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Showing posts from 2021

क्या हम अपनी महिलाओं के प्रति निष्पक्ष हैं ?

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रोशनी जोश  महिलाओं को आर्थिक , शारीरिक , सामाजिक और मनोवैज्ञानिक रूप से सशक्त बनाने के लिए लड़कियों के लिए शादी की एक निश्चित न्यूनतम आयु की आवश्यकता होती है। इस्लाम ने महिला को उचित शिक्षा प्राप्त करके , पिता और पति की संपत्ति आदि से विरासत प्राप्त करके समाज में खुद को प्रबुद्ध करने के लिए कुछ प्रोत्साहन की पेशकश की है। इस्लामी सिद्धांतों द्वारा सभी मुसलमानों को शिक्षा और उत्कृष्ट कैरियर प्रदान करने के लिए अपनी बेटियों और पत्नियों को पुरुषों के समान व्यवहार करने का आदेश दिया गया है। जैसा कि आंकड़ों से पता चलता है , भारत में कम उम्र में शादी के कारण , लड़कियां अपनी शिक्षा पूरी नहीं कर पाती हैं , कुपोषित रहती हैं और मातृ मृत्यु अनुपात में तेजी से वृद्धि का कारण बनती हैं। इस्लाम ऐसी किसी भी धारणा का समर्थन नहीं करता जो महिलाओं के उत्थान और सशक्तिकरण में बाधक हो। इस्लाम, शिक्षा प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित करता है क्योंकि यह इस्लाम में निहित सपनों को प्राप्त करने का सबसे शक्तिशाली हथियार है। पैगंबर मुहम्मद ( PBUH) ने कहा "शिक्षा प्राप्त करना हर मुसलमान के लिए अनिवार्य है"।

समाज व परिवार दोनों के लिए जरूरी है महिलाओं की शादी की उम्र सीमा 21 का निर्धारण

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रजनी राणा चौधरी  महिलाओं की शादी की उम्र को लेकर इन दिनों बहस छिड़ी हुई है। फरवरी 2020 में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के बजट भाषण, 2020-21 के साथ भारत में इसी तरह की राष्ट्रीय चर्चा हुई, जहां उन्होंने महिलाओं की कानूनी शादी की उम्र को 18 से 21 करने की घोषणा की। महिलाओं की शादी की उम्र पर चर्चा होना स्वाभाविक भी है। दरअसल, भारतीय समाज पारंपरिक पारिवारिक मूल्यों और पितृसत्तात्मक मान्यताओं पर आधारित है। भारत सरकार के निर्णय को महिलाओं की स्वतंत्रता को दांव पर लगाने का हवाला देते हुए कुछ सामाजिक कार्यकर्ता शादी की उम्र को लेकर सरकार की आलोचना कर रहे हैं लेकिन समाज के अधिकतर लोगोें ने इस फैसले की सराहना की है।  भारत ने बाल विवाह निषेध अधिनियम (2006) के अनुसार महिलाओं के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और पुरुषों के लिए 21 वर्ष निर्धारित की है। विभिन्न अध्ययनों के अनुसार, कम उम्र में विवाह को प्रतिबंधित करने वाले सख्त कानूनों के बावजूद, भारत में ऐसे विवाहों की संख्या बहुत अधिक है। उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में भारत के अधिकांश नाबालिग विवाह होते हैं। यह धार

भारत में तालिबान का समर्थन बहुसंख्यकवादी व समावेशी राष्ट्रवाद पर हमला

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गौतम चौधरी एक प्रमुख राष्ट्रीय समाचार पत्र ने हाल ही में असम के दर्जनों मुसलमानों को सोशल मीडिया पर तालिबान समर्थक पोस्ट करने के लिए यूएपीए के तहत गिरफ्तार किए जाने की खबर प्रकाशित किया। इस मुद्दे की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि गिरफ्तार किए गए लोग में कोई भी अनपढ़नहीं है, बल्कि मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक अखिल भारतीय संगठन के राज्य सचिव शामिल सहित कई स्नातक और चिकित्सा पेशेवर हैं। गिरफ्तार किए गए अधिकांश लोगों ने तालिबान को एक इस्लामी सेना के रूप में प्रस्तुत किया, जिसे दुनिया भर के मुसलमानों के उद्धारकर्ता के रूप में कार्य करना चाहिए। यह तथ्य निराधार और बचकाना लगता है तथा इन धारणाओं को जन्म देने वाली विभिन्न परिस्थितियों पर विचार करने की आवश्यकता है। इस प्रकार की खोखली मानसिकता न केवल देश के लिए घातक है अपितु उस समाज के लिए भी यह घातक है, जिस समाज की उक्त संगठन रहनुमाई करता है। भारत में मुसलमानों के एक वर्ग के बीच तालिबान समर्थक भावनाओं के पीछे एक प्रमुख कारण भारत के कुछ प्रमुख मौलवियों/संगठनों द्वारा चरमपंथी संगठन की सकारात्मक समीक्षा को जिम्मेदार ठहराया

डेटिंग : पश्चिमी शब्द को भारतीय परिप्रेक्ष्य में समझने की जरूरत

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पूनम दिनकर भारत में आजकल पश्चिमी लहर तेजी से चल रही है। इस लहर के झोंकों से भारतीय युवा पीढ़ी के रहन-सहन में क्रांतिकारी परिवर्तन, तौर-तरीकों में एक विशेष बदलाव और सोचने-समझने के दृष्टिकोण में आधुनिकता का एक स्पष्ट प्रभाव दृष्टिगोचर हो रहा है। हमारे युवा वर्ग का एक बड़ा हिस्सा पश्चिम के अनुकरण को ही जीवन की सफलता समझने लगा है। युवा वर्ग भारतीय रहन-सहन को मानने के लिए तैयार नहीं है जो उसके अनुसार लक्ष्मण-रेखा की परिधि में रहकर जीवन को नीरस व एकाकी बना डालता है। पश्चिमी अनुकरणों में से ही एक है डेटिंग। डेटिंग शब्द का वास्तविक अर्थ होता है किसी निश्चित स्थान पर व निश्चित तिथि पर मुलाकात करना। यह मुलाकात किसी भी भिन्न-भिन्न उम्र के लोगों के बीच हो सकती है परन्तु आजकल इस शब्द का अभिप्राय दो विपरीत सैक्स वाले व्यक्तियों की मुलाकात से लगाया जाता है। प्रख्यात मनोचिकित्सक डॉ. जयशंकर प्रसाद सिंह के अनुसार युवक-युवतियों में एक-दूसरे से मिलने की इच्छा विपरीत सैक्स का होने के कारण ही होती है और इसी मुलाकात को ‘डेटिंग‘ के नाम से जाना जाता है। युवक-युवतियां प्रायः अपने मन की बात को उन्हीं को कहा करते ह

हमास के रास्ते पर PFI, सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ने की कर रहा है कोशिश

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गौतम चौधरी  इस्लाम के एक विशेषज्ञ और पूर्व पीएफआई समर्थक ने 2015 में दिल्ली में अपने कार्यालय में कहा था कि Popular Front of India (PFI) नेताओं और कार्यकर्ताओं का मानना है कि वे ‘हाराकी’ यानी आंदोलन के लोग हैं, जिनकी इस्लाम की अवधारणा दूसरी इस्लामी आंदोलनों से जुड़े ‘हमास या मुस्लिम ब्रदरहुड’ के समान है। इसी तरह, 2012 में मैंगलोर में पीएफआई मीडिया हाउस में, संगठन के अध्यक्ष ने लोगों को अध्ययन करने की सलाह दी कि किस तरह के इस्लाम ने हमारे आंदोलन को प्रभावित किया है। उन्होंने कहा था कि  हम तब्लीगी जमात या सलाफियों की तरह क्यों नहीं हैं? उन्होंने यह भी कहा था कि सलाफी या तब्लीगियों की तहर हम नहीं हो सकते लेकिन हमास की हरत हैं।  उपरोक्त तथ्यों का उल्लेख ऑक्सफोर्ड रिसर्च स्कॉलर अरंड्ट-वाल्टर एमेरिच द्वारा लिखित ‘इस्लामिक मूवमेंट्स इन इंडिया, मॉडरेशन एंड इट्स डिसकंटेंट्स’ पुस्तक में किया गया है। हाल ही में, यह पुस्तक तब ध्यान में आई जब पीएफआई के महासचिव अनीस अहमद ने अपने ट्विटर अकाउंट के माध्यम से सिफारिश की पीएफआई को समझने के लिए इसे पढ़ना चाहिए। अनीस अहमद का दुस्साहस चैंकाने वाला है कि वह ख

मदनी साहब का बयान भारत की समावेशी सांस्कृतिक परंपरा को मजबूत करने वाला साबित होगा

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गौतम चौधरी  अमेरिकी नेतृत्व वाले गठबंधन बलों के खिलाफ बीस साल की लड़ाई के बाद तालिबान द्वारा सत्ता पर कब्जा करना सामान्य धारणा से परे है। घटनाक्रम इतना नाटकीय था कि हर कोई हैरान रह गया। हालांकि इसमें हैरानी की कोई बात नहीं थी। अफगानिस्तान की समसामयिक घटनाएं और मित्र राष्ट्रों की रणनीति यह बता रही थी कि आज नहीं तो कल तालिबान का अफगानिस्तान पर कब्जा तय है। कई विश्लेषकों ने नए तालिबान को एक आधुनिक, परिष्कृत संस्करण के रूप में पेश किया है, जिसका पुराने तालिबान से बहुत कम संबंध है। हालांकि, वैचारिक प्रतिबद्धताओं और राजनीतिक ढांचे को सुव्यवस्थित करने में अनुमान से कहीं अधिक समय लगेगा। क्योंकि तालिबान ने अतीत में जो सख्ती की थी, उससे यह विश्वास करना मुश्किल हो जाता है कि वे पिछले 20 वर्षों में बदल गए हैं। इसके उदाहरण भी दिखने लगे हैं। लोग देश छोड़ने के लिए बेताब हैं, कुछ लोग राष्ट्रीय ध्वज के लिए लड़ने के लिए सड़कों पर उतर रहे हैं। महिलाएं अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं और बुरी तरह डरी हुई है। विदेशी सरकारें अपने राजनयिकों और दूतावास के कर्मचारियों के बाहर निकलने के जद्दोजहद में लगे हैं।   चूकि अ

अमन पसंद लोगों का मजहब है इस्लाम, इसे बदनामी से बचाना है तो खालिस धार्मिक बने मुसलमान

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गौतम चौधरी   आतंकवाद एक जटिल विषय है। इसकी ठीक-ठीक परिभाषा आसान नहीं है। अमूमन लोगों के बीच आतंक पैदा करने वाले चिंतन को आतंकवाद कहते हैं। संभवतः इसकी विउत्पत्ति क्षद्म युद्ध से हुआ होगा। भारतीय चिंतन में क्षद्म युद्ध को कूट युद्ध भी कहा जाता है। यानी अपने प्रतिद्वंद्वी को परास्त करने के लिए उनके उपर छुप कर हमला करना। इससे दुश्मनों के बीच आतंक फैल जाता है और उसका आत्मबल कमजोर पड़ जाता है। फिर दुश्मन पर आसानी से विजय प्राप्त किया जा सकता है। आतंकवाद से ही मिलता-जुलता शब्द उग्रवाद है।  आम तौर पर आतंकवाद और उग्रवाद में अंतर कर पाना आसान नहीं है लेकिन दोनों दो प्रकार की युद्ध कला है। यदि आप कहें कि उग्रवाद की ही अंतिम परिणति आतंकवाद है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। आधुनिक समय में बड़े पैमाने पर आतंकवाद या उग्रवाद का दौर साम्राज्यवादी ताकतों के खिलाफ देखने को मिलता है। थोड़ा पीछे जाने पर पता चलता है कि साम्राज्यवादी देश जब अपनी सत्ता मजबूत कर रहे थे तो उन्होंने स्थानीय लोगों पर अमानवीय अत्याचार किए। इस अत्याचार के खिलाफ एक वैश्विक माहौल बना और उस माहौल को हवा देने में तत्कालीन सोवियत संघ ने अहम

कश्मीरियों को संविधान सम्मत सारे अधिकार प्रदान हो लेकिन पृथक्तावादी मनोवृति पर भी लगाम जरूरी

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गौतम चौधरी  नई संवैधानिक व्यवस्था के बाद पहली बार केन्द्र सरकार ने बड़े पैमाने पर जम्मू-कश्मीर के स्थानीय नेताओं के साथ अभी हाल ही में एक बैठक संपन्न की है। वार्ता की बैठक में कश्मीर के हालिया स्थिति पर चर्चा के साथ ही साथ संभवतः इस विषय पर भी एक राय बनाने की कोशिश की गयी कि आने वाले समय में कश्मीर को लेकर जो भारत सरकार सोचती है, वही भविष्य की रणनीति भी होगी। वार्ता के कई पक्ष समाचार माध्यमों में सुर्खियां बटोरी। इस बैठक के बाद अखबारी व्याख्याकार और टिप्पणीकारों ने कश्मीर मामले पर बहुत कुछ लिखा और दिखाया है। कई लोगों ने केन्द्र सरकार एवं स्थानीय नेताओं के बीच की बैठक पर अपने मन्तव्य प्रस्तुत किए हैं। लिहाजा, बैठक की योजना सार्वजनिक होने से लेकर बैठक के बाद की स्थिति पर कई प्रश्न भी खड़े हुए हैं। सबसे पहला प्रश्न तो यही उठ रहा है कि आखिर इतने दिनों के बाद केन्द्र सरकार एकाएक बैठक की योजना क्यों बनाई? कुछ जानकारों ने यह भी आशंका व्यक्त की है कि संभवतः केन्द्र की नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार जम्मू-कश्मीर में कुछ नयी व्यवस्था देने की सोच रही है। कुछ टिप्पणीकारों ने यह आशंका भी जताई है

हमारे वर्तमान नेतृत्व में न तो सामूहिकता है न ही अनामिकता

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गौतम चौधरी  ‘‘निंदक नियरे राखिए ऑंगन कुटी छवाय, बिन पानी साबुन बिना निर्मल करे सुभाय।’’ आलोचना लोकतंत्र का श्रृंगार है। खासकर नेतृत्व को इसे केवल सकारात्मक ढंग से ही नहीं लेना चाहिए। इससे न केवल नेतृत्व को हानि  होती है अपितु परेशानी में फंसता है। दुनिया का इतिहास यही कहता है। भारत में राजतंत्रात्मक व्यवस्था में भी आलोचना का अपना अलग महत्व रहा है। राजा रावण को उसके छोटे भाई और लंका के महामंत्री विभीषण ने कहा था,  ’‘सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास।।’’ यानी जो सचिव, वैद्य और गुरू भय या किसी लालचवस क्रमशः अपने राजा, रोगी और शीष्य को कर्णप्रिय सलाह देता है तो उससे राज, शरीर एवं धर्म का जल्द से जल्द नाश हो जाता है। इतिहास में ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं। हिटलर, मुसोलनी, जार निकोलस, लूई सोलहवां, रावण, कंश, जरासंध, दुर्योधन, मुहमद साह रंगीला, पृथ्वी राज चैहान आदि ऐसे राजा हुए हैं, जिन्होंने कर्णप्रिय सलाह के कारण अपना नाश तो कराया ही अपने राज और कौम का भी नाश करवा लिया।  मगध पर नियंत्रण के बाद महाराजा चन्द्रगुप्त मौय सैलुकस की की बेटी हेलेना के साथ शाद

धार्मिक साम्राज्य की तुलना में बहुधार्मिक लोकतांत्रिक राष्ट्र जनता के प्रति ज्यादा जवाबदेह

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कलीमुल्ला खान  इन दिनों पाकिस्तान में एक नया इस्लामिक धार्मिक आन्दोलन चल रहा है। इस आन्दोलन को चलाने वाले तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान के नाम से पूरे पाकिस्तान में नई इस्लामिक आन्दोलन खड़ा करने की बात कर रहे हैं। वैसे पाकिस्तान को दुनिया भर में इस्लामिक राष्ट्र के रूप में पहचान मिली हुई है लेकिन पाकिस्तान के एक मौलवी, खादिम हुसैन रिजवी साहब ने इस आन्दोलन को प्रारंभ किया। रिजवी साहब का मानना है कि पाकिस्तान केवल कहने के लिए इस्लामिक राष्ट्र है, यहां इस्लाम के सही वसूल कायम नहीं हो पाए हैं और उनकी पार्टी की जब सरकार आएगी तो पाकिस्तान को सचमुच का इस्लामिक राष्ट्र बनाया जाएगा। वैसे रिजवी साहब की विगत दिनों रहस्यमय तरीके से मौत हो गयी। मौलाना रिजवी साहब की मौत में पाकिस्तानी गुफिया एजेंसी आईएसआई की भूमिका बतायी जा रही है। रिजवी साहब की तहर ही पाकिस्तान के कई मौलवी समय समय पर अपने तरीके से इस्लाम को परिभाषित करते हैं और उसके आधार पर देश के प्रशासनिक ढ़ांचे को ढ़ालने की बात करते हैं। अफगानिस्तान में भी इसी प्रकार का एक आन्दोलन प्रारंभ हुआ, उसे तालिबान के नाम से जाना जाता है। तालिबानी लड़ाके जिसके खिल

पाकिस्तानी इस्लामिक परिभाषा और अत्याचार का शिकार रहा है बांग्लादेश

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रजनी राणा  पिछली सदी दक्षिण एशिया के इतिहास में सबसे हिंसक माना जना चाहिए। कई हिंसक टकरावों में से एक, 1971 का बांग्लादेश मुक्ति युद्ध है, जो एक सशस्त्र संघर्ष था। बांग्लादेश युद्ध, बंगाली राष्ट्रवादियों के उदय से शुरू हुआ था। यह मुक्ति संघर्ष बांग्लादेश के गठन तक चलता रहा। बांग्लादेश पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा था और बार-बार सैन तख्तापलत के कारण शोषण और दमन का शिकार होता रहा। जिसके परिणामस्वरूप 1971 और उसके आसपास बड़े पैमाने पर नरसंहार हुआ। यद्यपि पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ बांग्लादेश को इस युद्ध से स्वतंत्रता मिली परन्तु इसके मानव जीवन के रूप में होने वाली छती की भरपाई करना संभव नहीं है। 25 मार्च 1971 की शाम को पूर्वी पाकिस्तान के लोगों के खिलाफ पश्चिम पाकिस्तान में स्थित पाकिस्तानी सैन्य टुकड़ी को ऑपरेशन सर्चलाइट के तहत राष्ट्रवादी बंगाली नागरिकों, बुद्धिजीवियों, छात्रों, धार्मिक अल्पसंख्यकों और विभिन्न प्रसासनिक संस्था से जुड़े लोगों को विशेष रूप से पुलिस और तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान राइफल्स के सैनिक बल और व्यक्तियों की हत्या को अंजाम दिया गया। ढाका एक ही शाम में मौत की घाटी में बदल गया। 25 म

दक्षिण एशिया के विकास में अहम भूमिका निभा रहा है भारत-बांग्लादेश दोस्ती

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गौतम चौधरी भारत हमेशा से अपने सभी पड़ोसियों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध और सह अस्तित्व के सिद्धांत में विश्वास करता रहा है। हालांकि, हर किसी को खुश करना संभव नहीं है, खासकर तब जब पड़ोसी (पाकिस्तान) की रुचि अनैतिक और असामाजिक कार्यों में हो। पड़ोस में बसने वाले देशों में पाकिस्तान और चीन को छोड़ अन्य सभी के साथ बेहद मधुर संबंध हैं। खासकर बांग्लादेश उन पड़ोसी देशों में से है, जिसका संबंध अस्तित्व में आने के बाद से ही मधुर रहा है। हालांकि भारत के साथ बांग्लादेश का छोटा-मोटा विवाद भी चलता रहता है लेकिन दोनों देश के कूटनीतिक संबंध इतने बेहतर हैं कि उन विवादों का द्विपक्षीय संबंध पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। बांग्लादेश और भारत समय-समय पर सामाजिक, सांस्कृतिक, सभ्यता और आर्थिक लिंक एक दूसरे के साथ साझा करते हैं। जानकारी में रहे कि बांग्लादेशी स्वतंत्रता संघर्ष को भारत ने समर्थन दिया था। यही नहीं भारत पहला देश था जिसने 1971 में बांग्लादेश को मान्यता दी और उसके साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित किए। तब से बांग्लादेश, भारत को एक दोस्त, रक्षक और बाजार के रूप में देखता रहा है। बांग्लादेश के साथ बहुआयामी संबंधों क

पाकिस्तान की तुलना में बेहतर जीवन जी रहे हैं भारतीय मुसलमान

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हसन जमालपुरी जब कभी भारतीय मुसलमानों के आर्थिक, सामाजिक परिप्रेक्ष्य की बात की जाती है तो उसकी तुलना स्वाभाविक रूप से पाकिस्तानी मुसलमानों के साथ की जाती है। स्वाभाविक भी है। क्योंकि सांस्कृतिक और धार्मिक आजादी के नाम पर ही कुछ मुस्लिम नेताओं ने पाकिस्तान की मांग की और मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में वह तबका पाकिस्तान चला गया। चुनांचे पाकिस्तान में भारत से गए मुसलमानों को मोहाजिर कहा जाता है। समय बीता परिस्थितियां बदली और आज पाकिस्तान में बसने वाले ये मुहाजिर अपने आप को दुखी और ठगा महसूस कर रहे हैं। उनकी तुलना में भारतीय मुसलमान कहीं आगे हैं। 1947 में, जब पाकिस्तान को भारी रक्त पात के तहत भारत से अलग किया  गया था, सिंधियों ने पाकिस्तान को चुना, जबकि भारत से बड़ी संख्या में उर्दू बोलने वाले मुस्लिमों ने सिंध प्रांत में बसना पसंद किया। सिंधी हिंदुओं, जिनको भारत भागने के लिए मजबूर किया गया उनके द्वारा खाली की गई संपत्ति को प्रवासि भारतीय मुस्लिम के लिए आवंटित कर दिया गया। इन्हीं जिन्हें मुसलमानों को पाकिस्तान में मोहाजिर के नाम से जाना जाता था। दरअसल, मोहजिर शब्द का इस्तेमाल पाकिस्ता

हेमंत शासन का एक साल, इश्तिहारों के जश्न में जमीनी हकीकत की मीमांसा

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Gautam Chaudhary हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली महागठबंधन की झारखंड सरकार ने अभी हाल ही में एक वर्ष पूरा किया है। अपने वर्षगांठ के मौके पर सरकार ने छोटा-सा जश्न भी मनाया। स्वाभाविक  रूप से जश्न बनता भी है। इस मौके पर सरकार के मुखिया ने बड़े जोरदार तरीके से आपनी पीठ थपथपाई और अपने द्वारा एक साल में किए गए कार्यों को लोगों के सामने रखा। उपलब्धियों के निक्षेप बड़े-बड़े होर्डिंग-इश्तिहारों के रूप में आपको पूरे प्रदेश भर में दिखेंगे। सड़कों पर, सार्वजनिक स्थानों पर, मसलन चैक-चैराहों पर लगे होर्डिंगों में सरकार ने अपनी एक साल की उपलब्धियों को मुकम्मल तरीके से स्थान दिलवाने की कोशिश की है। जिन उपलब्धियों की सरकारी अपने प्रचारों में जगह दी है, उसमें से अधिकतर का जमीन पर कोई वजूद नहीं दिखता लेकिन इससे सरकार की उपलब्धियां कम नहीं होती है।  वैसे किसी सरकार के लिए एक साल का समय कोई ज्यादा नहीं होता है और तरंत इसकी समीक्षा करना भी ठीक नहीं है लेकिन जब सरकार खुद अपनी ओर से इश्तेहार दे रही है तो समीक्षा करना स्वाभाविक हो जाता है। इसमें कहीं कोई संदेह नहीं है कि हेमंत की सरकार ने कोविड-19 जैसी वैश्विक महामार