हताश भूमिपुत्रों का ‘‘हार्दिक आन्दोलन’’

गौतम चौधरी
गुजरात में बन रहा है नया राजनीतिक-सामाजिक समिकरण
हार्दिक पटेल के नेतृत्व में जो इन दिनों गुजरात में हो रहा है वह पूरे देश में होगा। कोई इसे कुछ भी कह ले लेकिन कुल मिलकार यह युवाओं के बीच का असंतोष है, जो आने वाले समय में बढेगा, घटने वाला नहीं है। लिहाजा यह एक संकेत है, जिसे सरकार और सरकार चलाने वाली संस्था समझ ले, अन्यथा बड़े संकट की संभावना को नकारा नहीं जा सकता है। हार्दिक पटेल के नेतृत्व वाला आरक्षण के आन्दोलन को इतिहासकार अपने चश्मे से देख रहे हैं और सामाज विज्ञान वालों का अपना नजरिया है। अर्थ जगत के लोग इस आन्दोलन की व्याख्या अपने ढंग से कर रहे हैं और उद्योगपतियों की सोच अलग है। इस आन्दोलन की पृष्ठभूमि पर यदि चर्चा करें तो गुजरात के विकास, या फिर ऐसा कह सकते हैं कि नरेन्द्र भाई मोदी के विकास मॉडल की निर्थकता सामने आने लगी है। 

इस आलेख में गुजरात के राजनीतिक इतिहास पर भी थोड़ी चर्चा करना चाहूंगा, क्योंकि इतिहास के माध्यम से तथ्यों को सही ढंग से समझा जा सकता है। जानकारों के एक समूह का मानना है कि गुजरात में जातीयता की राजनीति कांग्रेस पार्टी ने प्रारंभ की और उसके प्रणोता पूर्व मुख्यमंत्री माधव सिंह सोलंकी को बताया जाता है। दूसरे समूह के जानकारों का कहना है कि सोलंकी के जातीय समिकरण को भारतीय जनता पार्टी ने चुनौती दी और भाजपा केसू भाई पटेल के नेतृत्व में सत्ता के शीर्ष पर पहुंच गयी। जातीय आधार पर यदि देखें तो पटेल, गुजरात का सबसे मजबूत वोटबैंक वाली जाति है लेकिन दूसरा स्थान राजपूतों का है। गुजरात में राजपूज को दरबार कहा जता है। जहां पटेलों की आबादी गुजरात की कुल जनसंख्या का 19 प्रतिशत है वही राजपूतों की आबादी 14 आस-पास है। माधव सिंह सोलंकी ने ‘‘खाम’’ समिकरण बनया और राजपूत, दलित, आदिवासी एवं मुस्लमानों को अपने साथ जोड़कर 151 सीटें जीत ली थी, जिसका रिकार्ड नरेन्द्र मोदी भी कभी नहीं तोड़ पाये हैं। माधव सिंह सोलंकी के नेतृत्व को चुनौती दिया पटेलों ने और पटेलों को प्रश्रय दिया भाजपा ने। सोलंकी के ‘‘खाम’’ समिकरण के समानांतर भाजपा ने पटेल, वाणिया, ब्राह्मण, दलित एवं आदिवासियों का समिकरण बनाया और विगत ढाई दशकों से सत्ता पर काबिज है। पटेल युवाओं में इस बात पर चर्चा होती है कि भाजपा के शासन काल में जितना वाणियों को लाभ मिला है उतना पटेलों को नहीं मिला। दूसरी ओर अहमदाबा, सानंद, आनंद, महेसाणा, खेड़ा, बडोदड़ा, गांधीनगर एवं सुरेन्द्रनगर में बड़े पैमाने पर पटेलों को जमीन से बेदखल किया गया है। हालांकि उनको जमीन के बदले पैसे खूब मिले लेकिन पैसे तो खर्च होने वाली चीज होती है। ज्यादातर पटेल नौजवान उन पैसों को खर्च कर चुके हैं। उन्हें रोजगार नहीं मिला और अपना पारंपरिक पेशा भी हाथ से छूट गया। अब ये लोग अपने को ठगे हुए से महसूस कर रहे हैं। पटेलों की नई पीढी अब नये तरीके से जीना चाह रही है। गुजरात सरकार ने उसके लिए कोई जगह बनाती नहीं दिख रही है। यही कारण है कि हताशा में जी रहे पटेल नौजवानों ने हार्दिक पटेल को अपना नेता चुन लिया और आन्दोलन पर उतर आए हैं। 

यह आन्दोलन पूरे गुजरात में अभी नहीं फैला है लेकिन इसे पूरे गुजरात में फैलते समय नहीं लगेगा। केवल कच्छ को छोड़ दें तो पूरे गुजरात में रोजगार की बड़ी समस्या है। गुजरात में उद्योग तो लग रहे हैं लेकिन वहां स्थानीय लोगों को रोजगार नहीं मिल रहा है। गुजरात की उद्योग नीति में यह कहा गया है कि जो उद्योजक सरकार के छूट का लाभ लेते हैं उन्हें अपने कारखानों में 70 से लेकर 86 प्रतिशत तक स्थानीय लोगों को रोजगार देना होगा लेकिन एक सव्रेक्षण के आंकड़ों को यदि सही मानें तो गुजरात में लगने वाले कारखानों में 20 प्रतिशत से भी कम गुजराती कर्मचारी बहाल हैं। आज जो गुजरात दिख रहा है, उसमें सहकारी आन्दोलन की बड़ी भूमिका है लेकिन नरेन्द्र मोदी के शासनकाल में सहकारी आन्दोलन को बड़ी हानि उठानी पड़ी है। कई सहकारी संस्थाओं को तो योजनाबद्ध तरीके से कमजोर किया गया और उसके स्थान पर कॉरपोरेट को तरजीह दी गयी, जो स्थानीय युवाओं को रोजगार देने में एकदम असफल रहा है। गुजरात के नौजवानों को इस बात के लिए भी दुख है। 

जब से माधव सिंह सोलंकी के बेटे भरत भाई सोलंकी को कांग्रेस ने गुजरात का अध्यक्ष बनाया है, तब से गुजरात में एक नया समिकरण बनने लगा है। दो प्रभावशाली जातियां आपस में हाथ मिलाने की योजना में है। प्रदेश में आठ प्रतिशत वाणियों के प्रभाव ने दोनों जातियों के सियासतबाजों को परेशान कर दिया है। इन दिनों पटेल और राजपूत आपस में मिलकर एक नये राजनीतिक समिकरण की योजना बना रहे हैं। हार्दिक के नेतृत्व में जो आन्दोलन गुजरात में देखने को मिल रहा है वह नये सियासी समिकरण का पूर्वभ्यास है। जानकारी में रहे कि यह दोनों जातियां गुजरात में आरक्षण के दायरे से बाहर है। यदि कांग्रेस इस समिकरण को साध ली तो अगली बार कांग्रेस 150 सीटों से ज्यादा पर जीत दर्ज करा सकती है क्योंकि कांग्रेस के पास 09 प्रतिशत मुस्लमानों का मत पहले से है, अधिकतर राजपूत आज भी कांग्रेस के साथ हैं, दलित और आदिवासियों में कांग्रेस की पहुंच मजबूत है और गुजराती ब्राह्मणों में भाजपा के प्रति कोई मोह नहीं है क्योंकि गुजरात में भाजपा के शासनकाल में चार प्रभावशाली जातियों में से मात्र एक को शासन का लाभ मिला, बांकी के तीन पटेल, ब्राह्मण और राजपूत अपने को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं और यह भाजपा के लिए बेहद खतरनाक है। 

यदि गंभीरता से देखें तो हार्दिक के नेतृत्व वाला आन्दोलन उन नौजवानों का आन्दोलन है जो अपनी जमीन खोने के बाद अपना जीवन असुरक्षित समझ रहे हैं। केन्द्र की भाजपा सरकार गुजरात मॉडल पर ही पूरे देश को चलाना चाहती है। यही करण है कि मोदी सरकार ने भूमि अधिग्रहरण अध्यादेश लागू कर किसानों की जमीन लेने की प्रक्रिया में गति लाने का प्रयास किया है। मोदी के शासनकाल के दौरान गुजरात में जिस प्रकार अहमदाबाद, सूरत और भुज्ज के आस-पास उद्योगों का विकास किया गया है, उसी प्रकार केन्द्र की मोदी सरकार दिल्ली के आस-पास बड़े पैमाने पर किसानों की जमीन लेकर आधुनिक विकास की योजना बना रही है। यदि ऐसा हुआ, तो याद रहे दिल्ली के चारोओर का क्षेत्र विकसित तो हो जाएगा लेकिन वह उतना ही असुरक्षित भी हो जाएगा। क्योंकि दिल्ली के चारोओर भी बड़ी संख्या में किसान रहते हैं। आज किसानों के बच्चे अपने आप को सुरक्षित महसूस कर रहे हैं। अभी उन्हें यह लग रहा है कि कम से कम रोटी और कपड़े की समस्या उन्हें कभी नहीं होगी लेकिन जब उनकी जमीन चली जाएगी तो उनकी अगली पीढी में असुरक्षा का भाव स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होगा और वे गुजरात की तरह सड़कों पर होंगे। कल उन तमाम जगहों पर हिंसक आन्दोलन हो सकता है, जहां के किसानों की जमीन लेकर औद्योगिक घरानों को सौंपी गयी होगी। इसलिए विकास के नाम पर किसानों को जमीन से बेदखल नहीं किया जाये। इससे भाजपा भी लाभ में रहेगी और देश में शांति भी बनी रहेगी, अन्यथा गुजरात जैसे शांत प्रदेश में जब हिंसक आन्दोलन हो सकता है तो देश में युवाओं को उकसाने के लिए कई शक्तियां तो पहले से दुकान लगाकर बैठी हुई है। गुजरात का ‘‘हार्दिक आन्दोलन’’ सरकार के लिए चेतावनी है। सरकार यदि संभल गयी तो ठीक, नहीं तो अशांति के लिए तैयार रहे। ऐसी परिस्थिति में कॉरपोरेट जगत भी सुखमय व्यापार नहीं कर सकता है। व्यापार और उद्योग के लिए शांति जरूरी है। तभी व्यापार फलता-फुलता है, अन्यथा हानि तो उन्हें भी उठानी होगी।

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