आतंकवाद की जड कांग्रेस पार्टी में


गौतम चौधरी
चंडीगढ
पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्यारे बलवंत सिंह राजोआना की फांसी और फांसी माफी पर बहस जारी है। इस बहस में सबसे अहम बात यह है कि जो लोग घुर राष्ट्रवाद के नाम पर राजनीति कर रहे हैं वे आपराधिक ढंग से चुप्प बैठे हैं। राजोआना की फांसी माफी पर भारतीय कानून और संविधान की अवहेलना कर एक प्रदेष की चुनी हुई सरकार ने अपने प्रदेष के लोकतांत्रिक पंचायत में प्रस्ताव कर रही है। उस प्रस्ताव को उसी पंचायत का प्रतिपक्षी जिसके पास संसदीय राजनीति का लंबा अनुभव है वह समर्थन करता है, लेकिन ये लोग यह भूल रहे हैं कि यह कृत्य एक दिन उस राजनीतिक विरासत को निवटायेगा जिसपर ये राजनीतिक दल अपनी रोटी सेक रहे हैं।
कुछ लोगों को आषंका है कि राजोआना की फांसी के बहाने पंजाब में फिर से सिख आतंकवाद विस्तार में लगा है। अकाली दल यह मानकर चल रहा है कि उसे सत्ता दिलाने में सिख चरम सोच वालों की भूमिका है इसलिए सिख पंथ के द्वारा संचालित सर्वोच्च संगठन की दल अवहेलना नहीं कर सकता है। इधर एक चिंतन यह भी है कि पंजाब की राजनीति में कांग्रेस ने सिखों के साथ धोखा किया है, सिख यह मानकर चलते हैं। सिखों का कहना है कि बिना उनकी राय लिए पाकिस्तान बना दिया गया। फिर जब पंजाब बना तो सिखों की ताकत को कम करने के लिए केन्द्र सरकार ने पंजाब का विभाजन कर दिया। चंडीगढ पर पंजाब का हक बनता था जिसे नकार दिया गया और चंडीगढ पर हरियाणा का हक जमा रहे इसलिए इसे केन्द्र शासित कर दिया गया। सिख बुद्धिजीवियों का यह भी तर्क है कि जब चंडीगढ को केन्द्र शासित बनाया जा सकता है तो फिर मुम्बई, चेन्नई अैर कोलकात्ता को केन्द्र शासित प्रदेष क्यों नहीं घोषित किया गया। अब नया विवाद तो हैदराबाद को लेकर भी खडा हो रहा है। इस प्रकार सिखों को यह लगता है कि केन्द्र सरकार सिखों के साथ लगातार अन्याय कर रही है। अब इसमें कितनी सत्यता है पता नहीं लेकिन अपने को सिखों की रहनुमा कहने वाली पार्टी षिरोमणी अकाली दल के संरक्षक और प्रदेष के मुख्यमंत्री प्रकाष सिंह बादल ने तो बीते दिन पंजाब विधानसभा में यहां तक कहा दिया कि केन्द्र की नीतियों के कारण देष के अन्य प्रदेष परेषान हैं। इसलिए भारतीय संघ की संघीय ढांचा को मजबूत करने के लिए नये सिरे से संविधान लिखा जाना चाहिए। रही बात राजोआना और उसके फांसी की, फिर पंजाब में आतंकवाद की तो यह संभव है कि पंजाब में एक बार फिर से आतंकवाद विस्तार पाये, यह भी सही है कि जब पंजाब में आतंकवादी जडे मजबूत कर रहे थे, उस समय अकालियों की सराकर थी लेकिन यह कम लोगों को पता है कि पंजाब के आतंकवाद की जननी अखिला भारतीय कांग्रेस कमेटी के नेता हैं। पंजाब में जिसे आतंकवाद षिरोमणि कहा जाता है वह सरदार जरनैल सिंह भिंडरावाला को सबसे पहले ज्ञानी जैल सिंह ने आगे बढाया। पंजाब में ज्ञानी जैल सिंह ने दल खालसा नामक संगठन की नीव रखी जिसका मुखिया भिंडरावाला बनाया गया। उस जमाने में कुछ सिख पंथ नेताओं पर आरोप लगाया गया था। जब मामला न्यायालय में गया तो पंथ ने कहा कि यह मामला पंथ का है और इसका निर्णय पंथ की सर्वोच्च पंचायत में ही होगी। उस समय पंजाब में कांग्रेस की सरकार थी और सरकार ने घुटने टेक दिये, तथा मामले को गुरूद्वारा में न्यायालय लगाकर सिख पंथ के गुरूओं के दबाव में निर्णय सिख चरंपंथियों के पक्ष में किया गया। इस देष में केवल हिन्दू और हिन्दी भाषियों पर ही केन्द्र सरकार की चलती है। बांकी तो अपने मन का करवाने में सफल ही रहते हैं। आज क्या हो रहा है आंतरिक नीति से लेकर विदेष नीति तक क्षुद्र पार्टियों के दबाव में संषोधन किया जा रहा है। ममता जी अपनी पैत्रिक संपति की तरह रेल मंत्रालय चला रही हैं। सोनिया जी ने सलाहकार परिषद बना रखा है और उसी के माध्यम से देष को हांक रही है। एनटनी साहब मिषनरियों के दबाव में रक्षा मंत्रालय को हांक रहे हैं। प्रणब दा वित्त मंत्रालय को व्यापारियों के नाम किये हुए हैं और गृह मंत्रालय इजरायल के इषारे पर संचालित हो रही है। यह देष कहा जा रहा है यह सबको पता है। इसलिए जो प्रदेष इस देष की चिंता में व्यस्त है वह भावना में न बहे। केवल अपने प्रदेष की चिंता करे। संभावना यह है कि इस बार का सिख आतंकवाद चीनी लाल विमान पर माओवाद के रास्ते पंजाब में प्रवेष कर रहा है। यह खतरनाक संकेत है जिसे समझदारी से निवटने की जरूरत है। रही बात अकालियों की तो वर्तमान परिस्थिति को पैदा करने में कांग्रेस की भूमिका ज्यादा है जबकि अकाली शातिर कांग्रेसियों की चाल को नहीं समझ पा रहे हैं। सचमुच अगर राजोआना को माफ कर दिया जाता है तो वे आतंकी कांग्रेसियों को कैसे अपराधी ठहराया जा सकता है जिसने हजारों निर्दोष सिखों को मौत के घाट उतार दिया। तब तो अफजल गुरू को खिताब के लिए चयनित किया जायेगा। इसलिए वर्तमान परिस्थिति में जो अकालियों ने रास्ता चुना है उसके लिए वर्तमान परिस्थिति में उससे बढिया कोई रास्ता नहीं हो सकता है लेकिन अकालियों को यह सोचना होगा कि देष का कानून सर्वोच्च है। गोया केन्द्र और कांग्रेस दोनों को इस मामले पर राजनीतिक करने के बजाय समाधान ढुंढना चाहिए।

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