अल्पसंख्यकों को भारतीय संविधान पर भरोसा रखना चाहिए, यह सबकी सुरक्षा की देता है गारंटी



गौतम चौधरी 

अभी हाल ही में अल्पसंख्यक अधिकार दिवस मनाया गया। 18 दिसंबर को प्रत्येक वर्ष पूरी दुनिया में अल्पसंख्यक अधिकार दिवस मनाया जाता है। भारत में भी बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक निवास करते हैं। भारतीय संविधान के अनुसार यहां भाषा और धर्म को अल्पसंख्यक का आधार माना गया है। उस दृष्टि से भारत में मुसलमान, ईसाई, सिख, बौध, जैन और पारसी समुदाय के लोगों को अल्पयंख्यक की श्रेणी में रखा गया है। भारतीय संविधान में भारत के हर नागरिक को समान दृष्टि से देखा गया है और संविधान निर्माताओं ने इस बात का विशेष ध्यान रखा था कि देश में आगे चलकर कोई भेदभाव ना रहे और सभी मिलजुल कर रहें, इसलिए संविधान में अल्पसंख्यक और पिछड़े का विशेष ध्यान रखा गया है। भारत अपने लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए दुनिया भर में अलग पहचान रखने वाला देश है। यहां अल्पसंख्यक समुदायों को अलग से भी कई प्रकार के अधिकार दिए गए हैं जो बहुसंख्यकों को प्राप्त नहीं है। यह भारतीय संविधान की विशेषता के साथ ही साथ अल्पसंख्यकों के प्रति संवेदनशीलता को भी दर्शाता है। 


दरअसल, संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 18 दिसम्बर, 1992 को एक घोषणा पारित कर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों के संरक्षण एवं उनके कल्याण को सुनिश्चित करने की व्यवस्था करने की मांग की गई थी। इस घोषणा को यू.एन. डिक्लेरेशन ऑन माइनारटी के नाम से जाना जाता है। इसी को ध्यान में रखते हुए प्रतिवर्ष भारत सरकार द्वारा भी अल्पसंख्यकों के कल्याण हेतु चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों से उन्हें परिचित कराने, उनके कल्याण से सम्बन्धित मामलों को चिन्हित करने, उनके शैक्षिक, आर्थिक एवं सामाजिक विकास हेतु उन्हें जागरूक करने के लिए अल्पसंख्यक अधिकार दिवस का आयोजन किया जाता है। इसके तहत अल्पसंख्यक क्षेत्र विशेष में उनकी जाति, धर्म, संस्कृति, भाषा, परंपरा की सुरक्षा सुनिश्चित करना मुख्य उद्देश्य होता है। भारत की कुल जनसंख्या का लगभग 19 फीसदी अल्पसंख्यक समुदाय हैं। 


भारत के संविधान की धारा 15 और धारा 16 में मौलिक अधिकारों के वर्ग में साफ लिखा हुआ है कि जो सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़े हुए हैं उनके विकास के लिए विशेष कोशिशें की जाएं। यह कोशिश सरकार करती है। संविधान में कहा गया है कि ऐसे लोगों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिलेगा। किंतु इस तरह के प्रावधान किसी भी रूप में धार्मिक आधार पर किसी रियायत की वकालत नहीं करते हैं। भारत में अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय अल्पसंख्यकों से संबंधित मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करता है और अल्पसंख्यक समुदाय के हितों के लिए समग्र नीति के निर्माण, इनकी योजना, मूल्यांकन और नियामक रूपरेखा और नियामक विकास कार्यक्रमों की समीक्षा भी करता है।


अल्पसंख्यकों के लिए भारत में अलग से मंत्रालय है। यह मंत्रालय अल्पसंख्यकों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करता है और उनकी रक्षा और सुरक्षा सुनिश्चित करता है। जैसे शिक्षा का अधिकार, संवैधानिक अधिकार, आर्थिक सशक्तिकरण, महिला सशक्तीकरण, समान अवसर, कानून के तहत सुरक्षा और संरक्षण आदि। यही नहीं भारत का संविधान अल्पसंख्यकों के मानवाधिकार की गारंटी देता है। भारत एक ऐसा देश है जहां बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग निवास करते हैं। भारत का हर अल्पसंख्यक संविधान सम्मत अपने अधिकारों का प्रयोग कर रहा है। वह बिना किसी दूसरे समुदाय को ठेस पहुंचाए अपनी संस्कृति, धर्म और भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए पूर्ण रूप से स्वतंत्र हैं। भारत सरकार ने अल्पसंख्यकों के उत्थान के लिए कई प्रकार की दीर्घ और अल्पकालीन योजनाएं चलायी जाती है। इसका लाभ लेकर भारत के अल्पसंख्यक देश के विकास में अपनी भागिदारी निभा रहे हैं। उन्हें सरकारी सेवाओं में आरक्षण भी प्राप्त है। समय-समय पर उन्हें सरकारी पैकेज का भी लाभ मिलता है। 


भारत के विकास, सुरक्षा और अखंडता की रक्षा में अल्पसंख्यक समुदाय का अद्वितीय योगदान रहा है। इधर के दिनों में अल्पसंख्यक समुदाय के बीच एक खास प्रकार का डर पैदा किया जा रहा है। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता है कि विभिन्न राज्यों में कुछ स्थानों पर हत्या, लूट, बलात्कार, भेदभाव जैसी अल्पसंख्यकों के खिलाफ क्रूर और घातक घटनाएं हुई हैं। एक अध्ययन से पता चलता है कि इस प्रकार की असामाजिक घटनाएं एक विशेष समूहों द्वारा किए गए हैं, इसे किसी समुदाय से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। कुछ प्रतिपक्षी पार्टियों के द्वारा जो प्रचारित किया जा रहा है कि इसमें वर्तमान सरकार की भूमिका है, यह सरासर गलत है। सरकार संविधान से चलती है किसी समूह से नहीं। इसलिए इसे सत्ता के द्वारा प्रायोजित नहीं कहा जाना चाहिए। भारतीय संविधान, अधिकारों के मामले में अल्पसंख्यक व बहुसंख्यम में भेदभाव नहीं कर सकता। समानता, न्याय, स्वतंत्रता, और बंधुत्व भारतीय संविधान की आत्मा है, जिसकी वकालत संविधान की प्रस्तावना में ही दिखता है। इसलिए हालिया घटनाओं पर रचनात्मक दृष्टिकोण रखने की जरूरत है क्योंकि आक्रामक दृष्टिकोण ने हमेशा विनाश की ओर ले जाता है। बहुसंख्यकों के लिए ही नहीं अपितु अल्पयंख्कों को भी भारतीय संविधान की रक्षा के लिए कृतसंकल्पित होना होगा। यदि भारतीय संविधान सुरक्षित रहेगा तो गणराज्य की सीमा निवास करने वाले हर नागरिकों का अधिकार अच्छुन्न रहेगा। जिस प्रकार धर्म की सुरक्षा करने पर धर्म व्यक्ति की सुरक्षा करता है उसी प्रकार भारतीय संविधान की रक्षा करने पर यह सबकी सुरक्षा की गारंटी देता है। 




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