अपनी सुरक्षा के लिए नेपाल में हस्तक्षेप करे भारत


गौतम चौधरी
हिन्दू राष्ट्र की आड़ में भारत समर्थकों पर प्रहार
विगत दिनों अपने अधिकार की मांग कर रहे तराई में मधेशियों पर एक बार फिर से गोर्खा साम्राज्यवादी सेना ने आक्रमण किया, जिसमें कम से कम पांच लोग मारे गये। विगत कई दिनों से तराई और थरहट क्षेत्र के लोगों का आन्दोलन चल रहा है, जिसे जान-बूझकर सरकारी सेना ने हिंसक बनाया और फिर उसके खिलाफ खुद हिंसा पर उतारू हो गयी। हालिया आन्दोलन के दौरान अभीतक थरहट और तराई में कम से कम 50 लोगों की जान जा चुकी है, 200 से अधिक लोग घायल हुए हैं और सरकारी सेना द्वारा कई लोगों के घर जला दिये गये हैं। थारू और मधेशियों पर हो रहे संगठित गोर्खा सैनिकों के आक्रमण के बीच आश्चर्य की बात यह है कि जो भारत सरकार उबेकिस्तान और मध्य-पूरप के देशों पर अप्रत्याशित तरीके से सम्वेदनशील हो जाती है, वही तराई में सरकारी हिंसा का शिकार हो रहे मधेशी, जो सदा से भारत के हितों की चिंता करते रहे हैं, उसके प्रति भारत की वर्तमान सरकार गैरजिम्मेदाराना रुख अख्तियार कर रही है। 

इन दिनों नेपाल में नये संविधान को अंतिम रूप दिया जा रहा है। नेपाली संविधान के अनुसार देश में कुल 14 राज्यों का बनना तय बताया जा रहा है। संविधान की विसंगतियों को लेकर नेपाल में तराई के मधेशी और थरहट क्षेत्र के थारू जबरदस्त तरीके से आन्दोलित हैं। विगत दिनों मधेशी एवं थारुओं ने अपनी मांगों को लेकर शांतिपूर्ण आन्दोलन प्रारंभ किया था लेकिन नेपाल सरकार की सेना ने शांतिपूर्ण आन्दोलन को हिंसक बना दिया और चुन-चुन कर मधेशी-थारू नेताओं की हत्या की जाने लगी, जो लगातार जारी है। थारू और मधेशियों की मांग है कि संविधान में उनके खिलाफ जो विसंगतियां हैं उसे अविलम्ब समाप्त किया जाये और उनके हितों को ध्यान में रखकर सम्वैधानिक राज्य बनाएं जाएं। इस मांग को मानने के लिए नेपाल सरकार तैयार नहीं है। उदाहरण के लिए नेपाल सरकार द्वारा जो संविधान का मसौदा तैयार किया गया है उसके अनुसार जिस व्यक्ति का माता या पिता किसी अन्य देश का नागरिक होगा उसे अंगीकृत नागरिकता दी जाएगी। इस प्रकार के नागरिकता की भी परिभाषा संविधान के मसौदे में है। मसलन वह न तो किसी सरकारी नौकरी के लिए योज्ञ होगा और न ही किसी संवैधानिक पद पर नियुक्त किया जाएगा। यही नहीं उसे नेपाल में चुनाव लड़ने का भी अधिकार नहीं होगा। इस आधार पर तराई के 90 प्रतिशत मधेशी और थरहट क्षेत्र के 70 प्रतिशत थारू नेपाल में दोयम दज्रे के नागरिक हो जाएंगे। इस नियम के लागू होने से केवल थारू और मधेशियों को ही घाटा नहीं होगा, अपितु उन पहाड़ियों को भी घाटा होगा जो भारत के प्रति नरम रूख रखते रहे हैं। यही नहीं नेपाल में राज्यों के बटवारे में घोर विसंगति है। जहां पहाड़ पर अधिक राज्य बनाए जा रहे हैं वही तराई और थरहट क्षेत्रों में राज्यों की संख्या बेहद कम है। तराई और थारू क्षेत्र के लोगों की मांग है कि उनको उनकी जनसंख्या के आधार पर अलग राज्य दिये जाएं  लेकिन नेपाल की वर्तमान सरकार यह करने को तैयार नहीं है। 

यदि बारीकी से नेपाल के वर्तमान संवैधानिक मसौदे को देखा जाये तो नेपाल और चीन की मिल-भगत उससे साफ झलकती है। नेपाल का वर्तमान संविधान कही न कही चीन की विस्तारवादी नीति का समर्थन और भारत के हितों को हानि पहुंचाता हुआ सा दिखता है। वर्तमान संविधान के मसौदे को देखकर ऐसा लगता है कि उससे पहाड़ के कुछ खास परिवार जैसे पूर्व राज परिवार, सेना के अधिकारी और राज्य कर्मचारी के अलावे चीनी सीमा से सटे उन जनजातियों को लाभ मिलेगा जिनका जुड़ाव सदा से चीन के साथ रहा है। इस संविधान के लागू होते, धीरे-धीरे नेपाल का अधिकतर हिस्सा चीनी प्रभाव में चला जाएगा और नेपाल, उत्तर कोरिया की तरह एक बंद चीनी बाजार बनकर रह जाएगा, जिसमें सेना और राज कर्मचारी के अलावा किसी का कोई स्थान नहीं होगा। नेपाली संविधान में नेपाल को फिर से हिन्दू राष्ट्र बनाए जाने की योजना के पीछे भी चीन की ही चाल है। इन दिनों काठमांडो में जो भी हिन्दुवादी नेता सक्रिय हैं उनकी निष्ठा कही न की चीन के साथ है, न कि भारत के साथ। वे चाहते हैं कि हिन्दू राष्ट्र के नाम पर वर्तमान भारत सरकार को बड़गलाया जाये और उसके आड़ में नेपाली जनसंख्या का 60 प्रतिशत मधेशी-थारू को सदा के लिए गुलाम बना दिया जाये, साथ ही भारत के प्रति निष्ठा रखने वाले नेताओं को चुन-चुन कर मार दिया जाये। 

नेपाल की समस्या को समझने के लिए नेपाल के इतिहास को थोड़ा समझना जरूरी है। नेपाल के महान गोर्खाली योद्धा पृथ्वीनाथ शाह ने सन् 1712 ई. में सिमरौन और मिथला पर आक्रमण किया। उन दिनों वह दोनों राज्य स्वतंत्र था और उसकी व्यवस्था कई राज्यों की तुलना में बेहद व्यवस्थित थी। मिथला और सिमरौन की दुर्दशा उसी समय से प्रारंभ होती है। उन दिनों गोर्खाली जिस प्रकार गढवाल और कुमाउ के जवान लड़कियों को जबरन मुम्बई और कोलकात्ता के बाजार में बेच आते थे, उसी प्रकार मिथला और सिमरौन की लड़कियों और युवाओं को भी गोर्खाली, वाराणसी, कोलकात्ता और मुम्बई के बाजार में बेच करते थे। गोर्खालियों का राज घोर अराजकता और अन्याय का राज था। सन् 1950 तक तराई और थरहट क्षेत्र के लोगों का काठमांडो में प्रवेश तक बजिर्त था। नेपाल में आज भी कमोबेस यही स्थिति बनी हुई है। सरकारी महकमों में तराई और थरहट के लोगों का घोर आभाव है। सेना और पुलिस में तो मधेशी हैं ही नहीं। बाद में गोर्खालियों के साथ अंग्रेजों की लड़ाई हुई तो पहली बार अंग्रेज हार गये लेकिन दूसरी बार अंग्रेज जीते और गोर्खालियों के साथ अंग्रेजों की इतिहासिक सुगौली संधी हुई। इस संधी में मिथला और सिमरौन के क्षेत्र का विभाजन किया गया। गोर्खालियों को आधा तराई अंग्रेजों को देना पड़ा लेकिन उसमें भी तराई के लोगों के साथ धोखा हुआ और अधिकतर तराई के मजदूरों को नेपाली नागरिकता से बंचित कर दिया गया। उन्हें आज भी कमइया कहा जाता है। ये मजदूर न तो नेपाल के नागरिक हैं और न ही भारत के। दुनिया के साम्यवाद में यह पहला उदाहरण नेपाल का होगा कि इन विशुद्ध खेतिहर मजदूरों के हक के खिलाफ साम्यवादियों ने बड़े जमिंदार और सरकार का साथ दिया। 

अब गोर्खाली तराई के लोगों को उनकी मातृभूमि से खदेरना चाहते हैं। उन्हें दोयम दज्रे का नागरिक बनाना चाहते हैं। ये निरीह, कमजोर और शक्तिहीन मधेशी-थारू समुदाय के लोग जब भारत से सहयोग की मांग करते हैं तो भारत सरकार विदेशी धरती पर हस्तक्षेप ना करने की बात कहकर उन्हें सहयोग देने से मना कर देती है लेकिन नेपाल सरकार सदा से उनकी सीमा से सटे भारत की भूमि को आधिकारिक रूप से अपना बताती रहती है। विगत दिनों कई स्थानों पर नेपाली आरक्षियों ने भारत के स्तंभ को क्षति पहुंचाया। यही नहीं अभी-अभी कुछ ही दिन पहले नेपाल के कुछ नौजवान भारतीय सीमा के अंदर घुस कर कुमाउ में अपना झंडा फहराया और वापस चले गये। आज जिस नीति पर नेपाल चल रहा है वह नीति भविष्य में भारत के लिए एक नया पाकिस्तान बनाएगा। इस बात को भारत जितना जल्द समङो उतना ही भारत की सुरक्षा के लिए अच्छा रहेगा। यदि भारत सरकार मधेशियों और थारुओं को सहयोग नहीं करती है तो आने वाले समय में वहां किसी तीसरी ताकत का आना तय है और तब भारत के लिए वहां अलग प्रकार की परेशानी खड़ी होगी। इसलिए अभी समय है भारत नेपाल के संविधान मसौदे में हस्तक्षेप करे और तराई एवं थरहट को न्याय दिलावे। यदि ऐसा नहीं हुआ तो वहां के लोग लड़ाई जारी रखेंगे और यह क्षेत्र धीरे-धीरे भारत की सुरक्षा के लिए खतरा बनता चला जाएगा।

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