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Showing posts from August, 2015

हताश भूमिपुत्रों का ‘‘हार्दिक आन्दोलन’’

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गौतम चौधरी गुजरात में बन रहा है नया राजनीतिक-सामाजिक समिकरण हार्दिक पटेल के नेतृत्व में जो इन दिनों गुजरात में हो रहा है वह पूरे देश में होगा। कोई इसे कुछ भी कह ले लेकिन कुल मिलकार यह युवाओं के बीच का असंतोष है, जो आने वाले समय में बढेगा, घटने वाला नहीं है। लिहाजा यह एक संकेत है, जिसे सरकार और सरकार चलाने वाली संस्था समझ ले, अन्यथा बड़े संकट की संभावना को नकारा नहीं जा सकता है। हार्दिक पटेल के नेतृत्व वाला आरक्षण के आन्दोलन को इतिहासकार अपने चश्मे से देख रहे हैं और सामाज विज्ञान वालों का अपना नजरिया है। अर्थ जगत के लोग इस आन्दोलन की व्याख्या अपने ढंग से कर रहे हैं और उद्योगपतियों की सोच अलग है। इस आन्दोलन की पृष्ठभूमि पर यदि चर्चा करें तो गुजरात के विकास, या फिर ऐसा कह सकते हैं कि नरेन्द्र भाई मोदी के विकास मॉडल की निर्थकता सामने आने लगी है।  इस आलेख में गुजरात के राजनीतिक इतिहास पर भी थोड़ी चर्चा करना चाहूंगा, क्योंकि इतिहास के माध्यम से तथ्यों को सही ढंग से समझा जा सकता है। जानकारों के एक समूह का मानना है कि गुजरात में जातीयता की राजनीति कांग्रेस पार्टी ने प्रारंभ की और उसक

चंडीगढ के विकास में भाजपा की भूमिका को याद करेंगे लोग : संजय टंडन

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गौतम चौधरी चंडीगढ प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष संजय टंडन के साथ भेंटवार्त पर आधारित   चंडीगढ प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के इतिहास में व्यापक संघर्ष और मजबूत संगठन तैयार करने का दावा करने वाले संजय टंडन पेशे से चाटर्ड अकाउंटेंड हैं। बेहद व्यवस्थित और अध्यात्मिक जीवन जीने वाले टंडन को राजनीति विरासम में मिली है लेकिन उनका दावा है कि राजनीति के जिस मोकाम पर वे हैं उसमें भौतिक रूप से उनके पिता, छत्तीसगढ के राज्यपाल श्रीमान बलरामजी दास टंडन की कोई भूमिका नहीं है। संजय जी खुद कहते हैं कि वो मेरे पिता है और ऐसा माना जाता है कि पुत्र पिता की प्रतिकीर्ति होता है, इस दृष्टि से उन्होंने मुङो बहुत कुछ दिया लेकिन यदि कोई यह कहे कि संजय टंडन अपने पिता के कारण राजनीति में लगातार सफल हो रहा है, तो यह गलत है। पिता का आर्शिवाद मेरे लिए अति महत्वपूर्ण है। मैं एक हिन्दू परिवार में पैदा हुआ हूं और अपने पूरे परिवार को पूर्ण रूपेण हिन्दू बनाये रखना चाहता हूं इसलिए मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे संगठन के साथ जुड़ा और राजनीति में सुचिता और समाज के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास हो इसलिए मैंने भारतीय जनता

पंजाब में भी गैरपारंपरिक राजनीति की ओर बढ रही है भाजपा

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गौतम चौधरी  कैप्टन अमरिन्द्र तलाश रहे हैं नयी राजनीतिक जमीन इन दिनों पंजाब में एक नये प्रकार का राजनीतिक समिकरण बनता दिख रहा है। जहां एक ओर अखिल भारतीय कांग्रेस के कद्दाबर नेता कैप्टन अमरेन्द्र सिंह पार्टी से नाराज बताये जा रहे हैं वहीं दूसरी ओर सत्तारूढ गठबंधन अकालियों का भाजपाइयों के साथ अन-बन जगजाहिर हो रहा है। भारतीय जनता पार्टी के सूत्रों की मानें तो इस बार के आसन्न पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी 65 विधानसभा क्षेत्रों पर अपना दावा ठोकेगी और यदि अकालियों ने इस मामले में आनाकानी किया तो गठबंधन टूट भी सकता है। इस परिस्थिति में सवाल यह है कि क्या भाजपा अकेले चुनाव लड़ेगी या फिर किसी अन्य नये राजनीतिक साथी को आजमाएगी?  जानकारों का कहना है कि नशों के मामले में सत्तारूढ गठबंधन के दोनों दलों के बीच की तल्खी अभी पूर्ण रूपेण खत्म नहीं हुई है। भाजपा के एक बड़े तबते का मानना है कि प्रदेश अध्यक्ष कमल शर्मा का नाम नशों के कारोबारियों के साथ जोड़ा जाना, कही न कही अकालियों की राजनीतिक चाल है। अकालियों के इस चाल को मात देने के लिए भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व पंजाब अध्यक्ष कमल शर्मा के त

यौनकर्मियों को चाहिए कानूनी संरक्षण

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गौतम चौधरी   यह देश की सुरक्षा और समृद्धि में निभा सकती है बड़ी भूमिका विगत दिनों एकदम से इंटरनेट के ईल साइटों का मामला चर्चा में आ गया। बहस होने लगी, साइट पर प्रतिबंध लगे या फिर उसे छुट्टा छोड़ दिया जाये। वर्तमान सरकार तो इस बात पर अड़ ही गयी थी कि इस प्रकार के सभी साइटों को बंद कर दिया जाये लेकिन इस व्यापार में लगे भारी भरकम पूंजी के दबाव ने हमारी केन्द्र सरकार को पैर पीछे करने के लिए मजबूर कर दिया। मसलन सरकार कमजोर पड़ गयी और ईल साइट के व्यापारी मजबूत। इसी से मिलती-जुलती यदा-कदा वेश्यावृति को कानूनी दर्जा दिये जाने पर भी बहस हाती रहती है। इस वृति को कानूनी अधिकार दिया जाये या नहीं। लिहाजा बहस अभी भी जारी है। ऐसे कुछ देशों में इस वृति को कानूनी अधिकार मिल चुका है।  अपने देश में देखा जाये तो वेश्याओं का इतिहास बड़ा पुराना है। वेश्या की परिभाषा, यदि मूल्य लेकर एक पुरूष से अधिक के साथ यौन संबंध बनाने की है, तो इसका इतिहास अपने यहां बिरले ही मिलता है लेकिन संस्थागत मनोरंजन का इतिहास वैदिक काल प्रचलित है। अपसराएं देवताओं का मन वहलाया करती थी। उन्हें बाकायदा कई बड़े अधिकार प्रप्त थ

ईसाई और इस्लाम संगठित रणनीति के कारण धर्मातरण में हो रहे हैं सफल

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गौतम चौधरी  धर्मातरण मामले में अचूक रणनीति की कमी ङोल रहा है संघ धर्म या मान्यता निहायत निजी मामला है। इसे बदलने का हर किसी को अधिकार है। कोई किस मान्यता में विश्वास करेगा यह उसके खुद पर निर्भर होना चाहिए। इस मामले में भारत सदा से सहिष्णु रहा है। सनातन भारत में हर के अपने अपने भगवान होते थे। इन दिनों धर्मातरण या फिर मतांतरण पर जबरदस्त बहस छिरी हुई है। हिसार जिले के एक गांव में कथित रूप से कुछ दलित इस्लाम स्वीकार कर लिये। उनका आरोप है कि गांव के ही अगड़ी जाति के लोगों ने उनके साथ अन्याय किया है। उस अन्याय के खिलाफ न्याय की गुहार लेकर वे न केवल प्रशासन के पास गये अपितु कई सामाजिक संगठनों के साथ भी उन्होंने संपर्क किया लेकिन न्याय नहीं मिली। अब वे इस्लाम स्वीकार लिये हैं और इस्लाम में वे अपने को ज्यादा सुरक्षित महसूस कर रहे हैं। इसी से मिलती जुलती एक खबर अमर उजाला में मैंने पढी थी। स्टोरी पत्रकार सत्येन्दर सिंह बैंस की थी। हिन्दू जोशी ब्राह्मण मता-पिता का संतान अनाथ होने के बाद मदरसा में जाकर रहने लगा। वहां उसकी इस्लामी ढंग से पढाई हुई और वह मुस्लमान हो गया। आज वह ईत्र का बारोबार

केवल नागा हितों पर नहीं संपूर्ण पूवरेत्तर के हितों पर ध्यान दे केन्द्र

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गौतम चौधरी  नागा कूटनीति के जाल में न फसे मोदी सरकार पूवरेत्तर के सबसे प्रभावशाली उग्रवादी संगठन, नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागा (एनएससीएन) इसाक चिसी सू एवं थुइंग्लैंग मुइवा गुट ने एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी में नये सिरे से केन्द्र के साथ समझौता किया है। यह समझौता समाचार माध्यमों में जबरदस्त तरीके से सुर्खियां बटोरता दिखा। लगभग हर समाचार माध्यमों ने इस खबर को प्रमुखता के साथ सार्वजनिक किया। समाचार वेिषण के माध्यम से भी यह प्रचारित किया जा रहा है कि अब पूवरेत्तर के चरमपंथी मुख्यधारा के साथ जुड़ने लगे हैं। इस प्रचार में कितना दम है, आज के हमारे वेिषका का विषय यही है।  इस मासले पर और कई प्रकार के आकलन आने बांकी हैं। लिहाजा थोड़ा इंतजार हमें करना चाहिए, अभी तुरंत यह कह देना जल्दबाजी होगा कि हमने पूवरेत्तर में शांति स्थापित कर ली है। सर्व प्रथम नागा विद्रोह के इतिहास को देखना पड़ेगा। पवरेत्तर सात राज्यों का समूह है। ये सारे राज्य कभी असोम राज्य के अंग हुआ करते थे। यहां यह भी बता देना उचित रहेगा कि जिस गुट के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने समझौता किया है वह

पाकिस्तानी क्रिकेट टीम का तब्लिगीकरण और उपमहाद्वीप के मुस्लमान

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गौतम चौधरी मैं विगत दिनों पाकिस्तानी स्तंभकार मरियाना बाबर का आलेख पढ रहा था। मरियाना लिखती हैं कि इन दिनों श्रीलंकाई मुस्लमानों में बड़े खतरनाक ढंग से पाकिस्तान के प्रति लगाव बढ रहा है। वो लिखती हैं, जब श्रीलंका-पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच होता है तो अप्रत्याशित तरीके से श्रीलंकाई मुस्लमान पाकिस्तान की हार-जीत पर अपना खुशी-गम मनाने लगते हैं। यदि पाकिस्तान जीतता है तो वे सार्वजनिक रूप से खुशी का प्रदर्शन करते हैं और यदि पाकिस्तान हार गया तो स्थानीय लोगों के साथ लड़ाई करने लगते हैं। सामान्य रूप से भारत के मुस्लमानों में भी इसी प्रकार की प्रवृति देखने को मिलती है। हालांकि सामान्य रूप से इन दिनों भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट का मैच बंद है लेकिन विश्वकप के दौरान भारतीय नौजवान मुस्लमानों में इस प्रकार की प्रवृति देखने को मिल जाती है। विगत दिनों चंडीगढ के पास लालडू-दपड़ के बीच एक निजी अभियंत्रण महाविद्यालय में कुछ विद्यार्थियों का आपस में इसलिए झकड़ा हो गया कि जम्मू-कश्मीर के मुस्लिम विद्यार्थी पाकिस्तान की जीत पर महाविद्यालय के छात्रवास में ही जश्न मनाने लगे। इस जश्न पर कुछ बिहारी