पंजाब में कांग्रेस की पकड़ को मजबूत कर रहा है एसवाइएल का मुद्दा

गौतम चौधरी
सतलुज-यमुना लिंक नहर के पानी पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद पंजाब की राजनीतिक परिस्थिति बदली-बदली-सी दिख रही है। प्रथमदृष्टया निःसंदेह वर्तमान परिस्थिति का सियासी फायदा सबसे ज्यादा पंजाब कांग्रेस को मिलना तय है। हालांकि सत्तारूढ गठबंधन ने भी डैमेज कंट्रोल की पूरी कोषिष की है लेकिन इस मुद्दे पर कांग्रेस बिना समय गमाए इतनी तेज दौर गयी कि अब किसी का हाथ पकड़ना संभव नहीं दिख रहा है। जैसे ही माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने मामले पर अपनी स्थिति स्पष्ट की, पंजाब कांग्रेस ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। आरोप लगाई कि चूकी हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है इसलिए भाजपा के साथ वाली गठबंधन की पंजाब सरकार ने ढंग से पंजाब का पक्ष सर्वोच्च न्यायालय में नहीं रखी और नतीजा पंजाब के हितों के खिलाफ फैसले के रूप में आया। अब इस मामले में भी कांग्रस अन्य सियासी दलों की तुलना में आगे निकलती दिख रही है। मामले पर जितना आक्रामक रूख कांग्रेस ने अपनाया है उतना पंजाब की अन्य सियासी पार्टियों ने नहीं अपनाया। यही कारण है कि पंजाब की जनता के लिए अब कांग्रेस एक मजबूत राजनीतिक विकल्प के रूप में सामने आ रही है। कायदे से देखा जाए तो अभी भी पंजाब की हवा में आम आदमी पार्टी की धमक बनी हुई है लेकिन विगत कुछ समय से कांग्रेस कई मुद्दों पर आम आदमी पार्टी को पीछे ढकेलती दिख रही है। जिसमें सतलुज-यमुना लिंक नहर जल बटवारे का मामला एक है।
इस मामले पर हर पार्टी के अपने-अपने विचार हैं। कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी, केन्द्रीय राजनीति को ज्यादा महत्व देती है। इसलिए अमूमन इन तीनों पार्टियों की धारणा लगभग एक जैसी है। लेकिन अभी केन्द्र में कांग्रेस विपक्षी भूमिका में है इसलिए कांग्रेस के सुर बदले-बदले से हैं। विगत दिनों पंजाब के एक गरमपंथी नेता से मेरी बात हो रही थी। उनका साफ मानना है कि यदि षिरामणि अकाली दल के नेता पंजाब के मुख्यमंत्री सरदार प्रकाष सिंह बादल ने पंजाब के साथ धोखा किया है तो पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने भी पंजाब के साथ छल किया है। वे किस परिप्रेक्ष्य में और ऐसा क्यों कह रहे थे मैं उसे सार्वजनिक नहीं करना चाहता हूं लेकिन इतना तो तय है कि उक्त नेता के अनुसार दोनों पार्टियों ने केन्द्र सरकार के दबाव में काम किया और उसमें पंजाब का हितों की बलि चढ़ाई गयी। खैर हर पार्टी इस मामले में अपनी-अपनी राय रखती है लेकिन उन दिनों कैप्टन अमरिन्दर सिंह के नेतृत्व वाली पंजाब सरकार ने इस मामले में जबरदस्त तरीके से पंजाब का पक्ष लिया था। हालांकि उस समय केन्द्र में आज ही की तरह भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन की सरकार थी और कांग्रेस प्रतिपक्ष में थी लेकिन कैप्टन अमेरन्दर सिंह ने अपनी पार्टी लाईन से हटकर पंजाब के हितों को ध्यान में रख निर्णय लिया और पंजाब राज्य विधानसभा में पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट-2004 पारित कर दिया। इसलिए इस मामले में पहले से कैप्टन का पक्ष मजबूत है। यही कारण है कि इस मुद्दे पर कांग्रेस का पलड़ा भारी होता जा रहा है।
यदि सतलुज-यमुना लिंक नहर अथवा एस.वाई.एल. के इतिहास को देखते हैं तो कांग्रेस पार्टी की धारा दूसरी रही है और एक समय तो ऐसा आया जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने हस्तक्षेप कर पानी के समान बटवारे को सिरे चढ़ाया। इस विवाद की शुरूआत 31 अक्टूबर 1966 को पंजाब राज्य पुनर्गठित से होता है। इस समझौते के तहत पंजाब और हरियाणा दोनों राज्यों को 3.5 मिलियन एकड़ फुट जल विभाजित किया जाना है। जनवरी 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने परियोजना की खुदाई जारी रखने के लिए पंजाब सरकार को निर्देश दिया था। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में एक प्रेसिडेंशियल रिफरेन्स दी गयी और मार्च 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सुनवाई आरंभ किया। 2016 में पंजाब विधानसभा में पुनः एक विधेयक पास कर किसानों को अधिगृहीत भूमि वापस करने की बात कही। तब सुप्रीम कोर्ट ने विधेयक पर यथास्थिति का आदेश दिया। अब माननीय सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय आ गया है। इसके तहत पंजाब को अपने हिस्से का नहर कार्य पूरा करना है क्योंकि सतलुज के पानी पर हरियाणा का अधिकार सिद्ध हो चुका है। इधर हरियाणा के हिस्से वाले नहर का कार्य लगभग पूरा हो चुका है। हरयाणा ने अपने यहां नहर के 92 किमी के कार्य को पूरा कर लिया है। ऐसे में पंजाब चाहे कुछ भी कह ले वर्तमान कानून के तहत उसे पानी का वाजिव हिस्सा हरियाणा को देना ही पड़ेगा। अब केन्द्र में भाजपा की सरकार है जिसमें बादल गुट वाले षिरोमणि अकाली दल भी शामिल है। भाजपा केन्द्रीय कानून के साथ छेड़-छाड़ करने की स्थिति में नहीं है। अगर उसने इस मामले में कुछ भी किया तो देष के अन्य भाग में भी मामले को लेकर समस्या खड़ी हो सकती है। इसलिए वर्तमान में कांग्रेस मजबूत दिख रही है। ऐसे इस मुद्दे के आने से पंजाब का अन्य मुद्दा जरूर कमजोर पड़ गया है लेकिन यह मुद्दा इतना महत्वपूर्ण है कि इसपर पूरा पंजाब आन्दोलित हो सकता है। इस नहर पानी को लेकर पहले भी बड़े खून-खड़ाबे हो चुके हैं। ऐसे में बिठे-बिठाए कांग्रेस के पास एक और मुद्दा हाथ आ गया है। अब देखना है कि इस मुद्दे पर आम आदमी पार्टी क्या स्टेंड लेती है लेकिन जब केन्द्र की राजनीति उसे करनी है तो उसको भी केन्द्रीय पार्टी की तरह ही स्टेंड लेनी होगी। इधर आप हरियाणा के हितों को भी अनदेखा नहीं कर सकती है। सो मिला जुलाकर इस मुद्दे पर कांग्रेस ज्यादा मजबूत दिख रही है। वह सत्ता में नहीं है इसलिए आन्दोलन भी जोरदार तरीके से कर सकती है।  

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