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Showing posts from October, 2020

झारखंड का वित्तीय संकट : राजनीतिक फायदे के फिराक में सत्ता व विपक्ष

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गौतम चौधरी  इन दिनों झारखंड के सियासी गलियारों में राज्य की वित्तीय स्थिति को लेकर गजब की हलचल है। सत्ता और विपक्ष दोनों इस संकट को अपने-अपने हितों के अनुसार परिभाषित कर रहे हैं और राजनीति की रोटी सेक रहे हैं। इस मामले को लेकर हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली महागठबंधन की सरकार ने केन्द्र सरकार पर कई आरोप लगाए हैं। इन आरोपों पर प्रतिपक्षी पार्टी भाजपा ने भी सरकार पर निशाना साधा है और साफ शब्दों में कहा है कि जब राज्य सरकार वित्तीय संकट के दौर से गुजर रही है तो फिर मुख्यमंत्री के लिए लग्जरी गाड़ी खरीदने की क्या जरूरत थी। हालांकि इस बयान का भी सत्ता पक्ष की ओर से जवाब आया है लेकिन राज्य की वित्तीय स्थिति को सुधारने के लिए न तो सत्तापक्ष कुछ करने की स्थिति में और न ही विपक्षी पार्टी भाजपा केन्द्र सरकार पर दबाव बनाती दिख रही है, उलटे राज्य सरकार को ही कठघरे में खड़ी कर रही है।  राज्य की वित्तीय स्थिति सचमुच बहुत खराब है। यह भी सही है कि इससे उबरने के लिए राज्य को केन्द्रीय मदद की भरपूर जरूरत है। इसके बिना कुछ भी संभव नहीं है। जैसे ही हेमंत सोरेन ने राज्य की कमान संभाली उन्होंने वित्तीय संकट की स्

उपचुनाव : हेमंत के लिए कितनी चुनौती खड़ी कर पाएगी गुटों में बंटी प्रदेश भाजपा

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गौतम चौधरी  भाजपा नेतृत्व की ओर से बार-बार दावा किया जा रहा है कि बेरमो और दुमका उपचुनाव में उनकी जीत सूनिश्चित है, परंतु जमीनी हकीकत कुछ और ही कह रही है। ऐसा लग रहा था कि इस उपचुनाव में महागठबंधन के उम्मीदवारों को हेमंत सरकार की असफलताओं और भाजपा के मजबूत संगठन से टकराना पड़ेगा लेकिन जमीन पर ऐसा कुछ भी नहीं दिख रहा है। मसलन, प्रदेश सरकार की असफलताओं को केन्द्र सरकार की असफलताओं ने ढ़क दिया है और भाजपा के स्थानीय नेतृत्व का अंतरविरोध हेमंत के लिए संजीवनी का काम करने लगा है। खेमों में बटा प्रदेश का भाजपा नेतृत्व न तो हेमंत सरकार के खामियों को उजागर करने में सफल हो रहा है और न ही कोई आन्दोलन ही खड़ा कर पा रहा है। आगामी 03 नवम्बर को झारखंड की दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है। बेरमो विधानसभा की सीट कांग्रेस के कद्दावर नेता, राजेन्द्र सिंह की मृत्यु के बाद खाली हुई थी, जबकि दुमका की सीट मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने स्वेच्छा से छोड़ी है। यह उपचुनाव कई मायने में महत्वपूर्ण है। सबसे पहली बात तो यह है कि वर्तमान भाजपा अध्यक्ष दीपक प्रकाश की यह पहली अग्नि परीक्षा है। दूसरी बात, इन दोनों विधानसभाओं

विशुद्धा धार्मिक प्रवास हिजरत को आतंकवाद का हथकंडा न बनाया जाय 

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गौतम चौधरी  हिज्राह या हिजरत, हजरत मोहम्मद का अपने अनुयाइयों (सहाबा) के साथ, शहर मक्का से शहर मदीना जिस का पुराना नाम यस्रिब था, को सन् 622 में प्रवास को कहा जाता है। दरअसल, उन दिनों मक्का बेहद अशांत हो गया था और साहब यानी हजरत मोहम्मद साहब को कहीं से यह सूचना मिली कि शहर मक्का में उनकी हत्या कर देने की साजिश हो रही है। यही कारण था कि साहब ने मक्का छोड़ कर यस्रिब (मदीना) प्रवास कर गए। इसी प्रवास को हिजरत के नाम से जाना जाता है। इस प्रवास के दौरान उनके साथ उनके बेहद करीबी माने जाने वाले, जो बाद में खलीफा नियुक्त किए गए, सहाबी अबू बक्र भी थे।  इससे पहले मुसलमानों का पहला प्रवास इथियोपिया के लिए भी हुआ है। कुछ मुस्लिम विद्वान इसे भी हिजरत की संज्ञा देते हैं। यह घटना सन् 613 के आस-पास की बतायी जाती है। हजरत मोहम्मद साहब ने अपने अनुयाइयों से कहा कि मक्का के लोग मुसलमानों को सताने लगे हैं, मक्का में दिन दूभर हो गये हैं, इसलिये इथियोपिया के नेगस, जो ईसाई धर्म के मानने वाले हैं और एक ईश्वर में विश्वास करते हैं, वहां चले जाएं। मोहम्मद साहब के कहने पर कुछ सहाबा यानी मोहम्मद के अनुयायी वहां भी ग

भारतीय राष्ट्रवाद को आधुनिक ओटोमन और चीनी विस्तारवाद से खतरा

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गौतम चौधरी  दुनिय बहुत तेजी से बदल रही है। दुनिया का कूटनीतिक भूगोल भी बड़ी तेजी से परिवर्तित हो रहा है। सोवियत रूस के पराभव के बाद से लेकर विगत कुछ वर्षों तक संयुक्त राज्य अमेरिका जिस प्रकार पूरी दुनिया को नियंत्रित कर रहा था, अब वह ऐसा नहीं कर पा रहा है। विश्व मंच पर अब नए नए कूटनीतिक खिलाड़ी प्रभावशाली भूमिका निभाने लगे हैं। जहां एक ओर इस्लामिक विश्व को अपने नियंत्रण में लेने के लिए तुर्की, आक्रामक विदेश नीति के साथ प्रस्तुत हुआ है, वहीं दूसरी ओर चीन नई रणनीति के साथ अमेरिका को चुनौती देने लगा है। इधर इजरायल भी अमेरिकी फ्रेम से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है। यही नहीं वह स्वतंत्र विदेश नीति के साथ दुनिया को समझने और परखने की कोशिश करने लगा है। हालांकि इस बात को लेकर इजरायल की आलोचना भी हो रही है लेकिन इजरायल इस दिशा में आगे बढ़ रहा है। मसलन अमेरिकी दादागीरी का दौर समाप्त होता दिख रहा है। पीपल्स रिपब्लिक आॅफ चाइना, रूस के साथ मिलकर जहां एक ओर शंघाई सहयोग संगठन को मजबूत करने में लगा है, वहीं वह भारत, रूस, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका के साथ मिलकर आर्थिक क्षेत्र में अमेरिकी दादागीरी को संतुलित

NDA गठबंधन में दरार के कई मायने, LJP ने बिहार की सियासी जंग को बनाया रोचक

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गौतम चौधरी  चुनाव आयोग की घोषणा के बाद बिहार विधानसभा चुनाव का जमीनी जंग प्रारंभ हो गया है। दो महागठबंधनों ने भी लगभग अपनी-अपनी रणनीति स्पष्ट कर दी है। एक ओर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन तो दूसरी ओर महागठबंधन अपने-अपने साथी पार्टियों के साथ चुनाव मैदान में उतर चुके हैं। सीटों को लेकर जो गतिरोध था वह लगभग समाप्त हो चुका है। इस बार वाला बिहार का सियासी जंग इसलिए थोड़ा भिन्न है क्योंकि बहुत दिनों के बाद राष्ट्रीय जनता दल के साथ मिलकर एकिकृत वामदल चुनाव लड़ रहे हैं। इससे पहले वाम पार्टियों का कोई न कोई धरा अपनी मनमानी करता रहा है लेकिन इस बार का बिहार विधानसभा चुनाव वाम गठबंधन की प्रयोगशाला के रूप में उभरकर सामने आया है। वाम दल आगे कितने संगठित रहेंगे यह तो भविष्य बताएगा लेकिन इस बार बिहार चुनाव में भारत की कम्युनिस्ट पार्टी माक्र्सवादी-लेनिनवादी से लेकिर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी तक इकट्ठे चुनाव लड़ने को मजबूर हैं। मसलन इस बार का बिहार विधानसभा चुनाव वाम दलों के लिए एक प्रयोग है।   यह चुनाव इसलिए भी थोड़ा भिन्न है कि राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन के पुराने साथी लोक जनशक्ति पार्टी ऐन मौके एनडीए