उम्मत राज, इस्लामी राज, शरिया कानून, खिलाफत इत्यादि अवधारणाओं का दुरूपयोग नहीं होना चाहिए


हसन जमालपुरी

दरअसल, कट्टरवादी लोग तथा उनसे जुड़े संगठन उम्मत का राज, इस्लामी राज, शरिया का कानून तथा खिलाफत जैसी आदर्श-अवधारणाओं की आर में कट्टरता को बढ़ावा देकर अंततोगत्वा धार्मिक सौहार्द पर आक्रमण कर देते हैं। इससे उनका स्वार्थ तो सिद्ध हो जाता है लेकिन समाज, देश और मानवता को घाटा होता है। इसलिए हमें मानवीय मूल्यों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। ये सारी अवधारणाएं निःसंदेह आदर्श है लेकिन उसकी जो व्याख्या की जाती है वह कभी-कभी नकारात्मक स्वरूप ग्रहण कर लेता है। इसका प्रयोग दुनिया के कई भागों में हुआ है और उसके घाटे भी हम देख सकते हैं। अफगानिस्तान, पाकिस्तान, इराक, सीरिया आदि देशों को देखिए। यही नहीं आजकल जो यमन में चल रहा है वह भी इसी प्रकार की विचारधाराओं का दुष्प्रभाव है। इससे हमें सीख लेनी चाहिए। मसलन इस अवधारणा के व्याख्याकार आगे चलकर हिंसा, घृणा व आतंकवाद को जन्म देते हैं। तत्पश्चात यही तत्व विभिन्न धार्मिक समुदायों और यहां तक की मुसलमानों को भी तकफीरी कहकर अपना शिकार  बनाते हैं। 

मैं शर्तीया तौर पर कह सकता हूं कि इस तरह के इस्लामोफोविया से ग्रस्त अवधारणाएं आज के युग में अपनायी नहीं जा सकती। चूंकि, अधिकांश मुसलमान अति गरीब, गिरते मनोबल, मूलभूत सुविधाओं से बंचित और अज्ञानी हैं जिन्हें विज्ञान, तकनीकी विकाश और आधुनिक शिक्षा से अवगत कराने की आवश्यकता है। जबतक हम विकास की अवधारणाओं को नहीं समझेंगे तबतक हमारा कल्याण असंभव है। हमारे युवाओं को कुरान कौर कम्प्युटर दोनों का समान ज्ञान होना चाहिए। ताकि हमारे समाज का उद्धार हो सके और हम सभी दृष्टि से समृद्ध कन सकें। इसके विपरीत, निहित स्वार्थों से लिप्त, आंखें मूंद कर धर्मनिर्पेक्षता, लोकतंत्र, राष्ट्र-राज्य, बहुतवाद, लिंग समानता, अल्पसंख्यकों के अधिकार, प्रेस की आजादी मानवाधिकार जैसे सिद्धांतों का विरोध करते हैं और मुस्लिम आबादी को कट्टरवादी विचारधाराओं से प्रभावित करने की चेष्टा करते हैं। यह कहीं नहीं चला और यह भारत में भी संभव नहीं है। 

दरअसल, कट्टरवादी तत्व, सपनो के सौदागर की तरह हैं, जो जिहाद की झूठी अवधारणा फैलाकर, मुसलमानों पर तकफीरी का ठप्पा लगाते हैं और अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं। अब समय आ गया है कि मुस्लिम नौजवान इन सपनों के सौदागरों से दूर रहें और खुद को पढ़ाई, रोजगार व इससे जुड़ी प्रतियोगिताओं, काम-धंधों, परिवार की देख-भाल तथा दूसरों को जीवन के संघर्ष से मुकाबला कराने में मदद करें। समुदाय के नेताओं और धार्मिक उलेमाओं को शोलाबयानी से गुरेज करना चाहिए। जिस प्रकार जाकिर नाईक जैसे लोग टेलीविजन पर भड़काउ भाषण देकर करते थे। तथा इस तरह की बाटने वाली अवधारणाओं से छुटकारा पाना चाहिए, जो नौजवानों को कट्टरवाद की ओर ढकेलती है। इसके अलावा, इन्हें देश के नौजवानों के मार्गदर्शन राष्ट्र-निर्माण एवं सकारात्मक गतिविधियों में लगाने के लिए करना चाहिए।

वास्तव में 21वीं सदी में की जाने वाली अपीलें और दी जाने वाली प्रेरणा, साधन, तरीके और नीतियां इस तरह से सम-सामयिक होने चाहिए कि उनका अनुसरन करने से नैतिकता और मूल्यों का पतन न हो जो सभी देशों और धार्मिक समूहों के विकास के लिए महत्वपूर्ण कारक होते हैं। इस्लाम को यदि वैश्विक चिंतन बनाना है तो हमें विश्व मानवता का नेतृत्व भी करना होगा। ऐसा चाहते हैं तो हमें मानवीय मूल्यों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है न कि कट्टर सोच पर। 

मसलन कुछ मानवीय सौहार्द की घटनाओं को मैं यहां उलेख कर रहा हूं जो सचमुच इस्लामपरस्तों को आत्मसात करना चाहिए। कानपुर के भूसातोली नामक स्थान में वहां के स्थानीय हिन्दू और मुस्लिम अनुयायियों ने गंगा-जमुनी तहजीब की परंपरा को कायम करखते हुए हाल ही में हजरत सैयद शाह चिराग का 11वां सालाना उर्स पूरे धार्मिक रीति-रिवाजों, समर्पण की भावना और जोशा-खरोश से मनाया। उनकी दरगाह एक स्थानीय हिन्दू के घर में स्थित है। जिसके दरवाजे सभी धर्मों को मानने वाले उनके अनुयायियों के लिए खुले रहते हैं। ये अनुयायी इस दरगाह पर चादर चढ़ाते हैं। धूप और अगरबत्ती जलाते हैं तथा देश और समाज में शांति और स्थिरता के लिए मंनते मांगते हैं। 

अभी-अभी हाल ही में बिहार के समस्तीपुर जिले में स्थित रोसरा कस्बे के 70 मुस्लिम बच्चों को एक स्थानीय डाॅक्टर ने जान बचाकर मानवता क मिसाल कायम की है। डाॅक्टर अशोक कुमार मिश्रा ने उन्हें अपने घर में आसरा देते हुए सांप्रदायिक सदभावना का उदाहरण प्रस्तुत किया। 21 मार्च 2018 को इस कस्बे में अनियंत्रित भीड़ ने स्थानीय जिला-उल-उलूम मदरसे, जहां 70-80 बच्चे रहते थे, पर तबाही बचाने व बच्चों को नुकसान पहुंचाने की नियत से धाबा बोल दिया। उस मदरसे के बच्चे और अन्य कर्मचारियों को डाॅक्टर मिश्रा ने अपने घर में सुरक्षा प्रदान की और खाने-पीने तथा अन्य जरूरत की चीजें तबतक मुहैया करवायी जबतक की स्थिति सामान्य नहीं हो गयी और बच्चे अपने घरों में सकुशल नहीं पहुंच गए। 

साम्प्रदायिक फूट डालने वालों की कोशिशों को नकारते हुए तथा मानवता व सौहार्द का उदाहरण पेश करते हुए बिहार के दरभंगा जिले के निवासी मोहम्मद अशफाक को जब यह पता चला कि एक नवजात बच्चा जो गंभीर बीमारी से ग्रस्त था व जिसे खून की जरूरत थी तो अपना रोजा तोड़ते हुए वह भागता हुआ अस्पताल पहुंचा और जरूरतमंद बच्चे को अपना रक्त देकर उसका जीवन बचाया। 

भाईचारे की मिशाल पेश करते हुए मध्य प्रदेश के गुना जिले की भोगीराम काॅलोनी में रहने वाले एक मुसलमान अमजद ने अपने सिख दोस्त गुरमीत का अंतिम संस्कार पूरी रीति-निवाज के साथ संपन्न करवाया, जो इस मुस्लिम परिवार के साथ लंबे अरसे से रह रहा था जिसका कोई सगा-संबंधी भी नहीं था। 

धर्म की सीमाओं को लांघते हुए सांस्कृति समिश्रण की एक अनूठी घटना सामने आयी जब अमृतसर जिले के कोटकपूरा नाम स्थान में रहने वाले संत वैद्य गुरमित सिंह अलोमहरी ने अन्य दो सिखों व दो हिन्दुओं के साथ मिलकर पवित्र कुरान का गुरुमुखी में अनुवाद किया और उसकी हजार प्रतियां छपवाकर लोगों में वितरीत की ताकि वे इस पवित्र को पढ़कर समझें और देश के सांस्कृतिक ताने-बाने को मजबूती प्रदान करें। 

पंजाब में लुधियाना जिले की जगड़ांव तहसील के माल्ला गांव के स्थानीय सिखों व हिन्दुओं ने एक-दूसरे के लिए सरोकार का उदाहरण पेश करते हुए आपस में पैसा इकट्ठा कर वहां की एक मस्जिद का जीर्णोद्धार किया ताकि उस गांव का एकलौता मुस्लिम परिवार अपनी नमाज अदा कर सके। 

जिला कानपुर उत्तर प्रदेश के एक गांव रावतपुर के लगभग आठ हजार गांव वासियों ने एक विशाल सामूहिक विवाह समारोह का आयोजन किया जिसमें दोनों संप्रदायों के वर और वधुओं ने हिस्सा लेकर अपने-अपने जीवन साथी चुने। 

धार्मिक सीमाओं से परे जाते हुए केरल के कोच्ची जिले में अलुवा गांव की वाड़ीहीरा मस्जिद की प्रबंधन कमेटी ने लगभग एक हजार लोगों के लिए आवास तथा अन्य जरूरी सुविधाएं उपलब्ध करवाई। ये लोग दूर-दराज के इलाकों से अपने-अपने बच्चों के लिए वहां नजदीक के ही एक काॅलेज में आएयोजित हाने वाली नीट की परीक्षा दिलवाने आए। 

जनाव ये कुछ ऐसे उदाहरण है जो मानवता को मजबूती प्रदान करने वाले हैं। इसी प्रकार के उदाहरण हमें और प्रस्तुत करने होंगे तभी हम इस्लाम को मजबूत कर सकते हैं। हमें समाज को आगे ले जाना है न कि पीछे ढकेलना है। 

Comments

Popular posts from this blog

अमेरिकी हिटमैन थ्योरी और भारत में क्रूर पूंजीवाद का दौर

आरक्षण नहीं रोजगार पर अपना ध्यान केन्द्रित करे सरकार

हमारे संत-फकीरों ने हमें दी है समृद्ध सांस्कृतिक विरासत