अपने मूल सिद्धांतों पर लौटे संघ और भाजपा

गौतम चौधरी

सवाल कन्हैया का नहीं सवाल सास्कृतिक राष्ट्रवाद का

विगत दिनों जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में जो हुआ, उसका चित्र अब साफ होता जा रहा है। षड्यंत्र के आरोप केवल वामपंथियों पर लग रहे हैं, अपितु इस मामले में उंगलियां दक्षिणपंथियों पर भी उठने लगी है। ऐसे में मुङो मेरे प्रिय कवि वैद्यनाथ मिश्र नागाजरुन की एक कविता याद रही है :


कहां गये धनपति कुबेर वह


कहां गयी उसकी वह अलका,


नहीं पता है व्योम विहारी गंगाजल का,


खोजा परंतु मिला नहीं देवदूत का पता कही पर,


छोड़ो कवि कल्पना थी वह!


मैंने तो भीषण जारों में नभचुंबित कैलाश शिखर पर


महामेघ को


झंझानिल से गरज-गरज भिरते देखा है,


बादल को घिरते देखा है।


बादल को घिरते देखा है।


यह कविता आज के परिप्रेक्ष में बेहद सटीक बैठती है। जब कन्हैया वर्तमान सरकार के उपर सवालों की झरी लगा रहे थे तो मैं यही सोच रहा था कि इस देश में ये सवाल कभी हल होगा भी क्या? कन्हैया खांटी साम्यवादी हैं, वे खानदानी साम्यवादी हैं। मुङो कन्हैया के उपर कोई टिप्पणी नहीं करनी चाहिए क्योंकि वे नौजवान हैं। उन्हें यह पता नहीं है कि बेगूसराय की धरती को बांझ और बंजर बनाने में साम्यवादियों की कितनी बड़ी भूमिका है। जब साम्यवाद की बात होती है तो स्वाभाविक रूप से जो स्वपA दिखाकर नरेन्द्र भाई ने देश के करोड़ों नौजवान को पागल बनाया वही स्वपA आज कन्हैया परोस रहे हैं। मैं आज कन्हैया और उसके खिलाफ किये गये षड्यंत्र पर कुछ भी बोलने, लिखने की मन:स्थिति में नहीं हूं लेकिन जो लिख रहा हूं वह केवल वामपंथियों के लिए है अपितु दक्षिणपंथियों के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है।


मुङो कहने में कही कोई संकोच नहीं है कि मेरी पृष्ठभूमि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की है। वैचारिक रूप से मैं संघ की विचारधारा से केवल प्रभावित हूं अपितु मेरा मानना है कि दुनिया में कही भी जनक्रांति राष्ट्रवाद के जमीन पर ही संभव है। यदि क्रांति में राष्ट्रवाद नहीं है तो वह क्रांति अपने लक्ष्य को प्रप्त ही नहीं कर सकती है। आधुनिक विश्व में चाहे वह रूस की रक्तहीन क्रांति हो या चीन की साम्यवादी क्रांति। हमारे सामने हर क्रांति में राष्ट्रवाद के प्रत्यक्ष प्रमाण दिखाई देते हैं। मैंने थोड़ा कोडापल्ली सीतारमइया को पढ़ा है। उनकी एक चर्चित किताब जन प्रतिरोध अभियान है। उसमें भी उन्होंने भारत क्रेन्द्रित क्रांति की बात की है। इसलिए कोई यदि यह कहे कि राष्ट्रवाद फंतासी है और उसका कोई वजूद नहीं है तो मैं इस बात का खंडन करता हूं लेकिन कन्हैया ने कुछ मूलभूत सवाल खड़े किये हैं जिसका शाब्दिक जवाब साम्यवादियों के पास तो होगा लेकिन आज भी धरातल पर उस सवाल का जवाब वह दे नहीं पाये हैं।


यही हाल दक्षिणपंथियों का भी है। संघ परिवार के सबसे बड़े चिंतक आदरनीय दत्ताेपंत ठेंगड़ी जी से मैं प्रत्यक्ष रूप से मिल चुका हूं और उनसे मैंने बात भी की है। उन्होंने रामराज्य की कल्पना को साकार बनाने का सिद्धांत मुङो बताया और कहा कि जिस प्रकार वर्गविहीन समाज साम्यवादियों की परिकल्पना है उसी प्रकार रामराज्य हमारी परिकल्पना है। मेरी जो समझ है उसके आधार पर वैचारिकता के धरातल पर जितने साम्यवादी मजबूत हैं उससे कही ज्यादा मजबूत राष्ट्रवादी हैं। समाज की कल्पना, राष्ट्र की अवधारणा, राजनीति, प्रशासन और राज व्यवस्था का सिद्धांत जितना बढ़िया भारतीय सास्कृतिक राष्ट्रवादियों के पास है उतना बढ़िया सिद्धांत साम्यवादियों के पास नहीं है लेकिन जिस प्रकार रूस और चीन में साम्यवाद अपने सिंद्धांतों से गिर गया। जिस प्रकार साम्यवाद का नारा लगाते-लगाते दुनिया के मजदूरों को जोड़ने वाले लोग सोवियत रूस के गुलाम बन गये। जिस प्रकार साम्यवादियों ने ही चेगुआरा को षड्यंत्र करके मौत के घाट उतार दिया। जिस प्रकार अपने ही लोगों को होचीमिंह ने गोलियों से भून दिया। जिस प्रकार चीन के साम्यवादियों ने अपने ही कॉमरेडों को मौत के घाट उतार दिया। जिस प्रकार बोलसेविकों ने मेनसेविकों को मारा। जिस प्रकार ट्रौस्की को स्ट्रालन ने हत्या करवा दी। जिस प्रकार सम्यवादियों ने हिटलर को हिटलर बनने में सहयोग किया, उसी प्रकार आज भारत के राष्ट्रवादी अपने आप को एक नये कॉरनोरेट राष्ट्रवाद में परिवर्तित करने के लिए दुनियाभर के ढ़ोंग करने पर तुले हुआ हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चिंतक प्राध्यापक बजरंग लाल जी एक बार भाषण देने अहमदाबाद गये हुए थे। तीन दिनों तक उनका भाषण हुआ। उसी भाषण के आधार पर उनकी एक किताब सुमंगलम छापी गयी। उनकी परिकल्पना, दत्ताेपंत जी की परिकल्पना, श्रद्धेय दीनदयाल जी की परिकल्पना, के. एन. गोविंदाचार्य जी की परिकल्पना आज भारतीय जनता पार्टी की इस सरकार में कही देखने को नहीं मिलती है। विगत 50 वर्षो से संघ और संघ विचार परिवार के संगठनों के द्वारा जिन पीढ़ियों का निर्माण किया गया उसे यही बताया गया कि जब हमारे विचारधारा की सरकार आएगी तो हम स्वदेशी को युगानुकूल और विदेशी को स्वदेशानुकूल करके उसे स्वीकार करेंगे। बताया गया कि कम से कम अयोध्या में राम जन्मभूमि पर भगवान श्री राम का भव्य मंदिर बनेगा। बताया गया देश में समान नागरिक संहिता लागू होगा। बताया गया धारा 370 समाप्त कर दिया जाएगा। बताया गया एकात्म मानववाद के सिद्धातों पर शासन व्यवस्था चलाई जाएगी। बताया गया कि राम राज्य की ओर बढ़ने की प्रक्रिया प्रारंभ की जाएगी। बताया गया देश में गोहत्या पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया जाएगा। बताया गया देश में शराबबंदी लागू कर दी जाएगी, लेकिन नरेन्द्र भाई मोदी की सरकार पूर्ण बहुमत से आई और सबसे पहला काम देश के किसानों के साथ धोखा करने का किया। किसान कैसे उन्नत होंगे यह बात छोड़ किसान कैसे मरेगे इसपर काम प्रारंभ हुआ। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के लोग नारा लगाते थे, मांग सही है शत प्रतिशत, शिक्षा व्यय हो 10 प्रतिशत लेकिन जब विद्यार्थी परिषद् के विचार परिवार भाजपा की सरकार आई तो उसने शिक्षा पर बजट को घटा दिया। बड़ी सूनियोजित तरीके से प्रचारित किया जाने लगा कि विश्वविद्यालय राष्ट्रद्रोहियों का केन्द्र बन रहा है इसलिए इसे निजी हाथों में सौंप दिया जाये। ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिसका उत्तर केवल वामपंथियों को ढुंढ़ना है अपितु इस सवाल का जवाब दक्षिणपथियों को भी देना होगा। देश में थोक मूल्य में लगातार कमी रही है लेकिन खुदरा महगाई बढ़ रही है। ये खुदरा महगाई बढ़ाने वाले लोग कौन है, उसपर गंभीरता से विचार करना होगा। देश में जो समीकरण बन रहा है वह केवल भाजपा के लिए ही नहीं संघ परिवार के लिए भी खतरे की घंटी है। यदि आज भी अपने मूल सिद्धांतों के उपर परिवार नहीं लौटा तो एक नया राष्ट्रवाद भारत की नियति होगी, जहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का कोई स्थान नहीं होगा।

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