जातिगत आरक्षण की फिर से समीक्षा होनी चाहिए : स्वामी चिन्मयानंद


गौतम चौधरी
भारत में लम्बे समय से संतों की परंपरा रही है। कुछ संतों ने व्यक्तिगत मोक्ष पर जोर दिया, तो कुछ संतों ने समाज को ही अपना भगवान मान लिया। समाज को भगवान मानने वालों में भी कई तरह की साधना प्रचलित हुई। कुछ ने समाज की प्रत्यक्ष सेवा की तो कुछ ने समाज को परोक्ष रूप से सहयोग किया। स्वास्थ्य, शिक्षा, संस्कृति, अर्थ, इतिहास, भूगोल, विज्ञान, साहित्य, भाषा, सुरक्षा आदि न जाने कितने मानवीय आयामों पर काम करने वाले संत भारत में मिल जाते हैं। ऐसे ही एक संत हैं, स्वामी चिन्मयानंद जी जिन्होंने राजनीति के माध्यम से समाज सेवा का बीड़ा उठाया और गृह राज्यमंत्री तक के पद को सुशोभित किया। कहते हैं, राजनीति की काली कोठरी में किसके उपर कालिख न लगी, लोगों ने तो स्वामी विवेकानंद तक को ना छोड़ा और उनके उपर भी आरोप मढ दिये। आदमी का बस चले तो सूर्य पर भी थूक दे, सो स्वामी चिनमयानंद पर भी कई लोगों ने कई तरह के आरोप लगाए लेकिन वे सारे आरोप रेत के ढेर की तरह ढहते चले गये। मसलन स्वामी जी ने अपने जीवन में कई महान कार्य किये और आज भी अध्यात्म एवं समाज सेवा को साथ लेकर चलने वाले विरले संतों में उनकी गिनती होती है। विगत दिनों हरिद्वार गया था। भ्रमण के दौरान भूपतवाला स्थित परमार्थ आश्रम चला गया। इत्तफ़ाकन उनसे मुलाकात हो गयी। लम्बी बात होती रही। कई मुद्दों पर स्वामी जी ने बेवाक टिप्पणी की लेकिन उन्होंने कहा, ये बातें बस आपकी जानकारी के लिए था, छापने के लिए नहीं। एक पत्रकार होने के नाते उन तथ्यों को मैं सार्वजनिक नहीं करूंगा, परंतु पूवरेत्तर और भारत की आंतरिक, बाह्य सुरक्षा पर जो उन्होंने मेरे साथ टिप्पणियों को साझा किया उसे मैं सुधी पाठकों के सामने प्रस्तुत कर रहा हूं।

स्वामी जी स्वास्थ्य कैसा है?
फिलहाल बढ़िया तो नहीं ही कहा जा सकता है। विगत दिनों आंख का आप्रेशन कराया। आजकल आराम कर रहा हूं। आपकी जानकारी में उन दिनों के बिहार में मैं प्रवास पर था। धनवाद में किसी कार्यक्रम के लिए जा रहा था कि आंख में कोयले की छाई पड़ गयी। पहले तो कोई परेशानी नहीं होती थी लेकिन विगत कुछ दिनों से परेशानी होने लगी थी। विगत दिनों एम्स के राजेन्द्र आंख शोध संस्थान में आप्रेशन कराया। अब थोड़ी राहत है, आप बताइये इधर कैसे आना हुआ? मेरी तो आयु भी हो चुकी है और अब कोई राजनीतिक गतिविधि भी नहीं रही इसलिए आराम ही है, और क्या!

स्वमी जी आजकल आप क्या कर रहे हैं, कोई राजनीतिक गतिविधि या पार्टी के लिए कोई काम?
देखिए जब हमारे नेता को ही कोई काम नहीं मिल रहा है तो हम लोगों की क्या स्थिति होगी उसे आप हमसे बेहतर समझ सकते हैं। अब हमलोगों की जरूरत पार्टी और संगठन दोनों को नहीं है इसलिए इन दिनों मैं बस केवल समाज सेवा में लगा हूं। कुछ आध्यात्मिक कार्य चलते रहते हैं। हमारे पास कई मंदिर है उसका रख-रखाव करना पड़ता है। साजांपुर में एक ही कैंपस में कई कॉलेजेज हैं, उसका भी बड़ा काम है। संतों की सेवा से बढकर और क्या हो सकता है। बीच-बीच में कुछ लोग सलाह लेने आ जाते हैं। सलाह देने में क्या जाता है। अब अपनी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा तो रही नहीं।

आप पूवरेत्तर के प्रभारी रहे हैं, प्रधानमंत्री जी जो नागा समस्या हल कर लेने का दावा कर रहे हैं उसमें कितनी सत्यता है?
प्रधानमंत्री जी को पूवरेत्तर के मामले में गुमराह किया गया है। जिस गुट के साथ वे समझौता कर रहे हैं उस गुट की मनोवृत्ति जगजाहिर है। पूवरेत्तर की समस्या संवेदनशील समस्या है। राष्ट्र की सुरक्षा से जुड़ी हुई बात है। उन्हें कम से कम अपने लोगों से जरूर पूछना चाहिए। यदि वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से राय लिए होते तो मैं समझता हूं वे थोड़ी संजीदगी दिखाते। यदि आप कहें कि इस मामले में आरएसएस से राय लेकर ही प्रधानमंत्री वार्ता के लिए तैयार हुए हैं तो मुङो इस संदर्भ में ज्यादा जानकारी नहीं है। जब भाजपा का वहां कुछ भी वजूद नहीं था तो मैं वहां प्रभारी हुआ करता था। मैंने बोडो समस्या का समाधान करवाया। पूवरेत्तर में उल्फा बहुत ताकतवर था लेकिन भूटान सरकार से संधि कर वाजपेयी जी की सरकार ने उल्फा का कमर तोड़ दिया। नागा के दोनों गुटों के साथ हमारी सरकार ने भी एक समझौता किया था जो लगतार कई वर्षो तक प्रभावी भी रहा। मैं समझता हूं कि उस वार्ता की समीक्षा होनी चाहिए और इन दिनों जो प्रधानमंत्री नागा गुट के साथ वार्ता कर रहे हैं उसे सार्वजनिक किया जाना चाहिए। इतने बड़े मुद्दे पर कोई एक व्यक्ति कैसे फैसला ले सकता है। याद रखिए कश्मीर में भी भाजपा को मुंह की खानी पड़ेगी और पूवरेत्तर का भी मामला हाथ से निकल जाएगा।

इस संदर्भ में आपसे कोई राय भी ली गयी है क्या?
ना बिल्कुल नहीं। यदि मुझसे पूछते तो मैं दो तरह की नीति अपनाने की बात कहता। पहला ताकत और दूसरा राहत से। जो लोग मुख्यधारा में आना चाहते हैं उन्हें राहत दीजिए और जो बंदूक उठाकर अपने ही लोगों की हत्या कर रहे हैं उन्हें बराबर की टक्कर दी जानी चाहिए। सन् 1993 में 2623 बोडो आतंकियों ने मेरे सामने समर्पण किया था। देखिए देश के बाहर जिन आतंकवादियों की आस्था है उससे वार्ता करना कतई देश हित में नहीं होगा। एनएससीएन (आईएम) की रणनीति को समझने की जरूरत है। उसके साथ देशहित में वार्ता हो न कि उनके हितों को ध्यान में रखकर वार्ता हो।

स्वामी जी क्या बांग्लादेश के साथ भूमि समझौते के दौरान बांग्लादेशी घुसपैठियों का मामला नहीं उठाया जाना चाहिए था?
नि:संदेह उठाया जाना चाहिए। भारत में मुस्लिम जनसंख्या के बढोतरी में बांग्लादेशी घुसपैठियों की भी बड़ी भूमिका है। बिहार, बंगाल, असम और पूवरेत्तर में बड़े सुनियोजित तरीके से बांग्लादेशी मुस्लिम बस रहे हैं। दिल्ली, राजस्थान, मुम्बई आदि क्षेत्रों में भी बांग्लादेशी अप्रत्याशित तरीके से सक्रिय हो रहे हैं। यह एक बड़ी समस्या है और जब आप समझौता कर रहे हैं तो इस विषय को जरूर उठाया जाना चाहिए। हो सकता है प्रधानमंत्री की कोई मजबूरी होगी लेकिन यह देशहित में था और इस मामले को उठाकर वह अपनी बात मनवाने के लिए बांग्लादेश को मजबूर कर सकते थे।

आगे आपकी कोई राजनीतिक योजना?
हां है, समाज हित में मैं आरक्षण को लेकर एक बड़ा आन्दोलन खड़ा करने  की सोच रहा हूं। अभी उसपर कोई काम नहीं कर रहा हूं लेकिन बड़ी तसल्ली से इस मामले पर सोच रहा हूं। जातिगत आरक्षण हिन्दू समाज के लिए घातक है। इसपर न तो कोई संगठन सोच सकता है और न ही हमारी पार्टी सोचने की हिम्मत जुटा पाएगी। इसलिए मैं इसपर सोच रहा हूं और भविष्य में इसपर कुछ करने की योजना बनाउंगा। दूसरी मेरी योजना हिन्दुओं की  घट रही जनसंख्या पर जनजागरण करने की है। यह भी व्यक्तिगत स्तर पर ही होगा। इन दो विषयों पर गंभीरता से विचार कर रहा हूं। पहले चरण में आरक्षण और हिन्दू जनसंख्या पर सेमिनार आदि कराउंगा और दूसरे चरण में रचनात्मक आन्दोलन की योजना बनाउंगा। गंगा, राम मंदिर आदि मामलों पर बहुत लोग बहुत काम कर रहे हैं। ये दोनों अलग मामला है और हिन्दू समाज को दूर तक प्रभावित करने वाला मुद्दा भी है। मैं राष्ट्रधर्म के लिए काम करता रहा हूं। अब व्यक्तिगत या राजनीतिक कोई अपेक्षा नहीं रही। बस दो काम हाथ में लेना है, उसी में ज़िंदगी समाप्त हो जाएगी।

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