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Showing posts from 2012

आखिर फलस्तीन में क्या मिलेगा भारत को-गौतम चौधरी

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विगत दिनों सयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत ने महासभा के उस प्रस्ताव का समर्थन किया जिसमें इजराइल के अधीन वाले फलस्तीन को स्वतंत्र राजनीतिक इकाई यानि देष बनने का मार्ग प्रयस्थ हो गया है। हालाकिं इस मतदान में दुनिया के कई प्रभावषाली देषों ने महासभा के फलस्तीनी प्रस्ताव का समर्थन किया है, लेकिन इस प्रकरण में भारत का समर्थन अप्रत्याषित तो नहीं, परंतु सदेंह तो पैदा कर ही देता है। कुल मिलाकर कोई भी देष किसी का समर्थन या विरोध अपना हित अनहित सोच और समझकर करता है। लेकिन भरत का इस मामले में नफा इजरायल के साथ सफ दिखता है बावजूद भारत ने अरब का समर्थन कर दिया है। यह समर्थन तो इजराइल-भारत संबंधों पर नकरात्मक प्रभाव डाल ही डालेगा ना। अगर भारत यह समझ रहा है कि इजरायल को भारत के समर्थन के अलावा कोई विकल्प नहीं है तो यह भारतीय कूटनीति की सबसे बडी भूल है क्योंकि आए दिन पाकिस्तान लगातार इजरायल के सथ अपना संबंध सुधार रहा है। गंभीरता से विचार किया जाए तो विगत दिनों सम्पन्न इस घटनाक्रम में हर पक्ष को कही न कही फायदा होता दिख रहा है, जबकि भारत को फलस्तीन का समर्थन करने से कोई फायदा नहीं होता दिखाई दे रहा

चीन के खिलाफ साम्राज्यवादी ताकतों का हथियार बनने से बचना होगा भारत को-गौतम चौधरी

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विगत दिनों मैं एक संविमर्ष में गया था। संविमर्ष भारत चीन युद्ध के पांच दषक बीत जाने पर भारत चीन संबंधों और आपसी कूटनीति पर विचार के लिए बुलाया गया था। भारत चीन युद्ध, भारत चीन के बीच की कूटटनीति और भारत चीन के बीच संबंधों पर चर्चा के बीच जो बातें मेरी समझ में आयी उसका सार्वजनिक होना मैं जरूरी समझता हूं। सबसे पहली बात तो यह है कि जिस संविमर्ष में भारत चीन युद्ध के पांच दषक बाद की स्थिति पर चर्चा हो रही थी उसकी भाषा भारतीय नहीं थी। भाषा और संविमर्ष की संस्कृति से साफ झलक रहा था कि हम चर्चा करने के लिए तो भारत और चीन के बीच संबंधों को अपना विषय बनाये है, लेकिन चर्चा में कही भारत का सांस्कृतिक और राष्ट्रीय स्वरूप नहीं दिख रहा है। लग यह रहा था कि हमारे वक्ता आज भी भारत को ब्रितानी कॉलोनी मानकर चल रहे हैं। गोया चर्चा में कही भारत नहीं दिख रहा था। हमारे जानकार इतिहास की गहराई से भी कन्नी काट रहे थे। एक विद्वान ने तो आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य को पाकिस्तानी तक ठहरा दिया और यह कह दिया कि पाकिस्तान चाणक्य के सिद्धांतों का अनुसरण कर रहा है। मैं इतिहास का गहन अध्ययेता नहीं हूं। इतिहास मेरा सहाय

मुस्लिम महत्वाकांक्षाओं को भडकाना बंद करे सेकुलर दल-गौतम चौधरी

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विगत कुछ महीनों से अल्पसंख्यक, खासकर इस्लाम पंथावलंबी अप्रत्याषित ढंग से उग्र हो रहे हैं। जिसका ताजा उदाहरण उत्तर प्रदेष, आंध्रा, असम, केरल, दिल्ली एवं राजस्थान में हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा की घटना है। हालांकि छिट-फुट घटनाएं उत्तराखंड, उडीसा, पंष्चिम बंगाल आदि राज्यों में भी हो रही है, लेकिन उत्तर प्रदेष, आंध्र प्रदेष तथा असम में तो संगठित रूप से हिन्दुओं की हत्या की जा रही है। सबसे आष्चर्य की बात तो यह है कि जिन राज्यों में लगातार हिन्दुओं के खिलाफ कत्लेआम जारी है, उन राज्यों की पुलिस मात्र घटनाओं और हत्याओं की मिमांषा कर बैठ जाती है। पुलिस के हालिया व्यवहार से यह स्पष्ट हो गया है कि जो लोग संगठित सांप्रदायिक अपराध में संलिप्त हैं उसको परोक्ष रूप से राज्यसत्ता का सहयोग प्रप्त है। बात यही तक जाकर नहीं रूकती, यह आगे भी जा रही है। पुलिस और प्रषासन के साथ ही साथ इस्लामी आतंकवाद पर केन्द्र एवं विभिन्न राज्य सरकारें नरमी बरत रही है। बाकायदा कानून में संषोधन कर इस्लामी चरमपंथियों को रिहा किया जा रहा है। वस्तुतः संपूर्ण देष की वर्तमान समाजिक परिवेष पर नजर दौराने से साफ दिखता है कि मुस्लिम

भारत-बांग्लादेष कूटनीतिक संबधों की समीक्षा जरूरी

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गौतम चौधरी  बांग्लादेष के सीमावर्ती क्षेत्रों वाले भारतीय भूभाग पर आंतक और अव्यवस्था जो दिख रहा है वह निःसंदेह बंाग्लादेष द्वारा प्रायोजित है। भारत का केन्द्रीय नेतृत्व इस सच्चाई को चाहे कितना भी झुठलाये यह सवासोलह अना सत्य है कि बिहार, असम, पष्चिम बंगाल के साथ ही साथ पूर्वोतर में बांग्लादेष अपनी विदेषी नीति के तहत सूनियोजित विस्तार में लगा हुआ है। इस विस्तार के पीछे की बांग्लादेषी मानसिकता खतरनाक ही नहीं भारत के विरूद्ध भी है।  भारत सरकार यह मानकर चल रही है कि बांग्लादेष भारत के साथ है और विष्व मंच पर भारत का लगातार सहयोग करता रहेगा, लेकिन इस बात में तनिक भी संदेह नहीं है कि आजकल बांग्लादेष भारत से कही ज्यादा निकट चीन के साथ है। चीन और बांग्लादेष की संधी भारत के कूटनीति के खिलाफ जाता है। जिस प्रकार भारत का पष्चिमोत्तर क्षेत्र अंषात है और वहा विदेषी ताकत सक्रिय हो भारत के संघीय ढांचे के खिलाफ काम कर रहा है, उसी प्रकार भारत का पूर्वोत्तर विदेषी ताकतों के निषाने पर है। क्षेत्र की सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक स्थिति बडी तेजी से बदल रही है। पूर्वोत्तर में जितना हित चीन को दिख रहा

गेगोई सरकार की देन है असम की वर्तमान समस्या - गौतम चौधरी

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इन दिनों असम कई मामलो को लेकर सुखियो में है। संयोग कहिए या साजिष इन सारे मामलांे में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बांग्लादेषी मुस्लमानों का हाथ बताया जा रहा है। पहली घटना एक महिला विधायक का है, जिसने अपनी राजनीति की शुरूआत भारतीय जनता पार्टी से की फिर कांग्रेस मे चली गयी। असम के राजनीतिक प्रेक्षकों का तो यहां तक कहना हैं कि उक्त महिला विध ायक का भाजपा के एक प्रभावषाली नेता के साथ अंतरंग संबध रहे हैं। भाजपा का वह नेता कई वर्षो तक पूर्वोतर का काम सम्भालता रहा है। उस नेता पर आज भी पार्टी की महत्वपूर्ण जिम्मेवारी है। महिला विधायक की घटना ने केवल असम को ही नहीं पूरे देष को हिलाकर रख दिया। विधायक के मामले में भी हिंसा को बडे सूनियोजित तरीके से अंजाम दिया गया। फिर एक लडकी के साथ गुवाहटी में छेड-छाड की घटना हुई। उस घटना में जिन लोगों ने छेड-छाड की वे तो अपनी जगह है, लेकिन उस घटना में दो ऐसे लोगों का नाम आ रहा है, जो दूरदर्षन वाहिनी का संवाददाता हैं, गोया लडकी से छेड-छाड करने के लिए पत्रकारों ने कुछ टपोरियों को उकसाया। तीसरी घटना जो सबसे ज्यादा भयावह है, वह है वोडो और बांग्लादेषी मुस्लमानों

नेपाल में आत्माघाती रणनीति अपना रहा है भारत-गौतम चौधरी

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इन दिनों नेपाल की राजनीति बडी तेजी से बदल रही है। आषंका के अनुरूप नेपाली माओवादी आपस में विभाजित हो गये हैं। इधर डॉ0 बाबुराम मट्टराई ने बिना किसी सम्वैधानिक अधिकार के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर जमे हुए है, जबकि उन्होंने खुद लोकसभा को भंग कर फिर से चुनाव की घोषणा की है। इस संदर्भ में डॉ0 भट्टराई ने न तो अपनी पार्टी को विष्वास में लिया और न ही प्रतिपक्षी दलों को साथ लिया। प्रधानमंत्री भट्टराई इस पूरे सम्वैधानिक निर्णय में देष के सर्वोच्च सम्वैधानिक प्रमुख राष्ट्पति को विष्वास में नहीं लिया है। नेपाल के लिए यह परिस्थिति गंभीर संकट का संकेत दे रहा है। यहां जो विषय सबसे ज्यादा रहस्यमय और चौकाने वाला है वह इस पूरे मामले पर भारत की चुप्पी है। लगातार नेपाल के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने वाला भारत आखिर डॉ0 भट्टराई के इस गैर सम्वैधानिक और तानाषाही रवैये से चुप क्यों है, यह समझ से परे है। इस परिस्थिति में एक खबर यह भी आ रही है कि चीन के राजदूत नेपाल के इस राजनीतिक संकट के बीच विगत दिनों एक महीने की छुटटी पर अपने देष चले गये थे। इन तमाम परिस्थितियों का मुआयना करने से यही लगता

नितिश का जातिवादी चेहरा एवं समाजवादी पाखण्ड-गौतम चौधरी

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विगत कुछ दिनों से खुर्राठ समाजवादी और बिहार के मुख्यमंत्री नितिष कुमार कुछ ज्यादा ही मुखर हो गये हैं। बिहार में सुषासन का दावा करने वाले कुमार और कुमारी कुनवां अब यह साबित करने के प्रयास में है कि जनता दल (यूनाइटेड) में नितिष कुमार से बडा कोई नेता नहीं है। हालांकि कुछ मीडिया समूह नितिष कुमार को अगले प्रधानमंत्री के रूप में भी प्रस्तुत करना प्रारम्भ कर दिया है, लेकिन इस मामले में कुमार खुद खुलकर ताल ठोकने से परहेज कर रहे हैं। इससे इस कयास को बल मिलने लगा है कि कुमार और कुमार के समर्थक अब नई राजनीति भूमिका की तलाष में हैं। इन तमाम राजनीति उठापटक के बीच बिहार और बिहार में विकास तथा सुषासन का नारा, जो खुद नितिष कुमार ने दिया था वह अब पीछे छुटता जा रहा है और बिहार एक बार फिर लालू प्रसाद यादव की पुर्नावृत्ति के लिए तैयार हो रहा है। जिसका सबसे बडा उदाहरण रणवीर सेना के संस्थापक बर्मेष्वर मुखिया की हत्या और उसके बाद बिहार में मचाया गया उत्पात है। जानकार ही नहीं आंकडे बताते हैं कि बिहार में जो विकास दिख रहा है वह केन्द्र के पैसे और केन्द्र के दबाव के कारण दिख रहा है, गोया नितिष कुमार का प्र

सिख अतिवाद से गुरूपुत्रों को भी होगी हानि

Gautm chaudhry मित्रों, विगत एक पखवाडे से पंजाब के हर चौक-चौराहों पर बस एक ही चर्चा हो रही है कि पंजाब में फिर से आतंकवाद लौट रहा है। बहरहाल पंजाब सरकार और प्रषासन दोनों सतर्क होने का दावा कर रहे हैं लेकिन आम नागरिकों में आतंकवाद का डर समाने लगा है। कल एक व्यापारी मित्र की दुकान पर बैठा था। पंजाब के सीमावर्ती जिले का एक खुदरा व्यापारी सामान लेने आया हुआ था वहां। जिस प्रकार से उसने तरनतारन, गुरदासपुर, फिरोजपुर और अमृतसर के ग्रामीण क्षेत्रों में घट रही घटनाओं का चित्रण किया, उससे तो मेरे मन में भी एक प्रकार का भय समा गया है। हालांकि मैं पेषे से संवाददाता हूं लेकिन आम लोगों के बीच घट रही घटनाओं से तटस्थ तो नहीं रह सकता न! इधर सामाजिक अंतरताना पर लगातार खालिसतान समर्थक अपने मनतव्य प्रस्तुत कर रहे हैं। पंजाब के नौजवानों को इस बात के लिए बाकायदा उकसाया जा रहा है कि उसके कौम के साथ भारत की केन्द्रीय सत्ता अन्याय कर रही है। ये नौजवान भारत की केन्द्रीय सत्ता के खिलाफ कितना लडेंगे यह तो पता नहीं लेकिन आम गैर सिखों पर सामत आना तय माना जा रहा है। आज से दो दिनों पहले लुधियाना और जालंधर से बिहार के

थल सेना प्रमुख का राजनीतिक कोर्टमार्सल

गौतम चैधरी विगत कुछ दिनों से लगातार देश के थल सेना प्रमुख जनरल वी0 के0 सिंह पर केन्द्र सरकार की बक्रदृ’िट पर रही है। सरकार और सत्ता की टेढी नजर का खमियाजा भारत से सम्पूर्ण सुरक्षा पर पर रहा है। नित नवीन खुलासे हो रहे हैं और उन खुलासों की स्वीकार्यता के बाद भी केन्द्र सरकार डफली पीट पीट कर साबित करने का प्रयास कर रही है कि सेना के सर्वोच्च अधिकारी ने आदर्”ा और गरिमा का निर्वहण नहीं किया है। संसद के चतुरंग में एक इमानदार और रा’ट्र की नि’ठा से जुडे अधिकारी को मात्र इसलिए बरखास्त करने की मांग की जाती है कि उन्होंने अनु”ाासन का पालन नहीं किया है। सवाल यह उठता है कि सम्माननीय सांसदों की मांग को जायज ठहराया जा सकता है क्या? भारत के कथित सर्वोच्च पंचायत में सेना के “ाीर्’ा अधिकारी जनरल सिंह पर वे लोग आरोप लगा रहे हैं जिनका न तो दे”ा की संस्कृति के अनुकूल चरित्र है और न ही व्यवहार। सम्माननीय मुलायम जी सेनाधिकारी को कम बोलने की नसीहत देते हैं। भारतीय जनता पार्टी को छोड लगभग सभी दलों के नेताओं ने स्वाभिमानी और इमानदार सेनाधिकारी को बरखास्त करने की मांग की है। इस मांग में वे साम्यवादी भी “ाामिल ह

आतंकवाद की जड कांग्रेस पार्टी में

गौतम चौधरी चंडीगढ पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्यारे बलवंत सिंह राजोआना की फांसी और फांसी माफी पर बहस जारी है। इस बहस में सबसे अहम बात यह है कि जो लोग घुर राष्ट्रवाद के नाम पर राजनीति कर रहे हैं वे आपराधिक ढंग से चुप्प बैठे हैं। राजोआना की फांसी माफी पर भारतीय कानून और संविधान की अवहेलना कर एक प्रदेष की चुनी हुई सरकार ने अपने प्रदेष के लोकतांत्रिक पंचायत में प्रस्ताव कर रही है। उस प्रस्ताव को उसी पंचायत का प्रतिपक्षी जिसके पास संसदीय राजनीति का लंबा अनुभव है वह समर्थन करता है, लेकिन ये लोग यह भूल रहे हैं कि यह कृत्य एक दिन उस राजनीतिक विरासत को निवटायेगा जिसपर ये राजनीतिक दल अपनी रोटी सेक रहे हैं। कुछ लोगों को आषंका है कि राजोआना की फांसी के बहाने पंजाब में फिर से सिख आतंकवाद विस्तार में लगा है। अकाली दल यह मानकर चल रहा है कि उसे सत्ता दिलाने में सिख चरम सोच वालों की भूमिका है इसलिए सिख पंथ के द्वारा संचालित सर्वोच्च संगठन की दल अवहेलना नहीं कर सकता है। इधर एक चिंतन यह भी है कि पंजाब की राजनीति में कांग्रेस ने सिखों के साथ धोखा किया है, सिख यह मानकर चलते हैं। स

तो मुस्लिम नेता खुद के कौम का बुरा कर रहे हैं

मित्रों, मेरे वरिष्ट मित्र हैं सम्माननीय लक्ष्मी नारायण भाला जी। बडी मार्मिक बात उन्होंने बताई है। हालांकि उनको भी किसी दूसरे सज्जन ने ही मेल किया है लेकिन जो बात उनके द्वारा कही गयी है वह सचमुच इस देष के लिए घातक है। आन्ध्र प्रदेष का कोई विधायक है जिसने वहां हाने वाले हिन्दू धार्मिक आयोजनों पर प्रतिबंध के लिए सरकार पर दबाव बनाया है। मैं खुद हिन्दुओं की पवित्र भूमि भेट द्वारका जा कर आया हूं। बडी तेजी से भेट द्वीप मुस्लिम अतिक्रमणकारियों की भेंट चढ रहा है। कष्मीर में हिन्दू आयोजनों पर मुस्लिम पत्थर सैनिकों ने उत्पात मचा रखा है। मुझे तो तब आष्चर्य हुए जब एक दिन एक हिन्दू ऑटो चालक ने अपनी मार्मिक बात बताई। चंडीगढ के बुडैल स्थित मस्जिद के पास वह सुवह में अपाना ऑटो की सफाई किया करता है। सुबह सवेरे मन की पवित्रतता के लिए वह धार्मिक भजन लगा दिया करता था, एक दिन उस मस्जिद के मौलवी ने उसे मना कर दिया और कहा कि अगर वह ऐसा करेगा तो उसको यहां से भगा दिया जायेगा। हालांकि वह आज भी वही ऑटो लगाता है और भजन भी सुनता है लेकिन जिस देष में धर्मनिर्पेक्षता की बात की जाती है उस देष में यह क्या हो रहा है। ल

तो दे”ा सम्भल नहीं पायेगा

मित्रों,  सचमुच गरीब आदमी बेइमान नहीं होता है। बिहार के मुख्यमंत्री निति”ा कुमार की उक्ति मुझे सही लग रही है। बीते कल मैं इण्डिया टुडे का एक अंक पढ रहा था। उस अंक में निति”ा कुमार ने बडे मारमिक ढंग से बिहार की व्याख्या की है। मैं पूरे दे”ा का भ्रमण कर चुका हूं, बिहार को जिय तरीके से नजरअंदाज किया गया है वह एक अध्यन का वि’ाय हो सकता है। उत्तर प्रदे”ा की राजनीतिक ताकत सर्वदा से अधिक रही है। वहां राजनीतिक ताकत के कारण विकास होता रहा। उत्तर प्रदे”ा से ही ज्यादातर प्रधानमंत्री बने लेकिन स्वतंत्रता के बाद बिहार के साथ तो लगातार अन्याय होता रहा है। पंजाब के विकास में केन्द्र सरकार की भूमिका आप देखें। गुजरात और महारा’ट्र के विकास में केन्द्र भूमिका देखें, इन प्रांतों में केन्द्र ने विकास के लिए काफी कुछ किया है लेकिन बिहार में ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिलता है। न तो बढिया कालेज बनाया गया और न ही कोई आर्थिक केन्द्र खोले गये। हां संयुक्त बिहार में कुछ उद्योग लगाये गये जो मजबूरी में खडा कर दिया गया। जिस प्रदे”ाों में विकास दिखता है वहां बिना संसाधन के विकास को प्रोत्साहन मिला है। बिहार में ऐसा न

जहां जीवन-मूल्य और परंपरा ही षिक्षा का आधार है

गौतम चौधरी आज षिक्षा का स्वरूप बदल गया है। षिक्षा पर पूंजी का दबाव है। षिक्षा अब आम लोगों की पहुंच से बाहर होती जा रही है। पैसे वालों के लिए बडे बडे शैक्षणिक संस्थान खुले पडे हैं लेकिन कुछ आम लोगों के लिए भी प्रयास हो रहा है जिसे प्रचार और सामाजिक संरक्षण की जरूरत है। आज जहां एक ओर निजीकरण, भूमंडलीकरण के बाज़ारू दौर में परंपरा, विरासत, पहचान दम तोड रही है वहीं दूसरी ओर षिक्षा के माध्यम से मूल्यों और परंमपराओं को स्थापित करने के लिए बडे संस्थानों और पराक्रमी वैष्विक उपक्रमों से मुठभेड करती शैक्षणिक संस्थाए भी है जिसे प्रचार और सामजिक मनोहार की जरूरत है। इस मामले में पंजाब के गुरदासपुर जिला स्थित  तुगलवाला गांव का षिक्षा केन्द्र बडी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इस शैक्षणिक संस्थान में  सेवा, सुमिरन, सहयोग, सादगी, शुचिता, ईमानदारी, सच्ची कीर्ति, सत्कर्म तथा परोपकार का व्यावहारिक पाठ पढ़ाया जाता है। गुरदासपुर का बाबा आया सिंह रियाड़की कॉलेज, तुगलवाला, लडकियों के लिए है। इसकी स्थापना पंजाब के रियाड़की क्षेत्र में एक परोपकारी संत बाबा श्री आया सिंह ने सन् 1925 में पुत्री पाठशाला के रूप में की

शब्दों पर नहीं स्वयं के भाव पर मंथन की जरूरत है

गौतम चौधरी लगातार दो दिनों से सेक्सी शब्द की गंूज कानों में ध्वनित हो रही है। पता नहीं महिला आयोग की महिला सदस्या ने भाषण न दिया कि पूरा देश उनके बयान पर उलझ गया है। जो लोग लगातार अपने-अपने ब्लॉग में माननीया ममता शर्मा के बयान पर कलम घिस रहे हैं उससे कोई फर्क पड़ता है क्या? इस देश में हर को वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। कोई कुछ कह ले उसका कोई कुछ उखाड़ नहीं सकता तो फिर नाहक ममता देवी जी के बयान पर अपना समय क्यों खराब कर रहे हैं लोग। उन्होंने अच्छा कहा, बुरा कहा, भला कहा, महिलाओं को सेक्सी ही तो कहा। जो लोग ममता जी के बयान का नाकारात्मक पक्ष उभार रहे हैं उन्हें समझना चाहिए कि शब्द अपनी रोचकता के साथ अर्थों में विस्तार करता चला जाता है। सचमुच अगर लड़कियां या महिलाएं यह मान लें कि बंदा जो उसे सेक्सी कह रहा है उसका मतलब बुरा नहीं, नाकारात्मक नहीं, साकारात्मक है तो मैं समझता हूं कि उत्पीडऩ की प्रवृति वाले पुरुष की आधी ताकत समाप्त हो जाएगी। देखिए संवाद की भाषा चाहे कितनी बुरी हो लेकिन संवाद ग्रहण करने वाला साकारात्मक प्रवृति का है तो संवाद सार्थक हो जाता है, लेकिन ग्रहण करने वाला व्यक्त

सेमेटिक चिंतन का ही विस्तार है इस्लाम, ईसाइयत एवं साम्यवाद

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गौतम चौधरी   समाजवाद का सिध्दांत रॉवट ओवेन एवं सेंट साईमन ने दिया। मेकाइबर और पेज नामक समाज विज्ञानी ने समाज को परिभाषित किया। पश्चिम में समाज की संरचना का जो क्रमिक विकास हुआ है वह संघर्ष और विखंडन के सिध्दांत पर आधारित है। इसलिए वैज्ञानिक समाजवाद के प्रवर्तक कार्ल मर्क्स को दुनिया का इतिहास संघर्ष से भरा पडा दिखा। जो लोग यूरोप की सभ्यता को यूनानी सभ्यता का विस्तार मानते हैं वे भ्रम में हैं। आज का यूरोप यूनान का नहीं अपितु आद्य अरब सभ्यता का विस्तार है। भारत में शुक्राचार्य नाम के एक चिंतक हो गये हैं। उन्हें दानवों के गुरू के रूप जाना जाता है। दानव यानि भौतिक और जडवादी चिंतन को मानने वाला। शुक्राचार्य के पौत्र का नाम हर्ब था। जिसका अपभ्रंश अरब हो गया। इस बात में कितनी सत्यता है , उसके लिए तो शोध की जरूरत है , लेकिन एक यह भी दृष्टिकोण है जिसे दुनिया में समाज की संरचना को समझने के लिए उपयोग में लाया जा सकता है। कहा जाता है कि सेमेटिक विचार को मानने वाले पहले मिश्र में रहते थे। वहां के राजा को उन लोगों ने छल से मार कर रातों रात निकल गये और मध्य पूरव के समुद्री किनारे पर अपना