पड़ताल : वहाबियों से व्यापारिक समझौते भारत के लिए कितना हितकर


गौतम चौधरी @
यदि आप रत्नागिरी वाले हापुस आम के सौकीन हैं तो अब आप उस आम को भूलना प्रारंभ कर दीजिए। दरअसल, अब रत्नागिरी के जिस इलाके में विश्वप्रसिद्ध हापुस के बाग लगे हैं वहां पेट्रोलियम की खेती होने वाली है। मसलन यहां के ज्यादातर आम के पेड़ काट दिए जाएंगे। यह पेट्रोल की खेती कोई और नहीं दुनिया में वहाबी इस्लामिक फिरके के कट्टरपंथी आतंकी जमात का व्यापार, निर्यात और निवेश करने वाले सऊदी अरब करने जा रहा है। यह वही जमात है जिसके मदरसे में पढ़कर हाफिज सईद जैसे आतंकवादी पैदा हुए हैं। जम्मू-कश्मीर के आतंवादी उसी मदरसों की पैदाइस हैं। 

कुछ लोग सऊदी अरामको कंपनी का नाम पहली बार सुने होंगे। यह कंपनी दुनिया की सबसे बड़ी ऑयल कंपनी है। इसने अभी हाल ही में भारत सरकार के स्वामित्व वाली तीन प्रमुख तेल कंपनियों के साथ मिलकर भारत में एक विशाल रिफाइनरी परिसर के निर्मांण के लिए 44 अरब डॉलर के सौदे की घोषणा की है। यह रिफाइनरी कहीं और नहीं रत्नागिरी के उसी आम वाले इलाके में लगेगी जिस आम का दुनिया कायल है। 

सऊदी कंपनी ने इंडियन ऑयल कॉपोर्रंेशन, भारत पेट्रोलियम कॉपोर्रेशन और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉपोर्रेशन के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया है। इस हस्ताक्षर के अनुसार महाराष्ट्र की रत्नागिरी रिफाइनरी की क्षमता एक दिन में 12 लाख बैरल तेल की होगी। दावा किया जा रहा है कि यह दुनिया की सबसे बड़ी रिफाइनरी होगी और भारत के लगभग ज्यादा से ज्यादा पेट्रोलियम खपत को पूरा करेगी। 

सऊदी अरब रुस के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है। सऊदी अरब के बारे में यह भी सबको पता होनी चाहिए कि उसकी विदेश नीति में इस्लाम का वहावी प्रचार-प्रसार एक महत्वपूर्ण भूमिका के साथ जुड़ा हुआ है। यानी वहावी प्रचार-प्रसार सऊदी अरब की विदेश नीति का हिस्सा है। 

इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के मुताबिक, अरामको सबसे बड़ी तेल कंपनी है जो दुनिया के बाजारों में अपना तेल पहुंचाती है। यह सऊदी अबर की सरकार को संचालित करने वाले परिवार का भी हिस्सा है। दुनिया में जहां-जहां भी इस्लामी आतंकवाद आपको दिखता है, उस आतंकवाद की जननी निःसंदेह रूप से सऊदी अरब का वहाबी चिंतन है। 

हालांकि उस आतंकवाद को पल्लवित, पुष्पित और संपोषित करने में संयुक्त राज्य अमेरिका और युनाइटेड किंगडम की भूमिका भी कम नहीं है लेकिन इन दोनों देशों की भूमिका अप्रत्यक्ष रूप से है, जबकि वहावी इस्लामिक कट्टरपंथ को जन्म देने वाला, उसे सवंर्धित और संपोषित करने वाला देश सऊदी अरब है। दुनिया में जो आज इस्लामिक आतंकवाद का स्वरूप देखने को मिलता है वह अमेरिकी तकनीति, सऊदी वहाबी विचार और पैसा एवं पाकिस्तानी मानव संसाधन का संयुक्त अभियान है। इसको डिजाइन करने में युनाइटेड किंगडम की बड़ी भूमिका है लेकिन जब इस लफड़े से वह खुद प्रभावित होने लगा तो उसने अपना पैर पीछे कर लिया। 

आज भी सऊदी अरब वहाबी चिंतन के प्रसार-प्रचार के लिए दुनियाभर में अरबो पेट्रो डाॅलर खर्च कर रहा है। दुनिया में जिस इस्लाम के कारण लोगों को परेशानी हो रही है उस इस्लाम के प्रचार को आज भी सऊदी अरब अपनी विदेश नीति का अंग बनाए हुए है। कश्मीर के आतंकवादी भले पाकिस्तान से सहयोग प्राप्त करते दिख रहे हों लेकिन जम्मू-कश्मीर के इस्लामी आतंकवादियों को जो समर्थन, पैसा और वैचारिक सहयोग मिल रहा है उसमें सऊदी अरब की बड़ी भूमिका है और सऊदी अरब के ये सारे खेल इसी कंपनी के पैसे से चलता है। 

अब यह कंपनी प्रत्यक्ष रूप से भारत मे निवेश कर रही है। यह सामान्य सा नियम है, जहां व्यक्ति का व्यापारिक फायदा होता है वहा वह किसी प्रकार का लफड़ा खड़ा नहीं करता है लेकिन अरब पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। पश्चिमी देशों में इसकी विस्तारवादी सोच ने कई प्रकार की समस्या खड़ी की है। भारत अरबी चिंतन के आतंक के खिलाफ 1200 सालों से युद्ध कर रहा है। कालांतर में इसके दबाव में भारत कहा तक टिकेगा यह कहना कठिन है। 

खैर, दुनिया भर से हज करने जाने वाले मुसलमानों के द्वारा जो सऊदी अरब की सरकार को फायदा होता है वह पैसा भी इसी कंपनी के माध्यम से दुनिया भर में निवेश किया जाता है। मतलब साफ है दुनियाभर में जो अरबी वहाबी चिंतन का प्रभाव दिखता है उसमें बड़ी भूमिका अरब के इस कंपनी की भी है। भारत की वर्तमान नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने इस रत्नागिरी रिफाइनरी प्रोजेक्ट को मंजूरी दी है। 

अच्छी बात है कि एक दुश्मन देश भारत का दोस्त बन रहा है। वह अपना पैसा भारत में निवेश कर रहा है। इससे भारत को होने वाले फायदे के बारे भी पूरी चर्चा हो रही है लेकिन जो खतरे हैं उसपर भी मुकम्मल चर्चा होनी चाहिए। हमारी सरकार और हमारे कूटनीतिकों को इस बात का मुकम्मल ज्ञान होना चाहिए कि जो विचारधारा के स्तर पर विरोधी होता है उसे दोस्त बनाने में फायदा कितना है और कितनी हानि। यद्यपि इतिहास में घाटों का ब्योरा दर्ज है। लिहाजा इस कंपनी और इसके समझौतों की जानकारी भी जरूरी है। 

अरामको का भारत में निवेश करना कंपनी की वैश्विक रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। साथ ही भारत के साथ सऊदी के प्रगाढ़ होते रिश्तों का भी सबूत है। यह बात सऊदी अरामको के प्रेसिडेंट अमीन नसरी ने कही है। मसलन ऑयल के इंटरनैशनल मार्केट में भारत और चीन जैसे ऑयल के बड़े उपभोक्ताओं का महत्व बढ़ गया है। दुनिया की कई बड़ी पेट्रोलियम कंपनियां भारत में निवेश की संभावनाएं तलाश रही हैं। गौरतलब है कि सऊदी अरामको महाराष्ट्र की ऑयल रिफाइनरी में 50 फीसद की हिस्सेदारी खरीदेगी। सऊदी अरब छह करोड़ टन की क्षमता वाली इस रिफाइनरी के लिए 50 फीसद तेल की आपूर्ति करेगा।

अबू धाबी नेशनल ऑयल कंपनी महाराष्ट्र में प्रस्तावित दुनिया के सबसे बड़े रिफाइनरी कम पेट्रोकेमिकल प्रोजेक्ट में हिस्सा खरीदेगी। सऊदी अरामको अपनी 50 प्रतिशत हिस्सेदारी में से कुछ शेयर एडनॉक को बेचेगी। अभी तक यह साफ नहीं है कि एडनॉक कितना हिस्सा खरीद रही है। अब इस प्रोजक्ट की खासियत भी जान लेनी चाहिए यह दुनिया का सबसे बड़ा रिफाइनरी कम पेट्रोकेमिकल प्रोजेक्ट है। इसकी लागत 44 बिलियन डॉलर (करीब 2.90 लाख करोड़) की है। 

यह 6 करोड़ टन सालाना उत्पादन की क्षमता वाता प्रोजेक्ट होगा। दुनिया की सबसे बड़ी तेल उत्पादक कंपनी अरामको इसका हिस्सेदार। यह उच्च क्षमता वाले पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स का उत्पादन करेगा। इस प्रोजेक्ट को 2025 तक पूरा कर लेने की बात बताई जा रही है। रत्नागिरी दुनिया का सबसे बड़ा रिफाइनरी कम पेट्रोकेमिकल प्रोजेक्ट होगा। सऊदी अरामको दुनिया की सबसे बड़ी तेल उत्पादक कंपनी है। एडनॉक अबू धाबी की सबसे बड़ी तेल उत्पादक कंपनी है।

कुल मिलाकर अच्छी बात है कि अरबी कंपनी भारत में निवेश कर रही है लेकिन यहां सवाल यह है कि आखिर एक वैचारिक दुश्मन जिससे भारत लगातार 1200 सालों से युद्ध कर रहा है उसके साथ यह समझौता कहां तक सार्थक है?

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