चुनावी मोड में हरियाणा, बिछने लगी रणनीतिक विसात


गौतम चौधरी

कायदे से हरियाणा विधानसभा का चुनाव तो लोकसभा चुनाव के बाद होना है। इस बीच राजनीतिक गलियारों में चर्चा जोरों पर है कि सत्तारूढ दल हरियाणा विधानसभा चुनाव भी लोकसभा के साथ ही करा लेना चाहता है। तकज़् कई दिए जा रहे हैं लेकिन अभी तक कोई आधिकारिक घोषणा या पुष्टि नहीं हो पायी है। चुनाव जब भी हो लेकिन राजनीतिक दलों ने हरियाणा विधानसभा चुनाव की तैयारी प्रारंभ कर दी है।

सरसरी तौर पर देखें तो प्रदेश में तीन राजनीतिक शक्तियां हैं। एक भारतीय जनता पार्टी, जो फिलहाल सत्तारूढ है और अभी भी अन्य दलों की तुलना में संगठित और मजबूत दिख रही है। दूसरी पार्टी कांग्रेस है। फिलहाल प्रदेश में कांग्रेस साफ तौर पर कमजोर दिख रही है। कमजोर इसलिए नहीं कि उसके पास कार्यकपताओं की कमी है, या फिर वह जनाधार के मामले मे कमजोर है, अपितु कांग्रेस कमजोर इसलिए दिख रही है कि इसके नेता आपसे में ही एक-दूसरे के खिलाफ मोर्चे पर डटे हैं। 

खैर, तीसरी राजनीतिक शक्ति समाजवादी पृष्टभूमि की पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चैटाला के नेतृत्व वाली इंडियन नेशनल लोक दल है। पहले तो यह दल बेहद प्रभावशाली दिख रहा था। मसलन बीते विधानसभा चुनाव में अच्छा खासा सीट भी ले गया और कांग्रेस की तुलना में उसका प्रदर्शन भी अच्छा रहा लेकिन विगत कुछ दिनों से चैटाला परिवार आपस में ही उलझ गया है। उलझन साधारण नहीं है। ओम प्रकाश चैटाला ने अपने सांसद पोते, दुष्यंत चैटाला को पार्टी से निकाल दिया। अब सिरसा के सांसद, दुष्यंत चैटाला अपनी नई पार्टी के प्रधान हैं। इस लिहाज से देखें तो प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी बेहद संगठित और मजबूत है। ऐसे में आसन्न विधानसभा चुनाव में पार्टी अच्छी भूमिका में रहेगी, ऐसी पूरी संभावना है। 

समुचित तौर पर इसकी कम गुंजाइस है कि भाजपा विधानसभा चुनाव में हारेगी लेकिन विधानसभा चुनाव से पहले लोकसभा का चुनाव होना है। जैसे रुझान दिख रहे हैं उसके आधार पर कहें तो भाजपा का लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन बुरा हो सकता है। अभी हाल ही में पांच महत्वपूर्ण प्रदेशों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस तीन प्रदेश भाजपा से छीन ली। मिजोरम और तेलंगाना में भी भाजपा की स्थिति अच्छी नहीं रही। हालांकि सूत्रों की मानें तो भाजपा भले इन दोनों प्रदेशों में अपने उम्मीदवार खड़े किए थे लेकिन तेलंगाना में केसीआर के नेतृत्व वाली पार्टी टीआरएस तथा मिजोरम में मिजो नेशनल फंट को अंदरखाने सपोर्ट किया था। यही करण है कि दोनों पार्टियों के नेता अब भाजपा के साथ खड़े दिख रहे हैं। पांच प्रदेश के विधानसभा चुनाव ने यह साबित कर दिया है कि भाजपा का जनाधार बड़ी तेजी से खिसक रहा है। 
जिस प्रकार के रुझान अभी तक दिखे हैं, वह बना रहता है तो लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार तय है। जब भाजपा लोकसभा चुनाव में हार जाएगी तो फिर हरियाणा पर भी उसका व्यापक असर पड़ेगा और हरियाणा में ठीक वही स्थिति बनेगी तो पिछली बार बनी थी। आपको बता दें कि 2014 के आम चुनाव के बाद हरियाणा में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को अप्रत्याशित सफलता मिली थी। यह इस बार दुहरा सकता है। यदि केन्द्र में कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा रहा तो फिर हरियाणा में भी कांग्रेस पार्टी के सारे नेता एक होकर चुनाव लड़ेंगे और तब भाजपा पर भारी पड़ेंगे, जिसकी संभावना ज्यादा दिख रही है।

ऐसे मुख्यमंत्री मनोहर लाल के बारे में बहुत ज्यादा नकारात्मकता नहीं है। मनोहर लाल की साफ-सुथरी छवि का भाजपा को लाभ मिलेगा लेकिन जाट आंदोलन के कारण पूरे प्रदेश के जाट भाजपा से नाराज हैं। इधर भाजपा का आधार मतदाता सैनी, जो प्रदेश में 6 प्रतिशत के करीब है वह भी नाराज बैठा है। इसके बाद ब्राह्मण मतदाता भी भाजपा के खिलाफ कांग्रेस के ज्यादा अहमियत दे रहे हैं। बचा पंजाबी, यादव, वणिया और दलित, तो इसमें भी अब बेचैनी दिख रही है। दलित के मतों पर भाजपा अपना प्रभाव जमाने की कोशिश तो कर रही है लेकिन कांग्रेस ने भी बड़ी चालाकी से प्रदेश की कमान दलित को सौंप रखा है। विष्णोई समाज, जो व्यापक रूप से हरियाणा की राजनीति को प्रभावित करता है, वह भी कांग्रेस के साथ ही दिख रहा है। ऐसे में संगठित कांग्रेस भाजपा पर भारी पड़ेगी। 

कांग्रेस की इस रणनीति के काट के लिए भाजपा के रणनीतिकार, दुष्यंत चैटाला पर डोरा डालने प्रारंभ कर दिए हैं। मसलन उसे अपने पक्ष में करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। इसका एक उदाहरण विगत दिनों स्थानीय निकाय चुनाव में भी देखने को मिला। चुनाव में दुष्यंत की पार्टी भाग नहीं ले रही थी लेकिन राजनीतिक गलियारों में चर्चा यह है कि दुष्यंत के समर्थकों ने व्यापक पैमाने पर भाजपा का सहयोग किया। ये अहम संकेत हैं और ये बिना दुष्यंत के इशारे के नहीं हो सकता है। यदि ऐसा है तो फिर मान लिया जाना चाहिए कि भाजपा की रणनीति काम करने लगी है। इसलिए आने वाले विधानसभा और लाकसभा चुनाव में दुष्यंत का साथ भाजपा को मिलता है तो यह कोई आश्चर्य नहीं होगा। चर्चा तो यहां तक है कि चैटाला बाबा-पोते की लड़ाई के पीछे भी भाजपा के रणनीतिकार हैं। यह रणनीति भाजपा को कितना फायदा दिलाएगा समय बताएगा लेकिन जाट वोट में विभाजन की पूरी संभावना है, जिसका फायदा स्वाभाविक रूप से भाजपा को होगा। 

कुल मिलाकर हरियाणा में पार्टियां चुनावी मोड में आ गयी है। उंट किस करवट बैठेगा परिणाम बताएगा लेकिन रणनीति सभी ओर से बनने लगे हैं। सह और मात का खेल भी चल रहा है। हरियाणा और केन्द्र में सत्तारूढ भाजपा चाल पर चल चल रही है। फिलहाल हरियाणा में भाजपा मजबूत दिख रही है लेकिन विधानसभा चुनाव के परिणाम अप्रत्याशित भी हो सकते हैं। 

Comments

Popular posts from this blog

अमेरिकी हिटमैन थ्योरी और भारत में क्रूर पूंजीवाद का दौर

आरक्षण नहीं रोजगार पर अपना ध्यान केन्द्रित करे सरकार

हमारे संत-फकीरों ने हमें दी है समृद्ध सांस्कृतिक विरासत