यौनकर्मियों को चाहिए कानूनी संरक्षण

गौतम चौधरी  
यह देश की सुरक्षा और समृद्धि में निभा सकती है बड़ी भूमिका
विगत दिनों एकदम से इंटरनेट के ईल साइटों का मामला चर्चा में आ गया। बहस होने लगी, साइट पर प्रतिबंध लगे या फिर उसे छुट्टा छोड़ दिया जाये। वर्तमान सरकार तो इस बात पर अड़ ही गयी थी कि इस प्रकार के सभी साइटों को बंद कर दिया जाये लेकिन इस व्यापार में लगे भारी भरकम पूंजी के दबाव ने हमारी केन्द्र सरकार को पैर पीछे करने के लिए मजबूर कर दिया। मसलन सरकार कमजोर पड़ गयी और ईल साइट के व्यापारी मजबूत। इसी से मिलती-जुलती यदा-कदा वेश्यावृति को कानूनी दर्जा दिये जाने पर भी बहस हाती रहती है। इस वृति को कानूनी अधिकार दिया जाये या नहीं। लिहाजा बहस अभी भी जारी है। ऐसे कुछ देशों में इस वृति को कानूनी अधिकार मिल चुका है। 

अपने देश में देखा जाये तो वेश्याओं का इतिहास बड़ा पुराना है। वेश्या की परिभाषा, यदि मूल्य लेकर एक पुरूष से अधिक के साथ यौन संबंध बनाने की है, तो इसका इतिहास अपने यहां बिरले ही मिलता है लेकिन संस्थागत मनोरंजन का इतिहास वैदिक काल प्रचलित है। अपसराएं देवताओं का मन वहलाया करती थी। उन्हें बाकायदा कई बड़े अधिकार प्रप्त थे। मुनस्मृति में भी इस प्रकार की कुछ संस्थाओं का जिक्र मिलता है। भारत के ज्ञात इतिहास में मगध महामात्यों चाहे वह महाराजा आजदशत्रु के महामात्य वर्षाकार हों या फिर चक्रवर्ती सम्राट महाराजा चन्द्रगुप्त मौर्य के महामात्य विष्णुगुप्त चाणक्य या फिर राकक्षस कात्यायण। हर किसी ने वारांगणाओं का समर्थन किया है। इतिहास-विदों की मानें तो मगध साम्राज्य में इस प्रकार की वृति को कानूनी अधिकार तक प्रप्त था। पाटलीपुत्र में उन दिनों बड़ी संख्या में मदिरालय और वेश्यालय की व्यवस्था सरकार के संरक्षण में किये गये थे। उससे सरकार को भारी-भरकम कर प्रप्त होता था और समाज एवं सत्ता के खिलाफ कोई षडयंत्र चल रहा हो, इसकी भी सूचना राजा को होती रहती थी। यही नहीं नगर में कोई आगंतुक आया है इसकी सूचना तुरंत राजा और राजकर्मियों को प्रप्त हो जाती थी। जानकार बताते हैं कि मगध साम्राज्य का ताना-बाना गढने में वेश्याओं और नर्तकियों की बड़ी भूमिका थी। दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र, वैशाली में भी नगरवधु की परंपरा थी। बाद में वही परंपरा संस्थागत रूप ले ली और नगरवधु सत्ता का एक सशक्त केन्द्र बनती चली गयी। हालांकि बाद में इसके कारण वैशाली को बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ी लेकिन इसमें संस्था का कम और संस्था पर नियंत्रण रखने वालों का ज्यादा दोष दिखता है। 

भारत में वेश्याओं को कानूनी अधिकार प्रप्त हो या न हो, इस बहस में पड़ना ठीक नहीं है लेकिन दुनियाभर में इस वृति के फायदे और हानि की चर्चा तो होनी ही चाहिए। ऐसे यहां यह जिक्र करना ठीक रहेगा कि आज जिस प्रकार से वेश्यालय और वेश्यावृति को हेय समझा जाता वैसा मुगल काल तक नहीं था। अंग्रेजों के शासन काल के प्रथम चरण, यानि कंपनी काल में भी इस वृति की अच्छी खासी प्रतिष्ठा थी लेकिन सन् 1857 के गदर यानि प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में वेश्याओं और वेश्यालयों ने जमकर कंपनी बहादुर और अंग्रेजों का विरोध किया। मसलन उन दिनों वेश्यालय आजादी के प्रथम जंग के योद्धाओं का केन्द्र बन गया था। इस वृति के खिलाफ संगठित रूप से सरकार ने उसके बाद अभियान प्रारंभ किया और समाज में उसकी प्रतिष्ठा धुमिल होती चली गयी। पहले नाट्यशालाएं, वेश्यालय और मदिरालय मनोरंजन के साधन हुआ करते थे। हालांकि वहां यौनकर्म किस हद तक थी इसका आकलन करना बड़ा कठिन है और उसका कोई ठोस इतिहास ज्ञात नहीं होता है परंतु मनोरंजन के लिए कुछ महिलएं इकट्ठे रहती थी और वह समाज के पुरूषों का मनोरंजन करती थी इसका इतिहास तो पुराना है। 

इन दिनों भारत में यौनकर्मियों को वैधानिक अधिकार प्रप्त नहीं है। इसलिए ऐसे काम करने वालों का कोई आधिकारिक आंकड़ा भी उपलब्ध नहीं है लेकिन भारत सरकार के महिला एवं बाल कल्याण विभाग द्वारा जारी आंकड़ों में बताया गया है कि सन् 2007 में देश में कम से कम 30 लाख यौनकर्मी थी जो 2014 तक बढकर 50 लाख से उपर हो जाने का अनुमान व्यक्त किया गया है। यदि आर्थिक दृष्टि से देखा जाये तो दुनिया में तीन प्रकार के व्यापार बेहद तेजी से बढ रहा है। पहला हथियारों का व्यापार, दूसरा नशों का कारोबार और तीसरा यौन व्यापार। एक आंकड़े में बताया गया है कि जब से लंडन में यौनकर्म को कानूनी अधिकार प्रप्त हुआ है तब से लंडन की इकानामी बड़ी तेजी से बढी है। चीन ने अपने पर्यटन उद्योग को बढावा देने के लिए यौन व्यापार में ढील दी है। सर्वविदित है कि थाईलौंड का पूरा का पूरा अर्थजगत ही पर्यटन और यौन व्यापार पर टिका है। भारत के समुद्री सीमा के अंदर लगभग 1000 द्वीपें हैं। ये सारे के सारे द्वीप आवादी विहीन हैं। इन द्वीपों को यदि पर्यटन के रूप में विकसित कर दिया जाये और उस पर्यटन को बढावा देने के लिए यौन व्यापार में ढील दी जाये तो भारत के इकानॉमी को जबरदस्त बल मिलेगा। साथ ही इन द्वीपों पर जो माफियाओं का अवैध कब्जा है वह भी समाप्त हो जाएगा। फिर भारत की समुद्री सीमा अप्रत्याशित ढंग से सुरक्षित हो जाएगी। हालांकि भारत में पर्यटन का स्वरूप ज्यादातर धार्मिक और अध्यात्मिक है लेकिन इन दिनों गोआ, दमनदीप, अंडमांड-नीकोबार, चेन्नई, मुम्बई आदि समुद्री क्षेत्रों में अलग प्रकार के पर्यटन का भी विकास हुआ है। फिर भारत के ज्यादातर मौज-मस्ती करने वाले पर्यटक थाईलैंड का रूख करते हैं। यदि उन पर्यटकों के लिए देश में ही ऐसे पर्यटन-केन्द्रों का विकास कर दिया जाये तो हमारा पर्यटन बाजार भी विकसित होगा और दुनिया के अन्य देशों के पर्यटकों को भी हम आकर्षित कर सकते हैं। यही नहीं जो 50 लाख यौनकर्म करने वाली वेश्याएं आज नारकीय जीवन बिता रही है उसको भी कानूनी अधिकार मिल जाने के वाद वह सही तरीके से जीवन जीना प्रारंभ कर देगी। इस व्यापार को कानूनी अधिकार मिलने के बाद अपराध पर भी नियंत्रण करने में सहुलियत होगी। 

ये 50 लाख यौनकर्मी तो सीधे-सीधे यौनकर्म के साथ जुड़े हैं इसके अलावा समाज में बड़ी संख्या कॉल गर्ल का धंधा करने वालों की है, जो अन्य प्रकार का काम करने के साथ ही इस धन्धे को पाश्र्व व्यापार के रूप में अपना रखी हैं। हालांकि इसे कानूनी अधिकार मिलने के बाद कुछ विकृतियों की संभावनाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इस वृति को कानूनी अधिकार मिलने के बाद जबरन वेश्यावृति करने वालों का संगठित गिराह बन सकता है, जिसका छोटा रूप आज भी हमें देखने को मिल जाता है। दूसरी ओर अप्राकृतिक यौनकर्म का प्रचलन भी बढने की संभावना है। तीसरी बात जब इस प्रकार के यौनकर्म को कानून की मान्यता मिल जाएगी तो पुरूष वेश्याकर्म करने वाले भी अपनी मांगों को लेकर सड़क पर उतर सकते हैं और वह सामाजिक ताना-बाना के लिए बेहद खतरनाक होगा। इसलिए इस दिशा में यदि कदम बढाया जाये तो बड़ी सोच-समझकर और व्यापक अध्यन के बाद, नहीं तो इसके नकारात्मक प्रभाव से समाज और देश दोनों को बचाना कठिन होगा। 

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