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Showing posts from 2020

तुर्की के नव खिलाफत आन्दोलन को भारत में स्थापित करने की फ़िराक में PFI

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रजनी राणा चौधरी  कॉमरेड अभिमन्यु माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की छात्र इकाई के प्रभावशाली नेता थे। अभी हाल ही में पोपुलर फ्रंट आॅफ इंडिया की छात्र शाखा कैम्पस फ्रंट ऑफ इंडिया नामक कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन ने उनकी हत्या दी। दरअसल, केरल की साम्यवादी सरकार ने अभिमन्यु के नाम पर एक स्मारक भवन का निर्माण कराया है। जिसमें पुस्तकालय के साथ साथ गरीब पिछड़े तबके के छात्रों को रहने की भी व्यवस्था है। यहां पिछड़े पृष्ठभूमि से आनेवाले छात्र रहकर अपनी पढ़ाई भी कर सकते हैं। इस खबर को पढ़ने के बाद पोपुलर फ्रंट के बारे में जाने की जिज्ञासा किसी को भी हो सकती है। इन दिनों जो खबरें छन कर सामने आ रही है उसमें इस संगठन का तार अब तुर्की के तानाशास से भी जुड़ने लगा है। पोपुलर फ्रंड आॅफ इंडिया को पीएफआई के नाम से भी जाना जाता है। दक्षिण भारत के बाद यह संगठन बड़ी तेजी से उत्तर भारत में अपना पांव पसारना प्रारंभ कर दिया है। यह संगठन इन दिनों इस्लाम के नाम पर लोगों को भड़काने में अहम भूमिका निभा रहा है। पश्चिमी विचारक एमजे क्रोन कहते हैं कि सभ्य होने में दोष यह है कि यह हमारे बीच के असभ्य को स्वतंत्रता और समानता के नाम

झारखंड की शांति में खलल डालने की कोशिश, फिर से संगठित होने लगे माओवादी

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गौतम चौधरी   झारखंड में एक बार फिर से माओवादी चरमपंथी सिर उठाने लगे हैं। तथ्य व आंकड़े बताते हैं कि 2019 की अपेक्षा अगस्त 2020 तक उग्रवाद व नक्सल प्रभावित इलाके में चरमपंथी वारदातों में बढ़ोतरी हुई है। झारखंड में अगस्त 2019 तक 85 नक्सल और उग्रवादी घटनाएँ हुई थीं, जबकि अगस्त 2020 तक 86 घटनाएँ हुई। अगस्त 2020 के बाद राज्य में माओवादी घटनाओं में अप्रत्याशित तरीके से इज़ाफा हुआ है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि अगस्त 2020 तक नक्सल और उग्रवादी घटनाएँ तब बढ़ी, जब पुलिस ने सबसे अधिक अभियान और एलआरपी चलाया। यह खतरनाक संकेत हैं और ये आंकड़े साबित करने के लिए काफी है कि माओवादियों के मनोबल पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा है। आंकड़ों और तथ्यों की मिमांशा से साफ परिलक्षित होता है कि पुलिस अभियान और सक्रियता में कोई कमी नहीं है लेकिन चरमपंथियों पर जो दबाव पड़ना चाहिए उसमें कमी दिखई दे रही है। हाल के महीनों में राज्य में सक्रिय अलग-अलग नक्सली संगठनों ने लेवी के लिए दहशत फैलाने के उद्देश्य से वाहनों में आगजनी और फ़ायरिंग की घटनाओं को अंजाम दिया है। उग्रपंथियों के मनोबल में बढ़ोतरी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा

जिहाद विशुद्ध इस्लमिक धार्मिक कृत्य है, इसे आतंकवाद से ना जोड़ें

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गौतम चौधरी   जिहाद, इस्लाम की सबसे महत्वपूर्ण बुनियादी शिक्षाओं में से एक है और इसे महानता, महिमा और संप्रभुता प्राप्त करने का एक माध्यम माना जाता है। उस आधार पर, जिहाद हर मुसलमान के लिए अनिवार्य कृत्य है, जो कयामत के दिन तक चलेगा। जिहाद, अरबी शब्द जहदा से लिया गया है जिसका अर्थ है पूरी ईमानदारी से काम करना। इस्लामिक अवधारणाओं में जिहाद को एक नियम के रूप में माना जाता है, जिसे मुसलमानों द्वारा पालन किया जाना चाहिए क्योंकि यह पुष्टि की जाती है कि पवित्र कुरान में विशेष रूप से विभिन्न सूरह में इकतालीस (41) गुना का उल्लेख है। यानी 41 जिहादों का उल्लेख है। मसलन, 8 बार मेका सूरह (पैगंबर मोहम्मद पर मक्का में सूरह में खुलासा हुआ) और मदनियाह सूरह में 33 बार (हिज्रत के बाद मदीना में सामने आए सूरह)। इस दृष्टि से जिहाद मुसलमानों के लिए एक बुनियादी अवधारणा है।  प्रचलित धारणा के विपरीत, इस्लाम में जिहाद केवल गैर-मुसलमानों के खिलाफ अंधाधुंध निर्देशित हिंसा का कार्य नहीं है। यह उन सभी संघर्षों को दिया गया नाम है, जो एक मुसलमान को सभी बुराइयों के खिलाफ शुरू करनी चाहिए, चाहे वह किसी भी रूप या आकार में

अल्पसंख्यकों को भारतीय संविधान पर भरोसा रखना चाहिए, यह सबकी सुरक्षा की देता है गारंटी

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गौतम  चौधरी   अभी हाल ही में अल्पसंख्यक अधिकार दिवस मनाया गया। 18 दिसंबर को प्रत्येक वर्ष पूरी दुनिया में अल्पसंख्यक अधिकार दिवस मनाया जाता है। भारत में भी बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक निवास करते हैं। भारतीय संविधान के अनुसार यहां भाषा और धर्म को अल्पसंख्यक का आधार माना गया है। उस दृष्टि से भारत में मुसलमान, ईसाई, सिख, बौध, जैन और पारसी समुदाय के लोगों को अल्पयंख्यक की श्रेणी में रखा गया है। भारतीय संविधान में भारत के हर नागरिक को समान दृष्टि से देखा गया है और संविधान निर्माताओं ने इस बात का विशेष ध्यान रखा था कि देश में आगे चलकर कोई भेदभाव ना रहे और सभी मिलजुल कर रहें, इसलिए संविधान में अल्पसंख्यक और पिछड़े का विशेष ध्यान रखा गया है। भारत अपने लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए दुनिया भर में अलग पहचान रखने वाला देश है। यहां अल्पसंख्यक समुदायों को अलग से भी कई प्रकार के अधिकार दिए गए हैं जो बहुसंख्यकों को प्राप्त नहीं है। यह भारतीय संविधान की विशेषता के साथ ही साथ अल्पसंख्यकों के प्रति संवेदनशीलता को भी दर्शाता है।  दरअसल, संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 18 दिसम्बर, 1992 को एक घोषणा पारित कर अन्तर्राष्

बिहार में इन 10 कारणों से प्रभावी और अपरिहार्य बने हुए हैं नीतीश कुमार

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गौतम चौधरी नीतीश कुमार एक बार फिर से अजेय और अपरिहार्य होकर उभरे हैं। नीतीश के बारे में यही कहा जाता है कि वे चुनौतियों को अवसर में बदलने वाले नेताओं में से हैं। उन्होंने विपरीत परिस्थिति में अपने आप को खड़ा किया है। लालू यादव के पराभव के बाद बिहार में दो ताकतों का उदय हुआ, जिसमें से एक नीतीश कुमार हैं और दूसरे रामविलास पासवान। रामविलास की विरासत बहुत ज्यादा मजबूत नहीं हो पायी लेकिन अपनी चतुराई और राजनीतिक कौषल के बदौलत नीतीश कुमार बिहार की राजनीति को अपने चारो तरफ नचाते रहे हैं। आइए जानते हैं नीतीश कुमार की मजबूती के 10 कारण: - पहला, नीतीश कुमार में विकास को मुद्दा बनाने वाले नेता की छवि है। जेडी (यू) और नीतीश कुमार बिहार में अभी भी एक बड़ी ताकत हैं और उनको दरकिनार कर किसी के लिए भी सरकार चलाना आसान नहीं है। यही वजह है कि कोई जोखिम लिए बगैर बीजेपी ने भी नीतीश को ही एनडीए का नेता मानकर चुनाव लड़ने का फैसला किया। चुनाव परिणाम में आधे के आसपास सीट रहने के बाद भी भाजपा नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री बनाई। इससे यह साबित हो गया है कि नीतीष कुमार बिहार की राजनीति के लिए अपरिहार्य हैं। पिछले कुछ

पेरिस की घटना वैश्विक आतंकवाद का हिस्सा, केरल में भी तो काटे थे शिक्षक के हाथ

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गौतम चौधरी प्रत्येक मानव की अभिव्यक्ति मायने रखता है। चाहे वो विचारों से हो या शारीरिक कृत्यों के रूप में हो, या हिंसा के रूप में। कभी-कभी इन दोनों के बीच अंतर-विश्वसनीयता सर्वोपरि और पवित्र होती है। विचार अगर एक उचित और निहित तरीके से नियोजित किया जाता है, तो उससे हिंसा होना तय है। हाल ही में घटी पेरिस की घटना हमें सिखाती है कि सामाजिक वर्गों के बीच मुख्य रूप से धर्मों के साथ जुड़े भावनाओं के लिए सहिष्णुता और सम्मान बढ़ाने की आवश्यकता है। विशेष रूप से, दुनिया भर के मुसलमानों को उनके सामने आने वाली बढ़ती चुनौतियों को समझने की जरूरत है। इसलिए, उनके द्वारा की गई किसी भी कार्रवाई को उनके बीच रहने वाले समुदायों के मानकों के अनुसार देखा, समझा और परखा जाना चाहिए। फ्रांस में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धर्मनिरपेक्षता के नाम पर मुसलमानों के खिलाफ धार्मिक उकसावों (जैसे पैगंबर की अवमानना) का लंबा इतिहास रहा है। वहां के मुसलमानों को इस्लामी शिक्षा और पैगंबर मोहम्मद की बातों को ध्यान में रखते हुए अधिक सामंजस्यपूर्ण और सहिष्णु होने की आवश्यकता है। इस बात को समझने की अधिक आवश्यकता है कि हिंसा के व्यक्तिग

सरना धर्म कोड पर भाजपा की रहस्यमय चुप्पी से उठ रहे कई सवाल

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गौतम चौधरी आगामी जनगणना में आदि वासियों के लिए सरना धर्म कोड की वकालत राज्य में बड़ा मुद्दा बनना जा रहा है। राज्य की महागठबंधन सरकार ने विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर इस बाबत प्रस्ताव पास करा दिया है। इस प्रस्ताव को अब केंद्र को भेजने की तैयारी हो रही है। विपक्ष में बैठी भाजपा और आजसू की भी इसमें सहमति है। इस पूरे मामले का अहम पक्ष यह है कि इस प्रस्ताव पर विशेष सत्र के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने रहस्यमय तरीके से चुप्पी साधे रखी। भाजपा के विधायकों ने सरकार के पक्ष का समर्थन कर दिया और प्रस्ताव पर बहस कराने की भी मांग नहीं की। सवाल यह उठता है कि आखिर भाजपा अपने पारंपरिक नीति से समझौता क्यों कर रही है। क्या भाजपा डरी हुई है , या फिर सरना धर्म कोड पर भाजपा की चुप्पी के और कारण हैं ? इसकी मिमांशा जरूरी है। बता दें कि इस मामले में भाजपा की अलग राय रही है। भाजपा लगातार से यह सवाल पूछती रही है कि जब पहले से जनसंख्या में यह व्यवस्था लागू थी तो 1961 में उसे हटाया क्यों ? भाजपा यह भी कहती रही है कि क्या धर्मातरित आदि वासियों को इससे इतर रखा जाएगा ? ये तमाम सवाल भारतीय जनता पार्टी की नीतिगत चिंतन म

झारखंड का वित्तीय संकट : राजनीतिक फायदे के फिराक में सत्ता व विपक्ष

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गौतम चौधरी  इन दिनों झारखंड के सियासी गलियारों में राज्य की वित्तीय स्थिति को लेकर गजब की हलचल है। सत्ता और विपक्ष दोनों इस संकट को अपने-अपने हितों के अनुसार परिभाषित कर रहे हैं और राजनीति की रोटी सेक रहे हैं। इस मामले को लेकर हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली महागठबंधन की सरकार ने केन्द्र सरकार पर कई आरोप लगाए हैं। इन आरोपों पर प्रतिपक्षी पार्टी भाजपा ने भी सरकार पर निशाना साधा है और साफ शब्दों में कहा है कि जब राज्य सरकार वित्तीय संकट के दौर से गुजर रही है तो फिर मुख्यमंत्री के लिए लग्जरी गाड़ी खरीदने की क्या जरूरत थी। हालांकि इस बयान का भी सत्ता पक्ष की ओर से जवाब आया है लेकिन राज्य की वित्तीय स्थिति को सुधारने के लिए न तो सत्तापक्ष कुछ करने की स्थिति में और न ही विपक्षी पार्टी भाजपा केन्द्र सरकार पर दबाव बनाती दिख रही है, उलटे राज्य सरकार को ही कठघरे में खड़ी कर रही है।  राज्य की वित्तीय स्थिति सचमुच बहुत खराब है। यह भी सही है कि इससे उबरने के लिए राज्य को केन्द्रीय मदद की भरपूर जरूरत है। इसके बिना कुछ भी संभव नहीं है। जैसे ही हेमंत सोरेन ने राज्य की कमान संभाली उन्होंने वित्तीय संकट की स्