शब्दों पर नहीं स्वयं के भाव पर मंथन की जरूरत है
गौतम चौधरी
लगातार दो दिनों से सेक्सी शब्द की गंूज कानों में ध्वनित हो रही है। पता नहीं महिला आयोग की महिला सदस्या ने भाषण न दिया कि पूरा देश उनके बयान पर उलझ गया है। जो लोग लगातार अपने-अपने ब्लॉग में माननीया ममता शर्मा के बयान पर कलम घिस रहे हैं उससे कोई फर्क पड़ता है क्या? इस देश में हर को वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। कोई कुछ कह ले उसका कोई कुछ उखाड़ नहीं सकता तो फिर नाहक ममता देवी जी के बयान पर अपना समय क्यों खराब कर रहे हैं लोग। उन्होंने अच्छा कहा, बुरा कहा, भला कहा, महिलाओं को सेक्सी ही तो कहा। जो लोग ममता जी के बयान का नाकारात्मक पक्ष उभार रहे हैं उन्हें समझना चाहिए कि शब्द अपनी रोचकता के साथ अर्थों में विस्तार करता चला जाता है। सचमुच अगर लड़कियां या महिलाएं यह मान लें कि बंदा जो उसे सेक्सी कह रहा है उसका मतलब बुरा नहीं, नाकारात्मक नहीं, साकारात्मक है तो मैं समझता हूं कि उत्पीडऩ की प्रवृति वाले पुरुष की आधी ताकत समाप्त हो जाएगी। देखिए संवाद की भाषा चाहे कितनी बुरी हो लेकिन संवाद ग्रहण करने वाला साकारात्मक प्रवृति का है तो संवाद सार्थक हो जाता है, लेकिन ग्रहण करने वाला व्यक्ति नाकारात्मक प्रवृति का है तो संवाद की सार्थकता वहीं समाप्त हो जाती है। हमारे बेगुसराय के तेघरा बाजार में एक हलवाई हुआ करता था। बढिय़ा आदमी था। नुक्कड़ पर चाय की दुकान थी। पूड़ी, सब्जी और जलेबी भी बनाता था। अगल-बगल के दबंग युवा उसके बहन और मां की गालियां निकालते तो वह बड़े प्रेम से कहता - जोतो दा माईनला कि तोरो बहिन के ककरो न ककरो से बिआह ता होबे न करतई फेर तोरो बाबू जी तोरा पैदा करै लै कुछ न कुछ त कैलखिन होत न हो। मतलब वह, हलुआई अगले की गाली की व्याख्या कर रहा है लेकिन उसका पक्ष साकारात्मक है। दुनिया में जितनी भी लड़ाईयां हुई है उस सबके पीछे संवाद की नाकरात्मक व्याख्या जिम्मेवार है। अगर भाषा की साकारात्मकता से आप परिचित हैं और उसकी शक्ति को आप पहचानते हैं तो संभव है कि आप बड़े से बड़े विवाद को समाप्त कर देंगे।
मैं उन दिनों अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का संगठन मंत्री हुआ करता था। उस जमाने में संयुक्त बिहार और संयुक्त उत्तर प्रदेश, परिषद् की दृष्टि से एक क्षेत्र हुआ करता था। हमारे क्षेत्र संगठन मंत्री सम्मानीय हरेन्द्र जी होते थे और राष्ट्रीय संगठन मंत्री सम्मानीय दत्तात्रेय होसबले होते थे। क्षेत्र के संगठन मंत्रियों का वर्ग नैनिषारण्य में लगा था। तीन दिनों के वर्ग में दो सत्र केवल संवाद पर था। लेकिन दत्ता जी ने कहा कि संवाद पर एक और व्यवहारिक सत्र की ज़रूरत है। फिर हरेन्द्र जी के बाद स्वयं दत्ता जी संवाद के उस व्यवहारिक सत्र को संचालित किय। उस सत्र की व्याख्या किस संगठन मंत्री ने किस प्रकार की पता नहीं लेकिन उस वर्ग के बाद मेरी सोच और संवाद में गुणात्मक बदलावा आया। आज सामाजिक जीवन तथा व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन में जो संबंधों की लयात्मकता महसूस कर रहा हूं उसके पीछे संवाद और सोच की सार्थकता को पाता हंू। मुझे अंग्रेजी नहीं आती। सीखने का लगातार प्रयास कर रहा हूं लेकिन अंग्रेजी बोलने वालों की मानसिकता को तुरंत पकड़ लेता हूं। यही नहीं कई भाषा भाषियों के संपर्क में रहने के बाद भी कभी अपने को अकेला नहीं पाया। आजकल पंजाब में हूं। बिहार के प्रति पंजाब के लोगों के मन में बढिय़ा भाव नहीं हैं। वे मेरे सामने बिहारियों के खिलाफ जमकर बोलते हैं कुछ लोग गालियां भी निकालते हैं, लेकिन मैं उनके संवाद को साकारात्मक नहीं लेता हूं। यही नहीं बिहार में मैं जिस जाति से आता हूं उस जाति के प्रति अन्य जातियों की धारणा अच्छी नहीं है। मेरे सामने लोग खुलकर बोलते थे बाद में मैं उसे साकारात्मक लेने लगा। हमारी जाति के खिलाफ बिहार में दो बड़ी घटनाएं हो चुकी हैं। मैं सेनारी और बारा दोनों गांवों का भ्रमण कर चुका हूं इतने बड़े हादसों के बाद भी मैंने कभी उसे नाकारात्मक नहीं लिया। शब्द और सोच में साकारात्मक भाव अपनाकर उसको ग्रहण करने की बात ही तो ममता भी कह रही हैं। मान लिया कि सेक्सी शब्द का मान्य अर्थ यौन उत्तेजना उत्पन्न करने वाली महिला या पुरुष से है लेकिन ज़रा विचार करें कि अगर महिलाएं इसे सुंदरता से लें और शालीनता से कन्नी काट लें तो समस्या का समाधान हो जाएगा या नहीं?
फिर शब्द तो अपना अर्थ बदलता रहता है। पता है इस्लाम जिसका अर्थ शांति से था वह आज एक पंथ का पर्याय है। कुफ्र का अर्थ बीज छुपाने वालों से था जिसका उपयोग आज पंथ अपराधी के रूप में किया जाता है। उर्दू का अर्थ सैन्य संगठन से था जो एक भाषा के रूप में हमारे सामने है। भगवान और भगवती शब्द की विउत्पति पर अपनी दृष्टि निक्षेप करें। पता चल जाएगा। कुशल शब्द का उपयोग जो ब्रह्मण कुशी अमावस्या के दिन कुश उखाडऩे में अपनी महारथ सिद्ध करता था उसके अर्थ में प्रयुक्त होता था। आज कुशल शब्द का अर्थ आपके सामने है। अर्थशास्त्र, ज्योतिष, भौतिकी, ये सारे शब्द आज अपने सही अर्थों की व्याख्या न कर एक विशेष अर्थ में प्रयुक्त हो रहे हैं। कोई शब्द व्यापक अर्थ ग्रहण कर रहा है तो कोई शब्द अर्थों की संकुचितता में जीवन बिता रहा है। आपको पता है कि राष्ट्र जिस पर आजकल जबरदस्त बहस हो रही है, उसका अर्थ तेज से है, प्रकाश और ज्योति से है लेकिन, आज राष्ट्र शब्द का अर्थ आपके समक्ष है। इसलिए ममता शर्मा जी की बात को तूल न देते हुए उस पर नाहक विवाद से बचा जाना चाहिए। ऐसे जो लोग इस पर कलम चला रहे हैं मैं समझता हूं वे अपने मन से बढिय़ा ही कर रहे होंगे। मेरा अपना मतलब है जिसे मैंने व्यक्त किया है। शेष जिसको जो लिखना पढऩा है वह तो वही कर रहा है वही कह रहा है। उन्हें वही करना भी चाहिए। जिस प्रकार ममता जी को स्वतंत्रता मिल रखी है इसी प्रकार उन लोगों को भी स्वतंत्रता मिली हुई है। शेष आप देखिए बस।
लगातार दो दिनों से सेक्सी शब्द की गंूज कानों में ध्वनित हो रही है। पता नहीं महिला आयोग की महिला सदस्या ने भाषण न दिया कि पूरा देश उनके बयान पर उलझ गया है। जो लोग लगातार अपने-अपने ब्लॉग में माननीया ममता शर्मा के बयान पर कलम घिस रहे हैं उससे कोई फर्क पड़ता है क्या? इस देश में हर को वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। कोई कुछ कह ले उसका कोई कुछ उखाड़ नहीं सकता तो फिर नाहक ममता देवी जी के बयान पर अपना समय क्यों खराब कर रहे हैं लोग। उन्होंने अच्छा कहा, बुरा कहा, भला कहा, महिलाओं को सेक्सी ही तो कहा। जो लोग ममता जी के बयान का नाकारात्मक पक्ष उभार रहे हैं उन्हें समझना चाहिए कि शब्द अपनी रोचकता के साथ अर्थों में विस्तार करता चला जाता है। सचमुच अगर लड़कियां या महिलाएं यह मान लें कि बंदा जो उसे सेक्सी कह रहा है उसका मतलब बुरा नहीं, नाकारात्मक नहीं, साकारात्मक है तो मैं समझता हूं कि उत्पीडऩ की प्रवृति वाले पुरुष की आधी ताकत समाप्त हो जाएगी। देखिए संवाद की भाषा चाहे कितनी बुरी हो लेकिन संवाद ग्रहण करने वाला साकारात्मक प्रवृति का है तो संवाद सार्थक हो जाता है, लेकिन ग्रहण करने वाला व्यक्ति नाकारात्मक प्रवृति का है तो संवाद की सार्थकता वहीं समाप्त हो जाती है। हमारे बेगुसराय के तेघरा बाजार में एक हलवाई हुआ करता था। बढिय़ा आदमी था। नुक्कड़ पर चाय की दुकान थी। पूड़ी, सब्जी और जलेबी भी बनाता था। अगल-बगल के दबंग युवा उसके बहन और मां की गालियां निकालते तो वह बड़े प्रेम से कहता - जोतो दा माईनला कि तोरो बहिन के ककरो न ककरो से बिआह ता होबे न करतई फेर तोरो बाबू जी तोरा पैदा करै लै कुछ न कुछ त कैलखिन होत न हो। मतलब वह, हलुआई अगले की गाली की व्याख्या कर रहा है लेकिन उसका पक्ष साकारात्मक है। दुनिया में जितनी भी लड़ाईयां हुई है उस सबके पीछे संवाद की नाकरात्मक व्याख्या जिम्मेवार है। अगर भाषा की साकारात्मकता से आप परिचित हैं और उसकी शक्ति को आप पहचानते हैं तो संभव है कि आप बड़े से बड़े विवाद को समाप्त कर देंगे।
मैं उन दिनों अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का संगठन मंत्री हुआ करता था। उस जमाने में संयुक्त बिहार और संयुक्त उत्तर प्रदेश, परिषद् की दृष्टि से एक क्षेत्र हुआ करता था। हमारे क्षेत्र संगठन मंत्री सम्मानीय हरेन्द्र जी होते थे और राष्ट्रीय संगठन मंत्री सम्मानीय दत्तात्रेय होसबले होते थे। क्षेत्र के संगठन मंत्रियों का वर्ग नैनिषारण्य में लगा था। तीन दिनों के वर्ग में दो सत्र केवल संवाद पर था। लेकिन दत्ता जी ने कहा कि संवाद पर एक और व्यवहारिक सत्र की ज़रूरत है। फिर हरेन्द्र जी के बाद स्वयं दत्ता जी संवाद के उस व्यवहारिक सत्र को संचालित किय। उस सत्र की व्याख्या किस संगठन मंत्री ने किस प्रकार की पता नहीं लेकिन उस वर्ग के बाद मेरी सोच और संवाद में गुणात्मक बदलावा आया। आज सामाजिक जीवन तथा व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन में जो संबंधों की लयात्मकता महसूस कर रहा हूं उसके पीछे संवाद और सोच की सार्थकता को पाता हंू। मुझे अंग्रेजी नहीं आती। सीखने का लगातार प्रयास कर रहा हूं लेकिन अंग्रेजी बोलने वालों की मानसिकता को तुरंत पकड़ लेता हूं। यही नहीं कई भाषा भाषियों के संपर्क में रहने के बाद भी कभी अपने को अकेला नहीं पाया। आजकल पंजाब में हूं। बिहार के प्रति पंजाब के लोगों के मन में बढिय़ा भाव नहीं हैं। वे मेरे सामने बिहारियों के खिलाफ जमकर बोलते हैं कुछ लोग गालियां भी निकालते हैं, लेकिन मैं उनके संवाद को साकारात्मक नहीं लेता हूं। यही नहीं बिहार में मैं जिस जाति से आता हूं उस जाति के प्रति अन्य जातियों की धारणा अच्छी नहीं है। मेरे सामने लोग खुलकर बोलते थे बाद में मैं उसे साकारात्मक लेने लगा। हमारी जाति के खिलाफ बिहार में दो बड़ी घटनाएं हो चुकी हैं। मैं सेनारी और बारा दोनों गांवों का भ्रमण कर चुका हूं इतने बड़े हादसों के बाद भी मैंने कभी उसे नाकारात्मक नहीं लिया। शब्द और सोच में साकारात्मक भाव अपनाकर उसको ग्रहण करने की बात ही तो ममता भी कह रही हैं। मान लिया कि सेक्सी शब्द का मान्य अर्थ यौन उत्तेजना उत्पन्न करने वाली महिला या पुरुष से है लेकिन ज़रा विचार करें कि अगर महिलाएं इसे सुंदरता से लें और शालीनता से कन्नी काट लें तो समस्या का समाधान हो जाएगा या नहीं?
फिर शब्द तो अपना अर्थ बदलता रहता है। पता है इस्लाम जिसका अर्थ शांति से था वह आज एक पंथ का पर्याय है। कुफ्र का अर्थ बीज छुपाने वालों से था जिसका उपयोग आज पंथ अपराधी के रूप में किया जाता है। उर्दू का अर्थ सैन्य संगठन से था जो एक भाषा के रूप में हमारे सामने है। भगवान और भगवती शब्द की विउत्पति पर अपनी दृष्टि निक्षेप करें। पता चल जाएगा। कुशल शब्द का उपयोग जो ब्रह्मण कुशी अमावस्या के दिन कुश उखाडऩे में अपनी महारथ सिद्ध करता था उसके अर्थ में प्रयुक्त होता था। आज कुशल शब्द का अर्थ आपके सामने है। अर्थशास्त्र, ज्योतिष, भौतिकी, ये सारे शब्द आज अपने सही अर्थों की व्याख्या न कर एक विशेष अर्थ में प्रयुक्त हो रहे हैं। कोई शब्द व्यापक अर्थ ग्रहण कर रहा है तो कोई शब्द अर्थों की संकुचितता में जीवन बिता रहा है। आपको पता है कि राष्ट्र जिस पर आजकल जबरदस्त बहस हो रही है, उसका अर्थ तेज से है, प्रकाश और ज्योति से है लेकिन, आज राष्ट्र शब्द का अर्थ आपके समक्ष है। इसलिए ममता शर्मा जी की बात को तूल न देते हुए उस पर नाहक विवाद से बचा जाना चाहिए। ऐसे जो लोग इस पर कलम चला रहे हैं मैं समझता हूं वे अपने मन से बढिय़ा ही कर रहे होंगे। मेरा अपना मतलब है जिसे मैंने व्यक्त किया है। शेष जिसको जो लिखना पढऩा है वह तो वही कर रहा है वही कह रहा है। उन्हें वही करना भी चाहिए। जिस प्रकार ममता जी को स्वतंत्रता मिल रखी है इसी प्रकार उन लोगों को भी स्वतंत्रता मिली हुई है। शेष आप देखिए बस।
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