तुर्की के नव खिलाफत आन्दोलन को भारत में स्थापित करने की फ़िराक में PFI



रजनी राणा चौधरी 

कॉमरेड अभिमन्यु माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की छात्र इकाई के प्रभावशाली नेता थे। अभी हाल ही में पोपुलर फ्रंट आॅफ इंडिया की छात्र शाखा कैम्पस फ्रंट ऑफ इंडिया नामक कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन ने उनकी हत्या दी। दरअसल, केरल की साम्यवादी सरकार ने अभिमन्यु के नाम पर एक स्मारक भवन का निर्माण कराया है। जिसमें पुस्तकालय के साथ साथ गरीब पिछड़े तबके के छात्रों को रहने की भी व्यवस्था है। यहां पिछड़े पृष्ठभूमि से आनेवाले छात्र रहकर अपनी पढ़ाई भी कर सकते हैं। इस खबर को पढ़ने के बाद पोपुलर फ्रंट के बारे में जाने की जिज्ञासा किसी को भी हो सकती है। इन दिनों जो खबरें छन कर सामने आ रही है उसमें इस संगठन का तार अब तुर्की के तानाशास से भी जुड़ने लगा है। पोपुलर फ्रंड आॅफ इंडिया को पीएफआई के नाम से भी जाना जाता है। दक्षिण भारत के बाद यह संगठन बड़ी तेजी से उत्तर भारत में अपना पांव पसारना प्रारंभ कर दिया है। यह संगठन इन दिनों इस्लाम के नाम पर लोगों को भड़काने में अहम भूमिका निभा रहा है। पश्चिमी विचारक एमजे क्रोन कहते हैं कि सभ्य होने में दोष यह है कि यह हमारे बीच के असभ्य को स्वतंत्रता और समानता के नाम पर हमारे खिलाफ भयानक अपरा करने की अनुमति देता है। पीएफआई के बारे में ऐसा ही कुछ कहा जा सकता है। फाउंडेशन फॉर ह्यूमन राइट्स एंड फ्रीडम एंड ह्युमैनिटेरियन रिलीफ की चर्चा करना यहां बेहद जरूरी है। यह संगठन अपने आप को एक मानवाधिकार संगठन के रूप में प्रचारित करता है लेकिन इस संगठन के बारे में जो सूचनाएं हैं वह चैकाने वाले हैं। यह संगठन अल-कायदा से जुड़ा तुर्की का एक चैरिटी संगठन है, जिस पर सीरिया में अल-कायदा से जुड़े जिहादियों को हथियार देने का आरोप है। तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन के दामाद और वर्तमान वित्त और ट्रेजरी मंत्री, बेराट अल्बारक के लीक हुए ईमेल में पता चला है कि लीबिया के गुटों को घेरने में आईएचएच की संलिप्त सामने आई है। आईएचएच की पहचान एक ऐसे संगठन के रूप में की गई है, जो तुर्की की खुफिया सेवा के साथ मिलकर काम करता है और जिसका नेतृत्व राष्ट्रपति रेसेप तय्यिप एर्दोगन करते है। एर्दोगन इन दिनों प्रभावी रूप से खुद को दुनिया भर के मुसलमानों का नेता साबित करने के लिए इस्लामी समाज में पनप रही कट्टरता को भरपूर समर्थन देने लगे हैं। 


आईएचएच की भारत में भी जबरदस्त भूमिका है और यह भूमिका यहां के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप तक पहुंच गया है। नॉर्डिक मॉनिटर जांच के अनुसार भारत में सक्रिय पीएफआई के दो प्रमुख नेताओं, ई. एम. अब्दुल रहमान और प्रो. पी. कोया, पोपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के राष्ट्रीय कार्यकारी परिषद के सदस्यों को निजी तौर पर आईएचएच द्वारा इस्तांबुल बुलाया गया था। पीएफआई एक भारतीय चरमपंथी इस्लामी संगठन है, जो कई हिंसक और आपराधिक गतिविधियों में शामिल है, जिसके उपर नारथ में हथियार प्रशिक्षण, फिरौती के लिए मर्डर, सीपीआई (एम) और आरएसएस कार्यकर्ताओं के मर्डर, एबीवीपी कार्यकर्ता एन. सचिन गोपाल का मर्डर, पूर्वोत्तर के लोगों के खिलाफ एसएमएस अभियान, टी. जे. जोसेफ पर हमला जिसमें उनके हाथ काट दिए गए थे, शिमोगा हिंसा, एंटी-सीएए की फंडिंग तथा जबरन धर्म परिवर्तन जैसे कई आपराधिक गतिविधियों को संचालित करने का आरोप है।  


एक भारतीय चरमपंथी संगठन का तुर्की खुफिया एजेंसी के बुलावे पर वहां जाना किस ओर संकेत करता है। खास तौर पर तब जब जब तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान, खिलाफत प्रणाली जिसे 1924 में समाप्त कर दिया गया था, उसे पुनर्जीवित करने की योजना को आगे बढ़ाने के लिए दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र में मुस्लिम समुदायों को उकसाने की कोशिश कर रहे हैं। राष्ट्रवाद की अवधारणा के आधार पर परिभाषित भौगोलिक सीमाओं के साथ वैश्वीकरण के इस युग में, खिलाफत प्रणाली को पुनर्स्थापित करने का कोई भी प्रयास बड़े पैमाने पर हिंसा पैदा कर सकता है। अल-बगदादी के आईएसआईएक वाले प्रयोग को दुनिया देख चुकी है। सच पूछिए तो  अपने विध्वंसक एजेंडे के साथ पीएफआई भारतीय उपमहाद्वीप में तुर्की की विभाजनकारी योजनाओं को गुप्त रूप से आगे बढ़ाने में लगा है। तुर्की और पीएफआई के बीच के संबंधों का आकलन इस तथ्य से किया जा सकता है कि पीएफआई ने 2016 के तख्तापलट के प्रयास के बाद तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन के समर्थन में एक बयान जारी किया था जो वास्तव में एर्दोगन की खुफिया और सैन्य प्रमुखों द्वारा सरकार को अस्थिर करने व तुर्की के राष्ट्रपति को मजबूत करने के लिए लाॅन्च किया गया था। यहां बता दे कि सत्ता और व्यवस्था की आलोचना करने वालों की कमी नही ंहोती है। तुर्की की सरकार ने पीएफआई को बढ़ावा देने के मकसद से राज्य में संचालित अनादोलू समाचार एजेंसी द्वारा पीएफआई को एक नागरिक और सामाजिक समूह के रूप में पेश किया, जिसके सदस्यों को भारतीय पुलिस द्वारा परेशान किया गया था। पीएफआई, आईएचएच की गतिविधि लगभग एक जैसी है। दोनों संगठनों के अपने संबंधित राष्ट्रों के हित के खिलाफ गतिविधियों में संलिप्ता पाई गयी है।


लोकप्रिय पौराणिक कथा रामायण में, विभीषण नाम के अंतरभेदी की मदद से रावण को हराया गया था। शक्तिशाली राष्ट्रों को सबसे अधिक नुकसान हमेशा अंदरूनी लोगों द्वारा पहुंचाया जाता है। बाहरी ताकतों के साथ सहयोग करके देश के हित के खिलाफ काम करने की रणनीति पुरानी रही है। पीएफआई के हिंसक अतीत के रिकॉर्ड और आईएचएच के साथ बैठक जैसे हालिया विकास को देखते हुए, भारत पर आगामी आपदा से इनकार नहीं किया जा सकता है तथा इस समस्या को उत्पन्न होने से पहले ही खत्म करने की आव्यशाकता है। नो फर्स्ट स्ट्राइक पॉलिसी, नॉन अलाइंड मूवमेंट जैसी रणनीति से भारत को अतीत में बहुत नुकसान हुआ है, जिसके कारण हमारी क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा धुमिल हुई है। अब कमजोर और लचर रणनीति को बदलने का वक्त आ गया गया है। याद रहे हमारे लोकतंत्र को कट्टरवाद, असहिष्णुता, अलगाववाद, उग्रवाद, शत्रुता और पूर्वाग्रही मनोवृति से खतरा है। समय रहते पीएफआई जैसे संगठनों पर लगाम लगाना होगा और उसके द्वारा खड़े किए जा रहे उन्माद को समाप्त करना होगा नहीं तो यह भारतीय राष्ट्रवाद के लिए भयानक समस्या खड़ा कर देगा। 



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