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Showing posts from March, 2016

इससे तो हरीश रावत और कांग्रेस दोनों मजबूत होगी

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गौतम चौधरी  विगत कुछ दिनों से उत्तराखंड की राजनीतिक उठापटक चर्चा का केन्द्र बना हुआ है। इन दिनों प्रदेश की सियासत ने केन्द्रीय राजनीति को भी प्रभावित करना प्रारंभ कर दिया है। खबरों पर भरोसा करें तो उत्तराखंड के मामले को लेकर केन्द्र सरकार के मुखिया, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आनन-फानन में अपने मंत्रिमंडल की एक आपात बैठक की और तुरत-फुरत में राष्टपति शासन लगा दिया। राष्ट्रपति शासन लगाने के पीछे केन्द्र की रणनीति क्या है यह तो पता नहीं है लेकिन इस मामले को लेकर केन्द्र और भाजपा के प्रति गलत संदेश जाने का डर है। केन्द्र के इस निर्णय से पूरे देश में यह संदेश जाएगा कि मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा प्रतिपक्षी दलों के प्रदेश सरकारों में अधिनायकवादी डर पैदा करना चाहिती है। केन्द्र सरकार पर इस प्रकार के आरोप न केवल दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने लगाया है अपितु बिहार की नीतीश कुमार की सरकार भी लगा चुकी है। गोया आने वाले समय में क्या होगा यह तो वक्त बताएगा लेकिन इस पूरे प्रकरण से दो बातें तो पक्के तौर पर तय है। पहला पूरे देश में यह संदेश जाएगा कि भाजपा प्रतिपक्षी पार्टियों के द्वारा संचालि

अदूरदर्षी नीति और अनुभवहीनता के कारण राजनीतिक अवषाद में केन्द्र सरकार

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गौतम चैधरी वर्तमान केन्द्र सरकार की अदूरदर्षी नीति और प्रषासनिक अनुभवहीनता के कारण देष में जहां एक ओर प्रषासनिक अस्थिरता की स्थिति बनी है वही दूसरी ओर आंतरिक और वाह्य सुरक्षा पर भी सवाल खड़े किये जाने लगे हैं। केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार आर्थिक एवं वैष्विक कूटनीतिक मामले में भी फिसड्डी साबित हुई है। हालांकि सरकार ने अपने पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध बनाने के भरषक प्रयास तो किये हैं लेकिन अनुभवहीन कूटनीतिज्ञों के कारण सरकार इस मोर्चे पर भी विफल रही है। इसका सबसे बड़ उदाहरण हाल के दिनों पाकिस्तान द्वारा आतंकवादी इंपुट पर पूरे देष में हाइअलार्ट जारी करना है। ऐसे कई उदाहरण हैं बावजूद इसके, केन्द्र सरकार अपनी गलतियों पर ध्यान देने के बजाय नित नये-नये विवादों में फंसती जा रही है। केन्द्र सरकार के काम पर यदि गंभीरता से अध्यन दिया जाये तो साफ-साफ झलकता है कि या तो सरकार के मंत्री और कूटनीतिज्ञ अनुभवहीन हैं, या फिर किसी खास राजनीति के तहत कुछ खास व्यक्तियों के हितों को ध्यान में रखकर काम कर रही है। अगर ऐसा है तो यह देष की एकता और अखंडता को प्रभावित करने वाला साबित होगा। भारतीय जनता पार्ट

मातृभूमि: अपने मूल सिद्धांतों पर लौटे संघ और भाजपा

मातृभूमि: अपने मूल सिद्धांतों पर लौटे संघ और भाजपा

अपने मूल सिद्धांतों पर लौटे संघ और भाजपा

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गौतम चौधरी सवाल कन्हैया का नहीं सवाल सास्कृतिक राष्ट्रवाद का विगत दिनों जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में जो हुआ , उसका चित्र अब साफ होता जा रहा है। षड्यंत्र के आरोप न केवल वामपंथियों पर लग रहे हैं , अपितु इस मामले में उंगलियां दक्षिणपंथियों पर भी उठने लगी है। ऐसे में मुङो मेरे प्रिय कवि वैद्यनाथ मिश्र नागाजरुन की एक कविता याद आ रही है : कहां गये धनपति कुबेर वह कहां गयी उसकी वह अलका , नहीं पता है व्योम विहारी गंगाजल का , खोजा परंतु मिला नहीं देवदूत का पता कही पर , छोड़ो कवि कल्पना थी वह ! मैंने तो भीषण जारों में नभचुंबित कैलाश शिखर पर महामेघ को झंझानिल से गरज - गरज भिरते देखा है , बादल को घिरते देखा है। बादल को घिरते देखा है। यह कविता आज के परिप्रेक्ष में बेहद सटीक बैठती है। जब कन्हैया वर्तमान सरकार के उपर सवालों की झरी लगा रहे थे तो मैं यही सोच