हेमंत शासन का एक साल, इश्तिहारों के जश्न में जमीनी हकीकत की मीमांसा



Gautam Chaudhary

हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली महागठबंधन की झारखंड सरकार ने अभी हाल ही में एक वर्ष पूरा किया है। अपने वर्षगांठ के मौके पर सरकार ने छोटा-सा जश्न भी मनाया। स्वाभाविक  रूप से जश्न बनता भी है। इस मौके पर सरकार के मुखिया ने बड़े जोरदार तरीके से आपनी पीठ थपथपाई और अपने द्वारा एक साल में किए गए कार्यों को लोगों के सामने रखा। उपलब्धियों के निक्षेप बड़े-बड़े होर्डिंग-इश्तिहारों के रूप में आपको पूरे प्रदेश भर में दिखेंगे। सड़कों पर, सार्वजनिक स्थानों पर, मसलन चैक-चैराहों पर लगे होर्डिंगों में सरकार ने अपनी एक साल की उपलब्धियों को मुकम्मल तरीके से स्थान दिलवाने की कोशिश की है। जिन उपलब्धियों की सरकारी अपने प्रचारों में जगह दी है, उसमें से अधिकतर का जमीन पर कोई वजूद नहीं दिखता लेकिन इससे सरकार की उपलब्धियां कम नहीं होती है। 


वैसे किसी सरकार के लिए एक साल का समय कोई ज्यादा नहीं होता है और तरंत इसकी समीक्षा करना भी ठीक नहीं है लेकिन जब सरकार खुद अपनी ओर से इश्तेहार दे रही है तो समीक्षा करना स्वाभाविक हो जाता है। इसमें कहीं कोई संदेह नहीं है कि हेमंत की सरकार ने कोविड-19 जैसी वैश्विक महामारी में अपने बेहतर प्रशासनिक भूमिका को प्रदर्शित किया। इससे हेमंत को प्रसिद्धि भी मिली लेकिन इससे ओवरआॅल सरकार की भूमिका की सराहना नहीं की जा सकती है। 


वैसे मुख्य प्रतिपक्षी भारतीय जनता पार्टी ने सरकार को 0/100 अंक दिया है, जिसे आप पूर्वाग्रह समीक्षा कह सकते हैं लेकिन हेमंत सरकार इस बात से पल्ला नहीं झाड़ सकती है कि उसके शासन की अदूरदर्शी चिंतन ने प्रदेश की सबसे बड़ी समस्या माओवाद को फिर से संगठित और मजबूत होने का मौका दे दिया है। हेमंत की सरकार में बड़ी तेजी से विधि-व्यवस्था की स्थिति कमजोर हुई है, जिसका जीता जागता उदाहरण खुद मुख्यमंत्री के काफिले पर हमला है। इधर इस सरकार में नौकरशाही सर चढ़ कर बोल रही है। उसका उदाहरण प्रदेश के पुलिस महानिदेशक महोदय हैं। पुलिस प्रमुख ने मुख्यमंत्री के काफिले पर हमला वाले प्रकरण में लौह दंड से हमलावरों के सिर कुचलने की बात कही है। पुसिस प्रमुख का यह बयान सांप के चले जाने के बाद लाठी पीटने वाली कहावत को चरितार्थ करता है। मुख्यमंत्री के काफिले पर हमला, प्रदेश की सुरक्षा व्यवस्था की अकर्मण्यता का सबसे बड़ा उदाहरण है। प्रशासन की सूचना पर भरोसा करें तो इतनी बड़ी साजिश की खुफिया जानकारी न मिलना भी प्रशासन की बड़ी चूक है। अब सवाल यह उठाता है कि जब खुद मुख्यमंत्री ही सुरक्षित नहीं है तो प्रदेश की जनता कितनी सुरक्षित होगी उसका अंदाजा लगाया जा सकता है। दूसरी बात कोई जिम्मेदार पुलिस पदाधिकारी बिना आरोप सिद्ध हुए किसी को दंडि देने की बात कैसे कर सकता है? यह दोनों बातें साबित करता है कि जनता के द्वारा चुनी हुई सरकार के नियंत्रण से नौकरशाही मुक्त हो गयी है। 


हेमंत से यह भी अपेक्षा की जा रही है कि वह पूर्ववर्ती रघुबर सरकार की तरह बड़बोल नहीं होगी लेकिन मुख्यमंत्री इस मिथक को भी तोड़ते नजर आ रहे हैं। हालिया कुछ घटनाओं ने एक बार फिर से प्रदेश की जनता को पुराने निजाम की याद दिला दी है। अब प्रदेश की जनता धरल्ले से रघुबर सरकार की तुलना हेमंत सरकार से करने लगी है। 


चुनाव के दौरान हेमंत सरकार ने जनता से कुछ वादे किए थे। मसलन, सभी गरीब परिवारों को ₹72000 देना, गरीबों को तीन कमरे का मकान, 100 यूनिट बिजली मुफ्त, वृद्धा पेंशन ₹2500 करना, प्रत्येक गांव में किसान और महिला बैंक, हर प्रखंड में बेहतर सुविधा संपन्न अस्पताल, प्रखंड मुख्यालय के आसपास वेयरहाउस और कोल्डस्टोरेज, युवाओं को रोजगार, हर प्रमंडलों में महिला काॅलेज, हर छात्राओं को साइकिल, पलामू, चाईबासा और हजारीबाग को उप राजधानी का दर्जा आदि लेकिन उसमें से एक भी वादे सरकार की कार्ययोजना के एजेंडे में नहीं दिख रहा है। ऐसे किसान ऋण माफी का सरकार बड़ी जोर-शोर से प्रचार कर रही है लेकिन यह वादा कांग्रेस के घोषणा-पत्र में था और कांग्रेस ने इसे पूरा करने में सफलता भी हासिल कर ली नेकिन हेमंत अपने वादे लगता है भूल गए। उलट, सरकार विगत एक वर्ष में किसी नए कार्य की आधारशिला नहीं रख पायी है। आधारभूत संरचना में प्रदेश फिसिड्डी साबित हो रहा है। अपराधियों और उग्रवादियों के हौसले बुलंद हैं। इसके अलावे सरकार के मुखिया पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगा है। 


मुख्यमंत्री के विशेष कार्याधिकारी पर 300 करोड़ रूपये के भ्रष्टाचार का आरोल है। लौह अयस्क उत्खनन में भी सरकार पर आरोप लग रहा है। भ्रष्टाचार का जीता-जागता उदाहरण बालू का मामला है। घाट की निलामी बंद है लेकिन डीपो पर धरल्ले से लाइसेंस दिए जा रहे हैं। धान खरीदी में जो किरकिरी हुई है वह जगजाहिर है। इन तमाम बिन्दुओं की मीमांसा से तो यही साबित होता है कि प्रदेश की जनता ने जिस आशा और विश्वास के साथ हेमंत के हाथ में बागडोर सौंपी थी उस विश्वास पर सरकार खड़ी नहीं उतर पा रही है। चुनांचे, सरकार की दिशा ठीक नहीं है। सरकार की कुछ नीतियों से अब लगने लगा है कि हेमंत अपनी कमजोरी और गलतियों को छुपाने के लिए अलग हथकंडा अख़्तियार करने योजना पर काम कर रहे है। यही नहीं लोगों का ध्यान बांटने के लिए भी सरकार कुछ नए हथकंडे अख्तियार कर रही है। कुछ प्रेक्षक तो किशोरगंज की हालिया घटना को भी इन्हीं हथकंडों से जोड़कर देख रहे हैं।



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