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Showing posts from June, 2018

उम्मत राज, इस्लामी राज, शरिया कानून, खिलाफत इत्यादि अवधारणाओं का दुरूपयोग नहीं होना चाहिए

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हसन जमालपुरी दरअसल, कट्टरवादी लोग तथा उनसे जुड़े संगठन उम्मत का राज, इस्लामी राज, शरिया का कानून तथा खिलाफत जैसी आदर्श-अवधारणाओं की आर में कट्टरता को बढ़ावा देकर अंततोगत्वा धार्मिक सौहार्द पर आक्रमण कर देते हैं। इससे उनका स्वार्थ तो सिद्ध हो जाता है लेकिन समाज, देश और मानवता को घाटा होता है। इसलिए हमें मानवीय मूल्यों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। ये सारी अवधारणाएं निःसंदेह आदर्श है लेकिन उसकी जो व्याख्या की जाती है वह कभी-कभी नकारात्मक स्वरूप ग्रहण कर लेता है। इसका प्रयोग दुनिया के कई भागों में हुआ है और उसके घाटे भी हम देख सकते हैं। अफगानिस्तान, पाकिस्तान, इराक, सीरिया आदि देशों को देखिए। यही नहीं आजकल जो यमन में चल रहा है वह भी इसी प्रकार की विचारधाराओं का दुष्प्रभाव है। इससे हमें सीख लेनी चाहिए। मसलन इस अवधारणा के व्याख्याकार आगे चलकर हिंसा, घृणा व आतंकवाद को जन्म देते हैं। तत्पश्चात यही तत्व विभिन्न धार्मिक समुदायों और यहां तक की मुसलमानों को भी तकफीरी कहकर अपना शिकार  बनाते हैं।  मैं शर्तीया तौर पर कह सकता हूं कि इस तरह के इस्लामोफोविया से ग्रस्त अवधारणाएं आज के यु

उग्रवाद जैसी विकृति का इस्लाम में कोई स्थान नहीं

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कलीमुल्ला खान  अगर हर तरह से उग्रवाद को हराना है तो मुसलमानों को इमानदारी से अपनी बहस के मुद्दे को इस्लाम पर केन्द्रित करना होगा, ठीक वैसे ही जिस प्रकार उग्रवादी धर्म का बेजा इस्तेमाल अपने संकीर्ण मनसुबों को पाने के लिए करते हैं। मसलन ऐसा माना जाता है कि किसी जानवन को मारने से पहले चाकू की धार को तेज किया जाता है व आराम से उसको मौत की निंद सुला दिया जाता है। दुर्भाग्य से, यह देखा गया है कि अनगिनत भेड़-बकड़ियों, अन्य जानवरों को ट्रकों में ठूस कर लादा जाता है और कई बार तो बिना वजह उन्हें क्रूरता से मार दिया जाता है।  इसके अलावा, यह भी देखा गया है कि इन जानवरों को कई मर्तबा तपती दुपहरी में बिना पानी की एक बुंद दिए खड़ा होने पर मजबूर किया जाता है। अगर इन मुद्दों पर कोई मुसलमान दया व करुणा की दुहाई देता है तो उसे चमचा, कृतघ्न, पीठ पीछे चुगली करने वाल, भगोड़ा, अतार्किक, आदर्शहीन व अंत में गैर मुस्लिम या नास्तिक तक का नाम दे दिया जाता है।  कुछ मुसलमान जिनका झुकाव उग्र विचारधारा की ओर होता है, उनका मानना है कि गुडवाय जैसा लब्ज गैर इस्लामी है तथा वे इस बात पर जोर देते हैं कि इसके स्

पड़ताल : वहाबियों से व्यापारिक समझौते भारत के लिए कितना हितकर

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गौतम चौधरी @ यदि आप रत्नागिरी वाले हापुस आम के सौकीन हैं तो अब आप उस आम को भूलना प्रारंभ कर दीजिए। दरअसल, अब रत्नागिरी के जिस इलाके में विश्वप्रसिद्ध हापुस के बाग लगे हैं वहां पेट्रोलियम की खेती होने वाली है। मसलन यहां के ज्यादातर आम के पेड़ काट दिए जाएंगे। यह पेट्रोल की खेती कोई और नहीं दुनिया में वहाबी इस्लामिक फिरके के कट्टरपंथी आतंकी जमात का व्यापार, निर्यात और निवेश करने वाले सऊदी अरब करने जा रहा है। यह वही जमात है जिसके मदरसे में पढ़कर हाफिज सईद जैसे आतंकवादी पैदा हुए हैं। जम्मू-कश्मीर के आतंवादी उसी मदरसों की पैदाइस हैं।  कुछ लोग सऊदी अरामको कंपनी का नाम पहली बार सुने होंगे। यह कंपनी दुनिया की सबसे बड़ी ऑयल कंपनी है। इसने अभी हाल ही में भारत सरकार के स्वामित्व वाली तीन प्रमुख तेल कंपनियों के साथ मिलकर भारत में एक विशाल रिफाइनरी परिसर के निर्मांण के लिए 44 अरब डॉलर के सौदे की घोषणा की है। यह रिफाइनरी कहीं और नहीं रत्नागिरी के उसी आम वाले इलाके में लगेगी जिस आम का दुनिया कायल है।  सऊदी कंपनी ने इंडियन ऑयल कॉपोर्रंेशन, भारत पेट्रोलियम कॉपोर्रेशन और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉ

भाजपा के लिए 2019 का आम चुनाव उतना आसान नहीं होगा

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गौतम  चौधरी  हाल के उपचुनावों में भारतीय जनता पार्टी और उसकी सहयोगदी दलों की करारी हार यह साबित करने के लिए काफी है कि भाजपा की लोकप्रियता का ग्राफ गिरा है। दूसरी ओर महागठबंधन की सुगबुगाहट भाजपा के लिए खतरे की घंटी बजाने लगी है। इस मामले में भाजपा समर्थकों का दावा है कि उपचुनाव और आम चुनाव में फर्क होता है इसलिए उपचुनावों की तुलना आम चुनाव से नहीं की जानी चाहिए। लिहाजा भाजपा समर्थक यह भी दावा करते हैं कि इधर के दिनों में जिस किसी राज्यों में विधानसभा का चुनाव हुआ है वहां भाजपा की जीत हुई है और यह साबित करता है कि भाजपा व नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता बरकरार है। लेकिन जो आंकड़े आ रहे हैं वह भाजपा के अनुकूल नहीं हैं। ये आंकड़ें बता रहे हैं कि अगर भाजपा अपनी रणनीति नहीं बदली और तत्काल कुछ लोककल्याणकारी कार्यों को अंजाम नहीं दिया तो आने वाले लोकसभा आम चुनाव में शर्तीया तौर पर भाजपा को कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा।  यही नहीं इन दिनों लगातार कांग्रेस इस योजना में लगी हुई है कि भाजपा के खिलाफ देश के तमाम प्रतिपक्षियों को एक मंच पर लाया जाए। हालांकि उसमें अभी मतभेद बांकी है

अन्य धर्मों के तरह इस्लाम भी देता है पैगाम-ए-अमन

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कलीमुल्ला खान   इस्लामी किताबों में बड़े पैमाने पर अमन की बातें की गयी है लेकिन विरोधी केवल उसका दुश्प्रचार करते हैं। इस्लाम की यदि सकारात्मक व्याख्या करें तो मानवता के लिए बड़ी बात होगी। गोया इस्लम के अनुसार बुनियादी तौर पर हर इंसान अमन पसंद है।  पैदाइषी तौर पर उसके नेचर में ही अमन की ख्वाइष मौजूद है क्योंकि इंसान की तरक्की, उसकी जरूरतों की तकमील और किसी भी समाज का इस्तेहकाम, अमन के माहौल में ही संभव है। इसलिए ऐसा नहीं है कि मुस्तकिल तौर पर कोई षख्स अमन पसंद हो और कोई बदअमनी चाहता हो। इस बात का तालुक किसी खास मजहब से ही नहीं मगर फिर भी हर जमाने में और हर समाज में हमेषा वह लोग रहे हैं जो बदअमनी का जरिया बनते हैं।  वह हकीकत में अपने असली प्रकृति को बिगाड़ चुके होते हैं। उन पर खुदगर्जी, अहम और गलत किस्म का एहसास-ए-बरतरी पैदा हो जाता है। खुदगर्जी का रास्ता दुसरों का हक गसब करने से लेकर गलत तरीके से ताकत हासिल करके उनके जान व माल के लिए खतरा बन जाने तक जाता है। अहम और एहसास-ए-बरतरी का नतीजा यह होता है कि ऐसे लोग अपने से कमजोर लोगों को फकीर समझते हैं और वह यह कोषिष करते हैं कि

ईरान से यूएस का एकतरफा परमाणु समझौता निरस्त करना, कितना असरदार कितना घातक

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Gautam Chaudhary ईरान के साथ हुए अंतरराष्ट्रीय परमाणु समझौते को दरकिनार करते हुए अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इससे अलग होने का फैसला कर लिया है। ट्रंप के इस फैसले की जहां ईरान समेत अमेरिका के दूसरे सहयोगी राष्ट्र आलोचना कर रहे हैं, वहीं उनके इस निर्णय का दुनिया पर बड़ा असर होने की संभावना है।  भारत समेत दूसरे एशियाई देशों पर भी इसका व्यापक असर की उम्मीद जताई जा रही है। चूकि भारत ईरान के बेहद निकट संबंधों वाला देश है। यही नहीं इन दिनों संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ भी भारत की निकटता बढ़ी है। नरेन्द्र मोदी की सरकार के समय तो अमेरिका के साथ रणनीतिक दोस्ती तक की बात पहुंच गयी है। ऐसे में इस समझौता विखंडन का भारत पर क्या असर होगा इसकी पड़ताल बेहद जरूरी है।  तेल पैदा करने और निर्यात वाले देशों में ईरान तीसरे नंबर पर है। खासकर एशियाई देशों को ईरान बड़े पैमाने पर तेल सप्लाई करता है। भारत में सबसे ज्यादा तेल इराक और सऊदी अरब के बाद ईरान से आता है। भारत इस आयात को और बढ़ाने वाला है। हाल ही में जब ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी दिल्ली आए थे तो भारत ने उससे तेल आयात बढ़ाने का