तो क्या प्रधानमंत्री और भाजपा की लोकप्रियता कम हो रही है?

गौतम चौधरी
हवा में नहीं धरातल पर उतरने की जरूरत 
कथित रूप से जीवन के प्रथम चरण में चाय बेचने का व्यवसाय करने साले भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई दामोदर दास मोदी का चंडीगढ में शुभागमन न हुआ कि कई प्रकार के विवाद मानों मुर्दाघर से जीवित होकर सुर्खियां बटोरने लगे। मामला कोई बड़ा नहीं है, छोटे-छोटे मुद्दे हैं, लेकिन हैं बड़े महत्वपूर्ण। कि मोदी जी के आगमन पर चंडीगढ संघ राज्य क्षेत्र के सारे विद्यालय बंद करा दिये गये, कि अस्पताल में जाने से लोगों को रोका गया, कि शमशान घाट को बंद करा दिया गया, कि यातायात के परिचालन को रोक दिया गया, आदि आदि। उक्त ये तमाम घटनाएं घटी, लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि ये घटनाएं केवल नरेन्द्र भाई के प्रधानमंत्रित्व काल में ही घट रही है या इससे पहले भी विशिष्ट व्यक्तियों के आगमन पर इस प्रकार की घटनाएं घटती रही है? 

यदि आंकड़े उठाकर देखें तो लगभग प्रतिदिन चंडीगढ में किसी न किसी विशिष्ट व्यक्ति का आगमन जरूर होता है और उनके लिए उनके ओहदे के अनुकूल व्यवस्था खड़ी की जाती है। उस व्यवस्था में आम-जन को कभी थोड़ा तो कभी ज्यादा कष्ट ङोलना पड़ता है। हां ये बात तय है कि मोदी जी के आगमन पर इस बार प्रशासन और उनकी पार्टी के लोगों ने थोड़ ज्यादा ही उछल-कूद मचा दिया, जिसके कारण इस बार चंडीगढ के लोगों को अघोषित आपातकाल जैसी स्थिति का सामना करना पड़ा। उपर से देखें तो इसमें दोष भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कम और स्थानीय व्यवस्थापकों का ज्यादा है लेकिन इस मामले का गहराई से अध्यन करे तो पूरा का पूरा दोष प्रधानमंत्री पर ही जाता है। हालांकि चंडीगढ में हुई घटना को भांपते हुए प्रधानमंत्री ने तुरंत सामाजिक अंतरताना पर अपनी टिप्पणी प्रस्तुत कर दी और कहा कि विद्यालय बंद कराने के मामले की मुकम्मल जांच कराई जाएगी। लिहाजा विगत दो दिनों से इस मामले पर चंडीगढ प्रशासन माथापच्ची भी कर रही है लेकिन जो हुआ उसे किसी कीमत पर जायज नहीं कहा जा सकता है। 

चंडीगढ के 187 विद्यालयों को बंद कराया गया था। इसके अलावे मौखिक रूप से चंडीगढ के सभी कर्मचारियों और विद्यालय के अध्यापकों को सख्त हिदायत दी गयी थी कि वे प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में जरूर उपस्थित हों। अधिकृत सूत्रों पर भरोसा करें तो विद्यालय के बंद कराने के पीछे शहर की सांसद महोदया किरण खेर जी ने जो तर्क दिया हैं, वह एकदम से गलत है। सच तो यह है कि भाजपा के नेताओं ने प्रशासन पर दबाव बनाया और प्रधानमंत्री की रैली के लिए भीड़ जुटाने हेतु बस की मांग की। अंतिम चरण में प्रशासन को स्कूल बस के अलावा और कोई विकल्प नहीं दिखा और प्रशासन ने आनन-फानन में विद्यालय बंद कराकर भाजपा के नेताओं के लिए बस की आपूर्ति करा दी। हालांकि जिस विकास और पवित्र कार्य के लिए प्रधानमंत्री चंडीगढ आए थे, अगले दिन मीडिया में उस बात की चर्चा बेहद कम हुई लेकिन इन विवादित विषयों को लेकर जबरदस्त माहौल बन गया। जबकि होना यह चाहिए था कि विवादित विषयों पर चर्चा थोड़ी कम होती और लोक कल्याण पर प्रधानमंत्री के काम की सराहना थोड़ी ज्यादा होती। इस विषय पर भी चंडीगढ के लोगों में जबरदस्त चर्चा चली और लोग यही कहते सुने गये कि विगत डेढ साल के दौरान नरेन्द्र मोदी ने खुद के द्वारा कोई योजना प्रारंभ नहीं की, बस पूर्ववर्ती डॉ. मनमोहन सिंह के द्वारा किये गये काम का ही उद्घाटन कर रहे हैं और अपने भाषण में यही बता रहे हैं कि उनकी सरकार के द्वारा यह काम कराया गया है।

भाजपा और प्रशासन के लोग चाहे जितने दावे कर लें लेकिन वास्तविकता यही है कि मोदी की इस बार की रैली ने साबित कर दिया है कि प्रधानमंत्री की लोकप्रियता में बड़ी तेजी से ह्रास हो रहा है। इस बात की चर्चा रैली के दौरान ही मंच से हुई और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन के घटक शिरोमणि अकाली दल के संरक्षक एवं पंजाब के मुख्यमंत्री सरदार प्रकाश सिंह बादल ने लगे हाथ रैली की खिल्ली तक उड़ा दी। उन्होंने कहा कि यह संख्या कम है लेकिन अब जो रैली करेंगे उसमें मेहनत करके संख्या जुटाएंगे। यह भाजपा और प्रधानमंत्री दोनों के लिए चेतावनी है। कहने का मतलब यह है कि जिस नरेन्द्र मोदी की चुनावी सभा में इसी चंडीगढ के सेक्टर 34 वाले मैदान में 30 हजार से ज्यादा लोग जुटे थे, वो भी बिना किसी मेहनत के, उसी नरेन्द्र मोदी की सभा में प्रधानमंत्री बनने के बाद भी मात्र 10 हजार लोग जुटते और वो तब, जब भाजपा के साथ प्रशासन का पूरा लाव-लस्कर कार्यक्रम की तैयारी में जुटा था। 

प्रधानमंत्री के इन दिनों की रैलियों का वेिषण करें तो कही न कही मोदी की हताशा भी ध्यान में आने लगी है। लिहाजा चंडीगढ की रैली में मोदी बोल गये कि 40 लोगों को देश के करोड़ों लोगों के लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ नहीं करने दिया जाएगा। इस प्रकार के अंदाज से लगता है कि मोदी आज भी चुनावी मोड में ही दिख रहे हैं। उनके भाषणों में वही आक्रामकता है, जो लोकसभा के चुनाव के दौरान थी। इन दिनों मोदी अपने विरोधियों पर प्रहार करने के दौरान कई बार नैतिकता और आदर्श की सीमाओं को भी लांघ देते हैं। मसलन बिहार की रैली में उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के डीएनए पर सवाल उठाया, जो अब उनके लिए भाड़ी पड़ता जा रहा है। प्रधानमंत्री आज भी अपनी पुरानी छवि में चायवाले को जीवित रखना चाहते हैं। यह अब लोगों को थोड़ा हल्का लगने लगा है और लोग यह समझने लगे हैं कि यह प्रधानमंत्री का एक मात्र प्रचार है। 

कायदे से देखिए तो मोदी की लोकप्रियता में ह्रास के पीछे केवल मोदी ही जिम्मेबार नहीं हैं, अपितु उनके सांसद और उनकी पार्टी के नेताओं की भी बराबर की भूमिका है। चंडीगढ को यदि केन्द्र बनाकर देखें तो चंडीगढ की सांसद अपने पूर्ववर्ती सांसद की तुलना में संभवत: इमानदार हो सकती हैं लेकिन उपलब्धता की दृष्टि से किरण खेर बेहद कठिन सांसद साबित हो रही हैं। इस रैली के दौरान सैंकड़ों भाजपा के पुराने कार्यकत्र्ताओं को किरण खेर के कार्यालस से आमंत्रण कार्ड भेजा गया था लेकिन वे पुराने कार्यकत्र्ता केवल इसलिए रैली में नहीं गये कि विगत डेढ साल के दौरान किरण खेर का व्यवहार कार्यकत्र्ताओं के प्रति सकरात्मक नहीं रहा है। सांसद किरण खेर की कार्यकत्र्ताओं के साथ मात्र एक बैठक हुई है, वह भी विवादित। ऐसी परिस्थिति में भाजपा की लोकप्रियता पर इसका नकारात्मक प्रभाव तो पड़ना तय है।  

हालांकि अभी भी समय है। भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तेजी से गिरती हुई अपनी लोकप्रियता को बचा सकते हैं। उसके लिए भाजपा कार्यकत्र्ताओं को जमीन पर काम करना होगा, केवल भाषण से काम नहीं चलेगा। दूसरी बात यह है कि इन दिनों भाजपा में जो पौध लगाये गये हैं, उनमें राजनीतिक महत्वाकांक्षा तो है लेकिन समाज के प्रति काम करने की प्रवृति का घोर आभाव है। कायदे के कार्यकत्र्ताओं को भाजपा में तरजीह नहीं दी जा रही है और जो चाटुकारित की प्रवृति के पोषक हैं उसे तुरंत महत्व मिल जाता है। इससे भाजपा की प्रतिष्ठा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। यदि ठीक से सव्रेक्षण किया जये तो चंडीगढ के हर परिवार में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एक स्वयंसेवक या समर्थक जरूर मिल जाएगा। उन्हें केवल सम्मान की जरूरत है। भाजपा उन स्वयंसेवक को केवल सम्मान दे और कायदे से अपनी पुरानी नीतियों पर कायम रहे। इसमें कही कोई संदेह नहीं है कि आज भी इस देश के चित्र को बदलने की क्षमता केवल और केवल भाजपा में है लेकिन जिस भटकाव में भाजपा जी रही है उस भटकाव के भ्रम को त्यागना होगा, तभी खोई लोकप्रियता को प्रप्त किया जा सकता है।



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