जहां जीवन-मूल्य और परंपरा ही षिक्षा का आधार है

गौतम चौधरी
आज षिक्षा का स्वरूप बदल गया है। षिक्षा पर पूंजी का दबाव है। षिक्षा अब आम लोगों की पहुंच से बाहर होती जा रही है। पैसे वालों के लिए बडे बडे शैक्षणिक संस्थान खुले पडे हैं लेकिन कुछ आम लोगों के लिए भी प्रयास हो रहा है जिसे प्रचार और सामाजिक संरक्षण की जरूरत है। आज जहां एक ओर निजीकरण, भूमंडलीकरण के बाज़ारू दौर में परंपरा, विरासत, पहचान दम तोड रही है वहीं दूसरी ओर षिक्षा के माध्यम से मूल्यों और परंमपराओं को स्थापित करने के लिए बडे संस्थानों और पराक्रमी वैष्विक उपक्रमों से मुठभेड करती शैक्षणिक संस्थाए भी है जिसे प्रचार और सामजिक मनोहार की जरूरत है। इस मामले में पंजाब के गुरदासपुर जिला स्थित  तुगलवाला गांव का षिक्षा केन्द्र बडी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इस शैक्षणिक संस्थान में  सेवा, सुमिरन, सहयोग, सादगी, शुचिता, ईमानदारी, सच्ची कीर्ति, सत्कर्म तथा परोपकार का व्यावहारिक पाठ पढ़ाया जाता है। गुरदासपुर का बाबा आया सिंह रियाड़की कॉलेज, तुगलवाला, लडकियों के लिए है। इसकी स्थापना पंजाब के रियाड़की क्षेत्र में एक परोपकारी संत बाबा श्री आया सिंह ने सन् 1925 में पुत्री पाठशाला के रूप में की थी। बाबा आया सिंह जी गुरुमुख परोपकार उमाहा यानी गुरु का सच्चा सेवक परोपकार भी बहुत चाव से करे जैसे महावाक्य का अनुसरण करते-करते अपने जीवन के अंतिम अध्याय तक इससे जुड़े रहे।
ऐसे तो यहां पाठ्य पुस्तकों की पढाई भी कराई जाती है लेकिन इस संस्थान की सबसे बडी खासियत जीवन से साक्षात्कार की व्यावहारिक शिक्षा है। स्वेत धवल सादगी से युक्त संस्थान की दैनंदिन का कार्य बडा सीधा और सपाट होता है। संस्थान के प्रांगण में प्राथमित, माध्यमिक, उच्च विद्यालय के साथ-साथ स्नातक और उत्तर स्नातक तक की पढाई होती है। लगभग पन्द्रह एकड़ में फैले इस विशाल शैक्षणिक परिसर में दस एकड़ जमीन पर खेती की जाती है, जिसमें सभी विद्यार्थियों का सहयोग रहता है। पांच एकड़ में लड़कियों का छात्रावास बनाया गया है। छात्रावासों में लगभग 2400 लड़कियां निवास करती है। सबसे बडी बात है कि यह संस्थान व्यावसायिक नहीं है। न ही इस संस्थान को किसी बाहरी सहयोग की अपेक्षा रहती है। संस्थान का प्रति छात्रा वार्षिक शुल्क मात्र 800 रूपये है। आष्चर्य की बात तो यह है कि निर्धन छात्राएं यहां बिना शुल्क भी पढ सकती है।
अभिनव षिक्षण संस्थान की व्यवस्था देख किसी को भी आष्चर्य हो सकता है। यहां की सबसे बडी खासियत है कि यहां शिक्षक नहीं हैं, यहां की छात्राएं स्वयं पढ़ाती हैं। सभी वरीय विद्यार्थी ही अपने से कनिष्ठ कक्षाओं के विद्यार्थियों को पढ़ाते हैं। यह सिलसिला षिषु बाटिका से लेकर स्नातकोत्तर तक चलता है। कुल 4,000 विद्यार्थियों की संख्या वाले इस संस्थान में मात्र पांच शिक्षक हैं। शिक्षण प्रक्रिया के पहले चरण में एक विद्यार्थी 50 विद्यार्थियों को एक समूह में पढ़ाता है, फिर 10-10 के अन्य समूहों को पढ़ाया जाता है। दुनिया के सभी प्रकार के शैक्षणिक प्रयोग को एक ओर रखकर यहां पढ़ाई में किसी कारण से थोड़ा पिछड़ रहे या कमजोर विद्यार्थी को मूर्ख नहीं माना जाता। उस पर विशेष ध्यान देने की व्यवस्था है। ऐसे छात्रों को एक एक शिक्षक विशेष मेहनत कर पढ़ाते हैं। पूरे शिक्षण संस्थान में अपने हाथ अपना काज स्वयं ही संवारने की शिक्षा दी जाती है। परिसर की सभी लड़कियां पढ़ाई के साथ-साथ प्रधानाचार्य, प्रध्यापक, किरानी, चपरासी का दायित्व खुद सम्भालती है। सभी कामों के संचालन हेतु विद्यार्थियों की स्व-निर्मित समिति है, जो सभी कार्यकर्ताओं को स्वयं सेवा, आत्म-निर्भरता तथा सद्चित्त जैसे जीवन मूल्यों के प्रति सदैव सचेत करती रहती है। अपने पर भरोसे से निर्णय लेना, आत्मनिर्भरता के लिए पषुपालन, बागवानी, रसोई तथा खेती का सारा काम, छात्रावास में उपयोग होने वाला अनाज तथा सब्जियां लड़कियां स्वयं उगाती हैं। इस संस्थान की अपनी आटा चक्की, धान कूटने की मशीन, गन्ने का रस निकालने वाली मशीन, सौर ऊर्जा वाला पंप तथा बिजली प्रबंधन है। इन सबके साथ-साथ एक बडी़ कंप्यूटर प्रयोगशाला भी है। संस्थान से निकलने वाले हर तरह के कबाड़ को अच्छे से जुगाड़ में बदलने में प्रत्येक छात्रा माहिर है। बचत के साथ-साथ ये सब बातें स्वावलंबन भी सिखाती हैं। संस्थान की दिनचर्या को छह भागों में बांटा गया है। दिन की शुरुआत गुरुवाणी के पाठ, शबद-कीर्तन तथा अरदास से होती है। साफ-सफाई का काम सप्ताह में एक बार होता है, क्योंकि गहरे अनुशासन के चलते कोई भी विद्यार्थी कहीं भी गंदगी नहीं फैलाता। दोपहर का भोजन एक सादे भोजनषाला में पंगत में बैठकर खाया जाता है। संस्थान के 12 गोबर गैस प्लांट अपने हैं। यहां के संचालक बताते हैं कि 4,000 बच्चों का भोजन पकाने के बाद भी तीन गैस सिलेंडरों जितनी गैस बच जाती है। संस्थान में कोई राजपत्रित अवकाश नहीं होता। यहां छुट्टी के  बदले सभी धर्मों के श्रेष्ठ पुरुषों, अवतारों के जन्म तथा शहीदी दिवस पूरे उत्साह से मनाए जाते हैं। आज पाठ पुस्तकों का विकल्प बन चुकी गाइडों तथा नकल का यहां नामो-निशान तक नहीं। परीक्षा सत्र में गुरुनानक देव विश्वविद्यालय से किसी उडऩदस्ते की बजाय सरकारी प्रक्रिया पूरी करने के लिए मात्र एक ही व्यक्ति आता है। इस अधिकारी का काम केवल इतना होता है कि वह प्रश्न पत्रों के सीलबंद लिफाफे खोल दे। शेष सभी काम विद्यार्थी खुद संपन्न करता है। संस्थान के किसी भी विद्यार्थी की परीक्षा कहीं भी बिठाकर ली जा सकती है। संस्थान के संचालक का दावा है कि नकल साबित करने वाले को 21,000 रुपए का पुरस्कार उनके पास तैयार रखा है।
संस्थान के भीतर तथा बाहर पांच किलोमीटर के दायरे में फलदार वृक्षों की भरमार है। संस्थान के भीतर एक संग्रहालय भी है, जिसमें पंजाब की लोक संस्कृति से जुड़ी परंपरागत वस्तुएं रखी गई हैं। संस्थान से जुड़े सभी काम छात्राओं का 12-12 का समूह मिलकर करता है। 70 वर्षीय प्रधानाचार्य स्वर्ण सिंह विर्क का जोर स्वाध्याय पर रहता है। समय समय पर आस-पास के गांवों में छात्राएं शराबखोरी, भ्रष्टाचार, अश्लीलता, दहेज, भ्रूण हत्याओं के खिलाफ चेतना यात्राएं निकालती हैं। उथल-पुथल के दौर में पंजाब में बहुत-सी बच्चियां अनाथ हुईं। ऐसी 150 बच्चियां यहां निशुल्क शिक्षा ले रही हैं। स्वर्ण सिंह बताते हैं कि मेरा छोटा सा परिवार बालिकाओं की सेवा में तत्पर रहता है। हम सपरिवार चौबीस घंटे संस्थान के किसी भी काम के लिए उपलब्ध हैं। लगातर षिक्षा नीतियों पर बहस और नीति निर्धारण के लिए बनाई गयी संस्थाओं के आलिमों को कम से कम इस संस्था की यात्रा जरूर करनी चाहिए।

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