असफलताओं को छुपाने का प्रयास या फिर इतिहास बनाने की योजना

गौतम चौधरी
अभी पूरे देष में बस एक ही बात की चर्चा हो रही है। चौक-चौपालों से लेकर संसद भवन तक नोटबंदी पर गहमागहमी है। कुछ विपक्ष में हैं तो अधिकतर लोग यह कह रहे हैं कि मोदी सरकार ने बहुत बढि़या काम किया है। काम बढि़या है या घढि़या इसपर राय देना जल्दबाजी होगा लेकिन इतना तो तय है कि देष की अधिकतर जनता इस निर्णय से खुष दिख रही है।
नोट बंदी को कुछ समाचार माध्यम ने मुद्रा आपातकाल की संज्ञा दी है लेकिन कुछ ऐसे भी समाचार माध्यम हैं जिन्होंने इसे मुद्रा अनुषासन कहकर पुकारा है। जिस प्रकार आपातकाल के समय, इधर जयप्रकाष नारायण जी इंदिरा जी के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे तो उधर विनोवा भावे आपालकाल को अनुषासन पर्व बता रहे थे। ठीक उसी प्रकार अभी अपने देष में दो प्रकार के चिंतनों में देष के बुद्धिजीवी विभाजित दिख रहे हैं। कुछ तटस्थ भी हैं लेकिन वे भी सरकार की तैयारियों पर प्रष्न खड़ा करने लगे हैं। जनता स्वाभाविक रूप से परेषान है लेकिन उसको इस बात की तसल्ली है कि जो लोग कलतक नोटों की गड्डियां गिनते नहीं थकते थे वे भी उनके साथ कतार में खड़े हैं। इन तमाम चर्चाओं के बीच मोदी सरकार ने बड़ी सूनियोजित तरीके से देष की जनता का ध्यान अपनी सरकार की असफलताओं से हटाने में कामयाब रही है।
विपक्ष और मीडिया को भी सरकार ने नोटबंदी की बहस वाले दायरे में समेट कर रख दिया है। अब सारे मुद्दे गायब से हो गए हैं। मसलन मंहगाई का कोई मुद्दा नहीं रहा। बेरोजगारी कोई मुद्दा नहीं रहा। सीमा पर बढ़ रहे आतंकी दबाव का कोई मुद्दा नहीं रहा। किसानों के आत्महत्या का कोई मुद्दा नहीं रहा। विकास में मोदी सरकार की विफलताओं का कोई मुद्दा नहीं रहा। अयोध्या में रामलला के मंदिर का कोई मुद्दा नहीं रहा। जाट, गुर्जर, पटेल, पाटिल के आरक्षण और नदी के पानी के विभाजन का अब कोई मुद्दा नहीं रहा। भारतीय सेना का पष्चिमी कमान छः महीनों के लिए खाली क्यों रहा, अब कोई सवाल नहीं पूछेगा। रेलवे बोर्ड के सदस्यों की संख्या क्यों घटा दी गयी, अब यह सवाल कोई नहीं उठाएगा। प्रवर्तन निदेषालय के प्रधान की सेवा विस्तार पर अब कोई सवाल खड़ा नहीं करेगा और न ही रेलवे बोर्ड के चेयरमैंन के सेवा विस्तार पर प्रष्न किया जाएगा। पूरा देष केवल और केवल नोटबंदी की चर्चा में व्यस्त हो गया है। यह चर्चा क्या पता सरकार को कुछ फायदा दिला दे लेकिन इस निर्णय से इतना तो तय हो गया है कि अब देष केवल और केवल एक ही चर्चा करेगा और वह है नोटबंदी की।
इसे सरकार की सफलता कहें या असफलता लेकिन सरकार के मुखिया की चतुराई इसमें साफ झलकती है। इस चतुराई को आप कुछ भी कह सकते हैं लेकिन असफलता तो असफलता है। इन मामलों में प्रतिपक्ष की भूमिका भी बेहद कमजोर रही है। पहले से सरकार को घेरने में प्रतिपक्ष नाकाम रहा है। जैसे जीएसटी का मामला आया। प्रतिपक्ष सरकार के उपर दबाव पर दबाव बनाती रही लेकिन जनता को यह बताने में वह नाकाम रही कि आखिर जीएसटी के खिलाफ वह क्यों है। भारतीय सेना का पष्चिमी कमान स्वतंत्र भारत में संभवतः पहली बार छः महीने के लिए खाली रहा। सूत्रों पर भरोसा करें तो इस संदर्भ की संचिका छः महीने तक प्रधानमंत्री कार्यालय में लंवित रही लेकिन इस मामले पर भी प्रतिपक्ष मौन रहा। सरकार ने बिना किसी पूर्व तैयारी के योजना आयोग को भंग कर दिया। इसके कारण केन्द्र के द्वारा जो फंड राज्यों को ट्रांस्फर किए जाते थे, वह कई महीनों तक बाधित रहा। मैं उन दिनों झारखंड के प्रवास पर था। मुझे एक पत्रकार मित्र ने बताया कि इसके कारण कई महीनों तक झारखंड सरकार वित्तीय संकट से जूझती रही। उस मुद्दे पर भी प्रतिपक्ष की भूमिका सवालों के घेरे में रही। ऐसे तो कई विभाग के प्रधान अधिकारी सेवा विस्तार पर हैं लेकिन रेलवे बोर्ड के अधिकारी को सेवा विस्तार पर विस्तार दिया जा रहा है। इसके कारण जो अधिकारी उनके ठीक नीचे हैं उनमें एक नए प्रकार का डर उत्पन्न हो रहा है, जो भारतीय शासन प्रणाली के लिए बेहद खतरनाक है। प्रवर्तन निदेषालय का भी वही हाल है। देष की नौकरषाही बेहद दबाव में है। केन्द्र में तैनात वरिष्ठ अधिकारी तो अब दबी जुवान यह कहने लगे हैं कि सरकार एक ही प्रभारी अधिकारी से पूरा देष चला देगी। इस मुद्दे पर भी प्रतिपक्ष मौन है।
इस बीच सरकार ने एक और नया फैसला लिया है, जो आने वाले समय में जनता के लिए घातक सिद्ध होगा। कर्मचारियों के खिलाफ यदि कोई केस करना हो तो संबंधित अधिकारी से पूछना पड़ेगा। वह जब आदेष देगा तभी संबंधित कर्मचारी के खिलाफ केस दर्ज किया जा सकता है। यह किसी न किसी रूप से देष की न्याय प्रणाली के खिलाफ और आम जन के अधिकार का हनन है। यदि एक आम व्यक्ति के खिलाफ मामला दर्ज करने की प्रक्रिया सामान्य है तो फिर कर्मचारी के खिलाफ विषेष सुविधा क्यों? अब ये सवाल उठने लगे हैं। दूसरी ओर देखें तो आज भी मंहगाई घटने का नाम नहीं ले रहा है। रोजमर्रे के सामान का बाजार भाव दिव व दिन एक दो रूपये चढ ही जाता है। देखते ही देखते आंटे पर चार रूपये दाम बढ़ा दिया गया। कहा जा रहा है कि भारतीय खाद्य निगम की ओर से गेहूं की आपूर्ति ही विलम्ब से हो रही है। यही कारण है कि बाजार में गेहूं की कमी हो गयी है। दाल की कीमत आसमान छू रही है। चावल के दाम चढ ही रहे हैं। मोदी सरकार में पेट्रोलियम पदार्थें के दाम घटने का नाम ही नहीं लेता। थोड़ कम होता है कि फिर बढ़ा दिया जाता है। ऐसे में कुछ लोगों के उस आरोप को बल मिलने लगा है कि सरकार ने अपनी असफलता को छुपाने के लिए नोट बंदी का मास्टर स्ट्रोक लगाया है।
कुल मिलाकर मामला चाहे जो हो अभी तो पूरा देष नोट बंदी की चर्चा में व्यस्त है। कुछ लोग खुष हैं तो कुछ बेहद दुखी हैं। समाचार माध्यमों पर बहस जारी है। इस बीच सरकार को यह साबित करने का मौका तो दिया ही जाना चाहिए कि वह निहायत शराफत से जनता के लिए न केवल सोच रही है अपितु काम भी करने लगी है। कोई चाहे कुछ भी कहे लेकिन इतना तो तय है कि मोदी सरकार का यह नोट बंदी वाला प्रयोग यदि सफल हो गया तो यह इतिहास के स्वर्णाक्षरों में दर्ज होगा और यदि मोदी हार गए तो कहीं के नहीं रह पाएंगे।

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