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Showing posts from November, 2015

आत्ममुग्धता को छोड़ आत्ममंथन करे संगठन और पार्टी

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कार्यशैली और सैद्धांतिक विचलन के कारण बिहार में हारी भाजपा गौतम चौधरी बिहार विधानसभा का परिणाम जैसा अनुमान लगाया गया था वैसा ही आया है। इस परिणाम में एक बात जरूर नयी है कि लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल अपना खोया जनाधार एक बार फिर से प्राप्त कर लिया है। यदि सतही तौर पर कहा जाये तो बिहार का यह चुनाव नीतीश कुमार और नरेन्द्र मोदी के बीच की लड़ाई था लेकिन गहराई से देखा जाये तो यह लड़ाई क्रूड़ पूंजीवाद और समाजवादी पूंजीवाद के बीच लड़ी जा रही थी। नि:संदेह इस चुनाव में बिहार की जनता ने क्रूड़ पूंजीवाद को नकार दिया और समाजवादी पूंजीवाद को अपना लिया है। हालांकि चुनाव जीतने के लिए भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोक दी थी लेकिन चुनाव परिणाम उसके विपरीत आया। इसके कारणों की समीक्षा भाजपा के अंदर भी हो रही होगी लेकिन मेरी समझ में जो बातें आ रही हैं वह भाजपा का ईवेंट और मीडिया मैनेजमेंट वाली रणनीति इस बार काम नहीं आयी और परिणाम भाजपा के लिए अप्रत्याशित हो गया।  मैंने पहले भी लिखा था कि भाजपा लगातार अपनी रणनीति बदल रही है और जो योद्धा रणभूमि में घोड़ा बदलता है, उस योद्धा को बढिया योद्धा न

नीतीश के राजनीतिक कौशल और प्रचार-वार से भाजपा नेताओं के छूटे पसीने

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गौतम चौधरी जीते तो बिहार का सत्ता-सुख, हारे तो मोदी-विरोधी ध्रुव के कप्तान बिहार के चौथे चरण का चुनाव संपन्न हो गया। अब सबसे अंतिम चरण, यानि 05 नवम्बर के चुनाव की तैयारी होने लगी है। कुल मिलकार देखें तो थोड़ी स्थिति भी स्पष्ट होती दिख रही है। चाहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हों या भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, दोनों ने बिहार चुनाव में बड़ा मेहनत किया है। अब स्थानीय भाजपायी कितना मेहनत किये यह तो पता नहीं लेकिन बिहार विधानसभा के इस चुनाव में केन्द्रीय मंत्रिमंडल के लगभग सभी सदस्यों ने अपनी ताकत लगाई है। बिहार के लोगों की मानें तो बिहार में पूरे चुनाव प्रचार के दौरान आधा केन्द्रीय मंत्रिमंडल बिहार में ही डटा रहा। सूचना के अनुसार भाजपा, इस चुनाव के लिए गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा, छत्तीसगढ एवं उत्तर प्रदेश के सैंकड़ों कार्यकत्र्ता और नेताओं को लगा रखी है। इसके अलावा कुछ पेशेवर लोगों को भी चुनाव प्रचार के लिए लगाया गया है। भाजपा के लिए इस चुनाव की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई एक दिन में तीन-तीन सभाओं को