कोविड 19 वैक्सीन के खिलाफ फैलाई जा रही अफ़वाह से सावधान रहें



गौतम चौधरी 

जब पूरी मानवता कोविद 19 महामारी के कारण अनिश्चितता की स्थिति में है और इसके परिणामस्वरूप दुनिया भर में जान माल की हानि हो रही है, ऐसे में कुछ मौक़ापरस्त और मानवता के दुश्मन दुष्प्रचार में लगे हैं। सोशली मीडिया का उपयोग कर पहले तो कोविड के वैक्सीन पर सवाल खड़ा किया गया और जब इससे मन नहीं भरा तो अब वैक्सीन में सूअर की चरबी होने का अफ़वाह फैलाने लगे हैं। दुनिया की कई वैक्सीन निर्माता कंपनियों ने कोविड टीका बनाने का दावा किया है। फ़ाइज़र, मॉडर्ना और एस्ट्राजेनेका जैसी वैक्सीन बनाने वाली बड़ी कंपनियों ने सूअर की चरबी वाले अफ़वाह पर सफाई भी दी है। कंपनियों के प्रबंधन की ओर से जारी जानकारी में बताया गया है कि उन्होंने अपनी वैक्सीन में जिलेटिन का इस्तेमाल नहीं किया है।


मानव इतिहास में कोरोना वायरस दुनिया में सबसे खतरनाक आपदा और विनाशकारी बीमारी के रूप में सामने आया है। वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने सैकड़ों रातों की नींद हराम कर, इस खतरनाक बीमारी के प्रभाव को कम करने की क्षमता वाले नए टीके विकसित किए हैं। ऐसे में इस टीके का हमें स्वागत करना चाहिए और मानवता के रक्षक वैज्ञानिकों का धन्यवाद करना चाहिए लेकिन कुछ चरमपंथी तत्व वैज्ञानिकों के द्वारा अर्जित क्षमता पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं। एक संप्रदाय विशेष को भड़काने के लिए यह प्रचारित करने पर लगे हैं कि विकसित किए गए कोरोना वैक्सीन में सूअर के चर्बी का उपयोग किया गया है।


इस्लामी कायदे और कुरान-ए-पाक के जानकार मोहम्मद आलम साहब बताते हैं कि सूरे मायदा सहित खने-पीने के मामले की चर्चा कुरान में चार स्थानों पर की गयी है। उन्होंने बताया कि कुरान-ए-पाक के सुरे मायदा में खाने-पीने को लेकर कई हेदायतें दी गयी है। सूरे मायदा में हिदायत करते हुए कहा गया है कि जो सड़ा हुआ हो, बहता हुवा खून हो या सूअर हो-जो की अशुद्ध है, या अल्लाह के अलावा किसी अन्य के नाम पर दिया गया हो, उसे खाना इस्लाम के खिलाफ है। लेकिन वहीं यह भी लिखा गया है कि यदि आपके जान को खतरा है और इसके सेवन से आपकी जान बच जाए तो आप प्रतिबंधित वस्तुओं का भी इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन उसका उतना ही उपयोग करें जिससे आपकी जान बच जाए। इसी रियायत के आधार पर दूसरे व्यक्ति का खून दूसरे व्यक्ति में चढ़ाया जाता है। खून चढ़ाना इस्लामिक कायदे के अनुसार नाजायज है लेकिन कुरान की रियायत के आधार पर ही खून चढ़ाने को जायज ठहराया जाता है।


कुछ बड़े मुस्लिम उलेमाओं का यह कहना है कि कोविड 19 के वैक्सीन में पोर्क जिलेटिन का इस्तेमाल किया गया है और चूकि पोर्क इस्लाम में हराम है इसलिए इस वैक्सीन का उपयोग मुसलमानों के लिए नाजायज है। सच पूछिए तो यह महज एक अफ़वाह के अलावा कुछ भी नहीं है। दुर्भाग्य से, मुस्लिम समुदाय में यह अफवाह बड़ी तेजी से फैल रहा है। फ़ाइज़र और बायोएनटेक और एस्ट्राजेनेका जैसी बायो-टेक कंपनियों ने कहा है कि उनके कोविद -19 वैक्सीन में किसी भी पशु उत्पाद का उपयोग नहीं किया गया है। चूंकि, भारत ने अभी तक किसी भी कंपनी को कोरोना वैक्सीन खरीदने का कोई आदेश नहीं दिया है, इसलिए दवा की संरचना पर संदेह उठाना उचित नहीं है। सैयद मोहम्मद अशरफ किछौछवी, अध्यक्ष अखिल भारतीय उलमा और मशाइख बोर्ड (मुंबई) और वर्ल्ड सूफी फोरम ने एक बयान में साफ स्पष्ट किया है कि इस तरह के संदेह इंडोनेशिया में उठाए गए हैं, जहां चीन से दवा खरीदने पर सहमति बनी है। उन्होंने समुदाय से अपील की है कि वे अफ़वाहों से प्रभावित न हों क्योंकि डॉक्टरों ने सुनिश्चित किया है कि टीकों में पोर्क के किसी भी भाग का उपयोग नहीं किया गया है। इन प्रतिष्ठित मुस्लिम उलेमाओं ने कहा है कि कोरोना वैक्सीन मानव जीवन की सुरक्षा के लिए बनाई गई है और टीके के खिलाफ अफवाहें फैलाने से मुस्लिम समुदाय के बीच ग़लतफहमी पैदा होगी और उन लोगों के जीवन के लिए खतरा पैदा होगा, जिन्हें टीका नहीं मिलेगा। मसलन, सदी के ख़ूँख़ार महामारी को हराने की दिशा में अपने प्रयास में टीकाकरण को अपनाने के लिए हम सभी को आगे आना चाहिए।


इस मामले में मुस्लिम समुदाय को अफ़वाहों से बचना चाहिए। यहां तक कि अगर सूअर के वसा को वैक्सीन के किसी भी रूप में चिकित्सीय रूप से पाया जाता है, तो इस्लाम की रोशनी में इसकी जांच होनी चाहिए। अगर किसी मुसलमान को जान की रक्षा के लिए, भूख या दुश्मन द्वारा विवश होने के कारण सूअर के मांस जैसे निषिद्ध जानवरों को खाने के लिए बाध्य किया जाता है तो वह धर्म विरूद्ध नहीं माना जाएगा। यही नहीं इस्लाम यह भी कहता है कि एक व्यक्ति के धर्म भ्रष्ट होने से यदि लाखों मुस्लिम जीवन की रक्षा होती है तो उसमें कोई हर्ज नहीं है। यहां वैसी ही परिस्थिति है। मुसलमानों को इस दिशा में सोचना चाहिए। कोविड वैक्सीन में सूअर की चर्बी से संबंधित मुद्दों पर इस्लामी कानून के ज्ञाता मुफ्ती आजम ने कहा है कि कोविड 19 के टीके में कोई गैर इस्लामी तत्व मौजूद नहीं है, जो इस्लाम की नैतिकता के लिए घातक हो। मुस्लिम समुदाय को यह महसूस करना चाहिए कि कोविद 19 एक वैश्विक संकामक बीमारी है। इसकी रोकथाम में कोई चुस्ती पूरी मानवता के लिए घातक साबित हो सकता है।


इस्लाम सबसे उदारवादी और लोकतांत्रिक धर्म है, जिसे तर्कसंगत रूप से समझना चाहिए ना कि आँख बंद करके। प्रसिद्ध मुफ्ती यूसुफ़ शब्बीर द्वारा फतवा पहले ही जारी किया जा चुका है और रियाद, सऊदी अरब के मुफ्ती मोहम्मद ताहिर और एनएचएस सलाहकार मौलाना कलिंगल द्वारा अनुमोदित किया गया है कि यह टीका मुसलमानों द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला हलाल और सुरक्षित है। किसी भी निष्कर्ष पर पहुचने से पहले, मुसलमानों को यह महसूस करना चाहिए कि पश्चिमी मीडिया द्वारा एक प्रचलित अभियान पहले से ही इस्लाम को प्रतिगामी घोषित करने और आधुनिक विज्ञान का विरोधी साबित करने की पूरी कोशिश में है। इस परिदृश्य में, मुसलमानों की यह ज़िम्मेदारी है कि वो दुनिया को दिखाए की इस्लाम और आधुनिकतम अविभाज्य है और मुसलमान आधुनिक विज्ञान के ध्वजवाहक हैं, न कि उसका विरोधी।


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