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Showing posts from September, 2015

तो पंचायत चुनाव से भाग रही है हरियाणा सरकार?

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गौतम चौधरी हरियाणा पंचायती राज अधिनियम संशोधन विधेयक पर उठा सवाल विगत दिनों माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने हरियाणा सरकार के द्वारा हालिया लागू किये गये पंचायती राज संशोधन अधिनियम विधेयक, 2015 को नकार दिया और उसे एक तरह से गैरसम्वैधानिक घोषित कर दिया। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले को हरियाणा सरकार की ओर से चुनौती मिलने की संभावना जताई जा रही है। वही प्रतिपक्षी पार्टियों ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले का स्वागत किया है। प्रतिपक्षी दलों की दलील है कि जब विधानसभा चुनाव, लोकसभा चुनावों में शैक्षणित योग्यता को आधार नहीं बनाया गया है, तो स्थानीय निकायों के चुनाव में शैक्षणिक आधार का जोड़ा किसी कीमत पर जायज नहीं है। लिहाजा यह स्थानीय लोकतांत्रिक प्रशासन को कमजोर करने की सरकारी साजिश है। इस मामले पर प्रतिपक्षी पार्टियों का कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय ने जो फैसला दिया है, उससे स्थानीय लोक प्रशासन में लोकतंत्र मजबूत होगा, जिसे भारतीय जनता पार्टी की वर्तमान सरकार कमजोर करना चाह रही है। हालांकि इस मामले में सरकार, पैर पीछे करने की मन:स्थिति में नहीं दिख रही है। सर्वोच्च न्याया

तो क्या प्रधानमंत्री और भाजपा की लोकप्रियता कम हो रही है?

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गौतम चौधरी हवा में नहीं धरातल पर उतरने की जरूरत  कथित रूप से जीवन के प्रथम चरण में चाय बेचने का व्यवसाय करने साले भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई दामोदर दास मोदी का चंडीगढ में शुभागमन न हुआ कि कई प्रकार के विवाद मानों मुर्दाघर से जीवित होकर सुर्खियां बटोरने लगे। मामला कोई बड़ा नहीं है, छोटे-छोटे मुद्दे हैं, लेकिन हैं बड़े महत्वपूर्ण। कि मोदी जी के आगमन पर चंडीगढ संघ राज्य क्षेत्र के सारे विद्यालय बंद करा दिये गये, कि अस्पताल में जाने से लोगों को रोका गया, कि शमशान घाट को बंद करा दिया गया, कि यातायात के परिचालन को रोक दिया गया, आदि आदि। उक्त ये तमाम घटनाएं घटी, लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि ये घटनाएं केवल नरेन्द्र भाई के प्रधानमंत्रित्व काल में ही घट रही है या इससे पहले भी विशिष्ट व्यक्तियों के आगमन पर इस प्रकार की घटनाएं घटती रही है?  यदि आंकड़े उठाकर देखें तो लगभग प्रतिदिन चंडीगढ में किसी न किसी विशिष्ट व्यक्ति का आगमन जरूर होता है और उनके लिए उनके ओहदे के अनुकूल व्यवस्था खड़ी की जाती है। उस व्यवस्था में आम-जन को कभी थोड़ा तो कभी ज्यादा कष्ट ङोलना पड़ता है। हां ये बात तय है कि

जातिगत आरक्षण की फिर से समीक्षा होनी चाहिए : स्वामी चिन्मयानंद

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गौतम चौधरी भारत में लम्बे समय से संतों की परंपरा रही है। कुछ संतों ने व्यक्तिगत मोक्ष पर जोर दिया, तो कुछ संतों ने समाज को ही अपना भगवान मान लिया। समाज को भगवान मानने वालों में भी कई तरह की साधना प्रचलित हुई। कुछ ने समाज की प्रत्यक्ष सेवा की तो कुछ ने समाज को परोक्ष रूप से सहयोग किया। स्वास्थ्य, शिक्षा, संस्कृति, अर्थ, इतिहास, भूगोल, विज्ञान, साहित्य, भाषा, सुरक्षा आदि न जाने कितने मानवीय आयामों पर काम करने वाले संत भारत में मिल जाते हैं। ऐसे ही एक संत हैं, स्वामी चिन्मयानंद जी जिन्होंने राजनीति के माध्यम से समाज सेवा का बीड़ा उठाया और गृह राज्यमंत्री तक के पद को सुशोभित किया। कहते हैं, राजनीति की काली कोठरी में किसके उपर कालिख न लगी, लोगों ने तो स्वामी विवेकानंद तक को ना छोड़ा और उनके उपर भी आरोप मढ दिये। आदमी का बस चले तो सूर्य पर भी थूक दे, सो स्वामी चिनमयानंद पर भी कई लोगों ने कई तरह के आरोप लगाए लेकिन वे सारे आरोप रेत के ढेर की तरह ढहते चले गये। मसलन स्वामी जी ने अपने जीवन में कई महान कार्य किये और आज भी अध्यात्म एवं समाज सेवा को साथ लेकर चलने वाले विरले संतों में उनकी गिनती

अपनी सुरक्षा के लिए नेपाल में हस्तक्षेप करे भारत

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गौतम चौधरी हिन्दू राष्ट्र की आड़ में भारत समर्थकों पर प्रहार विगत दिनों अपने अधिकार की मांग कर रहे तराई में मधेशियों पर एक बार फिर से गोर्खा साम्राज्यवादी सेना ने आक्रमण किया, जिसमें कम से कम पांच लोग मारे गये। विगत कई दिनों से तराई और थरहट क्षेत्र के लोगों का आन्दोलन चल रहा है, जिसे जान-बूझकर सरकारी सेना ने हिंसक बनाया और फिर उसके खिलाफ खुद हिंसा पर उतारू हो गयी। हालिया आन्दोलन के दौरान अभीतक थरहट और तराई में कम से कम 50 लोगों की जान जा चुकी है, 200 से अधिक लोग घायल हुए हैं और सरकारी सेना द्वारा कई लोगों के घर जला दिये गये हैं। थारू और मधेशियों पर हो रहे संगठित गोर्खा सैनिकों के आक्रमण के बीच आश्चर्य की बात यह है कि जो भारत सरकार उबेकिस्तान और मध्य-पूरप के देशों पर अप्रत्याशित तरीके से सम्वेदनशील हो जाती है, वही तराई में सरकारी हिंसा का शिकार हो रहे मधेशी, जो सदा से भारत के हितों की चिंता करते रहे हैं, उसके प्रति भारत की वर्तमान सरकार गैरजिम्मेदाराना रुख अख्तियार कर रही है।  इन दिनों नेपाल में नये संविधान को अंतिम रूप दिया जा रहा है। नेपाली संविधान के अनुसार देश में कुल 14 र