पाकिस्तानी इस्लामिक परिभाषा और अत्याचार का शिकार रहा है बांग्लादेश



रजनी राणा 

पिछली सदी दक्षिण एशिया के इतिहास में सबसे हिंसक माना जना चाहिए। कई हिंसक टकरावों में से एक, 1971 का बांग्लादेश मुक्ति युद्ध है, जो एक सशस्त्र संघर्ष था। बांग्लादेश युद्ध, बंगाली राष्ट्रवादियों के उदय से शुरू हुआ था। यह मुक्ति संघर्ष बांग्लादेश के गठन तक चलता रहा। बांग्लादेश पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा था और बार-बार सैन तख्तापलत के कारण शोषण और दमन का शिकार होता रहा। जिसके परिणामस्वरूप 1971 और उसके आसपास बड़े पैमाने पर नरसंहार हुआ। यद्यपि पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ बांग्लादेश को इस युद्ध से स्वतंत्रता मिली परन्तु इसके मानव जीवन के रूप में होने वाली छती की भरपाई करना संभव नहीं है। 25 मार्च 1971 की शाम को पूर्वी पाकिस्तान के लोगों के खिलाफ पश्चिम पाकिस्तान में स्थित पाकिस्तानी सैन्य टुकड़ी को ऑपरेशन सर्चलाइट के तहत राष्ट्रवादी बंगाली नागरिकों, बुद्धिजीवियों, छात्रों, धार्मिक अल्पसंख्यकों और विभिन्न प्रसासनिक संस्था से जुड़े लोगों को विशेष रूप से पुलिस और तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान राइफल्स के सैनिक बल और व्यक्तियों की हत्या को अंजाम दिया गया। ढाका एक ही शाम में मौत की घाटी में बदल गया। 25 मार्च का नरसंहार बांग्लादेश के पूरे अस्तित्व के साथ-साथ दुनिया की ऐतिहासिक पृष्ठ का काला पक्ष है। 


लाखों बंगाली नागरिक, पाकिस्तानी अधिकारियों द्वारा नफरत और हिंसा की राजनीति का शिकार हुए। पाकिस्तान से कुछ तथाकथित इस्लामी नेताओं द्वारा महिलाओं को युद्ध का उपहार के रूप में घोषित किया गया था। उन इस्लामी नेताओं के अनुसार, बंगाली मुस्लिम महिलाओं पर बंगाली हिंदू महिलाओं का गलत प्रभाव था। उनका मानना था कि बंगाली मुसलमान शुद्ध मुसलमान नहीं हैं और इन महिलाओं को गर्वती करने से शुद्ध मुसलमानों की संख्या बांग्लादेश में बढ़ेगी। आश्चर्य, एक फतवे के माध्यम से महिलाओं के बलात्कार को धार्मिक कृत्य बताया गया और जायज ठहराया गया। उस फतवे में कहा गया था, हिन्दू महिलाओं के साथ बलात्कार और हत्या की जाय और मुस्लिम महिलाओं के साथ बलात्कार किया जाय ताकि उनके बच्चों से शुद्ध मुसलमान की संख्या बढे। इन बलात्कार की घटनाओं के परिणाम सवरूप बहुत सारी महिलाओ का गर्भधारण, गर्भपात, शिशुहत्या और आत्महत्याएं की खबर सामने आई।

ऑपरेशन सर्चलाइट का मुख्य लक्ष्य ढाका विश्वविद्यालय के शिक्षक और छात्र थे, जिन्हें माना जाता था कि वे पाकिस्तान के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। पाकिस्तानी सशस्त्र बल ने प्रतिरोध आंदोलन में शामिल होने के लिए विशेष रूप से युवाओ पर अपना ध्यान केंद्रित किया। अगली सुबह, बहुत से युवा बंगाली लड़के खेतों में मृत पाए गए, उनके मृत शरीर सशस्त्र बलों के शिविरों के निकट पाए गए थे। बांग्लादेशी अधिकारियों ने 3 मिलियन से अधिक व्यक्तियों की हत्या का आरोप पाकिस्तानी सरकार पर लगाया था। इस तथ्य के विपरीत पाकिस्तानी सरकार द्वारा गठित आधिकारिक आयोग ने दावा किया कि हताहतों की संख्या सिर्फ 26,000 है। बांग्लादेश शुरू से ही पाकिस्तान की गंदी राजनीति का शिकार रहा है। बांग्लादेशी मुक्ति युद्ध अत्याचार मुक्त राष्ट्र स्थापित करने के लिए सभी नए देशों के लिए एक बेंचमार्क शाबित हो सकता है लेकिन हमें ये याद रखना चाहिए की युद्ध के दौरान जो कुछ भी खोया गया वह हमेशा अपूरणीय रहेगा।


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