अदूरदर्षी नीति और अनुभवहीनता के कारण राजनीतिक अवषाद में केन्द्र सरकार

गौतम चैधरी
वर्तमान केन्द्र सरकार की अदूरदर्षी नीति और प्रषासनिक अनुभवहीनता के कारण देष में जहां एक ओर प्रषासनिक अस्थिरता की स्थिति बनी है वही दूसरी ओर आंतरिक और वाह्य सुरक्षा पर भी सवाल खड़े किये जाने लगे हैं। केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार आर्थिक एवं वैष्विक कूटनीतिक मामले में भी फिसड्डी साबित हुई है। हालांकि सरकार ने अपने पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध बनाने के भरषक प्रयास तो किये हैं लेकिन अनुभवहीन कूटनीतिज्ञों के कारण सरकार इस मोर्चे पर भी विफल रही है। इसका सबसे बड़ उदाहरण हाल के दिनों पाकिस्तान द्वारा आतंकवादी इंपुट पर पूरे देष में हाइअलार्ट जारी करना है। ऐसे कई उदाहरण हैं बावजूद इसके, केन्द्र सरकार अपनी गलतियों पर ध्यान देने के बजाय नित नये-नये विवादों में फंसती जा रही है। केन्द्र सरकार के काम पर यदि गंभीरता से अध्यन दिया जाये तो साफ-साफ झलकता है कि या तो सरकार के मंत्री और कूटनीतिज्ञ अनुभवहीन हैं, या फिर किसी खास राजनीति के तहत कुछ खास व्यक्तियों के हितों को ध्यान में रखकर काम कर रही है। अगर ऐसा है तो यह देष की एकता और अखंडता को प्रभावित करने वाला साबित होगा।
भारतीय जनता पार्टी को यह समझना होगा कि अब वह शासन करने वाली पार्टी बन गयी है। जब कोई भी दल विपक्ष में होता है तो उसका एक मात्र लक्ष्य होता है सत्ता प्राप्ति लेकिन जब वही पार्टी सत्ता में आ जाती है तो उसका लक्ष्य बदल जाता है। सत्ता में रहने वाली पार्टी की रणनीति बस यही होनी चाहिए कि उसकी सरकार किस प्रकार बिना किसी झमेले के चले और लम्बे समय तक वह सत्ता में बनी रहे। भारतीय जनता पार्टी जब विपक्ष में थी तो उस समय भी इनकी भूमिका पर सवाल खड़े होते थे और आरोप लगते थे कि कांग्रेस पार्टी के आर्थिक नीतियों पर भाजपा की मौन स्वीकृति है। यही नहीं जब संसद भवन में संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ परमाणु अणुबंध हो रहा था तो भाजपा दिखाने के लिए मात्र विरोध कर रही थी जबकि संयुक्त प्रगतिषील गठबंधन की सरकार का समर्थन कर रहे साम्यवादी दल इस अणुबंध के खिलाफ सरकार से अपना समर्थन तक वापस ले लिये थे। उन दिनों देष में एक जुमला यह भी चला कि भाजपा के बदले प्रतिपक्ष की भूमिका सरकार समर्थक दल ही निभाने लगे हैं। परमाणु दायित्व विधेयक पर भी भाजपा की भूमिका संदेह के घेरे में ही रही। अब भाजपा अपने सहयोगियों के साथ सत्ता में है। भाजपा इस भूमिका में भी अपने आप को मजबूत और प्रभावषाली तरीके से प्रस्तुत करने में विफल साबित हो रही है। इसका जीता जागता उदाहरण विगत दिनों राज्यसभा में प्रतिपक्षी दलों की एकजुट प्रयास से राष्ट्रपति के अभिभाषण में संषोधन विधेयक का पारित होना है। संसदीय मामले के अनुभवी बताते हैं कि यह भारतीय संसदीय इतिहास का पांचवां मौका है जब किसी मामले पर प्रतिपक्षियों ने एकजुटता दिखाते हुए राष्ट्रपति के अभिभाषण पर संषोधन विधेयक पास करा लिया। हालांकि इससे सरकार के संवैधानिक स्वास्थ्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है लेकिन इस घटनाक्रम से दुनियाभर में यह संदेष जाएगा कि केन्द्र सरकार बेहद कमजोर है और वह किसी मामले में ठोस निर्णय लेने की स्थिति में नहीं है।
यह माहौल न तो देषहित में है और न ही समाज के हित में। भारतीय जनता पार्टी जब प्रतिपक्ष में थी तो संयुक्त प्रगतिषील गठबंधन की सरकार को बराबर इसी बात के लिए कोषती रहती थी कि सरकार आंतरिक और वाह्य सुरक्षा के मामले में कमजोर जाबित हो रही है। लगातार यह भी आरोप लगाती थी कि कष्मीर और चीनी सीमोलंघन के मामले में सरकार का रवैया ढुलमुल है। अब भाजपा खुद सत्ता में है। वह निर्णय ले सकती है और उसपर कार्रवाई भी कर सकती है। यदि राष्ट्र की सुरक्षा मामला हो तो प्रतिपक्ष भी सरकार के साथ होगी लेकिन सरकार सत्ता में आने के बाद एकदम से बदल गयी है। जो पड़ोसी, पाकिस्तान भाजपा के लिए देष का सबसे बड़ा दुष्मन था वह आज उसे सबसे बड़ा दोस्त दिखने लगा है। भाजपा के नेता और खुद प्रधानमंत्री पूरे देष को यह समझाने में लगे हैं कि पाकिस्तान के साथ दोस्ती आजतक इसलिए नहीं हो पायी क्योंकि पूर्व की सरकार ने सकारात्मक कोई प्रयास ही नहीं किया। अब हमारी सरकार सही ढंग से पहल कर रही है और वह दिन दूर नहीं जब पाकिस्तान हमारा दोस्त होगा। भाजपा का ऐसा हृदय परिवर्तन कैसे और क्यों हुआ यह रहस्य बना हुआ है। हालांकि पाकिस्तान के साथ यदि दोस्ती होती है तो यह देष के हित में होगा लेकिन जो पाकिस्तान का पूर्व का रवैया रहा है उसमें दोस्ती के मामले में बड़ी सतर्कता बरतनी होगी क्योंकि भारत में आंतरिक असुरक्षा के लिए जिम्मेदार लोग अभी तक पाकिस्तान, चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका से ताकत प्रप्त करते रहे हैं। वैसे इन दिनों संयुक्त राज्य अमेरिका का झुकाव भारत के प्रति थोड़ा बढा है बावजूद इसके अमेरिका अपने व्यापारिक हितों के प्रति बेहद संवेदनषील है। अमेरिका की रणनीति अपने व्यापार पर केन्द्रित होती है। यदि भारत के हितों के इतर जाकर अमेरिका पाकिस्तान को खतरनाक लड़ाकू बेच सकता है तो आने वाले समय में भारत के हितों की कीमत पर वह पाकिस्तान के साथ अन्य समझौते भी कर सकता है। चीन और पाकिस्तान आज भी हमारे लिए भयंकर सिरदर्द बना हुआ है। भारत के लिए पूर्वोत्तर के राज्य और जम्मू एवं कष्मीर का आतंकवाद एक बड़ी समस्या है और उसी समस्या के कारण पूरे देष भर में आतंकवाद का फैलाव जारी है। दूसरी ओर माओवादी आतंकवादियों से लगातार भारतीय राष्ट्रवाद को चुनौती मिल रही है। नरेन्द्र मोदी की सरकार ने अभी तक इन तीनों प्रकार के आतंकवाद को लेकर कोई ठोस पहल नहीं की और संयुक्त प्रगतिषील गठबंधन की सरकार के द्वारा बनाई गयी लीक पर ही चल रही है।
विगत दो वर्षों के आंकड़े की यदि मिमांषा की जाये तो साबित होता है कि देष की आर्थिक प्रगति की गति कमजोर पड़ गयी है। देष का औद्योगिक विकास दर, देष का कृषि विकास दर, देष का मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर धीरे-धीरे कमजोर पड़ता जा रहा है। रोजगार के साधनों का आभाव हो रहा है। संयुक्त प्रगतिषील गठबंधन सरकार की तुलना में अब प्रतिदिन ज्यादा किसान आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं। रूपये की तुलना में डालर दिन व दिन मजबूत हो जा रहा है। मोदी सरकार में ये कुछ देष की अवनति के चित्र उभरकर सामने आए हैं लेकिन मोदी सरकार इनत तमाम बिन्दुओं को नजअंदाज कर हिन्दुत्व के एजेंडे को आगे बढाने की बात सार्वजनिक मंचों से कहकर यह साबित करना चाहती है कि वही एक मात्र पार्टी हिन्दुओं के हितों के लिए काम कर रही है लेकिन अगर गौर से देखा जाये तो इस मामले में भी मोदी सरकार ने कुछ भी नहीं किया है। ऐसा संभव है कि कुछ हिन्दुवादी चिंतक और नेताओं को सरकार में स्थान दे दिया गया होगा लेकिन अभी तक हिन्दुत्व के मुद्दों पर कोई काम सार्वजनिक रूप से दिख नहीं रहा है। कुल मिलाकर मोदी सरकार आंतरिक और वाह्य दोनों क्षेत्रों में अभी तक नक्काड़ा ही साबित हुई है। इसका कुप्रभाव अब अवषाद के रूप में सामने आने लगा है। इस अवसाद को अविलम्ब दूर करने की जरूरत है और इसके लिए सरकार और पार्टी दोनों को न केवल मेहनत करने की जरूरत है अपितु सकारात्मक ढंग से काम करने की जरूरत है और साथ ही विवादों से दूर रहकर सामूहिक शक्ति को जगाने और एक सांगठनिक लहर पैदा करने की जरूरत है।

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