पाकिस्तानी क्रिकेट टीम का तब्लिगीकरण और उपमहाद्वीप के मुस्लमान

गौतम चौधरी
मैं विगत दिनों पाकिस्तानी स्तंभकार मरियाना बाबर का आलेख पढ रहा था। मरियाना लिखती हैं कि इन दिनों श्रीलंकाई मुस्लमानों में बड़े खतरनाक ढंग से पाकिस्तान के प्रति लगाव बढ रहा है। वो लिखती हैं, जब श्रीलंका-पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच होता है तो अप्रत्याशित तरीके से श्रीलंकाई मुस्लमान पाकिस्तान की हार-जीत पर अपना खुशी-गम मनाने लगते हैं। यदि पाकिस्तान जीतता है तो वे सार्वजनिक रूप से खुशी का प्रदर्शन करते हैं और यदि पाकिस्तान हार गया तो स्थानीय लोगों के साथ लड़ाई करने लगते हैं। सामान्य रूप से भारत के मुस्लमानों में भी इसी प्रकार की प्रवृति देखने को मिलती है। हालांकि सामान्य रूप से इन दिनों भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट का मैच बंद है लेकिन विश्वकप के दौरान भारतीय नौजवान मुस्लमानों में इस प्रकार की प्रवृति देखने को मिल जाती है। विगत दिनों चंडीगढ के पास लालडू-दपड़ के बीच एक निजी अभियंत्रण महाविद्यालय में कुछ विद्यार्थियों का आपस में इसलिए झकड़ा हो गया कि जम्मू-कश्मीर के मुस्लिम विद्यार्थी पाकिस्तान की जीत पर महाविद्यालय के छात्रवास में ही जश्न मनाने लगे। इस जश्न पर कुछ बिहारी हिन्दू विद्यार्थियों ने आपत्ति जताई तो जमकर मार-पीट हुई। मैं घायल बिहारी विद्यार्थियों से मिलने गया था तो इस घटना की जानकारी मिली। इसी प्राकर की कुछ घटनाएं नेपाल में भी घट रही है। नेपाली मुस्लिम भी पाकिस्तान के प्रति अपनी सदशयता दिखते दिख जाते हैं। बांग्लादेश में तो एक राजनीतिक पार्टी ही पूरे पाकिस्तान का समर्थन करती है। उसका बस चले तो वह फिर से बांग्लादेश का विलय पाकिस्तान में करा दे। म्यामार में मुस्लमानों से म्यामी इसलिए आक्रोशित और आक्रामक हो रहे हैं कि म्यामार के मुस्लमान म्यामियों के साथ संतुलन बिठाने में नाकाम रहा है। म्यामार के मुस्लमानों का भी पाकिस्तान के प्रति प्रेम जगजाहिर है। कुल मिलकार देखें तो दक्षिण एशिया के मुस्लमानों का पाकिस्तान के प्रति प्रेम बढ रहा है। यह न तो दक्षिण एशिया के अन्य देशों में बसे मुस्लमानों के लिए शुभ है और न ही उन देशों के हित में है जहां के मुस्लमान पाकिस्तान के प्रति प्रेम दिखा रहे हैं। 

ज्यादातर इस प्रकार की घटना क्रिकेट मैचों के दौरान देखने को मिलती है। दक्षिण एशियायी देशों में से चार देशों के पास अपनी क्रिकेट टीम है। भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका पहले से क्रिकेट खेलते रहे हैं। इन देशों के पास अच्छे खिलाड़ी भी हैं और टीम भी अच्छी है। इस बात के साथ एक और बात यहां जोड़ना ठीक रहेगा, जिससे क्रिकेट के द्वारा पाकिस्तानी कूटनीति के रहस्य को समझा जा सकता है। मेरे खास मित्र संजीव पांडेय जी कई बार पाकिस्तान की यात्र कर चुके हैं। एक दिन बता रहे थे कि पाकिस्तान की गुप्तचर संस्था आईएसआई ने सन् 1995-96 के दौरान बड़ी सूनियोजित तरीके से तब्लिीगी पृष्टभूमि वाले कुछ खिलाड़ियों को प्रशिक्षित कर पाकिस्तानी क्रिकेट टीम में घुसाया था। संजीव जी ख्यातिलब्ध स्तभकार हैं और पाकिस्तान के मामले पर जबरदस्त विमर्श करते हैं। उन्होंने आगे बताया कि पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के कप्तान इजमामुल हक इस पूरी योजना के रणनीतिकार थे। जब कभी पाकिस्तानी टीम बाहर के देशों में खेलने जाती थी उसके साथ नईम नामक तब्लिीगी उनके साथ जाता और उस देश के तब्लिगी नेता से पाकिस्तानी क्रिकेटरों का परिचय कराता था। इजमामुल की टीम में ईसाई से मुस्लिम बनने वाले क्रिकेटर मो. युसुफ, अकलैन मुस्ताक, सईद अफरीदी और सोएब मल्लिक जब कभी भी पाकिस्तान से बाहर के देशों में खेलने जाते थे तो वहां खेल के साथ स्थानीय मुस्लमानों को इस्लाम की कट्टरता, जेहाद और पाकिस्तान के बारे में जबरदस्त तरीके से बताते थे और इनका एक एजेंडा पाकिस्तान के प्रति माहौल तैयार करना भी होता था। ये बड़े सूनियोजित तरीके से अपनी रणनीति पर काम करते रहे हैं। यदि इन बातों पर गैर करें तो क्रिकेट के दौरान उपमहाद्वीप में स्थानीय लोग और मुस्लमानों के बीच लफरे की रणनीति समझ में आ जाएगी। 

जानकारों की नजरों में क्रिकेट की कूटनीति पाकिस्तान की एक रणनीतिक चाल है। इसे और सही तरीके से समझा जा सकता है। यदि संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप के मुस्लमानों की संख्या इकट्ठी कर दी जाये तो कुल योग बनता है 54 करोड़ 33 लाख। इसमें यदि अफगानिस्तान और म्यामार को भी जोड़ दिया जाये तो यह योग बन जाता है 57 करोड़ 60 लाख का। इन दिनों पाकिस्तान की रणनीति पूरे दक्षिण एशिया के मुस्लमानों को पाकिस्तान की ओर आकर्षित करना है। पाकिस्तान को लगता है कि ये 57 करोड़ मुस्लमान बड़ी ताकत रखते हैं। पाकिस्तान अपने स्थापना काल से ही दक्षिण एशियायी मुस्लमानों का आदर्श बनना चाहता है। पाकिस्तान की इस कूटनीति की व्याख्या से तो यही लगता है कि वह दक्षिण एशिया के मुस्लमानों को एकत्रकर एक बड़ा इस्लामी राष्ट्र खड़ा करन के फिराक में है। इसलिए पाकिस्तान भारत के मुस्लमानों से जुड़े किसी भी मामले पर प्रतिक्रिया देने का मौका नहीं छोड़ता है। नेपाल में तो मानों पाकिस्तानी गुप्तचर संस्था ने अपना स्थाई आधार ही बना लिया हो। श्रीलंकाई मुस्लमानों के हितों पर पाकिस्तान कुछ-कुछ जरूर करता रहता है। इससे वह यह दिखाना चाहता है कि दक्षिण एशिया में एक मात्र मुस्लमानों का हितैशी देश पाकिस्तान है। यही कारण है कि इन देशों के मुस्लमानों के मन में पाकिस्तान के प्रति प्रेम में दिन व दिन वृद्धि हो रही है। लिहाजा पाकिस्तान इन देशों के मुस्लमानों को इस्लामी कट्टरता के सिवा कुछ भी नहीं दे रहा है और न ही वह देने की स्थिति में है। पाकिस्तान इस कट्टरता को हवा देने के लिए आईएसआई और कट्टर चरमपंथी गुटों का उपयोग करता है और इन दिनों वह क्रिकेट का भी हथियार के रूप में उपयोग करने लगा है। 

हालांकि पाकिस्तान में धार्मिक कट्टरता का अनुभव बुरा रहा है लेकिन पता नहीं क्यों पाकिस्तान इससे बाज नहीं आता। पाकिस्तान के द्वारा खड़े किये आतंकवादी, पाकिस्तान के लिए अब भष्मासुर बन रहा है। क्रिकेट की कूटनीति उसी का एक अंग है। पाकिस्तान अभी भी वास्तविकता को नहीं समझ पा रहा है। दुनिया बदल रही है। घुर विरोधी देश संयुक्त राज्य अमेरिका और इरान आपस में सन्धी कर रहे हैं। क्यूबा तक को अमेरिका ने सन्धी के लिए आमंत्रित किया है लेकिन पाकिस्तान आज भी सन् 1940-50 के दशक की रणनीति पर काम कर रहा है। क्रिकेट की कूटनीति पर ही पाकिस्तान को काम करना है तो वह खेल भाव से क्रिकेट को विकसित करे और अपने को एक उदार इस्लमी राष्ट्र के रूप में दुनिया के सामने प्रस्तुत करे। पाकिस्तान दक्षिण एशिया में जिस प्रकार इस्लाम की कट्टरता का समर्थन कर रहा है उससे इस्लाम के मानने वाले तो पाकिस्तान के प्रति आकर्षित हो रहे हैं लेकिन जितनी तेजी से दक्षिण एशियायी देशों में मुस्लमानों का पाकिस्तान के प्रति आकर्षन बढ रहा है उतनी तेजी से ही उनका स्थानीय लोगों के साथ संघर्ष भी बढ रहा है, जिसका एक खतरनाक उदाहरण म्यामार में देखने को मिल रहा है। हालांकि इस मामले में पाकिस्तान की सोच क्या है वह पता नहीं लेकिन ऐसा लगता है कि आने वाले समय में यह अंतरद्वंद्व और बढेगा और जब बढेगा तो दक्षिण एशिया में स्थानीय बहुसंख्यकों के साथ इस्लाम की लड़ाई तय है। उस लड़ाई में पाकिस्तान को कितना फायदा होगा यह तो समय बताएगा लेकिन मुस्लमानों को बड़ी कीमत चुकानी होगी। उस संघर्ष को पाकिस्तान सम्हाल नहीं सकता क्योंकि आने वाले समय में पाकिस्तान अपने गृहकलह में ही इतना व्यस्त हो जाएगा कि उसे दक्षिण एशियायी मुस्लमानों की सुध नहीं रहेगी। दूसरी बात यह है कि पाकिस्तान की पश्चिमी सीमा किसी भी वक्त आईएसआईएस के संघर्ष का अड्डा बन सकता है। ऐसे में पाकिस्तान अपनी पश्चिमी सीमा को सम्हालेगा कि दक्षिण एशिया की कूटनीति को, यह सवाल बड़ा है और व्यापक भी, जिसपर दक्षिण एशियायी मुस्लमानों को गंभीरता से विचार करना चाहिए। क्रिकेट खिलाड़ी पाकिस्तान से आएंगे और क्रिकेट खेलकर चले जाएंगे। मुस्लमानों को रहना दक्षिण एशिया के बहुसंख्यकों के साथ ही है। संबंध बिगाड़कर कभी भी शांति से जीवन नहीं जीया जा सकता है। दूसरी ओर पाकिस्तान को भी चाहिए कि वह अन्य देशों के मुस्लमानों को उकसाने के बदले इस्लाम के उदार पक्ष को बताए। नि:संदेह पाकिस्तान एक बड़ा मुस्लिम राष्ट्र है। वह यदि अपनी रणनीति को उदारता के साथ प्रस्तुत करेगा तो दक्षिण एशिया में शांति आएगी और देर सबेर इससे पाकिस्तान को भी फायदा होगा। 


Comments

Popular posts from this blog

अमेरिकी हिटमैन थ्योरी और भारत में क्रूर पूंजीवाद का दौर

आरक्षण नहीं रोजगार पर अपना ध्यान केन्द्रित करे सरकार

हमारे संत-फकीरों ने हमें दी है समृद्ध सांस्कृतिक विरासत