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Showing posts from November, 2016

अफगान पर मुकम्मल चर्चा के लिए अमृतसर में जुटेंगे दुनियाभर के कूटनीतिज्

गौतम चौधरी, एषिया की स्थाई शांति के लिए अफगानिस्तान में शांति जरूरी, आगामी तीन दिसंबर से एषिया का दिल कहे जाने वाले अफगानिस्तान पर मुकम्मल चर्चा करने के लिए दुनियाभर के कूटनितिज्ञ अमृतसर में एकत्रित हो रहे हैं। अफगानिस्तान के मुद्दे पर पहले भी कई सम्मेलन हो चुके हैं। दरहसर अफगानिस्तान की शांति को लेकर सर्वप्रथम सन 2011 में तुर्की के इस्लाम्बुल में एक सम्मेलन आयोजित किया गया था। उस सम्मेलन को इस्ताम्बुल प्रोसेस के नाम से जाना जाता है। बाद में इस सम्मेलन को हॉर्ट ऑफ एषिया के नाम से जाना जाने लगा। ऐसा ही सम्मेलन अमृतसर से पहले टर्की के इस्ताम्बुल, अफगानिस्तान के काबुल, कज्जाकिस्तान के अलमाती, चीन के बिजिंग, पाकिस्तान के इस्लामाबाद और भारत स्थिति नई दिल्ली में हो चुका है। इस बार के इस सम्मेलन में प्रमुख मुद्दा अफगानिस्तान की शांति के साथ ही साथ मध्य एषियायी देषों के विकास का भी रहने वाला है। तेजी से बदल रही विष्व कूटनीति का प्रभाव भी इस सम्मेलन पर स्पष्ट रूप से देखने को मिल रहा है। जहां एक ओर भारत और पाकिस्तान अपनी अपनी सीमा के अंदर रहकर एक दूसरे पर सैन्य आक्रमण कर रहे हैं वहीं दूसर

एक महिला जिसने अपने बेटे को बलात्कारी बना दिया

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गौतम चौधरी एक दो दिन पहले की घटना है। पॉस्को विषेष न्यायालय ने एक मां को अपने ही बेटे को बलात्कारी बनाने के लिए उम्रकैद की सजा दी है। मामला रूद्रपुर, उत्तराखंड का है। इसी साल बीते 29 जनवरी को एक लड़की की मां ने औद्योगिक परिक्षेत्र रूद्रपुर की रहने वाली सुनीता पर अपनी बेटी के अपहरण की प्राथमीकी दर्ज कराई। पुलिस छानबिन करती रही लेकिन उक्त पीडि़ता के बेटी का कोई पता नहीं चला। इसी बीच पुलिस को जानकारी मिली कि देहरादून में लड़की को अपहरण करके रखा गया है। 25 फरबरी को पुलिस ने कार्रवाई की और सुनीता अपने बेटे के साथ गिरफ्तार कर ली गयी। आनन-फानन के पुलिस कार्रवाई में लड़की को बरामद कर लिया गया। इसके बाद उस लड़की ने जो आपबीती बताई वह सुनकर रेंगटें खड़े हो जाएंगे। मानवता को शर्मासार करने करने वाली इस घटना का कोई उदाहरण ढुंढते नहीं मिलेगा। उस दिन लड़की घर पर अकेली थी। सुनीता आई और लड़की को बताया कि उसकी शादी वह अपने लड़के से करा देगी। यह कहकर वह लड़की को अपने जाल में फसा लिया और उसे लेकर अपने घर पर चली गाई। घर पर आते ही सुनीता ने पूरी तैयारी की और लड़की को लेकर वह सीधे देहरादून चली गयी। देहराद

पंजाब में कांग्रेस की पकड़ को मजबूत कर रहा है एसवाइएल का मुद्दा

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गौतम चौधरी सतलुज-यमुना लिंक नहर के पानी पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद पंजाब की राजनीतिक परिस्थिति बदली-बदली-सी दिख रही है। प्रथमदृष्टया निःसंदेह वर्तमान परिस्थिति का सियासी फायदा सबसे ज्यादा पंजाब कांग्रेस को मिलना तय है। हालांकि सत्तारूढ गठबंधन ने भी डैमेज कंट्रोल की पूरी कोषिष की है लेकिन इस मुद्दे पर कांग्रेस बिना समय गमाए इतनी तेज दौर गयी कि अब किसी का हाथ पकड़ना संभव नहीं दिख रहा है। जैसे ही माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने मामले पर अपनी स्थिति स्पष्ट की, पंजाब कांग्रेस ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। आरोप लगाई कि चूकी हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है इसलिए भाजपा के साथ वाली गठबंधन की पंजाब सरकार ने ढंग से पंजाब का पक्ष सर्वोच्च न्यायालय में नहीं रखी और नतीजा पंजाब के हितों के खिलाफ फैसले के रूप में आया। अब इस मामले में भी कांग्रस अन्य सियासी दलों की तुलना में आगे निकलती दिख रही है। मामले पर जितना आक्रामक रूख कांग्रेस ने अपनाया है उतना पंजाब की अन्य सियासी पार्टियों ने नहीं अपनाया। यही कारण है कि पंजाब की जनता के लिए अब कांग्रेस एक मजबूत राजनीतिक विकल्प के रूप म

आसन्न जलसंकट पर चाहिए समाधान तो होगी उपमहाद्वीपीय योजना की जरूरत

गौतम चौधरी पंजाब और हरियाणा के बीच सतलुज-यमुना लिंक नहर पर तलवारें खिंची हुई है। दक्षिण में कावेरी के जल विभाजन पर तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच जबरदस्त टकराव की स्थिति बनी हुई है। विगत दिनों बिहार में आए एकाएक बाढ़ के पीछे का कारण मध्य प्रदेष सरकार की गलती बतायी जा रही है। जल बटवारे को लेकर छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के बीच भी संघर्ष के आसार दिख रहे हैं। नदी के पानी को लेकर बिहार और उत्तर प्रदेष में भी आसन्न विवाद के खतरे मंडरा रहे हैं। नेपाल के साथ पानी का विवाद चल ही रहा है। पानी के मुद्दे पर चीन और पाकिस्तान के साथ भी भारत के टकराव बढ़ते जा रहे हैं। सही मायने में देखें तो दक्षिण एषिया में पानी को लेकर बड़े संघर्ष की संभावना दिख रही है। यह संघर्ष कब होगा, कितना होगा, किस प्रकार का होगा और किन-किन के बीच होगा, अभी कठिन है लेकिन संघर्ष की पृष्ठभूमि तैयार होती-सी लगती है। मसलन हमें यह विचार करना होगा कि आखिर पानी की समस्या का समाधान कैसे किया जाए। भारतीय उपमहाद्वीप के देषों में पानी की कमी कभी नहीं रही। हमारे यहां बारिष खूब होती है और थार के मरूभूमि को छोड़ दिया जाए तो पूरे उपमहाद्वीप में लग

असफलताओं को छुपाने का प्रयास या फिर इतिहास बनाने की योजना

गौतम चौधरी अभी पूरे देष में बस एक ही बात की चर्चा हो रही है। चौक-चौपालों से लेकर संसद भवन तक नोटबंदी पर गहमागहमी है। कुछ विपक्ष में हैं तो अधिकतर लोग यह कह रहे हैं कि मोदी सरकार ने बहुत बढि़या काम किया है। काम बढि़या है या घढि़या इसपर राय देना जल्दबाजी होगा लेकिन इतना तो तय है कि देष की अधिकतर जनता इस निर्णय से खुष दिख रही है। नोट बंदी को कुछ समाचार माध्यम ने मुद्रा आपातकाल की संज्ञा दी है लेकिन कुछ ऐसे भी समाचार माध्यम हैं जिन्होंने इसे मुद्रा अनुषासन कहकर पुकारा है। जिस प्रकार आपातकाल के समय, इधर जयप्रकाष नारायण जी इंदिरा जी के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे तो उधर विनोवा भावे आपालकाल को अनुषासन पर्व बता रहे थे। ठीक उसी प्रकार अभी अपने देष में दो प्रकार के चिंतनों में देष के बुद्धिजीवी विभाजित दिख रहे हैं। कुछ तटस्थ भी हैं लेकिन वे भी सरकार की तैयारियों पर प्रष्न खड़ा करने लगे हैं। जनता स्वाभाविक रूप से परेषान है लेकिन उसको इस बात की तसल्ली है कि जो लोग कलतक नोटों की गड्डियां गिनते नहीं थकते थे वे भी उनके साथ कतार में खड़े हैं। इन तमाम चर्चाओं के बीच मोदी सरकार ने बड़ी सूनियोजित तरीके से

मुद्रा परिवर्तन का निर्णय सराहनीय पर सरकार की तैयारियों पर उठ रहे हैं सवाल

गौतम चौधरी मुद्रा परिवर्तन पर बहस चल रही है। मैं भी आभासी माध्यमों पर विगत दिनों जमकर सक्रिय रहा। मेरा धेय इस मामले को गहराई से जानना था और आमजन इस मुद्दे पर क्या सोच रहा है उसकी गहराई से जानकारी इकट्ठा करना था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा लिए गए निर्णय से उत्पन्न स्थिति की जानकारी के लिए मैं बाजार के कुछ व्यापारियों से भी बात की। साथ ही भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पारंपरिक समर्थकों के पास जाकर उनका मन्तव्य जानने की कोषिष की। कुल मिलाकर मोदी के इस निर्णय से आम जनता खुष दिखी लेकिन सबका यही कहना था कि इस निर्णय को लागू करने के लिए जो रास्ता अपनाया गया है, वह बेहद खतरनाक है। कुछ लोगों का तो यहां तक कहना है कि प्रधानमंत्री के इस निर्णय से न केवल तात्कालिक परिणाम नकारात्मक आएंगे अपितु इसका दूरगामी प्रभाव भी देषहित में नहीं होगा। इस मामले पर मेरा भी ऐसा ही कुछ सोचना है। मैं व्यक्तिगत रूप से यह मानता हूं कि प्रधानमंत्री के द्वारा लिया गया यह निर्णय आनन-फानन का निर्णय है। बिना किसी पूर्व और पूर्ण तैयारी के इसकी घोषणा की गयी जो न केवल अलोकतांत्रिक है अपितु इससे अ

समस्तीपुर की विशेषता और संक्षिप्त इतिहास

समस्तीपुर भारत गणराज्य के बिहाप्रान्त में दरभंगा प्रमंडल स्थित एक शहर एवं जिला है। समस्तीपुर के उत्तर में दरभंगा, दक्षिण में गंगा नदी और पटना जिला, पश्चिम में मुजफ्फरपुर एवं वैशाली, तथा पूर्व में बेगूसराय एवं खगड़िया जिले है। यहाँ शिक्षा का माध्यम हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी है लेकिन बोल-चाल में बज्जिका और मैथिली बोली जाती है। मिथिला क्षेत्र के परिधि पर स्थित यह जिला उपजाऊ कृषि प्रदेश है। समस्तीपुर पूर्व मध्य रेलवे का मंडल भी है। समस्तीपुर को मिथिला का प्रवेशद्वार भी कहा जाता है। नामाकरण समस्तीपुर का परंपरागत नाम सरैसा है। इसका वर्तमान नाम मध्य काल में बंगाल एवं उत्तरी बिहार के शासक हाजी शम्सुद्दीन इलियास ((१३४५-१३५८ ईस्वी) के नाम पर पड़ा है। कुछ लोगों का मानना है कि इसका प्राचीन नाम सोमवती था जो बदलकर सोम वस्तीपुर फिर समवस्तीपुर और समस्तीपुर हो गया। इतिहास समस्तीपुर राजा जनक के मिथिला प्रदेश का अंग रहा है। विदेह राज्य का अंत होने पर यह वैशाली गणराज्य का अंग बना। इसके पश्चात यह मगध के मौर्य, शुंग, कण्व और गुप्त शासकों के महान साम्राज्य का हिस्सा रहा। ह्वेनसांग के व

भारतीय बहुलतावाद का प्रतिनिधि चिंतन है सूफीवाद

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कलीमुल्ला खान विगत दिनों महान हिन्दूवादी विद्वान और कांग्रेस के नेता डोगरा राज परिवार से संबंधित लेखक करण सिंह जी एक आलेख पढ़ने को मिला। आलेख इतना संतुलित और व्यवस्थित लगा कि उसकी चर्चा करना मैं उचित समझता हूं। करण सिंह जी हिन्दू दर्षन के आधिकारिक विद्वान माने जाते हैं लेकिन इस आलेख ने यह साबित कर दिया कि वे न केवल हिन्दू दर्षन के विद्वान हैं अपितु संपूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले दर्षन सूफीवाद पर भी वे अपनी पकड़ रखते हैं। लेखक करण सिंह के अनुसार सूफीवाद भारत की हजारों साल पहले की बहुलतावादी परंपराओं के अनुकूल है और इसी दर्षन में संपूर्ण भारत के प्रतिनिधित्व की क्षमता भी है। वे कहते हैं कि हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जहां कई मोर्चों पर तरक्की के बावजूद भी एक बड़ा विरोधाभास-सा बना हुआ है। यहां स्वतंत्र प्रांतों के अंदर राजनीतिक, आर्थिक और धार्मिक भाग हैं, जो आपसी संघर्ष में शामिल रहे हैं, उन्होंने दुनिया के महान धर्मों के प्रतिनिधियों को एक साथ लाने के लिए इसकी विभिनन शाखाओं में मैत्रीपूर्ण बातचीत करने की योजना बनाई है। यह किसी विषेष धर्म की श्रेष्ठता को साबित करने का प्रयास