अफगान पर मुकम्मल चर्चा के लिए अमृतसर में जुटेंगे दुनियाभर के कूटनीतिज्

गौतम चौधरी,
एषिया की स्थाई शांति के लिए अफगानिस्तान में शांति जरूरी,

आगामी तीन दिसंबर से एषिया का दिल कहे जाने वाले अफगानिस्तान पर मुकम्मल चर्चा करने के लिए दुनियाभर के कूटनितिज्ञ अमृतसर में एकत्रित हो रहे हैं। अफगानिस्तान के मुद्दे पर पहले भी कई सम्मेलन हो चुके हैं। दरहसर अफगानिस्तान की शांति को लेकर सर्वप्रथम सन 2011 में तुर्की के इस्लाम्बुल में एक सम्मेलन आयोजित किया गया था। उस सम्मेलन को इस्ताम्बुल प्रोसेस के नाम से जाना जाता है। बाद में इस सम्मेलन को हॉर्ट ऑफ एषिया के नाम से जाना जाने लगा।
ऐसा ही सम्मेलन अमृतसर से पहले टर्की के इस्ताम्बुल, अफगानिस्तान के काबुल, कज्जाकिस्तान के अलमाती, चीन के बिजिंग, पाकिस्तान के इस्लामाबाद और भारत स्थिति नई दिल्ली में हो चुका है। इस बार के इस सम्मेलन में प्रमुख मुद्दा अफगानिस्तान की शांति के साथ ही साथ मध्य एषियायी देषों के विकास का भी रहने वाला है। तेजी से बदल रही विष्व कूटनीति का प्रभाव भी इस सम्मेलन पर स्पष्ट रूप से देखने को मिल रहा है। जहां एक ओर भारत और पाकिस्तान अपनी अपनी सीमा के अंदर रहकर एक दूसरे पर सैन्य आक्रमण कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर इस सम्मेलन में दोनों देष के कूटनीतिज्ञ आपसी तालमेल पर चर्चा भी करने वाले हैं। क्योंकि अफगानिस्तान की सलामती तभी संभव है जब भारत और पाकिस्तान सही मन से अफगानिस्तान को सहयोग करेगा। भारत और पाकिस्तान में युद्ध जैसी स्थिति जबतक बनी रहेगी तबतक अफगानिस्तान में स्थाई शांति की संभव नहीं है। दूसरी बात यह है कि चाहे वह इरान हो, चाहे चीन या भारत-पाकिस्तान, मध्य एषिया में प्रवेष करने के लिए अफगानिस्तान ही इन देषों का रास्ता है। अफगानिस्तान में जबतक स्थाई शांति नहीं होगी तबतक एषिया में स्थाई शांति की संभावना बेहद कम है। इसलिए इस बार के सम्मेलन में अफगानिस्तान के साथ ही साथ मध्य ऐषिया, भारत, पाकिस्तान, इरान आदि देषों में शांति, सुरक्षा और विकास पर मुकम्मल चर्चा होने की पूरी संभावना है। हालांकि वर्तमान में भारत और पाकिस्तान के बीच तो तलवारें खिंची हुई है लेकिन सूत्रों की मानें तो इस सम्मेलन में पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज आ रहे हैं, तो एक संभावना यह भी बन रही है कि इस सम्मेलन के माध्यम से भारत और पाकिस्तान के बीच फिर से शांति प्रक्रिया पर वार्ता संभव है। खासकर इस सम्मेलन का एक मात्र लक्ष्य, एषिया का दिल कहे जाने वाले अफगानिस्तान को शांत और व्यवस्थित किया जाना है। लेकिन इसके साथ ही साथ अन्य पड़ोसी देषों की भूमिका पर भी इस सम्मेलन में विचार किया जाएगा। यही नहीं इस सम्मेलन में संबंधित देषों के बीच व्यापर और अन्य सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर भी चर्चा की संभावना दिख रही है।
अफगानिस्तान के बारे में सामान्य सोच यह है कि यह देष विगत कई शताब्दियों से अषांत है। कभी मध्य एषिया से आने वाले मंगोलों ने इस देष को परेषान किया तो कभी इस्लाम के आक्रांताओं ने इसे आक्रांत किया। कुल मिलकार यह देष खुद में बेहद शांतिप्रिय देष रहा है। यदि भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखें तो जबतक अफगानिस्तान मजबूत और खुद पर आश्रित रहा तबतक हिन्दुस्तान की संस्कृति और स्वतंत्रता अक्षुन्न रही लेकिन जैसे ही हिन्दुकुष और सुलेमान के पर्वत पर विदेषी आक्रांताओं का प्रभाव जमा भारत भी लहु हुआन हो गया। इसलिए यदि भारतीय नजर से देखें तो अफगानिस्तान को बचाना और उसे षांत रखना भारत के लिए हित में है। अफगानिस्तान तभी सुरक्षित और शांत रहेगा जब पाकिस्तान, चीन, कज्जाकिस्तान, अजरबैजान, सउदी अरब, तुर्की, रूस, इरान, ब्रितान आदि देष उसे शांत रहने देगा। हालांकि अफगानिस्तान में इस्लामिक आक्रम के बाद ही समस्या प्रारंभ हो गयी थी लेकिन बीच के कुछ शताब्दियों में यहां शांति बनी रही। जब फिरंगी भारत में आए और उन्होंने अपने साम्राज्य का विस्तार किया तो उसे सबसे बड़ी चुनौती अफगानिस्तान से ही महसूस हुई और उन्होंने अफगानिस्तान के साथ षडयंत्र करना प्रारंभ कर दिया। इसके बाद से अफगानिस्तान लगातार युद्ध का मैदान बना हुआ है। एषिया से अंग्रेजों के बाने के बाद साम्यवादी यूनिया-यूनियन ऑफ सोवित सोषलिस्ट रिपब्लिक ने अपनी सेना अफगानिस्तान भेज दी। साम्यवादी रूस की रणनीति को काउंटर करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व वाला नौर्थ अटलांटिक ट्रेड ऑर्गेनाइजेषन ने पाकिस्तान को उकसाकर अफगानिस्तानी युवाओं को इस्लाम के नाम पर भड़का दिया और तालिबान के माध्यम से अफगानिस्तान को एक इस्लामिक देष के रूप में ढालने का प्रयास किया। यह बहुत दिनों तक चलने वाला नहीं था और बाद में वही तालिबान अमेरिका के लिए भस्मासुर साबित होने लगा। फिर अमेरिका और पष्चिमी देषों ने नई रणनीति अपनाई और तालिबानी स्वरूप को ध्वस्त किया। अब विगत कई वर्षों से अफगानिस्तान में शांति है। अफगानिस्तानी विकास के पथ पर चलना चाहते हैं। यह केवल भारत के लिए ही नहीं यह पूरे एषिया के लिए सकारात्मक संकेत है। यदि अफगानिस्तान अषांत रहा तो पूरा ऐषिया अषांत रहेगा। अब यह समझ सबको आने लगी है। अफगानिस्तान में चीन की भी रूचि है। पाकिस्तान तो पहले से अफगानिस्तान में रूचि दिखा रहा है। बदल रहे विष्व परिदृष्य में रूस को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इरान के साथ ही साथ सउदी अरब और मध्य एषिया के देष भी इस रणनीति से सहमत हैं कि अफगानिस्तान में शांति होनी चाहिए। यदि अफगानिस्तान शांत होता है तो यह भारत-पाकिस्तान के लिए भी हितकर होगा।
ऐसे ही कुछ मुद्दों को सोच कर सन् 2011 में इस्लाबुल, तुर्की में एक सम्मेलन आयोजित किया गया। उसमें जमकर अफगानिस्तान पर चर्चा हुई इसे इस्ताम्बुल प्रोसेस के नाम से जाना जाता है। अमृतसर में तीन दिसंबर से होने वाले हार्ट ऑफ एषिया सम्मेलन का यह सातवां पराव है। 02 नवम्बर 2011 को इसका पहला सम्मेलन तुर्की के इस्ताम्बुल में हुआ था। दूसरा सम्मेलन 14 जून 2012 को काबुल, अफगानिस्तान में हुआ। तीसरा सम्मेलन 26 अप्रैल 2013 को अलमाती, कजाकिस्तान में हुआ। चौथा सम्मेलन 31 अक्टूबर 2014 को बिजिंग, चीन में हुआ। पांचवा सम्मेलन 09 दिसम्बर 2015 को इस्लामाबाद में हुआ। छठा सम्मेलन 26 अप्रैल 2016 को नई दिल्ली, भारत में हुआ और यह सातवा सम्मेलन भी भारत में ही हो रहा है।
हॉर्ट ऑफ एषिया का सांगठनिक स्वरूप पूर्णरूपेण सरकारी है। इसके सदस्य देषों की सरकारें इसे संचालित कर रही है-जिसमें भारत सरकार भी शामिल है। अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, चीन, इरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, सउदी अरब, तजाकिस्तान, तुर्की, तुर्कमेनिस्तान, युनाइटेड अरब अमिरात और अजरबैजान कुल 14 देष इसके सदस्य हैं। इसके अलावा अस्ट्रेलिया, कनाडा, डेनमार्क, मिश्र, यूरोपियन यूनियन, फ्रांस, जर्मनी, फिनलैंड, इराक, इटली, जापान, नार्वे, पोलैंड, स्पेन, स्वीडेन, युनाइटेड किंगडम और संयुकत राज्य अमेरिका इसके सहयोगी सदस्य हैं।
कुल मिलाकर हम जिसे उप-गण-स्थान यानि देवों की धरती के नाम से जानते हैं वहां अब स्थाई शांति के संकेत मिलने लगे हैं। क्योंकि दुनिया के देषों को अब यह लगने लगा है कि जबतक अफगानिस्तान में शांति नहीं होगी तबतक एषिया शांत नहीं हो सकता है। चीन और रूस इस योजना में बड़ी भूमिका निभा रहा है। इससे भारत और पाकिस्तान दोनों को लाभ होता दिख रहा है। संभावना यह भी बन रही है इस मंच के माध्यम से एक बार फिर भारत और पाकिस्तान दोस्ती के लिए हाथ बढ़ा दे। यह दोनों ही देषों के लिए हितकर होगा।

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