकी है

अन्य धर्मों के तरह इस्लाम भी देता है पैगाम-ए-अमन

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कलीमुल्ला खान   इस्लामी किताबों में बड़े पैमाने पर अमन की बातें की गयी है लेकिन विरोधी केवल उसका दुश्प्रचार करते हैं। इस्लाम की यदि सकारात्मक व्याख्या करें तो मानवता के लिए बड़ी बात होगी। गोया इस्लम के अनुसार बुनियादी तौर पर हर इंसान अमन पसंद है।  पैदाइषी तौर पर उसके नेचर में ही अमन की ख्वाइष मौजूद है क्योंकि इंसान की तरक्की, उसकी जरूरतों की तकमील और किसी भी समाज का इस्तेहकाम, अमन के माहौल में ही संभव है। इसलिए ऐसा नहीं है कि मुस्तकिल तौर पर कोई षख्स अमन पसंद हो और कोई बदअमनी चाहता हो। इस बात का तालुक किसी खास मजहब से ही नहीं मगर फिर भी हर जमाने में और हर समाज में हमेषा वह लोग रहे हैं जो बदअमनी का जरिया बनते हैं।  वह हकीकत में अपने असली प्रकृति को बिगाड़ चुके होते हैं। उन पर खुदगर्जी, अहम और गलत किस्म का एहसास-ए-बरतरी पैदा हो जाता है। खुदगर्जी का रास्ता दुसरों का हक गसब करने से लेकर गलत तरीके से ताकत हासिल करके उनके जान व माल के लिए खतरा बन जाने तक जाता है। अहम और एहसास-ए-बरतरी का नतीजा यह होता है कि ऐसे लोग अपने से कमजोर लोगों को फकीर समझते हैं और वह यह कोषिष करते हैं कि

ईरान से यूएस का एकतरफा परमाणु समझौता निरस्त करना, कितना असरदार कितना घातक

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Gautam Chaudhary ईरान के साथ हुए अंतरराष्ट्रीय परमाणु समझौते को दरकिनार करते हुए अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इससे अलग होने का फैसला कर लिया है। ट्रंप के इस फैसले की जहां ईरान समेत अमेरिका के दूसरे सहयोगी राष्ट्र आलोचना कर रहे हैं, वहीं उनके इस निर्णय का दुनिया पर बड़ा असर होने की संभावना है।  भारत समेत दूसरे एशियाई देशों पर भी इसका व्यापक असर की उम्मीद जताई जा रही है। चूकि भारत ईरान के बेहद निकट संबंधों वाला देश है। यही नहीं इन दिनों संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ भी भारत की निकटता बढ़ी है। नरेन्द्र मोदी की सरकार के समय तो अमेरिका के साथ रणनीतिक दोस्ती तक की बात पहुंच गयी है। ऐसे में इस समझौता विखंडन का भारत पर क्या असर होगा इसकी पड़ताल बेहद जरूरी है।  तेल पैदा करने और निर्यात वाले देशों में ईरान तीसरे नंबर पर है। खासकर एशियाई देशों को ईरान बड़े पैमाने पर तेल सप्लाई करता है। भारत में सबसे ज्यादा तेल इराक और सऊदी अरब के बाद ईरान से आता है। भारत इस आयात को और बढ़ाने वाला है। हाल ही में जब ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी दिल्ली आए थे तो भारत ने उससे तेल आयात बढ़ाने का